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Saturday, November 27, 2021

ममता अब राष्ट्रीय-राजनीति में उतरेंगी, कांग्रेस और बीजेपी दोनों का विकल्प बनेंगी?


ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में जो गतिविधियाँ की उन्हें देखते हुए उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की भनक लगती थी, पर पिछले एक हफ्ते की गतिविधियों से लगता है कि वे अब खुलकर इस मैदान में हैं और भारतीय जनता पार्टी के विकल्प के रूप में कांग्रेस के बजाय खुद को पेश करने जा रही हैं। यह बात उनकी पार्टी के हित में जरूर है, पर कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है।

जानकारों का यह भी कहना है कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस के नेताओं को तोड़ा है, कुछ समय बाद बीजेपी के भी कई क्षुब्ध नेताओं को भी तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का रास्ता नजर आ सकता है। यशवंत सिन्हा पहले ही शामिल हो चुके हैं, जबकि तृणमूल कांग्रेस कई अन्य 'क्षुब्ध' बीजेपी नेताओं से संपर्क बना रही है. हाल में ममता बनर्जी ने अपने दिल्ली दौरे के दौरान भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी से मुलाकात की। टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के दिल्ली आवास पर हुई बैठक के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई जाने लगी कि भाजपा नेता स्वामी टीएमसी में शामिल होने वाले हैं। अलबत्ता स्वामी ने इन आरोपों को नकार दिया।

ममता बनर्जी ने भविष्य में मुम्बई यात्रा का कार्यक्रम भी बनाया है। वहाँ शरद पवार और शिवसेना के उद्धव ठाकरे के साथ वे एक लंबे अर्से से संपर्क में हैं। शरद पवार वर्षों से यह बात कह रहे हैं कि कांग्रेस से टूटी पार्टियों को एकसाथ आना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस भी ऐसी ही एक पार्टी है।

मेघालय में बगावत

हाल में अपने दो दिन के दौरे पर आई ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं की, तो पत्रकारों ने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने जो जवाब दिया, उससे लगता है कि वे कांग्रेस से टकराव मोल लेने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी से मुलाकात करने की कोई सांविधानिक जिम्मेदारी नहीं है। मुलाकात न होने की तुलना में दोनों के रिश्तों में कड़वाहट के ज्यादा बड़े कारण मेघालय में पैदा हुए हैं, जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा समेत कांग्रेस पार्टी के 17 में 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।

Sunday, October 3, 2021

जी-23 वाले क्या चाहते हैं?

 


कपिल सिब्बल ने यह कहकर कि पार्टी में इस समय कोई अध्यक्ष नहीं है, एक बड़ी और उत्तेजक बात कह दी है। वास्तव में सोनिया गांधी अध्यक्ष हैं, पर सिब्बल का आशय है कि यह जाग्रत अवस्था नहीं है। कपिल सिब्बल जी-23 में शामिल हैं और पिछले कुछ समय से सबसे ज्यादा मुखर भी हैं। वे पार्टी के भीतर सुधार चाहते हैं और गांधी परिवार को चुनौती भी देते रहते हैं। उन्होंने 29 सितम्बर को प्रेस कांफ्रेंस में कहा, हम जी-23 हैं, जी हुजूर-23 नहीं।

आज के हिन्दू में प्रोफाइल्स के तहत जी-23 के बारे में संदीप फूकन ने रोचक जानकारी दी है। इसके जवाब में चाँदनी चौक से आए कुछ लोगों ने उनके घर के बाहर नारेबाजी की और टमाटर फेंके। चाँदनी चौक, कपिल सिब्बल का चुनाव-क्षेत्र है।

कांग्रेस बनाम कांग्रेस के इस टकराव में गांधी परिवार के समर्थक मानते हैं कि संकट के समय में गांधी परिवार के कारण ही पार्टी जुड़ी रह सकती है, अन्यथा टूट जाएगी। जी-23 में गुलाम नबी आज़ाद, शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनन्द शर्मा, मुकुल वासनिक, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चह्वाण, पीजे कुरियन, रेणुका चौधरी, मिलिन्द देवड़ा, जितिन प्रसाद, राजिन्दर कौर भट्टल, अखिलेश प्रसाद सिंह, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, कुलदीप शर्मा, योगानन्द शास्त्री, संदीप दीक्षित, अजय सिंह, विवेक तन्खा और कपिल सिब्बल के नाम हैं। जितिन प्रसाद पार्टी छोड़ चुके हैं और पीजे कुरियन ने खुद को इस ग्रुप से अलग कर लिया है।

हालांकि जी-23 से जुड़े नेताओं ने गांधी-नेहरू परिवार के प्रति अपनी वफादारी से इनकार नहीं किया है, पर वे इनके फैसलों, खासतौर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के तौर-तरीकों के प्रति अपनी असहमति जताते रहते हैं। इन फैसलों में पंजाब का नवजोत सिद्धू से जुड़ा फैसला और कन्हैया कुमार का पार्टी में प्रवेश भी शामिल है।

पंजाब में कांग्रेस का पराभव

पंजाब से पैदा हुआ कांग्रेस पार्टी का संकट बड़ी शक्ल लेता जा रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू और अमरिंदर सिंह के विवाद को देखते हुए समझ में नहीं आ रहा है कि पार्टी के भीतर समुद्र-मंथन जैसी कोई योजना है या हालात नेतृत्व के काबू के बाहर हैंयह संकट पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले खड़ा हुआ है, इसलिए यह सवाल बनता है कि क्या नेतृत्व को इसका अंदेशा नहीं था? उसे सिद्धू से बड़ी उम्मीदें थीं, तो उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया? कैप्टेन अमरिंदर सिंह जैसे बड़े नेता को हाशिए पर डालने की कोशिश क्यों की गई?

सब कुछ सोचकर हुआ है, तो देखना होगा कि आगे होता क्या है। अमरिंदर सिंह एक नई पार्टी बनाने की सोच रहे हैं। यह पार्टी पंजाब-केन्द्रित होगी या राष्ट्रीय स्तर पर नई कांग्रेस खड़ी होगी? कांग्रेस के एक और विभाजन की यह बेला तो नहीं? फिलहाल कुछ लोग कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक की उम्मीद कर रहे हैं, पर उस बैठक में क्या होगा? अगस्त 2020 में जब पहली बार जी-23 के पत्र का विवाद उछला था, तब कार्यसमिति की बैठक में क्या हुआ था? उस बैठक का निष्कर्ष था कि भाजपा से हमदर्दी रखने वालों का यह काम है। उसके बाद से राहुल गांधी इशारों में कई बार कह चुके हैं कि भाजपा से हमदर्दी रखने वाले जाएं और उससे लड़ने वालों का स्वागत है।

सिद्धू के हौसले

पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के फैसलों से नाराज नवजोत सिद्धू ने पहले इस्तीफा दिया और बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया। पर इससे संदेश क्या गया? क्या सिद्धू किसी परिवर्तनकारी राजनीति को लेकर सामने आए हैं? मोटे तौर पर समझ में आता है कि कैप्टेन को बाहर करने के लिए बहानों की तलाश थी। सिद्धू जी ने खुद को कुछ ज्यादा वजनदार समझ लिया। बाद में उन्हें अपने वजन का सही अंदाज़ हो गया। पर क्या पार्टी ने अमरिंदर के वजन को सही आँका था?

नई कांग्रेस

कहा जा रहा है कि पार्टी विचारधारा और संगठन के स्तर पर नई शक्लो-सूरत के साथ सामने आने वाली है। इस शक्लो-सूरत को वीआईपी सलाहकार प्रशांत किशोर की सहायता से तैयार किया गया है। नौजवान छवि और वामपंथी जुमलों से भरे क्रांतिकारी विचार के साथ पार्टी मैदान में उतरने वाली है। कन्हैया कुमार के शामिल होने से भी इसका आभास होता है। पर क्या अपनों को धक्का देकर और बाहर वालों का स्वागत करके कोई पार्टी अपने प्रभाव को बढ़ा सकेगी? हाल के वर्षों में कांग्रेस की चुनावी विफलताएं कार्यकर्ता के कारण मिलीं हैं या नेतृत्व की वैचारिक धारणाओं के कारण? नए लोगों का स्वागत करके पार्टी जहाँ नई खिड़कियाँ खोल रही है, वहीं पुराने दरवाजे भी बन्द कर रही है। यह रणनीति उसपर भारी पड़ेगी।

Saturday, October 2, 2021

कांग्रेस पर भारी पड़ेगा पंजाब का संकट


पिछले महीने तक कांग्रेस पार्टी का पंजाब-संकट स्थानीय परिघटना लगती थी, जिसके निहितार्थ केवल उसी राज्य तक सीमित थे। पर अब लगता है कि यह संकट बड़ी शक्ल लेने वाला है और सम्भव है कि यह पार्टी के एक और बड़े विभाजन का आधार बने। इस वक्त दो बातें साफ हैं। एक, पार्टी का नेतृत्व किसके पास है, यह अस्पष्ट है। लगता है कि कमान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हाथों में है, पर औपचारिक रूप से उनके पद उन्हें हाईकमान साबित नहीं करते।

दूसरे पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराजगी व्यक्त करने लगे हैं। असंतुष्टों का एक तबका तैयार होता जा रहा है। कुछ लोगों ने अलग-अलग कारणों से पार्टी छोड़ी भी है। ज्यादातर की दिलचस्पी अपने करियर में है। इनमें खुशबू सुन्दर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, लुईज़िन्हो फलेरो, ललितेश त्रिपाठी, अभिजीत मुखर्जी वगैरह शामिल हैं।

पार्टी टूटेगी?

अभी तक मनीष तिवारी, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और आनन्द शर्मा की आवाजें ही सुनाई पड़ती थीं, पर अब शशि थरूर और पी चिदम्बरम जैसे नेताओं की व्यथा कुछ कह रही है। लगता है कि पंजाब की जमीन से पार्टी के विभाजन की शुरुआत होने वाली है, जो देशव्यापी होगा।

पंजाब में नवजोत सिद्धू ने अपनी पाकिस्तान-परस्ती को कई बार व्यक्त किया और उन्हें ऊपर से प्रश्रय मिला या झिड़का नहीं गया। इसके विपरीत कैप्टेन अमरिंदर सिंह मानते हैं कि पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य में राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। वैचारिक स्तर पर पार्टी की लाइन स्पष्ट नहीं है। जो लाइन है, वह बीजेपी के विरोध की लाइन है। यह देखे बगैर कि बीजेपी की लाइन क्या है और क्यों है।

Tuesday, August 10, 2021

राहुल गांधी की अनुपस्थिति में कपिल सिब्बल के घर हुई बैठक के मायने


सोमवार 9 अगस्त को कपिल सिब्बल के घर पर विरोधी-नेताओं की बैठक चर्चा का विषय बन गई है। 15 पार्टियों के क़रीब 45 नेता रात्रिभोज के लिए कपिल सिब्बल के घर पर जमा हुए। इनमें कुछ सांसद भी थे। इसके एक दिन पहले ही कपिल सिब्बल का 73वाँ जन्मदिन मनाया गया था। माना जाता है कि सोनिया गांधी को लिखे गए 23 नेताओं के पत्र के पीछे कपिल सिब्बल प्रमुख प्रस्तावक थे। उन्हें उन नेताओं में शुमार किया जाता है जो राहुल गांधी के तौर-तरीकों से असहमत हैं। इस बैठक के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर सुगबुगाहट है कि इस तरह से बैठक बुलाना क्या सही था?

हर रंग के विरोधी

बैठक में शामिल नेताओं में लालू यादव, शरद पवार, अखिलेश यादव, पी चिदंबरम, डेरेक ओब्रायन, कल्याण बनर्जी, सीताराम येचुरी, डी राजा और संजय राउत, डीएमके के तिरुचि शिवा, जयंत चौधरी, उमर अब्दुल्ला शामिल थे। इनके अलावा बीजेडी के पिनाकी मिश्रा, अकाली दल के नरेश गुजराल, और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह भी शामिल हुए। टीडीपी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस और आरएलडी के नेता भी इनमें थे। इनमें वे पार्टियां शामिल हैं, जो अमूमन विरोधी-दलों बैठकों बुलाई नहीं जातीं या फिर आती नहीं हैं। हाल में राहुल गांधी ने नाश्ते पर बुलाया था तो आम आदमी पार्टी शामिल नहीं हुई थी और बीजेडी, टीडीपी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस को बुलाया नहीं गया था।

राहुल गांधी सोमवार को ही दो दिवसीय दौरे पर कश्मीर गए हैं और इस बीच ये डिनर हुआ है। इतने महत्वपूर्ण नेताओं की बैठक में उनकी अनुपस्थिति अटपटी लगती है। इस डिनर में कांग्रेस के जी-23 के कुछ सदस्य भी शामिल हुए, जिनमें गुलाम नबी आज़ाद, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर, मुकुल वासनिक, पृथ्वीराज चह्वाण और संदीप दीक्षित के नाम प्रमुख हैं। पी चिदंबरम भी मौजूद थे, हालांकि उनकी गिनती जी-23 में नहीं होती।

Sunday, June 13, 2021

कांग्रेस का असंतोष-द्वार


कांग्रेस पार्टी एकबार फिर से संकट का सामना कर रही है। अगले साल के फरवरी-मार्च महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधान सभा चुनाव होंगे। पिछले बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ने के बाद राजस्थान में सचिन पायलट खेमे का हौसला बढ़ा है। शुक्रवार को सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि थी। पिछले साल उनकी पुण्यतिथि से पैदा हुए असंतोष ने फिर से सिर उठाया है। यह आक्रोश किस हद तक जाएगा, इसका पता अगले कुछ दिन में लगेगा। पार्टी हाईकमान ने अजय माकन, रणदीप सुरजेवाला और अविनाश पांडेय को जयपुर भेजा है। सचिन खुद शुक्रवार को दिल्ली आ गए हैं और हाईकमान के सम्पर्क में हैं। उनसे फौरन खतरा नजर नहीं आ रहा है, पर पार्टी में असंतोष है।

पंजाब और राजस्थान

पंजाब में नवजोत सिद्धू की महत्वाकांक्षाओं ने सिर उठाया है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में तीन सदस्यों की समिति ने हाईकमान को सुझाव दिया है कि राज्य में वैकल्पिक नेतृत्व तैयार करना चाहिए। कांग्रेस ने अपेक्षाकृत अच्छे परिणाम पंजाब में दिए हैं। इसके पीछे कैप्टेन अमरिंदर सिंह का कड़क नेतृत्व भी है। फिर भी बीजेपी से कांग्रेस में आए सिद्धू की इतनी हिम्मत कैसे होती है? इसके पीछे कारण है कि वे हाईकमान से रिश्ता बनाकर रखते हैं। एकबार वे कह भी चुके हैं कौन कैप्टेन अमरिंदर? मेरे कैप्टेन राहुल गांधी हैं।

उधर राजस्थान में सचिन पायलट के समर्थकों का कहना है कि पार्टी पंजाब में वैकल्पिक नेतृत्व की बात कर रही है और राजस्थान में हमारी उपेक्षा।  हाईकमान के सूत्र कह रहे हैं कि कोई बगावत राजस्थान में नहीं है। मंत्रिमंडल में खाली पड़े नौ पदों को जल्दी ही भरा जाएगा। इतने पदों के लिए करीब 40 दावेदार हैं। पायलट-समर्थक भी 30-35 हैं। अशोक गहलोत सरकार को बहुमत प्राप्त करने के लिए बसपा और निर्दलीय विधायकों का समर्थन लिया गया था। इनकी कुल संख्या 15 के आसपास है। उन्हें भी जगह देनी है।

Friday, June 11, 2021

अब राजस्थान में कांग्रेसी अंतर्विरोध की लहरें

 


कांग्रेस हाईकमान के आंतरिक अंतर्विरोध फिर से मुखर हो रहे हैं। पिछले साल मध्य प्रदेश उठी लहरें अब राजस्थान में उछाल मार रही हैं। जितिन प्रसाद के फैसले से राजस्थान के सचिन पायलट खेमे का हौसला बढ़ा है। आज सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि है। पिछले साल उनकी पुण्यतिथि से पैदा हुआ असंतोष फिर से सिर उठा रहा है। यह आक्रोश किस हद तक जाएगा, इसका पता जल्द ही लगेगा।

हालांकि सचिन पायलट ने दौसा के कार्यक्रम में शामिल नहीं होने की घोषणा की है, पर किसी तनाव खत्म हुआ नहीं है। मौके की नजाकत को देखते हुए पार्टी हाईकमान ने अजय माकन, रणदीप सुरजेवाला और राजस्थान के प्रभारी अविनाश पांडेय को जयपुर भेजा है। एक आशंका है कि कुछ विधायक इस दौरान इस्तीफा देंगे।

Thursday, June 10, 2021

क्यों साथ छोड़ रहे हैं ‘कांग्रेस के युवा-सितारे?’

कांग्रेस का मार्च 2018 का ट्वीट
बुधवार को जैसे ही जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की खबर आई कर्नाटक के युवा सांसद तेजस्वी सूर्य ने कांग्रेस पार्टी के एक पुराने ट्वीट को शेयर किया। यह ट्वीट मार्च 2018 में हुए कांग्रेस महासमिति के सम्मेलन के मौके पर जारी किया गया था। इसमें अंग्रेजी में लिखा था द यंग गन्स ऑफ द पार्टी एट कांग्रेस प्लैनरी-2018।इसमें पार्टी के पाँच युवा नेताओं की तस्वीरें थीं। ये थे ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा और दिव्य स्पंदना।

तेजस्वी सूर्य ने अपने ट्वीट में लिखा, कांग्रेस अपने युवाओं के साथ कैसा बर्ताव करती है? इनमें से दो पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। दो का एक-एक पैर बाहर है। और एक (यानी दिव्य स्पंदना) लापता है।

सात साल पहले कांग्रेस पार्टी से भगदड़ का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह बजाय कम होने के तेज होता जा रहा है। केवल विधायकों या उस स्तर के नेताओं को ही शामिल किया जाए, तो यह संख्या अबतक सैकड़ों में पहुँच चुकी है। हाल में केरल विधानसभा के चुनावों के ठीक पहले जब पीसी चाको ने पार्टी छोड़ी, तो किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं की तरफ अब कोई ध्यान दे भी नहीं रहा है।

उठा-पटक जारी

पार्टी के भीतर लगातार उठा-पटक जारी है। पंजाब विधानसभा के चुनाव करीब हैं और वहाँ नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बीच टकराव चल रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सिद्धू को लगता है कि उन्हें हाईकमान का सहारा है। राजस्थान में भी कलह है।

वास्तव में किसी पार्टी का भविष्य उसके युवा नेताओं से जुड़ा होता है। पर जब उदीयमान युवा नेता पार्टी छोड़कर जाने लगें, तो सवाल पैदा होते हैं कि यह हो क्या रहा है। पिछले कुछ वर्षों में राहुल गांधी ने अपने जिन युवा सहयोगियों को बढ़ावा दिया है, वे क्यों भाग रहे हैं? पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने बुधवार को पार्टी छोड़कर पार्टी को गहरा सदमा पहुँचाया है। इन खबरों से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है।

Wednesday, June 9, 2021

जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस छोड़ी


उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के युवा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे। 2019 में भी कांग्रेस छोड़कर उनके बीजेपी में आने की चर्चा चली थी, पर अंतिम क्षणों में वह घोषणा रुक गई। उस वक्त खबर थी कि जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल होने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं। बहरहाल बाद में खबर आई कि प्रियंका गांधी ने उन्हें फोन करके मना लिया और प्रसाद रास्ते से लौट गए। अब कहा जा रहा है कि इसबार जितिन प्रसाद ने दो दिनों से अपना फोन बंद कर रखा था।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर करने के बीजेपी के अभियान की शुरुआत हो गई है। जितिन प्रसाद ब्राह्मणों के बड़े नेता माने जाते हैं और यूपी में ब्राह्मण मतदाताओं की 10% की बड़ी हिस्सेदारी है।  जितिन प्रसाद ने बीजेपी मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता लेने के बाद कहा कि मैंने कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का फैसला बहुत सोच-समझकर लिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के नाम पर कोई राजनीतिक दल है तो वह एकमात्र बीजेपी है। उन्होंने कहा, "मैं ज्यादा बोलना नहीं चाहता हूं, मेरा काम बोलेगा। मैं बीजेपी कार्यकर्ता के रूप में 'सबका साथ, सबका विश्वास' और 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के लिए काम करूंगा।"

यूपी में महत्वपूर्ण भूमिका

पीयूष गोयल ने उन्हें बीजेपी मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता दिलाई। उन्होंने जितिन प्रसाद को उत्तर प्रदेश का बड़ा नेता बताया और कहा कि यूपी की राजनीति में प्रसाद की बड़ी भूमिका होने वाली है। गोयल ने उत्तर प्रदेश की जनता के हित में जितिन प्रसाद के किए गए कामों का भी उल्लेख किया और कहा कि उनके आने से यूपी में बीजेपी का हाथ और मजबूत हुआ है।

Wednesday, March 10, 2021

पीसी चाको के हटने से कांग्रेस को एक और झटका


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने पार्टी से नाता तोड़कर कांग्रेस पार्टी की आंतरिक राजनीति को चौराहे पर खड़ा कर दिया है। ऐसा नहीं है कि इस इस्तीफे से केरल में पार्टी की गुटबंदी खत्म हो जाएगा, पर इतना जरूर है कि केंद्रीय नेतृत्व का ध्यान इस ओर जाएगा। चाको ने कहा है कि पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है। इसके पीछे कोई और नहीं, खुद पार्टी है।

पीसी चाको ने अपना इस्तीफा पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा। केरल में 6 अप्रैल को होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले इस इस्तीफे से पार्टी की संभावनाओं पर भी असर पड़ेगा। यों भी माना जा रहा है कि इसबार वाममोर्चे की सरकार बनने जा रही है, जो केरल की राजनीति में एक नई बात होगी। अभी तक का चलन था कि एकबार वामपंथी सरकार बनती थी, तो उसके बाद कांग्रेसी। पर इसबार शायद वामपंथी सरकार लगातार दूसरी बार बनेगी।

चाको ने केरल में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं रमेश चेन्नीथला और ओमान चैंडी और उनके दो गुटों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि दोनों नेता हमेशा सीटें और संगठन के बाद आपस में बांट लेते हैं। केरल में केवल उन नेताओं का भविष्य है जो इनमें से किसी ग्रुप का हिस्सा हैं, अन्य को हमेशा दरकिनार कर दिया जाता है। मैं हाईकमान से कहता रहा हूं कि इस पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन आलाकमान भी इन समूहों के दिए प्रस्तावों से सहमत है।''

चाको ने पार्टी के भीतर ग्रुप-23 का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा, नेताओं ने मुझसे भी सम्पर्क साधा था, पर मैं किसी पत्र-अभियान के पक्ष में नहीं था। अलबत्ता मैं पत्र में उठाए गए सवालों से सहमत था। अफसोस की बात है कि पार्टी पिछले डेढ़ साल में अपने लिए अध्यक्ष नहीं खोज पाई।

Tuesday, December 22, 2020

प्रियंका गांधी के प्रयास से संभव हुई कांग्रेस के असंतुष्टों के साथ बैठक


इंडियन एक्सप्रेस की खबर है कि प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से कांग्रेस पार्टी के 23 असंतुष्टों के साथ सोनिया गांधी की
मुलाकात के रास्ते खुले। अखबार ने पार्टी सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि प्रियंका का पत्र लिखने वाले नेताओं में से एक के साथ सम्पर्क बना हुआ था। वे प्रयास कर रही थीं कि मामला किसी तरह से सुलझे, क्योंकि पार्टी के भीतर टकराव के रहते भारतीय जनता पार्टी के साथ मुकाबला करना आसान नहीं होगा।

उधर 23 नेता भी संवाद चाहते थे, पर अगस्त में उस पत्र के सामने आने के बाद उनपर जिस किस्म के हमले हुए उससे उनका रुख भी कड़ा होता गया। उसके बाद बात गाली-गलौज तक पहुँच गई और नेतृत्व की ओर से उनकी बात को समझने की कोई कोशिश दिखाई नहीं पड़ी।

Saturday, December 19, 2020

क्या राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष बनने को तैयार हैं?


कांग्रेस पार्टी में कुछ वरिष्ठ नेताओं के असंतोष को लेकर करीब चार महीने की चुप्पी के बाद अंततः आज 19 दिसंबर को 10, जनपथ पर सोनिया गांधी की अध्यक्षता में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। बैठक पाँच घंटे तक चली। इसमें अशोक गहलोत, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चह्वाण, शशि थरूर, मनीष तिवारी, अम्बिका सोनी, पी चिदंबरम समेत कुछ नेता शामिल हुए। इनके अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी इस मौके पर उपस्थित थे। इस बैठक से पार्टी के भीतर का मौन तो टूटा है, पर किसी न किसी स्तर पर असंतोष बाकी है। 

एनडीटीवी की वैबसाइट के अनुसार बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि मैं उसी तरह काम करने को तैयार हूँ जैसा आप लोग कहेंगे। पवन बंसल के हवाले से यह खबर देते हुए एनडीटीवी ने यह भी लिखा है कि जब पवन बंसल से पूछा गया कि क्या इससे यह माना जाए कि राहुल फिर से अध्यक्ष बनने को तैयार हैं, तब बंसल ने कहा कि राहुल को लेकर कोई मसला नहीं है, पर अपने शब्द मेरे मुँह से मत कहलवाइए। पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। यों भी असंतुष्ट इस बात को कह रहे हैं कि पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर चुनाव होना चाहिए।

अखबार हिंदू की वैबसाइट के अनुसार पार्टी ने आंतरिक विषयों पर चिंतन-शिविर आयोजित करने का निश्चय किया है। यह जानकारी हिंदू ने पवन बंसल के हवाले से दी है। उधर समाचार एजेंसी एएनआई ने पृथ्वीराज चह्वाण के हवाले से खबर दी है कि बैठक सकारात्मक माहौल में हुई, जिसमें वर्तमान स्थितियों में पार्टी के हालचाल और उसे मजबूत बनाने के तरीकों पर विचार किया गया। एनडीटीवी की खबर के अनुसार राहुल गांधी ने इस बैठक में भी कुछ वरिष्ठ नेताओं को संबोधित करते हुए अपनी बात कहने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने कमलनाथ को संबोधित करते हुए कहा कि जब आप मुख्यमंत्री थे, तब राज्य को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चला रहा था।