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Wednesday, March 23, 2022

संकट में इमरान, पाक-राजनीति में घमासान

कार्टून फ्राइडे टाइम्स से साभार
पाकिस्तान में इमरान सरकार के सामने परेशानियों के पहाड़ खड़े हो गए हैं। उनके खिलाफ संसद में अविश्वास-प्रस्ताव रखा गया है। उनके विरोधी एकजुट होकर उन्हें हर कीमत पर अपदस्थ करना चाहते हैं। शायद सेना भी ने भी उनकी पीठ पर से हाथ हटा लिया है। पूरे आसार हैं कि संसद में रखे गए अविश्वास प्रस्ताव में वे हार जाएंगे। इमरान सरकार को अभी तीन साल आठ महीने हुए हैं। लगता है कि पाँच साल का पूरा कार्यकाल इसके नसीब में भी नहीं है। विडंबना है कि पाकिस्तान में किसी भी चुने हुए प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।  

इमरान खान की हार या जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण है, पाकिस्तानी व्यवस्था का भविष्य। यह केवल वहाँ की आंतरिक राजनीति का मसला नहीं है, बल्कि विदेश-नीति में भी बड़े बदलावों का संकेत मिल रहा है। इमरान जीते या हारे, कुछ बड़े बदलाव जरूर होंगे। बदलते वैश्विक-परिदृश्य में यह बदलाव बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा। 

अविश्वास-प्रस्ताव

बताया जा रहा है कि 28 मार्च को अविश्वास-प्रस्ताव पर मतदान हो सकता है। इमरान खान की पार्टी तहरीके इंसाफ ने उसके एक दिन पहले 27 मार्च को इस्लामाबाद में विशाल रैली निकालने का एलान किया है। उसी रोज विरोधी ‘पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट’ की विशाल रैली भी इस्लामाबाद में प्रवेश करेगी। क्या दोनों रैलियों में आमने-सामने की भिड़ंत होगी? देश में विस्फोटक स्थिति बन रही है।

पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नून और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के करीब 100 सांसदों ने 8 मार्च को नेशनल असेंबली सचिवालय को अविश्वास प्रस्ताव दिया था। सांविधानिक व्यवस्था के तहत यह सत्र 22 मार्च या उससे पहले शुरू हो जाना चाहिए था, पर 22 मार्च से संसद भवन में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का 48वाँ शिखर सम्मेलन शुरू हुआ है, इस वजह से अविश्वास-प्रस्ताव पर विचार पीछे खिसका दिया गया है।

Thursday, November 12, 2020

पाकिस्तान में सेना ने विरोधी दलों से संपर्क साधा

बुधवार को बल्तिस्तान में मरयम नवाज शरीफ जिस स्थानीय वेशभूषा में थीं, वह तुर्की ड्रामा सीरियल एर्तुग्रल की एक महत्वपूर्ण पात्र हलीमे सुल्तान की वेशभूषा से मिलती-जुलती थी। उन्होंने नीले रंग का परिधान पहना था, जो इस सीरियल की अभिनेत्री एसरा बिल्जिक के परिधान से मिलता जुलता है। 

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में पीपुल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) को देखते हुए वहाँ की सेना ने इन विरोधी दलों के साथ बातचीत करने की पेशकश की है। जियो न्यूज के अनुसार नवाज शरीफ की बेटी और
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) की उपाध्यक्ष मरियम नवाज शरीफ ने कहा है कि हम मिलिटरी एस्टेब्लिशमेंट के साथ बातचीत करने को तैयार हैं, बशर्ते वे पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी के इमरान खान से पल्ला झाड़ने को तैयार हो जाएं।

मरियम ने बीबीसी की उर्दू सेवा से कहा, 'फ़ौज मेरा इदारा (संस्था) है हम ज़रूर बात करेंगे, लेकिन आईन (संविधान) के दायरा कार में रहते हुए। अगर कोई क्रीज़ से निकल कर खेलने की कोशिश करेगा, जो (दायरा कार आईन ने वज़ा कर दिया है इस में रह कर बात होगी, और वो बात अब अवाम के सामने होगी, छिप-छुपा कर नहीं होगी। उन्होंने कहा कि 'मैं इदारे के मुख़ालिफ़ नहीं हूँ मगर समझती हूँ कि अगर हमने आगे बढ़ना है तो इस हुकूमत को घर जाना होगा।

Tuesday, October 13, 2020

पाकिस्तान में सेना-विरोधी मोर्चा

पिछले हफ्ते पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अचानक ट्विटर पर अपना हैंडल शुरू कर दिया। पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर अचानक राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं। विरोधी दलों ने एक नए आंदोलन की शुरुआत कर दी है, जिसका निशाना इमरान खान के साथ सेना भी है। इस आंदोलन के तेवर को देखते हुए विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी ने विरोधी दलों से अपील की है कि वे देश की संस्थाओं पर आरोप न लगाएं। यह देश के हित में नहीं होगा। यहाँ उनका आशय सेना से ही है। नवाज शरीफ आजकल लंदन में रह रहे हैं और लगता नहीं कि वे जल्द वापस आएंगे, पर लगता है कि वे लंदन में रहकर पाकिस्तानी राजनीति का संचालन करेंगे। उनकी बेटी मरियम देश में इस अभियान में शामिल हैं। उनके साथ बेनजीर भुट्टो के पुत्र बिलावल भुट्टो भी इमरान खान और सेना विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए हैं।

गत 20 सितंबर को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की ओर से आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी को छोड़कर शेष ज्यादातर बड़े दल शामिल हुए और उन्होंने पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंटनाम से एक नए जनांदोलन का आह्वान किया है। दस से ज्यादा विरोधी दलों ने एक मंच पर आकर इमरान खान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यह मोर्चा एक तरह से सेना के खिलाफ भी है, जिसपर इमरान खान को कुर्सी पर बैठाने का आरोप है।

Friday, January 13, 2012

कसौटी पर पाकिस्तानी लोकतंत्र

इस वक्त भारत के पाँच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं और हैं और हम अपने लोकतंत्र के गुण-दोषों को लेकर विमर्श कर रहे हैं, पड़ोसी देश पाकिस्तान से आ रही खबरें हमें इस बातचीत को और व्यापक बनाने को प्रेरित करती हैं। भारत और पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति एक नज़र में एक-दूसरे को प्रभावित करती नज़र नहीं आती, पर व्यापक फलक पर असर डालती है। मसलन भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य हो जाएं तो पाकिस्तान की राजनीतिक संरचना बदल जाएगी। वहाँ की सेना की भूमिका बदल जाएगी। इसी तरह भारत में ‘राष्ट्रवादी’ राजनीति का रूप बदल जाएगा। रिश्ते बिगड़ें या बनें दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। इसीलिए पिछले साल अगस्त में अन्ना हजारे के अनशन के बाद पाकिस्तान में भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की हवाएं चलने लगी थीं। भारत की तरह पाकिस्तान में भी सबसे बड़ा मसला भ्रष्टाचार का है। पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाएं मुकाबले भारत के अपेक्षाकृत कमज़ोर हैं और देर से विकसित हो रहीं हैं, पर वहाँ लोकतांत्रिक कामना और जन-भावना नहीं है, ऐसा नहीं मानना चाहिए। हमारे मीडिया में इन दिनों अपने लोकतंत्र का तमाशा इस कदर हावी है कि हम पाकिस्तान की तरफ ध्यान नहीं दे पाए हैं।