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Monday, September 21, 2020

साइबर-सूराखों के रास्ते ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’

इस हफ्ते ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’ से जुड़ी दो सनसनीखेज खबरें हैं। सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी एक चीनी कंपनी ‘विदेशी निशाने’ नाम से डेटाबेस तैयार कर रही है, जिसमें बड़ी संख्या में दुनियाभर के लोगों पर नजरें रखी जा रहीं हैं। जिन पर निगाहें हैं उनमें भारत के दस हजार से ज्यादा व्यक्ति शामिल हैं। ज्यादातर महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। उनके बारे में चीन क्या जानना चाहता है, क्यों जानना चाहता है ऐसे सवालों के जवाब बाद में मिलेंगे, पर जब इस सिलसिले में पूछताछ की गई तो पूरी वैबसाइट डाउन कर दी गई। इससे लगता है कि इसके पीछे कोई रहस्य जरूर है। कम से कम दुनिया में साइबर शक्ति के बढ़ते इस्तेमाल का पता इससे जरूर लगता है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ज़ेंज़ुआ डेटा इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनी की ओर से जिन भारतीयों पर नज़र रखी जा रही है, उनमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, गांधी परिवार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, नवीन पटनायक जैसे बड़े नेता, राजनाथ सिंह-पीयूष गोयल जैसे केंद्रीय मंत्री, सीडीएस विपिन रावत समेत कई बड़े सेना के अफसर शामिल हैं। समाज के हरेक वर्ग के लोगों पर चीन की निगाहें हैं।

Wednesday, July 28, 2010

सायबर क्राइम का मास्टरमाइंड पकड़ा गया

स्लोवेनिया में एक कम्प्यूटर हैकर पकड़ा गया है, जिसने मैरीपोसा या बटरफ्लाई नाम के वायरस को लिखा था। इसरडो नाम के जिस 23 वर्षीय युवा को पकड़ा गया है वह साइबर क्राइम की महत्वपूर्ण कड़ी बताया गया है। 


इंटरनेट पर धोखाधड़ी से कमाई करने वाला एक चक्र है। इसे बॉटनेट कहते हैं। इसमें सॉफ्टवेयर बनाने वाले, रोबो, आर्थिक अपराधी और कई तरह के लोग शामिल हैं। इसका पहला काम आपके कम्प्यूटर की बॉट लगाना है। यानी यह आपकी जानकारी के बगैर आपके कम्प्यूटर में एक प्रोग्राम इंस्टॉल हो जाता है। इस प्रकार आपका एक नेटवर्क में आपकी जानकारी के बगैर शामिल हो जाता है, जैसे अक्सर किसी अपराधी के गिरोह में शामिल होकर परवश हो जाते हैं।  यह आपके कम्प्यूटर से दूसरों को स्पैम ई-मेल भेजता है। आपके बैंक कार्ड वगैरह की जानकारी भी वह निकाल लेता है। इसके बाद आपके कम्प्यूटर में  यह प्रोग्राम डालने वाला आपकी जानकारी आपराधिक गिरोहों को बेचता है। 


बताते हैं मैरीपोसा बॉटनेट नियंत्रण के बाहर हो गया था। पर आमतौर पर ऐसे लोग अपनी सफलता के ही शिकार होते हैं। उनकी सफलता उन्हें अपने दायरे का विस्तार करने को प्रेरित करती है। जिस बॉटनेट के प्रणेता को पकड़ा गया है उसके शिकार करीब 1.20 करोड़ कम्प्यूटर थे। इनमें अनेक बैंकों के कम्प्यूटर भी थे। 











बॉटनेट का सूत्रधार पकड़ा गया बीबीसी की खबर
फॉक्सन्यूज़ की खबर
एक और खबर
क्या होता है बॉटनेटः देखें विकीपीडिया

विकीलीक्स जैसे काम क्या सही हैं?

विकीलीक्स का नाम इस बार काफी बड़े स्तर पर सामने आया है, पर पत्रकारिता तो काफी हद तक इस तरह की लीक के सहारे चलती रही है। कोई न कोई भीतर के भेद बाहर करता है। विकीलीक्स ने 92000 से ज्यादा दस्तावेज़ बाहर निकाले हैं । इसका मतलब है कि एक-दो नहीं काफी लोग इस काम में लगे होंगे। दस्तावेज़ ओबामा प्रशासन से पहले के हैं। इनमें नई बात कोई खास नहीं है। अलबत्ता एक जानकारी नई है कि तालिबान के पास हीट सीकिंग विमानभेदी मिसाइलें हैं। 


ऐसी जानकारियाँ बाहर आने से रक्षा व्यवस्था को ठेस लगना स्वाभाविक है। यह जानकारी तालिबान के पास भी गई है। इससे उनकी रणनीति को मदद मिलती है। खुफिया जानकारी को जाहिर न करने की कानूनी व्यवस्था है। अमेरिकी खुफिया विभाग को अब यह पता लगाना होगा कि लीक कैसे हुआ। 


इस लीक में जिस 'टॉर' तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, उसका उद्देश्य सार्वजनिक हित में काम करना है। साथ ही हैकिंग के नैतिक पहलू भी सामने आए हैं। सरकारें सार्वजनिक हित में काम करतीं हैं या गैर-सरकारी लोग सार्जनिक हित में काम करते हैं, इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। बहरहाल सोचने-बिचारने के लिए एक नया विषय हमारे पास है।  हम इस मामले को अमेरिका के संदर्भ में देखते हैं, पर यदि ऐसा लीक हमारे देश में होता तब क्या हमारी यही प्रतिक्रिया होती? 


हिन्दुस्तान में प्रकाशित मेरा लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें

कुछ उपयोगी लिंक
अमेरिका ने वॉर फंडिंग बिल पास किया
लीक दस्तावेज़ों को समझने में हफ्तों लगेंगे
ओबामा ने लीक के सहारे अपनी नीति को सही बताया
अमेरिकी लीक्स का इतिहास
हूट में नूपुर बसु का लेख