म्यांमार की फौज ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार का
तख्ता-पलट करके दुनियाभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। सत्ता सेनाध्यक्ष मिन आंग
लाइंग के हाथों में है और देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची तथा राष्ट्रपति विन
म्यिंट समेत अनेक राजनेता नेता हिरासत में हैं। संसद भंग कर दी गई है और सत्ताधारी
नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के ज्यादातर नेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं या
घरों में नजरबंद हैं।
दूसरी तरफ पूरे देश में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना का आंदोलन चल रहा
है। एक तरह से गृहयुद्ध की स्थिति है। हिंसा में अबतक सात सौ ज्यादा लोगों की जान
जा चुकी है। पिछली 9 अप्रेल को सुरक्षाबलों ने को यांगोन शहर के पास प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ
चलाई जिससे 80 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई। सेना का कहना है कि उसने देश में
तख़्तापलट इसलिए किया क्योंकि नवंबर में आंग सान सू ची की पार्टी ने हेरफेर से
चुनाव जीता था। एनएलडी ने नवंबर में हुए चुनाव में भारी जीत हासिल की थी। चुनाव के
आधार पर नवगठित संसद का अधिवेशन 1
फरवरी से होना था। सेना कह रही थी कि चुनाव में धाँधली हुई है, जो हमें मंजूर नहीं। सेनाध्यक्ष मिन आंग लाइंग
ने नई संसद का सत्र शुरू होने के एक हफ्ते पहले धमकी दी थी कि संसद को भंग कर
देंगे। एनएलडी ने इस धमकी की अनदेखी की।
सैनिक शासन
सत्ता से बेदखल कर दिए गए नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
से सेना के ख़िलाफ़ कार्रवाई की अपील की। बेदखल सांसदों की ओर से कार्यवाहक विदेशमंत्री
के रूप में काम कर रही ज़िन मार आंग ने कहा, हमारे लोग अपने अधिकार और आज़ादी पाने
के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार हैं। देश में एक साल का आपातकाल घोषित करने
के बाद सेना ने कहा है कि साल भर सत्ता हमारे पास रहेगी। फिर चुनाव कराएंगे।
विदेश-नीति से जुड़े अमेरिकी थिंकटैंक कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की वैबसाइट पर जोशुआ कर्लांज़िक ने लिखा है कि सेना एक साल की बात कह तो रही है, पर अतीत का अनुभव है कि यह अवधि कई साल तक खिंच सकती है। सेना के लिखे संविधान में लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता-पलट करके सैनिक शासन लागू करने की व्यवस्था है।