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Thursday, March 17, 2022

कांग्रेस में फिर चिंतन का दौर


जैसी कि उम्मीद थी, पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद, तीन तरह की गतिविधियाँ शुरू हुई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने चार राज्यों में सरकारें बनाने का काम शुरू किया है और साथ ही इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। आम आदमी पार्टी ने पंजाब की विजय के सहारे अपने विस्तार की योजनाएं बनानी शुरू की हैं। वहीं कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने अपनी भविष्य की रणनीतियों पर विचार करना शुरू कर दिया है।

राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की गतिविधियों के फर्क को आसानी से देखा जा सकता है। जहाँ 10 मार्च को नरेंद्र मोदी गुजरात में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत कर रहे थे, वहीं कांग्रेस किंकर्तव्यविमूढ़ थी। रविवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के पहले अफवाह थी कि गांधी परिवार के सदस्य अपने पद छोड़ने जा रहे हैं। अलबत्ता पार्टी ने इन खबरों का खंडन किया हैजिसमें कहा गया था कि गांधी परिवार के सदस्य संगठनात्मक पदों से इस्तीफा दे देंगे। हालांकि पार्टी ने पाँचों राज्यों के पार्टी अध्यक्षों से इस्तीफे ले लिए हैं, साथ ही तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि यह हार गांधी परिवार के कारण नहीं हुई है।

बैठक में सोनिया गांधी के अलावा, पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मल्लिकार्जुन खड़गे, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कई अन्य नेता शामिल हुए। इस बैठक के दो निष्कर्ष थे। एक, गांधी परिवार जरूरी है। और दूसरा यह कि पार्टी की फिर से वापसी के प्रयास होने चाहिए। इनमें एक सुझाव चिंतन-शिविर का भी है।

ताजा खबर है कि यह राष्ट्रीय चिंतन शिविर अगले महीने राजस्थान में हो सकता है। दो दिवसीय चिंतन शिविर में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य, विधायक दल के नेता, प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्ष, अग्रिम संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता शामिल किए जाने का प्रस्ताव है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से चिंतन शिविर राजस्थान में आयोजित करने का प्रस्ताव रखा है। सोनिया और राहुल गांधी की लगभग सहमति मिल गई है। अधिकारिक रूप से अगले कुछ दिनों में चिंतन शिविर राजस्थान में करने की घोषणा की जाएगी। गहलोत की इस संबंध में पार्टी के संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल से भी चर्चा हुई है। सूत्रों के अनुसार, चिंतन शिविर के दौरान अशोक गहलोत राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव रख सकते हैं। वहीं, कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और उदयपुर के पूर्व सांसद रघुवीर मीणा इस प्रस्ताव का समर्थन करने को तैयार हैं।

चिंतन माने क्या?

पता नहीं चिंतन-शिविर से कांग्रेस का तात्पर्य क्या है, पर हाल के वर्षों का अनुभव है कि पार्टी ने अपनी संगठनात्मक-क्षमता में सुधार के बजाय इस बात को समझने पर ज्यादा ध्यान दिया है कि परिवार के प्रति वफादार कौन लोग हैं। पार्टी का पिछला चिंतन-शिविर जनवरी 2013 में जयपुर में लगा था। उसमें राहुल गांधी को जिम्मेदारी देने पर ही विचार होता रहा। पार्टी ने राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बना दिया था। उनकी सदारत में पार्टी पुराने संगठन, पुराने नारों और पुराने तौर-तरीकों को नए अंदाज़ में आजमाने की कोशिश करती नज़र आ रही थी। उसके पहले 4 नवम्बर, 2012 को दिल्ली के रामलीला मैदान में अपनी संगठनात्मक शक्ति का प्रदर्शन करने और 9 नवंबर को सूरजकुंड में पार्टी की संवाद बैठक के बाद सोनिया गांधी ने 2014 के चुनाव के लिए समन्वय समिति बनाने का संकेत किया और फिर राहुल गांधी को समन्वय समिति का प्रमुख बनाकर एक औपचारिकता को पूरा किया। जयपुर शिविर में ऐसा नहीं लगा कि पार्टी आसन्न संकट देख पा रही है। संयोग है कि उस समय तक भारतीय जनता पार्टी केंद्रीय सत्ता पाने के प्रयास में दिखाई नहीं पड़ रही थी और न उसके भीतर उसके प्रति आत्मविश्वास नजर आ रहा था। अलबत्ता नरेन्द्र मोदी अपना दावा पेश कर रहे थे और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उसे स्वीकार करने में आनाकानी कर रहा था।

Wednesday, January 23, 2013

शिन्दे जी ने यह क्या कह दिया?

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून
कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि कितनी भी अच्छी स्क्रिप्ट हो, कहानी के अंत में एंटी क्लाइमैक्स हो जाता है। जयपुर में राहुल गांधी के भावुक वक्तव्य और पार्टी की नई दिशा के सकारात्मक  इशारों के बावज़ूद सुशील कुमार शिन्दे के छोटे से वक्तव्य ने एजेंडा बदल दिया। चर्चा जिन बातों की होनी चाहिए थी, वे पीछे चली गईं और बीजेपी को अच्छा मसाला मिल गया। जैसे 2007 के गुजरात चुनाव में  सोनिया गांधी के मौत के सौदागर वक्तव्य ने काम किया लगभग वही काम शिन्दे जी के वक्तव्य ने किया है।

ऐसा नहीं कि शिन्दे जी नादान हैं। और न दिग्विजय सिंह अबोध है। भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग इसके पहले तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम भी कर चुके हैं। ये वक्तव्य कांग्रेस की योजना का हिस्सा हैं। पर इस बार तीर गलत निशाने पर जा लगा है। खासकर हाफिज सईद के बयान से इसे नया मोड़ मिल गया। जनार्दन द्विवेदी ने पार्टी की ओर से तत्काल सफाई पेश कर दी, पर नुकसान जो होना था वह हो गया। कांग्रेस इधर एक तरफ संगठित नज़र आ रही थी और दूसरी ओर गडकरी प्रकरण के कारण भाजपा का जहाज हिचकोले ले रहा था। पर भाजपा को इसके कारण सम्हलने का मौका मिल गया। इनकम टैक्स विभाग के छापों के बाद गडकरी के लिए टिके रहना और मुश्किल हो गया, पर इसका लाभ भाजपा को ही मिला। अब वह अपेक्षाकृत बेहतर संतुलित हो गई है, हालांकि उसका जहाज दिशाहीन है।

Monday, January 21, 2013

राहुल के पदारोहण से आगे नहीं गया जयपुर चिंतन


राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने मात्र से कांग्रेस का पुनरोदय नहीं हो जाएगा, पर इतना ज़रूर नज़र आता है कि कांग्रेस अपनी खोई ज़मीन को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है। राहुल चाहेंगे तो वे उन सवालों को सम्बोधित करेंगे जो आज प्रासंगिक हैं। राजनीति में इस बात का महत्व होता है कि कौन जनता के सामने अपनी इच्छा व्यक्त करता है। फिलहाल कांग्रेस के अलावा दूसरी कोई पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने की इच्छा व्यक्त नहीं कर रहीं है। सम्भव है कल यह स्थिति न रहे, पर आज बीजेपी यह काम करती नज़र नहीं आती। बीजेपी ने राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनाए जाने पर वंशानुगत नेतृत्व का नाम लेकर जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है, वह नकारात्मक है। कांग्रेस यदि वंशानुगत नेतृत्व चाहती है तो यह उसका मामला है। आप स्वयं को उससे बेहतर साबित करें। अलबत्ता कांग्रेस पार्टी ने जयपुर में वह सब नहीं किया, जिसका इरादा ज़ाहिर किया गया था। अभी तक ऐसा नहीं लगता कि यह पार्टी बदलते समय को समझने की कोशिश कर रही है। लगता है कि जयपुर शिविर केवल राहुल गांधी को स्थापित करने के वास्ते लगाया गया था। कांग्रेस को गठबंधन की राजनीति और देश के लिए उपयुक्त आर्थिक और प्रशासनिक नीतियों की ज़रूरत है। साथ ही उन नीतियों को जनता तक ठीक से पहुँचाने की ज़रूरत भी है। फिलहाल लगता है कि कांग्रेस विचार-विमर्श से भाग रही है। उसके मंत्री फेसबुक और सोशल मीडिया को नकारात्मक रूप में देख रहे हैं, जबकि सोशल मीडिया उन्हें मौका दे रहा है कि अपनी बातों को जनता के बीच ले जाएं। पर इतना ज़रूर ध्यान रखें कि देश के नागरिक और उनके कार्यकर्ता में फर्क है। नागरिक जैकारा नहीं लगाता। वह सवाल करता है। सवालों के जवाब जो ठीक से देगा, वह सफल होगा।