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Thursday, January 23, 2014

फंदे में फँसी 'आप'

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के सिलसिले में चौरी चौरा का नाम अक्सर सुनाई पड़ता है, जब महात्मा गांधी ने आंदोलन के हिंसक हो जाने के बाद उसे वापस ले लिया था। हिंसा से आहत गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित कर दिया, जो बारदोली से शुरू होने वाला था। गांधी की राजनीति दीर्घकालीन थी। उसमें साधन और साध्य की एकता को साबित करने की इच्छा थी। लगता है कि अरविंद केजरीवाल को किसी बात की जल्दी है। उनके दो दिन के आंदोलन के दौरान एक बात साफ दिखाई पड़ी कि वे जितना करते हैं उससे ज्यादा दिखाते हैं। केंद्र सरकार की भी किरकिरी हो रही थी, इसलिए आप को नाक बचाने का मौका दिया। और केजरीवाल ने शुक्रिया के अंदाज में इसे महान विजयघोषित कर दिया।

Sunday, January 19, 2014

अब आप के कर्णधारों को सोचना चाहिए

पिछले महीने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की अचानक जीत के बाद राहुल गांधी ने कहा था, नई पार्टी को जनता से जुड़ाव के कारण सफलता मिली और इस मामले में उससे सीखने की जरूरत है। हम इससे सबक लेंगे। पर इसी शुक्रवार को कांग्रेस महासमिति की बैठक में उन्होंने कहा, विपक्ष गंजों को कंघे बेचना चाहता है और नया विपक्ष कैंची लेकर गंजों को हेयर स्टाइल देने का दावा कर रहा है। आम आदमी पार्टी के प्रति उनका आदर एक महीने के भीतर खत्म हो गया। उन्होंने अपने जिन कार्यक्रमों की घोषणा की उनमें कार्यकर्ताओं की मदद से प्रत्याशी तय करने और चुनाव घोषणापत्र बनने की बात कही, जो साफ-साफ आप का असर है।

राहुल को आप के तौर-तरीके पसंद हैं, पर आप नापसंद है। भारतीय जनता पार्टी ने तो पहले दिन से उसकी लानत-मलामत शुरू कर दी थी। उसने दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान इस बात पर जोर देकर कहा कि 'आप' और कुछ नहीं, कांग्रेस की बी टीम है। जनता के मन में मुख्यधारा की पार्टियों को लेकर नाराजगी है। 'आप' को उस नाराजगी का फायदा मिला। उसने खुद को आम आदमी जैसा साबित किया, भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कानून बनाने की घोषणा की, लालबत्ती संस्कृति का तिरस्कार किया। शपथ लेने के दिन मेट्रो से यात्रा की। बंगला-गाड़ी को लेकर अपनी अरुचि व्यक्त की वगैरह।

Thursday, January 16, 2014

‘आप’ की तेजी क्या उसके पराभव का कारण बनेगी?

दिल्ली में 'आप' सरकार ने जितनी तेजी से फैसले किए हैं और जिस तेजी से पूरे देश में कार्यकर्ताओं को बनाना शुरू किया है, वह विस्मयकारक है। इसके अलावा पार्टी में एक-दूसरे से विपरीत विचारों के लोग जिस प्रकार जमा हो रहे हैं उससे संदेह पैदा हो रहे हैं। मीरा सान्याल और मेधा पाटकर की गाड़ी किस तरह एक साथ चलेगी? इसके पीछे क्या वास्तव में जनता की मनोकामना है या मुख्यधारा की राजनीति के प्रति भड़के जनरोष का दोहन करने की राजनीतिक कामना है?  अगले कुछ महीनों में साफ होगा कि दिल्ली की प्रयोगशाला से निकला जादू क्या देश के सिर पर बोलेगा, या 'आप' खुद छूमंतर हो जाएगा?

फिज़ां बदली हुई थी, समझ में आ रहा था कि कुछ नया होने वाला है, पर 8 दिसंबर की सुबह तक इस बात पर भरोसा नहीं था कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में इतनी बड़ी सफलता मिलेगी। ओपीनियन और एक्ज़िट पोल इशारा कर रहे थे कि दिल्ली का वोटर ‘आप’ को जिताने जा रहा है, पर यह जीत कैसी होगी, यह समझ में नहीं आता था। बहरहाल आम आदमी पार्टी की जीत के बाद से यमुना में काफी पानी बह चुका है। पार्टी की इच्छा है कि अब राष्ट्रीय पहचान बनानी चाहिए। पार्टी अपनी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है। 10 जनवरी से देश भर में ‘आप’ का देशव्यापी अभियान शुरू होगा। इस अभियान का नाम ‘मैं भी आम आदमी’ रखा गया है। सदस्यता के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।

Tuesday, January 7, 2014

'आप' का जादू क्या देश पर चलेगा?

 मंगलवार, 7 जनवरी, 2014 को 17:22 IST तक के समाचार
आम आदमी पार्टी, केजरीवाल
आम आदमी पार्टी की दिल्ली की प्रयोगशाला से निकला जादू क्या देश के सिर पर बोलेगा? इस जीत के बाद से यमुना में काफी पानी बह चुका है. वह अपनी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है.
इसके लिए 10 जनवरी से देश भर में ‘मैं भी आम आदमी’ अभियान शुरू होगा. खबरों के मुताबिक पार्टी में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं लेकिन भीड़ बढ़ाने के पहले पार्टी को अपनी राजनीतिक धारणाओं को देश के सामने भी रखना होगा.
'आप' के कामकाज की शुरूआत मेट्रो पर सवार होकर शपथ लेने जाने, लालबत्ती संस्कृति को खत्म करने जैसी प्रतीकात्मक बातों से हुई.
जनता पर उसका अच्छा असर भी पड़ा लेकिन सरकार बनने के बाद उसके फैसलों और तौर-तरीकों को लेकर काफी लोगों की नाराज़गी भी उजागर हुई है.

फैसलों पर विवाद

विश्वास मत पर बहस के दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने सरकार को बिजली-पानी के फैसलों के बाबत निशाना बनाया था. कहा गया कि पानी की कीमत कम होने का लाभ ग़रीबों को कम, पैसे वालों को ज़्यादा मिलेगा.

Thursday, January 2, 2014

प्रतीकों से बाहर अब काम पर आना होगा 'आप' को

 गुरुवार, 2 जनवरी, 2014 को 17:05 IST तक के समाचार
इस बात को लेकर संशय नहीं कि दिल्ली की सरकार अपना बहुमत आसानी से साबित करेगी. मेट्रो यात्रा, लालबत्ती का तिरस्कार, मुफ़्त पानी और सस्ती बिजली, मीटरों और खातों की जाँच और विश्वासमत के आगे अब क्या?
कांग्रेस, ‘आप’ और भाजपा के ‘प्रेम-घृणा और ईर्ष्या की इस त्रिकोण कथा’ का पहला अध्याय प्रतीकों को समर्पित रहा. इस दौरान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने ‘आप’ के उदय को क्रांतिकारी घटना के रूप में देखा. अब उसका उस अग्निपरीक्षा से सामना है, जिसे उसने खुद चुना है.
‘आप’ की ओर से बार-बार कहा गया कि हम सरकार बनाने के इच्छुक नहीं हैं. हमने किसी से समर्थन नहीं माँगा. जनता ने सरकार बनाने का आदेश दिया. हम अपना काम कर रहे हैं.

मुरव्वत का दौर खत्म

तीनों पार्टियाँ अब अपने कदम तौल रही हैं. भारतीय जनता पार्टी ने ‘आप’ और कांग्रेस पर एक साथ हमला बोला है और दोनों के बीच साठ-गांठ साबित करने की कोशिश की है.

Wednesday, December 25, 2013

'आप' की सरकार पर कुछ प्रतिक्रियाएं

मंजुल का कार्टून

फेसबुक पर बीबीसी हिंदी के पेज पर एक पाठक की प्रतिक्रियाः-

कमाल जनता है मेरे देश की
जब आन्दोलन कर
रहे थे तो कहने लगे
 अनशन आन्दोलन से कुछ नही होगा पार्टी बनाइये चुनाव लड़िये!
चुनाव लड़ने लगे तो कहने लगे,
नौसिखिये हैं, बुरी तरह हारेंगे! 
चुनाव जीत गये तो कहते हैं, 
सत्ता के भूखे हैं! 
सत्ता छोड़ के विपक्ष मे बैठने लगे तो कहते हैं, 
के जनता को किये वादे पूरे नहीं कर सकते इसलिये डर गये!
जनता को किये वादे पूरे करने के लिये सरकार बनाने लगे 
तो कहते हैं के
जनता को धोखा दे कर कांग्रेस से हाथ मिला लिया! 
जनता से पूछने गये की क्या कांग्रेस से समर्थन लेके सरकार सरकार बना सकते हैं, 
तो कहते है
की क्या हर काम अब जनता से पूछ के होगा!
मेरे भाई आखिर चाहते क्या हो?
इतने सवाल 50 सालों मे कांग्रेस भाजपा से कर लेते 
तो आज आम आदमी पार्टी की
ज़ुरूरत ही नही पैदा होती!!


फेसबुक पर बीबीसी हिंदी के पेज पर एक और प्रतिक्रियाः-
अल्पमत की सरकार : मेरे विचार में दिल्ली में बनने जा रही "आप" की सरकार को गठबंधन या समर्थन की सरकार के बतौर देखना गलत है, ये सीधे-सीधे अल्पमत की सरकार है जो चुनाव परिणाम आने के बाद रिफ्रेँडम द्वारा जनता के बहुमत की इच्छा के आधार पर बनाया जा रहा है, और इसीलिए आज मजबूरी में कौन इसे समर्थन दे रहा है और कौन नहीं ये महत्वपूर्ण ही नहीं है बल्कि ज्यादा दिलचस्प और निर्णायक तो ये देखना होगा कि कौन पार्टी इस अल्पमत की सरकार को गिराने का दुस्साहस करती है, क्योंकि "आप" की इस सरकार को गिराने केलिए भी भाजपा और काँग्रेस को तो एक साथ मिलकर ही वोटिँग करना पड़ेगा और इसीलिए ये अल्पमत की सरकार भी दोनों पार्टियों पर बहुत भारी पड़ने जा रही है ?

भैया जी ने सरकार बना डाली तो वह अद्भुत सरकार होगी। सरकार ईमानदारी की कही जाएगी, लेकिन समर्थन बेईमानों का होगा। अगर बेईमान लोग चलवाएंगे ईमानदार सरकार तो चल गई सरकार।

Tuesday, December 24, 2013

'आप' ने ओखली में सिर दिया

 मंगलवार, 24 दिसंबर, 2013 को 06:38 IST तक के समाचार
आम आदमी पार्टी के नेता
हिंदी की कहावत है 'ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना?' आम आदमी पार्टी ने जोखिम उठाया है तो उसे इस काम को तार्किक परिणति तक पहुँचाना भी होगा.
यह तय है कि उसे समर्थन देने वाली पार्टी ने उसकी 'कलई खोलने' के अंदाज़ में ही उसे समर्थन दिया है और 'आप' के सामने सबसे बड़ी चुनौती है इस बात को गलत साबित करना और परंपरागत राजनीति की पोल खोलना.
'आप' सरकार की पहली परीक्षा अपने ही हाथों होनी है. यह पार्टी परंपरागत राजनीति से नहीं निकली है.
देखना होगा कि इसका आंतरिक लोकतंत्र कैसा है, प्रशासनिक कार्यों की समझ कैसी है और दिल्ली की समस्याओं के कितने व्यावहारिक समाधान इसके पास हैं?
इससे जुड़े लोग पद के भूखे नहीं हैं लेकिन वे सरकारी पदों पर कैसा काम करेंगे? सादगी, ईमानदारी और भलमनसाहत के अलावा सरकार चलाने के लिए चतुराई की जरूरत भी होगी, जो प्रशासन के लिए अनिवार्य है.