Showing posts with label साल 2020. Show all posts
Showing posts with label साल 2020. Show all posts

Tuesday, December 29, 2020

जीवन-शैली को बदल गया यह साल


इस साल मार्च में जब पहली बार लॉकडाउन घोषित किया गया, तब बहुत से लोगों को पहली नजर में वह पिकनिक जैसा लगा था। काफी लोगों की पहली प्रतिक्रिया थी, आओ घर में बैठकर घर का कुछ खाएं। काफी लोगों ने लॉकडाउन का आनंद लिया। फेसबुक पर रेसिपी शेयर की जाने लगीं। पर जैसे ही बीमारी बढ़ने और मौत की खबरें आने लगीं, लोगों के मन में दहशत ने धीरे-धीरे प्रवेश करना शुरू दिया। मॉल, रेस्त्रां और सिनेमाघरों के बंद होने से नौजवानों की पीढ़ी को धक्का लगा। अचानक कई तरह की सेवाएं खत्म हो गईं। सिर और दाढ़ी के बाल बढ़ने लगे। ब्यूटी पार्लर बंद हो गए। ज़ोमैटो और स्विगी की सेवाएं बंद। पीत्ज़ा और बर्गर की सप्लाई बंद। अस्पतालों में सिवा कोरोना के हर तरह का इलाज ठप। 

कोविड-19 ने हमारे जीवन और समाज को कितने तरीके से बदला इसका पता बरसों बाद लगेगा। भावनात्मक बदलावों को मुखर होकर सामने आने में भी समय लगता है। इस दौरान छोटे बच्चों का जो भावनात्मक विकास हुआ है, उसकी अभिव्यक्ति भी एक पीढ़ी बाद पता लगेगी। इतना समझ में आता है कि जीवन और समाज में किसी एक वैश्विक घटना का इतना गहरा असर शायद इसके पहले कभी नहीं हुआ होगा। पहले और दूसरे विश्व युद्ध का भी नहीं। इसका असर जीवन-शैली, रहन-सहन और मनोभावों के अलावा उद्योग-व्यापार और तकनीक पर भी पड़ा है।

ठहर गई जिंदगी

विमान सेवाएं शुरू होने के बाद दुनिया के इतिहास में पहला मौका था, जब सारी दुनिया की सेवाएं एकबारगी बंद हो गईं। रेलगाड़ियाँ, मोटरगाड़ियाँ थम गईं। गोष्ठियाँ, सभाएं, समारोह, नाटक, सिनेमा सब बंद। खेल के मैदानों में सन्नाटा छा गया। विश्व कप क्रिकेट स्थगित, इस साल जापान में जो ओलिंपिक खेल होने वाले थे, टल गए।

Monday, December 28, 2020

‘सुंदर सपनों’ को तोड़ने वाला साल

आप पूछें कि इस गुजरते साल 2020 को हम किस तरह याद रखें, तो पहला जवाब है महामारी का साल।’ महामारी न होती, तब भी इसे यादगार साल होना था। ‘इंडिया 2020: ए विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम’ डॉ एपीजे कलाम की किताब है, जो 1998 में लिखी गई थी। तब वे राष्ट्रपति बने नहीं थे, पर उन्होंने 2020 के भारत का सपना देखा था। इस साल की शुरुआत उस सपने के साथ हुई थी और अंत ‘स्वप्न-भंग’ से हुआ। सपनों पर पानी फेरने वाला साल।

गिलास पूरा खाली नहीं है। यह हमारी परीक्षा का साल था। फिर भी एक मुश्किल दौर को हमने जीता है। साल की शुरूआत आंदोलनों से हुई और समापन किसान आंदोलन के साथ हो रहा है। देश की राजधानी में जामिया मिलिया विवि और शाहीनबाग के नाम से जो आंदोलन शुरू हुआ था, उसकी छाया विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे दिल्ली शहर पर पड़ी। दिल्ली को सांप्रदायिक दंगे ने घेर लिया। उत्तर प्रदेश के शहरों में भी हिंसा हुई।

नमस्ते ट्रंप

फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दिल्ली यात्रा के दौरान दिल्ली में फसाद की बुनियाद पड़ गई थी। इस हिंसा के पहले दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विवि परिसर में हिंसा हुई, जिसकी प्रतिक्रिया में देश के अनेक शिक्षा-संस्थानों में आंदोलनों का दौर बना रहा। कोरोना का हमला न होता, तो शायद यह साल ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ की बहस का विषय बनता। जलते भारत को लेकर तमाम अंदेशे हैं और उम्मीदें भी, जो ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ हैं।