पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के गिलगित-बल्तिस्तान को प्रांत का अस्थायी दर्जा देने के फ़ैसले का भारत ने कड़ा विरोध किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा है कि भारतीय क्षेत्र के हिस्से में ग़ैरक़ानूनी और जबरन भौतिक परिवर्तन लाने की पाकिस्तान सरकार की कोशिश को भारत सरकार अस्वीकार करती है। पाकिस्तान का इस क्षेत्र पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं बनता है।
उन्होंने कहा, "मैं इस बात को दोहराता हूं कि तथाकथित गिलगित-बल्तिस्तान
इलाक़ा क़ानूनी तौर पर और 1947 के विलय के समझौते के
मुताबिक़ भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर का अभिन्न हिस्सा है…हम अपने
अवैध कब्ज़े के तहत सभी क्षेत्रों को तुरंत खाली करने की पाकिस्तान से अपील करते
हैं।"
इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि उनकी सरकार ने गिलगित-बल्तिस्तान को प्रांत का अस्थायी दर्जा देने का निर्णय लिया है। उनका कहना था कि "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है।" इमरान ख़ान ने रविवार 1 नवंबर को को गिलगित-बल्तिस्तान के कथित 73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आयोजित आज़ादी परेड समारोह को संबोधित करते हुए यह ऐलान किया।
उन्होंने कहा कि
"पाकिस्तान सरकार ने आज गिलगित-बल्तिस्तान के लोगों का लंबे समय से अधूरा
ख़्वाब पूरा कर दिया। इस क्षेत्र के युवा बहुत वक़्त से यह चाहते थे। उन्हें
मुबारक़बाद। इसके साथ ही हमने इस क्षेत्र के विकास के लिए एक आर्थिक पैकेज पर भी
विचार किया है।"
हालांकि, इमरान ख़ान ने इस पैकेज के बारे में कोई
जानकारी नहीं दी और न उन्होंने यह बताया कि गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र को स्थायी
रूप से, पाकिस्तान के पाँचवें
प्रांत का दर्जा कब तक मिलेगा।
इसके पहले गत 30 अप्रैल को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तानी
सरकार की याचिका पर फैसला देते हुए गिलगित-बल्तिस्तान ऑर्डर, 2018 में बदलाव कर इस इलाके में एक कार्यकारी
सरकार बनाने और नए सिरे से चुनाव
करवाने के आदेश दिए थे। उस वक्त भी भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत
सरकार ने इस मुद्दे पर स्थिति 1994 में संसद में पास हुए एक प्रस्ताव के जरिए
स्पष्ट कर दी थी और भारत की आज भी यही राय है।
गिलगित-बल्तिस्तान
मूलतः जम्मू कश्मीर का हिस्सा हैं, जहाँ 1947 में पाक-परस्त सेना ने बगावत करके
कब्जा जमा लिया था। भारत की आजादी से पहले यह जम्मू कश्मीर रियासत का ही हिस्सा था। इस इलाके को
अंग्रेजों ने वहां के महाराजा से साल 1846 से लीज पर ले रखा था। अंग्रेजों को रूस
को लेकर चिंता रहती थी। यह इलाका ऊंचाई पर स्थित है, ऐसे में यहां से
निगरानी रखना आसान था। यहां गिलगित स्काउट्स नाम की सेना की अंग्रेज टुकड़ी तैनात
थी। जब अंग्रेज भारत छोड़कर जाने लगे तो इसे जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को
वापस कर दिया गया। हरि सिंह ने ब्रिगेडियर घंसार सिंह को यहां का गवर्नर बनाया।
गिलगित स्काउट्स वहीं तैनात रही। उस समय उस फौज के ज्यादातर अधिकारी अंग्रेज ही थे।
1947 में जब
कश्मीर पर पाकिस्तानी फौज ने हमला किया, तो 26 अक्टूबर को महाराजा हरिसिंह ने भारत
के साथ विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह गिलगित-बल्तिस्तान भी भारत का
हिस्सा बन गया। उधर गिलगित-बल्तिस्तान में मौजूद फौज के अंग्रेज अधिकारियों ने इस
समझौते को नहीं माना, महाराजा की सेना ने बगावत कर दी और गवर्नर घंसार सिंह को जेल
में डाल दिया। मेजर डब्लूए ब्राउन ने महाराज से गद्दारी की। उसने पेशावर में अपने
अंग्रेज़ सीनियर लेफ्टिनेंट कर्नल रोजर बेकन को खबर की कि गिलगित पाकिस्तान का
हिस्सा बनने जा रहा है। वहां के अंग्रेज
फौजी अधिकारियों ने पाकिस्तान के साथ गिलगित-बल्तिस्तान को मिलाने का समझौता
कर लिया।
1 नवंबर 1947 को
ब्राउन ने पाकिस्तान
का झंडा फहरा दिया। पाकिस्तान की सरकार ने सदर मोहम्मद आलम को वहां का नया
प्रशासक नियुक्त कर दिया। यह हिस्सा पाकिस्तान के प्रशासन में चला गया। 1949 में
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और पाकिस्तानी सरकार के बीच हुए कराची समझौते के तहत
गिलगित-बल्तिस्तान को पाकिस्तान को सौंप दिया गया। प्राकृतिक
संपदा का धनी यह इलाका सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। एक तरफ यह चीन के
शिनजियांग क्षेत्र से जुड़ा है, तो दूसरी तरफ अफगानिस्तान के साथ सीमा बनाता है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है।
और कुछ है नहीं करने को जब इमरान के पास तो यही सही।
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