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Thursday, June 6, 2024

गठबंधन राजनीति का टाइम शुरू होता है अब


नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं और उसके साथ ही गठबंधन की राजनीति के लक्षण भी प्रकट होने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और एकनाथ शिंदे ने सरकार को अपना समर्थन दे दिया है, साथ ही अपनी-अपनी माँगों की सूची भी आगे कर दी है। ज्यादातर कम से कम एक कैबिनेट मंत्री का पद और दूसरी चीजें माँग रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू संभवतः लोकसभा अध्यक्ष का पद भी माँग रहे हैं। अंततः समझौते होंगे। बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में ही रखना चाहेगी, क्योंकि इस व्यवस्था में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

दिल्ली में एनडीए और इंडिया की बैठकें हुई हैं। खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी पर प्रधानमंत्री पद का चारा डाल रही है। बाहर से समर्थन देने के वायदे के साथ, पर ऐसी कौन सी मछली है, जो इस चारे पर मुँह मारेगी?  आप पूछ सकते हैं कि कांग्रेस के पास ही ऐसा कौन सा संख्या बल है, जो बाहर से समर्थन देकर किसी को प्रधानमंत्री बनवा देगा? और कांग्रेस ऐसी कौन सी परोपकारी पार्टी है, जो किसी को निस्वार्थ भाव से प्रधानमंत्री बना देगी? बेशक वजह तो देश बचाने की होगी, पर याद करें अतीत में कांग्रेस पार्टी के इस चारे के चक्कर में चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौडा, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर जैसे राजनेता आ चुके हैं। उनकी तार्किक-परिणति क्या हुई, यह भी आपको पता है।  

Wednesday, June 5, 2024

'अपराजेय' बीजेपी को अमृतकाल का पहला धक्का

 
लोकसभा चुनाव के परिणामों से देश की राजनीति के अंतर्विरोधों को एकबार फिर से खोलने जा रहे हैं। इन परिणामों के साथ अनेक अनिश्चय जन्म ले रहे हैं, जो धीरे-धीरे सामने आएंगे। लगता है कि इसबार पूरे परिणाम देर से घोषित हो पाएंगे, पर उनके रुझान से स्थिति काफी सीमा तक स्पष्ट हो चुकी है। परिणामों का पहला संकेत हैं भारतीय जनता पार्टी की अपराजेयता एक झटके में ध्वस्त होना।

यह भी साफ है कि जनादेश एनडीए के नाम है। केंद्र में उसकी ही सरकार बननी चाहिए और बनेगी। पर यह सरकार पिछली दो सरकारों जैसी शक्तिमान नहीं होगी। उसमें गठबंधन सहयोगियों की शर्तें शामिल होंगी। ऐसे में अर्थव्यवस्था और राजनीति से जुड़े उसके कार्यक्रमों को लेकर सवाल खड़े होंगे। फिलहाल अमृतकाल का यह कड़वा अनुभव है। चुनाव-प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की रैलियों और बयानों से यह संकेत मिल भी रहा था कि पार्टी को नेपथ्य की आवाजें सुनाई पड़ गई थीं।

एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला है, बावजूद इसके खबरें हवा में हैं कि 2004 की तरह इंडिया गठबंधन की सरकार बनाने के प्रयास भी हो सकते हैं। खबरें हैं कि सोनिया गांधी और शरद पवार ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से संपर्क किया है। राजनीति में हर तरह की संभावनाओं को टटोलने में जाता कुछ नहीं है. पर सवाल है कि एनडीए के गठबंधन सहयोगी क्या आसानी से उसका साथ छोड़ देंगे?  इसकी उम्मीद तो नहीं है, पर राजनीति में किसी भी वक्त, कुछ भी हो सकता है।

आंध्र प्रदेश में तेलुगु देसम पार्टी को भारी विजय मिली है। तेलुगु देसम एनडीए का घटक दल है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक लगता है कि तेदेपा के 16 और जेडीयू के 15 सांसद जीतकर आएंगे। इन दो घटक दलों से इंडिया गठबंधन ने संपर्क किया है। चूंकि बीजेपी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, इसलिए उसे अब अपने गठबंधन को बनाए रखने के लिए प्रयत्न भी करने होंगे। उसके सहयोगी टूटेंगे या नहीं टूटेंगे, यह अलग बात है, पर अंदेशा बना रहेगा।

Monday, June 3, 2024

एग्ज़िट पोल तो हो गया, अब 4 को होगी ‘इंडिया’ की परीक्षा


2024 के लोकसभा चुनाव से जुड़े सभी एग्ज़िट पोल में कमोबेश अनुमान है कि नरेंद्र मोदी सरकार सफलता की तिकड़ी लगाने जा रही है। कुछ नतीजों में 400 पारकी बात भी है। पर यह अपने आप में उतनी बड़ी बात नहीं है, जितनी दक्षिण भारत, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में एनडीए की सफलता है। यह सफलता वास्तव में 4 जून को साबित हो गई, तो बड़ी बात होगी। केरल में पहली बार बीजेपी को सीट मिलने की संभावना है। तमिलनाडु में भी सफलता की संभावना है। ज्यादा बड़ी सफलता कर्नाटक, आंध्र और तेलंगाना में दिखाई पड़ रही है। इन सफलताओं को जोड़कर देखें, तो भारतीय जनता पार्टी, दक्षिण भारत में सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरेगी। पिछले दिनों जब तेलंगाना विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी, तब कहा जा रहा था कि उत्तर और दक्षिण भारत अलग-अलग नज़रियों से सोचते हैं।  

इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी का नारा था, बीजेपी दक्षिण में साफ, उत्तर में हाफ। पर व्यावहारिक रूप से देखें तो इस बात को कांग्रेस पर लागू किया जा सकता है, उत्तर में साफ, अब दक्षिण में हाफ। उनकी रणनीति अपनी जीत को सुनिश्चित करने की नहीं, बल्कि मोदी को हराने की है। बहरहाल इंडिया गठबंधन ने एग्ज़िट पोल के इन निष्कर्षों को स्वीकार ही किया है। शनिवार को दिल्ली में हुई गठबंधन की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि हमें 295 से ज्यादा सीटें मिलने वाली हैं। उनका कहना था कि यह संख्या हमारे सहयोगी दलों के ज़मीनी कार्यकर्ताओं की सूचना पर आधारित है। केवल एक संख्या उन्होंने बताई 295+। इसका विस्तार उन्होंने नहीं किया। मसलन यह नहीं बताया कि किस राज्य में किसे कितनी सीटें मिल सकती हैं। उनकी बात की परीक्षा भी 4 जून को हो जाएगी।

Friday, October 13, 2023

गठबंधन ‘इंडिया’ की विसंगतियाँ


गठबंधन ‘इंडिया’ ने मुंबई में हुई बैठक के दौरान तीन प्रस्ताव पास किए थे। पहला, सीट बँटवारे की प्रक्रिया जल्द ही पूरी की जाएगी, दूसरा, ‘इंडिया’ के घटक दल जनता के मुद्दों पर देश के अलग-अलग हिस्सों में जनसभाएं करेंगे और तीसरा, इंडिया के सभी घटक दलों का अपना चुनाव अभियान जुड़ेगा भार औरजीतेगा इंडिया की थीम पर होगा। इनमें पहला काम सबसे बड़ा और जरूरी होगा। शेष दो काम किसी न किसी रूप में चल जाएंगे, पर सीटों का बँटवारा सबसे जटिल विषय है। ऐसा लग रहा है कि फ़िलहाल गठबंधन उसे आगे के लिए टाल रहा है।

चार राज्यों में फज़ीहत

पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब और केरल कम से कम चार ऐसे राज्य हैं, जो साफ-साफ इस गठबंधन की किसी भी समय फज़ीहत कर सकते हैं। हाल में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे ने सनातन धर्म के बारे में टिप्पणी करके कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। इसी वजह से गठबंधन की भोपाल में होने वाली बैठक रद्द कर दी गई। इसका असर मध्य प्रदेश के चुनाव पर पड़ सकता है।

शुरू में लगता था कि नीतीश कुमार इस गठबंधन के समन्वय का काम करेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि उन्होंने अभी तक प्रत्यक्षतः कुछ ऐसा नहीं किया है, जिससे साबित हो कि वे नाराज हैं, पर गठबंधन ने जब टीवी के 14 एंकरों के बहिष्कार की घोषणा की, तो उन्होंने इस बात से अपनी असहमति व्यक्त कर दी। उधर सीपीएम ने गठबंधन की समन्वय समिति में शामिल नहीं होने की घोषणा करके एक और असमंजस पैदा कर दिया है।

2024 की सर्पिल राहें और संभावनाओं की शतरंज

पिछले कुछ समय से टीवी चैनलों पर और सोशल मीडिया में कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 के परिणाम क्या होगे? इन कयासों की बुनियाद राष्ट्रीय स्तर पर बने दो गठबंधनों की हाल की गतिविधियों पर आधारित हैं। दो गठबंधन पहले से मौजूद हैं, पर कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने मिलकर इंडिया नाम से राष्ट्रीय गठबंधन बनाया है, जो संगठनात्मक शक्ल ले ही रहा है। इंडिया के प्रायोजकों को लगता है कि भाजपा का लगातार सत्ता पर बने रहना उनके अस्तित्व के लिए खतरा है। 2024 में कुछ नहीं हुआ, तो फिर कुछ नहीं हो पाएगा।

दूसरी तरफ बीजेपी के कर्णधारों को लगता है कि उनके खिलाफ विरोधी दलों का एकताबद्ध होना खतरनाक है। हाल में पंजाब, हिमाचल और कर्नाटक में बीजेपी को आशानुकूल सफलता नहीं मिली। इससे भी उन्हें चिंता है। एंटी इनकंबैंसी का अंदेशा भी है। उन्हें यह भी लगता है कि बीजेपी ने 2019 में ‘पीक’ हासिल कर लिया था। इसके बाद ढलान आएगा। उससे तभी बच सकते हैं, जब नए इलाकों में प्रभाव बढ़े। उनके एजेंडा को जल्द से जल्द लागू करने के लिए इसबार सरकार बननी ही चाहिए। यह एजेंडा एक तरफ हिंदुत्व और दूसरी तरफ भारत के महाशक्ति के रूप में उभरने से जुड़ा है। उन्हें यह भी दिखाई पड़ रहा है कि पार्टी की ताकत इस समय नरेंद्र मोदी हैं, पर उनके बाद क्या?

एनडीए बनाम इंडिया

इन दोनों गतिविधियों में बुनियादी फर्क है। एनडीए, के केंद्र में बीजेपी है। शेष दलों की अहमियत अपेक्षाकृत कम है। इंडिया के केंद्र में कांग्रेस है, पर उसमें परिधि के दलों की अहमियत एनडीए के सहयोगी दलों की तुलना में ज्यादा है। इसमें जेडीयू और तृणमूल जैसी पार्टियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इन दो के अलावा समाजवादी पार्टी, डीएमके, वाममोर्चा और आम आदमी पार्टी जैसे दल हैं, जो इंडिया की रणनीति को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।  इसमें क्षेत्रीय-क्षत्रपों की भूमिका है, जो महत्वपूर्ण हैं, पर जिनके होने से फैसले करने में दिक्कतें भी हैं। 

Tuesday, October 13, 2020

पाकिस्तान में सेना-विरोधी मोर्चा

पिछले हफ्ते पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अचानक ट्विटर पर अपना हैंडल शुरू कर दिया। पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर अचानक राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं। विरोधी दलों ने एक नए आंदोलन की शुरुआत कर दी है, जिसका निशाना इमरान खान के साथ सेना भी है। इस आंदोलन के तेवर को देखते हुए विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी ने विरोधी दलों से अपील की है कि वे देश की संस्थाओं पर आरोप न लगाएं। यह देश के हित में नहीं होगा। यहाँ उनका आशय सेना से ही है। नवाज शरीफ आजकल लंदन में रह रहे हैं और लगता नहीं कि वे जल्द वापस आएंगे, पर लगता है कि वे लंदन में रहकर पाकिस्तानी राजनीति का संचालन करेंगे। उनकी बेटी मरियम देश में इस अभियान में शामिल हैं। उनके साथ बेनजीर भुट्टो के पुत्र बिलावल भुट्टो भी इमरान खान और सेना विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए हैं।

गत 20 सितंबर को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की ओर से आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी को छोड़कर शेष ज्यादातर बड़े दल शामिल हुए और उन्होंने पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंटनाम से एक नए जनांदोलन का आह्वान किया है। दस से ज्यादा विरोधी दलों ने एक मंच पर आकर इमरान खान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यह मोर्चा एक तरह से सेना के खिलाफ भी है, जिसपर इमरान खान को कुर्सी पर बैठाने का आरोप है।

Friday, October 2, 2020

सबके मनभावन फैसला संभव नहीं

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला आने के बाद यह नहीं मान लेना चाहिए कि इस प्रकरण का पटाक्षेप हो गया है। और यह निष्कर्ष भी नहीं निकलता कि बाबरी मस्जिद को गिराया जाना अपराध नहीं था। पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर-मस्जिद विवाद के जिस दीवानी मुकदमे पर फैसला सुनाया था, उसमें स्पष्ट था कि मस्जिद को गिराया जाना अपराध था। उस अपराध के दोषी कौन थे, यह इस मुकदमे में साबित नहीं हो सका। 

जिन्हें उम्मीद थी कि अदालत कुछ लोगों को दोषी करार देगी, उन्हें निराशा हुई है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी न्याय-व्यवस्था को कोसना शुरू करें। फौजदारी के मुकदमों में दोष सिद्ध करने के लिए पुष्ट साक्ष्यों की जरूरत होती है। यह तो विधि विशेषज्ञ ही बताएंगे कि ऐसे साक्ष्य अदालत के सामने थे या नहीं। जो साक्ष्य थे, उनपर अदालत की राय क्या है वगैरह। अलबत्ता कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि मस्जिद गिरी ही नहीं, मस्जिद थी ही नहीं वगैरह।

Wednesday, September 16, 2020

‘उदार हिंदू-विचार’ संभव या असंभव?

अब जब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है, तब तीन तरह की प्रतिक्रियाएं दिखाई और सुनाई पड़ रही हैं। सबसे आगे है मंदिर समर्थकों का विजय-रथ, उसके पीछे है कथित लिबरल-सेक्युलरवादियों की निराश सेना। उन्हें लगता है कि हार्डकोर हिन्दुत्व के पहियों के नीचे देश की बहुलवादी, उदार संस्कृति ने दम तोड़ दिया है। इन दोनों शिखरों के बीच मौन-बहुमत खड़ा है, जो कभी खुद को कट्टरवाद का विरोधी मानता है, और राम मंदिर को कट्टरता का प्रतीक भी नहीं मानता।

बीच वाले इस समूह में हिंदू तो हैं ही, कुछ मुसलमान भी शामिल हैं। भारत राष्ट्र-राज्य में मुसलमानों की भूमिका को लेकर विमर्श की क्षीण-धारा भी इन दिनों दिखाई पड़ रही है। आने वाले दौर की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था व्यापक सामाजिक विमर्श के दरवाजे खोलेगी और जरूर खोलेगी। यह विमर्श एकतरफा नहीं हो सकता। भारतीय समाज में तमाम अंतर्विरोध हैं, टकराहटें हैं, पर एक धरातल पर अनेक विविधता को जोड़कर चलने की सामर्थ्य भी है। फिलहाल सवाल यह है कि क्या हमारी यह विशेषता खत्म होने जा रही है?