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Wednesday, January 5, 2022

चीनी धौंसपट्टी और प्रचार की रणनीति


चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के दो साल और 13 दौर की बातचीत के बाद भी कोई मामला जस का तस है। समाधान आसान नहीं लगता। चीन पर  महाशक्ति बनने का नशा सवार है और भारत उसकी धौंसपट्टी में आएगा नहीं। चीन विस्तारवादी आक्रामक रणनीति पर चल रहा है, दूसरी तरफ वह घिरता भी जा रहा है, क्योंकि उसके मित्रों की संख्या सीमित है। तीन-चार दशक की तेज आर्थिक प्रगति के कारण उसके पास अच्छी पूँजी है, पर अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी है। वास्तविक-युद्ध से वह घबराता है।

हाल में तीन घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिनसे चीन की भारत से जुड़ी रणनीति पर रोशनी पड़ती है। अरुणाचल प्रदेश की 15 जगहों के चीन ने नए नामों की घोषणा की है। दूसरे नए साल पर चीनी सेना का एक ध्वजारोहण, जिसके बारे में दावा किया गया है कि वह गलवान घाटी में किया गया था। तीसरे पैंगोंग त्सो पर चीनी सेना ने एक पुल बनाना शुरू किया है, जिसके बन जाने पर आवागमन में आसानी होगी।  

मानसिक-प्रचार

इन तीनों में केवल पुल का सामरिक महत्व है। शेष दो बातें मानसिक-प्रचार का हिस्सा हैं, जिनका कोई मतलब नहीं है। चीनी प्रचार-तंत्र भारत की आंतरिक राजनीति का लाभ उठाता है। गलवान के कथित ध्वजारोहण की खबर मिलते ही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया-गलवान पर हमारा तिरंगा ही अच्छा लगता है। चीन को जवाब देना होगा। मोदी जी, चुप्पी तोड़ो!’ इस ट्वीट के बाद कुछ और लोगों ने ट्वीट किए, यह जाने बगैर कि यह ध्वजारोहण कहाँ हुआ था और इसका वीडियो जारी करने के पीछे चीन का उद्देश्य क्या है।

चीन हमारे अंतर्विरोधों से खेलता है और हमारे लोग उसकी इच्छा पूरी करते हैं। सामान्यतः रक्षा और विदेश-नीति को राजनीति का विषय बनाना अनुचित है, पर राजनीति समय के साथ बदल चुकी है। भारत-चीन विवाद यों भी बहुत जटिल हैं। 1962 के पहले और बाद की स्थिति को लेकर तमाम बातें अस्पष्ट हैं। ऐसे मसले यूपीए के दौर में उठते रहे हैं। पूर्व विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष श्याम सरन ने सन 2013 में कहा था कि चीन ने 640 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है। सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया और तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने संसद में इसकी सफाई दे दी। श्याम शरण ने भी अपनी बात वापस ले ली, पर यह सवाल तो बना ही रहा कि किस गलतफहमी में उन्होंने कब्जे की बात कही थी।

Saturday, February 20, 2021

चीनी चक्कर यानी भरोसों और अंदेशों की डाड़ा मेड़ी

सन 1962 के युद्ध के बाद से भारत में चीन को लेकर इतना गहरा अविश्वास है कि आम जनता की बात छोड़ दें, बड़े विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि देखिए आगे होता क्या है। संदेह की वजह यह भी है कि सीमाओं की बात तो छोड़िए, वास्तविक नियंत्रण रेखाएं भी अस्पष्ट हैं। लद्दाख का ज्यादातर सीमा-क्षेत्र जनशून्य होने के कारण सैनिकों की गश्त और चौकियों, बैरकों और सड़कों के निर्माण की जानकारी भी काफी देर से मिलती है।  

अब सेना ने कुछ तस्वीरें जारी की हैं। पैंगोंग त्सो इलाके से चीनी सैनिकों की वापसी की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में शेयर किए जा रहे हैं। झील के उत्तरी किनारे पर चीन ने फिंगर 5 पर बनी एक जेटी (घाट) को तोड़ दिया है, जिसे उन्होंने अपनी गश्ती नौकाओं के संचालन के लिए बनाया था। एक हैलिपैड भी खत्म किया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक करीब 150 टैंक और 5000 सैनिक पीछे हट चुके हैं।

समझौते से उम्मीद बँधी है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण की स्थितियाँ स्पष्ट होंगी। ऐसे में प्रेम शंकर झा जैसे आलोचक भी मान रहे हैं कि रिश्ते अब सुधरने लगेंगे। इसके विपरीत कुछ विशेषज्ञ अब भी कह रहे हैं कि फिंगर 3 से 8 के बीच का इलाका पहले पूरी तरह भारतीय गश्त का क्षेत्र था। इसे नो मैंस लैंड बनाकर हम अपने दावे को छोड़ रहे हैं।  

भारत माता का टुकड़ा

कड़वाहट तब बढ़ी, जब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'कायर' करार दिया और कहा कि उन्होंने ‘भारत माता का एक टुकड़ा’ चीन को दे दिया। उन्होंने कहा कि हम फिंगर 4 से फिंगर 3 तक आ गए…हमारी जमीन फिंगर 4 तक है। देपसांग के इलाके में चीन अंदर आया है। रक्षामंत्री ने उसके बारे में एक शब्द नहीं बोला। गोगरा और हॉट स्प्रिंग के बारे में एक शब्द नहीं बोला, जहां चीनी बैठे हुए हैं।’