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Thursday, June 30, 2022

महाराष्ट्र की राजनीति में अगला अध्याय

राज्यपाल को इस्तीफा सौंपते उद्धव ठाकरे 

सुप्रीम कोर्ट का बहुमत परीक्षण पर आदेश आने के कुछ समय बाद सोशल मीडिया पर लाइव आकर उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं नहीं चाहता कि शिवसैनिकों का
'ख़ून बहे, इसलिए मुख्यमंत्री का पद छोड़ रहा हूँ।  ठाकरे ने कहा कि मुझे 'पद छोड़ने का कोई दुख नहीं है।' उन्होंने कहा कि मैं विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ रहा हूँ। उनके इस्तीफे के बाद से नई सरकार के गठन की प्रक्रिया तेज हो गई है।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार आज गुरुवार को विधायक दल का नेता चुनने के लिए भाजपा की बैठक होगी, जिसमें चुने जाने के बाद देवेंद्र फडणवीस सरकार बनाने के लिए अपना पत्र विधान भवन में देंगे। जानकारी के अनुसार, वे 1 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। उनके साथ एकनाथ शिंदे उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। फडणवीस और शिंदे के साथ 6 मंत्री भी शपथ ले सकते हैं।

इस तरह महाराष्ट्र में एक अध्याय का अंत हुआ, पर यह एक नई राजनीति की शुरुआत है। फिलहाल वहाँ बीजेपी और शिवसेना के बागी विधायकों की सरकार बन जाएगी, पर निकट और सुदूर भविष्य की कुछ घटनाओं पर नजर रखनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि इस शक्ति परीक्षण के बाद आगामी 11 और 12 जुलाई को जिन दो मामलों की सुनवाई होने वाली है, उनके फैसले भी लागू होंगे। यानी कि यह अंतिम परिणति नहीं है।

दो में से एक फैसला 16 विधायकों की सदस्यता समाप्ति को लेकर है और दूसरा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर के विरुद्ध अविश्वास-प्रस्ताव को लेकर है। विधानसभा में स्पीकर पद पर इस समय कोई नहीं है, इसलिए नए स्पीकर की नियुक्ति भी महत्वपूर्ण होगी।

भविष्य की राजनीति

सुदूर भविष्य की राजनीति से जुड़ी तीन बातें महत्वपूर्ण हैं। अब शिवसेना का मतलब क्या? उद्धव ठाकरे या एकनाथ शिंदे? दोनों एक रहेंगे या अलग-अलग होंगे? बागी विधायकों में अपेक्षाकृत मुखर दीपक केसरकर ने कहा कि ठाकरे के इस्तीफे के लिए शिवसेना नेता संजय राउत जिम्मेदार हैं। यह इस्तीफा हमारे लिए खुशी की बात नहीं है। दुख की बात है। हमें जो संघर्ष करना पड़ा उसके लिए कांग्रेस, राकांपा और संजय राउत पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। इसने हमारे बीच दरार पैदा कर दी।

Wednesday, June 29, 2022

फैसला फ्लोर टेस्ट से ही होगा, पर कब?

 


महाराष्ट्र की राजनीतिक हलचल में आज कोई नया मोड़ आने की सम्भावना है। मंगलवार को देर रात देवेन्द्र फडणवीस ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की और फ्लोर टेस्ट की मांग की। फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास बहुमत नहीं है। बागी विधायक उद्धव सरकार को समर्थन नहीं दे रहे हैं। इस औपचारिक माँग के बाद राज्यपाल को कोई दृष्टिकोण अपनाना होगा। देखना होगा कि वे करते हैं। बागी नेता एकनाथ शिंदे का कहना है कि फ्लोर टेस्ट गुरुवार को होगा। 

मुलाकात के दौरान फडणवीस ने राज्यपाल को एक चिट्ठी भी सौंपी है। फडणवीस ने कहा कि उद्धव सरकार को फ्लोर पर बहुमत साबित करना चाहिए। इसके पहले फडणवीस ने दिन में दिल्ली जाकर गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी।  

दूसरी तरफ शिवसेना ने स्पष्ट किया है कि राज्यपाल फ्लोर टेस्ट का फैसला करेंगे, तो हम अदालत की शरण लेंगे। शिवसेना का कहना है कि कम से कम 11 जुलाई तक फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए। 11 को सुप्रीम कोर्ट बागी विधायकों के उस नोटिस पर विचार करेगी, जिसमें डिप्टी स्पीकर पर अविश्वास व्यक्त किया गया है। यदि इस नोटिस को वैध माना गया, तो शक्ति परीक्षण डिप्टी स्पीकर के प्रति अविश्वास पर ही हो जाएगा। डिप्टी स्पीकर के हटने का मतलब है सरकार की हार।

सवाल है कि क्या 11 के पहले फ्लोर टेस्टसम्भव है? शिंदे गुट के विधायक बीजेपी के साथ गए, तो सरकार गिर जाएगी। अब स्थिति यह है कि यदि वे मतदान से अलग रहेंगे, तब भी सरकार गिर जाएगी।

Sunday, June 26, 2022

धागे से लटकी उद्धव सरकार


महाराष्ट्र में मचा राजनीतिक घमासान अब विधानसभा सचिवालय और राजभवन तक पहुँच चुका है। इस मसले को अब तक फ्लोर-टेस्ट के लिए विधानसभा तक पहुँच जाना चाहिए था, पर अभी मानसिक लड़ाई चल रही है।  लगता नहीं कि महाविकास अघाड़ी सरकार चलेगी, पर फिलहाल वह एकजुट है। यह एकजुटता कब तक चलेगी, यही देखना है। विधानसभा उपाध्यक्ष यदि कुछ सदस्यों के निष्कासन का फैसला करेंगे, तो मामला अदालतों में भी जा सकता है। जिसका मतलब होगा विलम्ब। यह लड़ाई प्रकारांतर से बीजेपी लड़ रही है और दोनों पक्ष फिलहाल कानूनी पेशबंदियाँ कर रहे हैं। महाराष्ट्र के खिसकने का मतलब है राजनीतिक दृष्टि से देश के दूसरे और आर्थिक दृष्टि से पहले नम्बर के राज्य का राकांपा और कांग्रेस के हाथ से निकल जाना। साथ ही शिवसेना के सामने अस्तित्व का संकट है।

हिन्दुत्व का सवाल

शिवसेना के सामने हिन्दुत्व का सवाल भी है। कांग्रेस और राकांपा के साथ जाने पर पार्टी के हिन्दुत्व का धार पहले ही कम हो चुकी थी। इस बगावत ने धर्मसंकट पैदा कर दिया है। वर्तमान उद्वेलन के पीछे चार कारण नजर आते हैं। एक, हिन्दुत्व और विचारधारा के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से अलगाव और एनसीपी, कांग्रेस से दोस्ती। दो, ठाकरे परिवार का वर्चस्व। 2019 में जब सरकार बन रही थी, तब उद्धव ठाकरे ने कोशिश की थी कि उनके बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तब शरद पवार ने उन्हें समझाया था। तीसरा कारण है बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का आसन्न चुनाव, जिसमें शिवसेना के अंतर्विरोध सामने आएंगे। इन तीन कारणों की प्रकृति कमोबेश एक जैसी है। इनके अलावा जिस कारण का जिक्र एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे भी कर रहे हैं, वह है बीजेपी का ऑपरेशन कमल। यानी कि बीजेपी ने इस उद्वेलन को हवा दी है। कुछ और कारण भी हैं, पर इन चार वजहों की कोई न कोई भूमिका है।  

बीएमसी चुनाव

इस साल अक्तूबर तक राज्य के शहरी निकायों के चुनाव भी होने हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का चुनाव है, जो देश की सबसे समृद्ध नगर महापालिका है। इस साल इसका बजट 45 हजार 900 करोड़ रुपये से ऊपर का है। इसके हाथ से निकलने का मतलब है शिवसेना की प्राणवायु का रुक जाना।  मुम्बई और राज्य के कुछ क्षेत्रों में शिवसैनिकों के हाथों में सड़क की राजनीति भी है। उद्योगों तथा कारोबारी संस्थानों के श्रमिक संगठनों से जुड़े ये कार्यकर्ता शिवसेना के हिरावल दस्ते का काम करते हैं। इनके दम पर ही संजय राउत बार-बार एकनाथ शिंदे को मुम्बई आने की चुनौती दे रहे हैं। हालांकि बीजेपी प्रत्यक्षतः इस बगावत के पीछे अपना हाथ मानने से इनकार कर रही है, पर पर्यवेक्षक मानते हैं कि शिंदे यदि सफल हुए, तो उसमें काफी हाथ बीजेपी का ही होगा।

Thursday, June 23, 2022

उद्धव ठाकरे के सामने मुश्किल चुनौती


ताजा समाचार है कि गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ 41 विधायक आ गए हैं। इतना ही नहीं पार्टी के 18 में से 14 सांसद बागियों के साथ हैं। शिंदे ने अभी तक अपने अगले कदम की घोषणा नहीं की है। शिवसेना के इतिहास के सबसे बड़े घमासान में एक तरफ़ जहां महाविकास अघाड़ी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग गया है, वहीं दूसरी ओर शिवसेना के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं। बीबीसी हिंदी में विनीत खरे की रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कैसे हो गया कि मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बड़ी संख्या में विधायकों ने विद्रोह कर दिया और उन्हें इसकी ख़बर ही नहीं लगी? वह भी तब जब मुंबई में जानकार बताते हैं कि राज्य में ये बात आम थी कि एकनाथ शिंदे नाख़ुश चल रहे हैं। बीबीसी मराठी के आशीष दीक्षित की रिपोर्ट के अनुसार शिवसेना के इस संकट के पीछे भारतीय जनता पार्टी का हाथ है।

अस्तित्व का सवाल

बीबीसी में दिलनवाज़ पाशा की रिपोर्ट के अनुसार अब उद्धव ठाकरे के सामने सिर्फ़ सरकार ही नहीं अपनी पार्टी बचाने की भी चुनौती है क्योंकि बाग़ी एकनाथ शिंदे ने शिव सेना पर ही दावा ठोक दिया है। महाराष्ट्र के मौजूदा सियासी घमासान का एक नतीजा ये भी हो सकता है कि एकनाथ शिंदे बाग़ी शिव सेना विधायकों के साथ बीजेपी से हाथ मिले लें और राज्य में सत्ता बदल जाए। इसी के साथ उद्धव ठाकरे के लगभग ढाई साल के कार्यकाल का भी अंत हो जाएगा।

विश्लेषक मानते हैं कि पिछले ढाई साल में उद्धव ठाकरे ने कोविड के ख़िलाफ़ तो जमकर काम किया लेकिन इसके अलावा वे कुछ और उल्लेखनीय नहीं कर पाए। कोविड महामारी के दौरान उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के रूप में सोशल मीडिया पर सुपर एक्टिव थे और जनता से सीधा संवाद कर रहे थे। महामारी के दौरान हुए एक सर्वे में उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ पाँच मुख्यमंत्रियों में शामिल किया गया था।

अदृश्य नेतृत्व

उद्धव ठाकरे ने अपने आप को घर तक ही सीमित रखा और वे बहुत कम बाहर निकले। उद्धव दिल के मरीज़ हैं और 2012 में सर्जरी के बाद उन्हें 8 स्टेंट भी लग चुके हैं। नवंबर 2021 में उद्धव अस्पताल में भरती हुए थे और उनकी रीढ़ की सर्जरी की गई थी। उद्धव ठाकरे ने अधिकतर कैबिनेट बैठकें वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए ही कीं। वे बहुत कम मंत्रालय गए। सरकारी आवास वर्षा, जहाँ से सरकार चलती है, वहाँ भी वे कम ही रहे और अपने निजी बंगले में ही अधिक रहे। उन्होंने स्वास्थ्य की वजह से अपने आप को सीमित रखा। हालांकि महाराष्ट्र में ही शरद पवार जैसे बुज़ुर्ग नेता हैं जो बहुत सक्रिय रहते हैं और आमतौर पर दौरे करते रहते हैं।

संख्या की जाँच होगी

महाराष्‍ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि ज‍िरवाल ने एक न्यूज़ चैनल से कहा क‍ि जो मुझे पत्र मिला है, उसमें 34 का नाम है। कभी कम बोलते हैं, कभी ज्यादा बोलते हैं। जो उन्होंने लिखा है उसकी जांच करने की जरूरत पड़ेगी। एक दो दिन में फैसला हो जाएगा। लिस्ट में कुछ हस्ताक्षर पर संशय है। कानून में जैसा होगा वैसी मैं जांच करूंगा। उन्होंने कहा क‍ि जांच करने के लिए विधायकों को सामने बुलाना पड़ेगा। अभी तक कोई कम्युनिकेशन नहीं हुआ है। देखूंगा अभी पढ़ रहा हूं क्या-क्या है, उसके बाद निर्णय लूंगा। दूसरी तरफ पार्टी के नेता संजय राउत ने दावा किया है कि शिंदे के पाले में गए 40 में से कम से कम आधे विधायक वापस आने के लिए संपर्क में हैं।

लिस्ट का इंतजार

उधर एबीपी न्यूज के अनुसार बीजेपी फिलहाल एकनाथ शिंदे की तरफ से जारी होने वाली उस लिस्ट का इंतजार कर रही है जिसके आधार पर आधिकारिक तौर पर यह पता चल सके कि एकनाथ शिंदे के साथ में कुल कितने विधायकों का समर्थन मौजूद है और इन विधायकों में कितने शिवसेना के विधायक हैं। सूत्रों के मुताबिक एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि इस वक्त उनके साथ 37 से ज्यादा शिवसेना के विधायक मौजूद है और ऐसे में अब उनके खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती।

 

 

Wednesday, June 22, 2022

वात्याचक्र में घिरी शिवसेना


बुधवार की रात एकनाथ शिंदे की प्रेस कांफ्रेंस टलती चली गई। यह भी पता नहीं लगा कि उनकी बैठक में क्या तय हुआ। अब आज दिन में कुछ बातें साफ होंगी। गुवाहाटी में 34 बागी विधायक मौजूद हैं। इसका इतना मतलब है कि शिवसेना विधायक दल में उद्धव ठाकरे अल्पमत में हैं। ऐसा कैसे सम्भव है? क्या यह सिर्फ शिंदे और बीजेपी का खेल है? कल रात शरद पवार ने कहीं कहा कि राज्य की इंटेलिजेंस कैसी है कि विधायकों के भागने की जानकारी तक नहीं हो पाई। दिन के अपने टीवी प्रसारण में उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं इस्तीफा देने को तैयार हूँ। रात में खबर आई कि शरद पवार ने उनसे कहा कि इस्तीफा देने की जरूरत है। शायद वे विधानसभा में शक्ति परीक्षण के लिए तैयार हैं। उधर ठाकरे में सरकारी भवन वर्षा छोड़कर निजी भवन मातोश्री में सामान पहुँचा दिया है। पर वे एमवीए के साथ हैं। और यह भी स्पष्ट है कि वे काफी हद तक शरद पवार के प्रभाव में हैं। 

शिवसेना के वर्तमान उद्वेलन के पीछे चार कारण नजर आते हैं। एक, हिन्दुत्व और विचारधारा के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से अलगाव और एनसीपी, कांग्रेस से दोस्ती। दो, ठाकरे परिवार का वर्चस्व। 2019 में जब सरकार बन रही थी, तब उद्धव ठाकरे ने कोशिश की थी कि उनके बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तब शरद पवार ने उन्हें समझाया था।

तीसरा कारण है बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का आसन्न चुनाव, जिसमें शिवसेना के अंतर्विरोध सामने आएंगे। इन तीन कारणों की प्रकृति कमोबेश एक जैसी है। इनके अलावा जिस कारण का जिक्र एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे भी कर रहे हैं, वह है बीजेपी का ऑपरेशन कमल। यानी कि बीजेपी ने इस उद्वेलन को हवा दी है। कुछ और कारण भी हैं, पर इन चार वजहों में से किसी एक को केंद्र में रखकर भी बात करने के बजाय सभी कारणों पर ध्यान देना चाहिए।

क्रॉसवोटिंग

हाल में महाराष्ट्र के अंतर्विरोध हाल में हुए राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावी नतीजों में व्यक्त हो गए थे। ये अंतर्विरोध केवल शिवसेना से जुड़े हुए ही नहीं हैं। इनके पीछे एनसीपी और कांग्रेस के भीतर चल रही उमड़-घुमड़ भी जिम्मेदार है। क्रॉसवोटिंग केवल शिवसेना में नहीं हुई थी। विधान परिषद की कुल 30 में से 10 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने पांच उम्मीदवार उतारे थे जबकि उसके पास संख्या केवल चार को जिताने लायक ही थी। पाँचों जीते और अब एकनाथ शिंदे की बगावत के अचानक सामने आने से सबको हैरत हो रही है, पर लगता है कि शिंदे की नाराजगी पहले से चल रही थी।

इस साल के पाँच राज्यों में हुए चुनावों बाद महाराष्ट्र के विधायकों के मन में अपने भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे थे। एक तरफ शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस पार्टी के महा विकास अघाड़ी के बीच दरार बढ़ी, वहीं तीनों पार्टियों के भीतर से खटपट सुनाई पड़ने लगी। सबसे बड़ा असमंजस कांग्रेस के भीतर था। पार्टी के विधायकों का एक दल अप्रैल के पहले हफ्ते में हाईकमान से मिलने दिल्ली भी आया था। विधायकों की मुलाकात पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल से ही हुई, जबकि वे सोनिया गांधी या राहुल गांधी से मिलने आए थे। दिल्ली आए विधायकों ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा 'सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही सनसनीखेज खुलासे होंगे।'

मोदी की तारीफ

गत 10 मार्च को पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणाम आने के कुछ दिन बाद शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य मजीद मेमन ने एक ट्वीट में लिखा कि पीएम मोदी में कुछ गुण होंगे या उन्होंने कुछ अच्छे काम किए होंगे, जिसे विपक्षी नेता ढूंढ नहीं पा रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी, जब नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर उनकी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच तलवारें तनी हुईं थीं। मजीद मेमन वाली बात तो आई-गई हो गई, पर अघाड़ी सरकार के भीतर की कसमसाहट छिप नहीं पाई।

कांग्रेस के नेता दबे-छुपे पंजाब और उत्तर प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा देखकर परेशान हैं और उन्हें लगने लगा है कि यहाँ अब और रुकना खतरे से खाली नहीं है। उनका विचार है कि 2024 के विधान सभा चुनाव तक अघाड़ी बना भी रहा, तो वह सफल नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने विकल्प की तलाश शुरू कर दी है।

कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि राज्य में जब अघाड़ी सरकार बनी थी, तब मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे विधायकों की बातों को सुनें। हरेक मंत्री के साथ तीन-तीन विधायक जोड़े गए थे। यह व्यवस्था हुई भी होगी, तो हमें पता नहीं। अलबत्ता सरकार बनने के ढाई साल बाद जब एक मंत्री एचके पाटील ने जब तीन विधायकों के साथ बैठक की, तब इस व्यवस्था की जानकारी शेष विधायकों को हुई।

विधायकों को कई तरह की शिकायतें हैं, जिन्हें लेकर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी। दूसरी तरफ शरद पवार दिल्ली में बीजेपी-विरोधी राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की गतिविधियों में जुड़े हैं, पर इस बीच भाजपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच अचानक सम्पर्क बढ़ने से भी अघाड़ी सरकार के भीतर चिंता बढ़ गई। उसी दौरान नितिन गडकरी ने राज ठाकरे से मुलाकात की। कांग्रेस के पार्टी 25 विधायक गठबंधन की सरकार से नाराज हैं और उन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी।

सब नाराज

उधर केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा कि अघाड़ी के 25 विधायक भाजपा के सम्पर्क में हैं। उन्होंने यह नहीं बताया था कि किस पार्टी के नेताओं ने सम्पर्क किया है, किन्तु यह संकेत जरूर किया कि ये सभी नेता सरकार में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। ज्यादातर पर्यवेक्षक मानते हैं कि नाराजगी मुख्यतः राकांपा से है सरकार के भीतर और बाहर भी शिवसेना और राकांपा हावी हैं।

दूसरी तरफ अघाड़ी गठबंधन में सिर्फ कांग्रेस के नेता ही नाराज नहीं हैं। शिवसेना के पास मुख्यमंत्री पद होने के बावजूद उसके नेता भी नाराज हैं। गत 22 मार्च को शिवसेना के सांसद श्रीरंग बारने ने कहा था कि सबसे ज्यादा फायदा शरद पवार की राकांपा ने उठाया है। नेतृत्व करने के बावजूद शिवसेना को नुकसान उठाना पड़ रहा है। शिवसेना विधायक तानाजी सावंत ने भी ऐसी ही बात कही थी।

Wednesday, April 13, 2022

महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ गठबंधन में दरार


पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को मिली विफलता के परिणाम देखने को मिलने लगे हैं। पराजय का असर है कि कुछ राज्यों से सम्भावित-भगदड़ के संकेत हैं। महाराष्ट्र और झारखंड में सुगबुगाहट है। खासतौर से महाराष्ट्र से किसी भी समय बड़े राजनीतिक-परिवर्तन की खबर आ जाए, तो हैरत नहीं होगी। कहीं न कहीं कुछ पक रहा है। एक तरफ शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस पार्टी के महा विकास अघाड़ी के बीच दरार बढ़ी है, वहीं तीनों पार्टियों के भीतर से खटपट सुनाई पड़ने लगी है।

हाई कमान से मुलाकात

सबसे बड़ा असमंजस कांग्रेस के भीतर है। पार्टी के विधायकों का एक दल अप्रैल के पहले हफ्ते में हाईकमान से मिलने दिल्ली आया। सूचना थी कि विधायकों की 3 या 4 अप्रैल को हाईकमान से मुलाकात होगी। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक विधायकों की मुलाकात पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल से हुई भी है। ये विधायक सोनिया गांधी या राहुल गांधी से मिलने के इच्छुक बताए जाते हैं। उस मुलाकात की जानकारी नहीं है। यह मुलाकात होगी या नहीं, यह भी स्पष्ट नहीं है।

दिल्ली आए विधायकों ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा 'सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही सनसनीखेज खुलासे होंगे।' उधर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तमाम संगठनात्मक गतिविधियों से घिरा है। संसद के बजट सत्र का समापन होने वाला है। कुछ और राज्यों से असंतोष की खबरें हैं। शीर्ष नेतृत्व ने जी-23 के नेताओं से भी संवाद शुरू किया है। दूसरी तरफ लगता है कि सुनवाई नहीं हुई, तो महाराष्ट्र का असंतोष मुखर होता जाएगा।

पराजय से निराशा

गत 10 मार्च को विधान सभा चुनाव परिणाम आने के कुछ दिन बाद शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य मजीद मेमन ने एक ट्वीट में लिखा कि पीएम मोदी में कुछ गुण होंगे या उन्होंने कुछ अच्छे काम किए होंगे, जिसे विपक्षी नेता ढूंढ नहीं पा रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी, जब नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर उनकी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच तलवारें तनी हुईं थीं। मजीद मेमन वाली बात तो आई-गई हो गई, पर अघाड़ी सरकार के भीतर की कसमसाहट छिप नहीं पाई।

Sunday, March 28, 2021

महाराष्ट्र में कुछ होने वाला है

 


महाराष्ट्र की राजनीति में फिर कुछ होने वाला है। ऐसा अनुमान शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित सांसद संजय राउत के लेख से निकाला जा रहा है। इसके अलावा शरद पवार की अमित शाह से मुलाकात के बाद ये कयास और बढ़ गए हैं।

मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की चिट्ठी के बाद शिवसेना और एनसीपी में भितरखाने संग्राम चल रहा है। उधर संजय राउत ने रविवार को कहा कि अनिल देशमुख महाराष्ट्र के गृहमंत्री दुर्घटनावश बने थे। जयंत पाटिल और दिलीप वालसे-पाटिल जैसे वरिष्ठ राकांपा नेताओं के इनकार के बाद उन्हें यह पद मिला।

संजय राउत के इस बयान के साथ-साथ आज मीडिया में खबरें हैं कि शरद पवार तथा प्रफुल्ल पटेल की अहमदाबाद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात के बारे में मीडिया कर्मियों ने जब दिल्ली में अमित शाह से सवाल किया तो उन्होंने यह कहकर विषय को टाल दिया कि कुछ बातें सार्वजनिक नहीं होतीं। गृहमंत्री अमित शाह के इस जवाब से अटकलों को और बल मिला है। उन्होंने मुलाकात की बात से इनकार नहीं किया है। ऐसे में अब इस पर सस्पेंस बढ़ गया है कि तीनों नेताओं की मुलाकात में आखिर क्या बात हुई है? मीटिंग का एजेंडा क्या था?

नीचे पढ़ें संजय राऊत का सामना में प्रकाशित आलेख

 

महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल… ‘डैमेज कंट्रोल’ की दुर्गति!

मार्च 28, 2021  संजय राऊत / कार्यकारी संपादक , मुंबई

विगत कुछ महीनों में जो कुछ हुआ उसके कारण महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल खड़े किए गए। वाझे नामक सहायक पुलिस निरीक्षक का इतना महत्व  कैसे बढ़ गया? यही जांच का विषय है। गृहमंत्री ने वाझे को 100 करोड़ रुपए वसूलने का टार्गेट दिया था, ऐसा आरोप मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह लगा रहे हैं। उन आरोपों का सामना करने के लिए प्रारंभ में कोई भी आगे नहीं आया! सरकार के पास ‘डैमेज कंट्रोल’ की कोई योजना नहीं है, ये एक बार फिर नजर आया।

Monday, March 22, 2021

परमबीर सिंह के पत्र कांड पर शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' की कवरेज


मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम चिट्ठी की खबर आने के बाद से इस मामले ने राजनीतिक रंग पकड़ लिया है। हालांकि शिवसेना ने अभी तक अपनी स्थिति को स्पष्ट नहीं किया था, पर उसके मुखपत्र सामना में आज के संपादकीय से स्थिति स्पष्ट होती है। इसके अलावा अखबार की कवर स्टोरी से भी लगता है कि शरद पवार के साथ पार्टी की सहमति है। सामना के संपादकीय में लिखा है, 'परमबीर सिंह के निलंबन की मांग कल तक महाराष्ट्र का विपक्ष कर रहा था। आज परमबीर सिंह विरोधियों की ‘डार्लिंग’ बन गए हैं और परमबीर सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं। महा विकास आघाड़ी सरकार के पास आज भी अच्छा बहुमत है। बहुमत पर हावी होने की कोशिश करोगे तो आग लगेगी, यह चेतावनी न होकर वास्तविकता है। किसी अधिकारी के कारण सरकार बनती नहीं और गिरती भी नहीं है, यह विपक्ष को भूलना नहीं चाहिए!'

सामना की खबर में कहा गया है कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर खड़ी कार की जांच एनआईए कर रही है। दूसरी तरफ मनसुख हिरेन प्रकरण की जांच एटीएस कर रही है। इन सब हलचलों के बीच नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने दिल्ली का दौरा किया और उसके तुरंत बाद ही परमबीर सिंह का पत्र मीडिया के सामने आया। यह कहते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने ‘लेटर बम’ की ‘टाइमिंग’ पर ध्यान आकर्षित किया। गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगाए गए आरोप गंभीर हैं। इस मामले को लेकर आज, सोमवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से चर्चा होगी। गृहमंत्री देशमुख का भी पक्ष सुना जाएगा, ऐसा पवार ने बताया।

गृहमंत्री अनिल देशमुख ने हर महीने 100 करोड़ रुपए जुटाने का टारगेट परमबीर सिंह को दिया था। मुंबई पुलिस आयुक्त पद से तबादला होने के बाद सिंह ने ई-मेल से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र भेजकर इस तरह का आरोप लगाया। इस पत्र के कारण राज्यभर में खलबली मची हुई है। कल भाजपा ने गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर आंदोलन किया। इस पृष्ठभूमि पर शरद पवार ने नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर एक पत्रकार परिषद का आयोजन किया।

सबूत कहां हैं?

परमबीर सिंह के पत्र के पहले पेज पर देशमुख पर आरोप लगाए गए हैं तो दूसरे पेज पर आत्महत्या कर चुके सांसद मोहन डेलकर का उल्लेख है। सिंह द्वारा लगाए गए आरोप सही में बेहद गंभीर हैं लेकिन उनके द्वारा बताए गए 100 करोड़ रुपए की टारगेट के पैसे कहां जाते हैं, उसका कहीं जिक्र नहीं है।

सरकार अस्थिर करने का प्रयास

शरद पवार ने स्पष्ट किया कि इस मामले के पीछे राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार अस्थिर करने का विरोधियों का प्रयास है। लेकिन विपक्ष चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, राज्य सरकार को कोई खतरा नहीं है।

Sunday, March 21, 2021

मुम्बई का ‘वसूली’ मामला कहाँ तक जाएगा?


मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र ने केवल महाराष्ट्र की ही नहीं, सारे देश की राजनीति में खलबली मचा दी है। देखना यह है कि इस मामले के तार कहाँ तक जाते हैं, क्योंकि राजनीति और पुलिस का यह मेल केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख को हटा दिया जाएगा। इस तरह से महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार बची रहेगी और धीरे-धीरे लोग इस मामले को भूल जाएंगे। पर क्या ऐसा ही होगा? इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ गम्भीर होने वाले हैं और कोई आश्चर्य नहीं कि राज्य के सत्ता समीकरण बदलें। संजय राउत ने एमवीए के सहयोगी दलों से कहा है कि वे आत्ममंथन करें। इस बीच इस मामले से जुड़े मनसुख हिरेन की मौत से जुड़े मामले को केंद्रीय गृम मंत्रालय ने एनआईए को सौंपने की घोषणा की ही थी कि मुम्बई पुलिस के एंटी टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने कहा कि इस मामले की हमने जाँच पूरी कर ली है। घूम-फिरकर यह मामला राजनीति का विषय बन गया है। 

इस वसूली के छींटे केवल एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना तक ही सीमित नहीं रहेंगे। इसके सहारे कुछ और रहस्य भी सामने आ सकते हैं। अलबत्ता इन बातों से इतना स्पष्ट जरूर हो रहा है कि देश के राजनीतिक दल पुलिस सुधार क्यों नहीं करना चाहते। पिछले कुछ दिनों से मुंबई पुलिस कई कारणों से मीडिया में छाई हुई है। पहले मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक रखने के आरोप में पुलिस अधिकारी सचिन वझे फँसे। बात बढ़ने पर पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को पद से हटा दिया गया। इसपर परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखी।

सवाल है कि परमबीर सिंह को यह चिट्ठी लिखने की सलाह किसने दी और क्यों दी? उन्हें जब यह बात पता थी, तब उन्होंने इसकी जानकारी दुनिया को देने में देरी क्यों की? सच्चे पुलिस अधिकारी का कर्तव्य था कि वे ऐसे गृहमंत्री के खिलाफ केस दायर करते। पर क्या भारत में ऐसा कोई पुलिस अफसर हो सकता है? विडंबना है कि हम इस वसूली के तमाम रहस्यों को सच मानते हैं। हो सकता है कि काफी बातें गलत हों, पर वसूली नहीं होती, ऐसा कौन कह सकता है? 

 सवाल यह भी है कि मुकेश अम्बानी के घर के पास मोटर वाहन से विस्फोट मिलने के पीछे रहस्य क्या है? सचिन वझे इस पूरे प्रकरण में मामूली सा मोहरा नजर आता है। असली ताकत कहीं और है। बेशक वह पुलिस कमिश्नर और शायद गृहमंत्री से भी ऊँची कोई ताकत है। यहाँ यह साफ कर देने की जरूरत है कि कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है।