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Sunday, April 21, 2019

एयरलाइंस का निर्मम कारोबार



करीब सवा सौ विमानों के साथ चलने वाली देश की दूसरे नम्बर की एयरलाइंस का अचानक बंद होना स्तब्ध करता है। साथ ही कुछ कटु सत्यों को भी उजागर करता है। यह क्षेत्र बहुत निर्मम है। पिछले साल मार्च में यह बात साफ थी कि जेट एयरवेज डांवांडोल है। उसे पूँजी की जरूरत होगी। उस वक्त सबसे ज्यादा चिंता उन संस्थाओं को होनी चाहिए थी, जिन्होंने भारी कर्ज दे रखा था। अब हमारे देश में दिवालिया कानून भी है। समय रहते प्रबंधकीय बदलाव होना चाहिए था, पर बैंकों को देर से बात समझ में आई। सवाल है कि अब क्या होगा?

एक सलाह है कि दिवालिया होने के कगार पर जा पहुंची कंपनी को डूबने देना चाहिए, भले ही उसका आर्थिक असर जो हो। दूसरी सलाह यह है कि सरकार को संकट में फँसी कंपनी की मदद करनी चाहिए। यह हमारी नियामक नीति की परीक्षा का समय भी है। कोई भी विदेशी एयरलाइंस भारतीय कंपनी में 49 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी नहीं रख सकती। पर प्रबंधन के लिए कम से कम 51 फीसदी हिस्सेदारी जब तक नहीं होगी, कोई आगे नहीं आएगा।