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Friday, August 11, 2023

ग्रामीण-विकास और खेती की चुनौतियाँ


 आज़ादी के सपने-02

भारत सरकार ने गत 20 जुलाई को चावल के निर्यात को लेकर एक बड़ा फैसला किया. गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई. भारत के इस फ़ैसले के पीछे कारण है आने वाले त्योहार के मौसम में बढ़ने वाली घरेलू माँग और क़ीमतों पर नियंत्रण रखना.

भारत के इस फैसले से दुनिया भर के खाद्य बाज़ार में चावल के दाम बढ़ने की आशंका है. भारत आज दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है. चावल के वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत है. विश्व व्यापार में साढ़े चार करोड़ टन चावल की बिक्री होती है, जिसमें 2.2 करोड़ टन भारतीय चावल होता है.

आत्मनिर्भर भारत

निर्यात-प्रतिबंधों का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, वह विचार का अलग विषय है. हमें केवल इस बात को रेखांकित करना है कि खाद्यान्न के मामले में अब हम आत्मनिर्भर हैं. भारत 140 से अधिक देशों को चावल निर्यात करता है.

इस परिस्थिति की तुलना करें साठ के दशक से जब भारत को विदेशी खाद्य सहायता पर निर्भर रहना पड़ा था. पीएल-480 समझौते के तहत, भारत ने अमेरिका से गेहूं का आयात किया. उसके तहत ऐसे गेहूँ को स्वीकार करना पड़ा, जो जानवरों को खिलाने लायक था.

भारत के प्राण उसके गाँवों में बसते हैं. देश का विकास तभी होगा, जब गाँवों का विकास होगा. गाँवों के साथ भारतीय खेती का वास्ता है. कृषि और ग्रामीण विकास के भारतीय कार्यक्रमों की लंबी कहानी है. इसमें पंचायती-राज और 73वें संविधान संशोधन की भी भूमिका है.

पंचायती राज

जनवरी 2019 तक की जानकारी के अनुसार देश में 630 जिला पंचायतें, 6614 ब्लॉक पंचायतें और 2,53,163 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें 30 लाख से अधिक पंचायत प्रतिनिधि हैं. इनके पास कुछ वित्तीय अधिकार भी हैं. 2021-26 की अवधि के लिए बने 15वें वित्त आयोग ने ग्रामीण निकायों के लिए 2,36,805 करोड़ की धनराशि के आबंटन की सिफारिश की है.