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Sunday, December 30, 2018

2019 की राजनीतिक प्रस्तावना

गुजर रहा साल 2018 भारतीय राजनीति के दृष्टिकोण से सेमी-फाइनल वर्ष था। अब हम फाइनल वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं। अगला साल कुछ बातों को स्थायी रूप से परिभाषित करेगा। राजनीतिक स्थिरता आई तो देश आर्थिक स्थिरता की राह भी पकड़ेगा। जीडीपी की दरें धीरे-धीरे सुधर रहीं हैं, पर बैंकों की हालत खराब होने से पूँजी निवेश की स्थिति अच्छी नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के सात बैंकों में सरकार पुनर्पूंजीकरण बांड के जरिए 28,615 करोड़ रुपये की पूंजी डाल रही है। इस तरह वे रिजर्व बैंक की त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) रूपरेखा से बाहर निकलेंगे और फिर से कर्ज बांटने लायक हो जाएंगे।
चुनाव की वजह से सरकार को लोकलुभावन कार्यक्रमों के लिए धनराशि चाहिए। राजस्व घाटा अनुमान से ज्यादा होने वाला है। जीएसटी संग्रह अनुमान से 40 फीसदी कम है। इसमें छूट देने से और कमी आएगी। केंद्र सरकार लोकसभा चुनावों से पहले किसानों के कल्याण के लिए कुछ बड़ी योजनाओं का ऐलान करेगी। हालांकि वह कर्ज माफी और सीधे किसानों के खाते में रकम डालने जैसी योजनाओं के पक्ष में नहीं हैं, पर खर्चे बढ़ेंगे। राजनीतिक और आर्थिक मोर्चों के बीच संतुलन बैठाने की चुनौती सरकार के सामने है।