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Sunday, April 23, 2017

वीजा प्रतिबंध : एक नया व्यापार युद्ध

वैश्वीकरण भ्रामक शब्द है. प्राकृतिक रूप से दुनिया एक है, पर हजारों साल के राजनीतिक विकास के कारण हमने सीमा रेखाएं तैयार कर ली हैं. ये रेखाएं राजनीतिक सत्ता और व्यापार के कारण बनी थीं. बाजार का विकास बगैर व्यापार के सम्भव नहीं था. दुनिया का कोई भी देश अपनी सारी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता. राजनीतिक सीमा रेखाओं को पार करके जैसे ही व्यापारियों ने बाहर जाना शुरू किया, कानूनी बंदिशों ने शक्ल लेनी शुरू कर दी. जिस देश से व्यापारी बाहर जाता है, वहाँ की बंदिशें है, जिस देश से होकर गुजरेगा, वहाँ के बंधन हैं और जहाँ माल बेचेगा वहाँ की सीमाएं हैं. व्यापार केवल माल का ही नहीं होता. सेवाओं, पूँजी, मानव संसाधन और बौद्धिक सम्पदा का भी होता है.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने इन सवालों पर सोचना शुरू किया और इन बातों को लेकर लम्बा विमर्श शुरू हुआ. सन 1947 में 23 देशों ने जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (गैट) पर दस्तखत करके इस वैश्विक वार्ता की पहल की. यह वार्ता 14 अप्रैल 1994 को मोरक्को के मराकेश शहर में पूरी हुई. उसके पहले 1986 से लेकर 1994 गैट के अंतर्गत बहुपक्षीय व्यापार वार्ताएं चलीं, जो लैटिन अमेरिका के उरुग्वाय से शुरू हुईं थीं. इसमें 123 देशों ने हिस्सा लिया और उसके बाद जाकर विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई. पर वैश्वीकरण का काम इतने भर से पूरा नहीं हो गया. इसके बाद सन 2001 से दोहा राउंड शुरू हुआ, जिसे सन 2004 में पूरा हो जाना चाहिए था, और जो अब तक पूरा नहीं हो सका है.

Sunday, April 2, 2017

राजनीति का बूचड़खाना

उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई होने के बाद से देश में गोश्त की राजनीति फिर से चर्चा का विषय है. प्रत्यक्षतः उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई न्यायसंगत है, क्योंकि इसके पीछे मई 2015 के राष्ट्रीय ग्रीन ट्रायब्यूनल (एनजीटी) के एक आदेश का हवाला दिया गया है. राज्य के पिछले प्रशासन ने इस निर्देश पर कार्रवाई नहीं की थी. एनजीटी ने निर्देश दिया था कि राज्य में चल रहे सभी अवैध बूचड़खानों को तत्काल बंद किया जाए. यदि यह केवल बूचड़खानों के नियमन का मामला है तो इसे कुछ समय लगाकर ठीक किया जा सकता है. पर यह राजनीति का, खासतौर से धार्मिक भावनाओं से जुड़ी राजनीति का, विषय बन जाने के बाद काफी टेढ़ा मसला बन गया है.

भारत में मांसाहार अवैध नहीं है और न मांस का कारोबार. पर इसके साथ स्वास्थ्य और पर्यावरण के मसले जुड़े हैं, कई तरह की शर्तें भी. उनका पालन होना भी चाहिए. चूंकि हिन्दू धर्म और संस्कृति का शाकाहार से सम्बंध है, इसलिए इस मसले के सांस्कृतिक पहलू भी हैं. देश के अनेक राज्यों में गोबध निषेध है. इन अंतर्विरोधों के कारण इन दिनों उत्तर प्रदेश में मांस के कारोबार को लेकर विवाद खड़ा हुआ है. अब भाजपा शासित कुछ और राज्य बूचड़खानों को लेकर कार्रवाई करने का मन बना रहे हैं.

Monday, March 20, 2017

अब राष्ट्रपति-चुनाव की रस्साकशी

पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों के कारण नरेन्द्र मोदी और भाजपा की बढ़ी हुई ताकत का पहला संकेत इस साल राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव में दिखाई पड़ेगा. अगले साल राज्यसभा के चुनाव से स्थितियों में और बड़ा गुणात्मक बदलाव आएगा. इस साल 25 जुलाई को प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. राष्ट्रपति चुनाव की रस्साकशी कई मानों में रोचक और निर्णायक होगी.

Monday, March 6, 2017

लोकतंत्र का भ्रमजाल

पिछले हफ्ते देश के आर्थिक विकास के तिमाही परिणाम आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के मामले में हारवर्ड वालों को हार्ड वर्क वालों ने पछाड़ दिया. मोदी ने जीडीपी के ताजा आंकड़ों के हवाले से बताया कि नोटबंदी के बावजूद अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी नहीं पड़ी. एक तरफ वे हैं जो हारवर्ड की बात करते हैं और दूसरी तरफ यह गरीब का बेटा है जो हार्ड वर्क से देश की अर्थव्यवस्था बदलने में लगा है.
मोदी ने यह बात चुनाव सभा में कही. उनके भाषणों में नाटकीयता होती है. वोटर को नाटकीयता पसंद भी आती है. पर चुनाव नाटक नहीं है. चुनाव से जुड़ा विमर्श असलियत को सामने नहीं लाता, बल्कि भरमाता है. चिंता की बात है कि चुनाव के प्रति वोटर की नकारात्मकता बढ़ी है. उसे जीडीपी के आँकड़ों को पढ़ना नहीं आता. राजनीति की जिम्मेदारी है कि उसका मतलब समझाए.  

Monday, February 20, 2017

आप अपराधी हैं तो राजनीति में आपका स्वागत है

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले देश में राजनीति और अपराध के रिश्तों पर रोशनी डालते हैं. इनमें एक है पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को सीवान जेल से हटाकर दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखने का फैसला. शहाबुद्दीन पर 45 मामलों में विचार चल रहा है और 10 मामलों में उन्हें दोषी पाया गया है. इन सारे मामलों को तार्किक परिणति तक पहुँचते-पहुँचते कितना समय लगेगा, कहना मुश्किल है. फिर भी संतोष की बात है कि देश की उच्चतम अदालत ऐसे मामलों में पहल ले रही है.


हाल में जिस दूसरे मामले ने ध्यान खींचा, वह है तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और उनके कुछ सहयोगियों की आय का मामला. इस फैसले के बाद तमिलनाडु की राजनीति में उथल-पुथल है. भारत में राजनीति और अपराध के बीच गहरे रिश्ते हैं. अक्सर अपराधों से जुड़े नेता अपने इलाकों में खासे लोकप्रिय होते हैं और चुनावों की जीत या हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसीलिए उनका महत्व बना रहता है. आरजेडी के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन अपने समर्थकों व विरोधियों के बीच रॉबिनहुड के रूप में जाने जाते थे. कहते हैं कि एक दौर में सीवान में कानून का राज नहीं, शहाबुद्दीन का शासन चलता था.

Monday, February 6, 2017

शोर के दौर में खो गया विमर्श

संसद के बजट सत्र का पहला दौर अब तक शांति से चल रहा है. उम्मीद है कि इस दौर के जो चार दिन बचे हैं उनका सकारात्मक इस्तेमाल होगा. चूंकि देश के ज्यादातर प्रमुख नेता विधानसभा चुनावों में व्यस्त हैं, इसलिए संसद में नाटकीय घटनाक्रम का अंदेशा नहीं है, पर समय विचार-विमर्श का है. बजट सत्र के दोनों दौरों के अंतराल में संसद की स्थायी समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों पर विचार करेंगी. जरूरत देश के सामाजिक विमर्श की भी है, जो दिखाई और सुनाई नहीं पड़ता है. जरूरत इस बात की है कि संसद वैचारिक विमर्श का प्रस्थान बिन्दु बने. वह बहस देश के कोने-कोने तक जाए.

Thursday, February 2, 2017

इंफ्रा-मुखी लुभावना बजट

भारत का बजट लोक-लुभावन राजनीति, राजकोषीय अनुशासन और अर्थशास्त्रीय नियमों की रोचक चटनी होता है. इसकी बारीकियां केवल वित्तमंत्री का भाषण सुनने भर से समझ में नहीं आतीं. अलबत्ता पहली नजर में सार्वजनिक प्रतिक्रिया समझ में आ जाती है. इस लिहाज से इसबार का बजट काफी बड़े वर्ग को खुश करेगा. इसमें सामाजिक क्षेत्र का ख्याल है, ग्रामीण क्षेत्र की फिक्र है, साथ ही छोटे करदाता की परेशानियों को कम करने का इरादा भी. शेयर बाजार भी खुश है.

Monday, January 23, 2017

गणतंत्र दिवस के बहाने...

पिछले कुछ समय से तमिलनाडु के जल्लीकट्टू आयोजन पर लगी अदालती रोक के विरोध में आंदोलन चल रहा था. विरोध इतना तेज था कि वहाँ की पूरी सरकारी-राजनीतिक व्यवस्था इसके समर्थन में आ गई. अंततः केंद्र सरकार ने राज्य के अध्यादेश को स्वीकृति दी और जल्लीकट्टू मनाए जाने का रास्ता साफ हो गया. जनमत के आगे व्यवस्था को झुकना पड़ा. गणतंत्र दिवस के कुछ दिन पहले संयोग से कुछ ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिनका रिश्ता हमारे लोकतंत्र की बुनियादी धारणाओं से है. हमें उनपर विचार करना चाहिए.

Monday, January 9, 2017

साइंस की उपेक्षा मत कीजिए

पिछले हफ्ते तिरुपति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 104वीं भारतीय साइंस कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए कहा कि भारत 2030 तकनीकी विकास के मामले में दुनिया के टॉप तीन देशों में शामिल होगा. मन के बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है, पर व्यावहारिक नजरिए से आज हमें एशिया के टॉप तीन देशों में भी शामिल होने का हक नहीं है. एशिया में जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान, इसरायल और सिंगापुर के विज्ञान का स्तर हमसे बेहतर नहीं तो, कमतर भी नहीं है.

Monday, December 26, 2016

मोदी बनाम मूडीज़

मोदी सरकार के ढाई साल पिछले महीने पूरे हो गए. अब ढाई साल बचे हैं. सन 2008-09 की वैश्विक मंदी के बाद से देश की अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर वापस लौटाने की कोशिशें चल रहीं हैं. यूपीए सरकार मनरेगा, शिक्षा के अधिकार और खाद्य सुरक्षा जैसे लोक-लुभावन कार्यक्रमों के सहारे दस साल चल गई, पर भ्रष्टाचार के आरोप उसे ले डूबे. मोदी सरकार विकास के नाम पर सत्ता में आई है. अब उसका मध्यांतर है, जब पूछा जा सकता है कि विकास की स्थिति क्या है?  

Monday, December 12, 2016

भिंडी बाजार बनती राजनीति

राहुल गांधी ने कहा, नोटबंदी पर फैसले को चुनौती देने वाला मेरा भाषण तैयार है, लेकिन संसद में मुझे बोलने से रोका जा रहा है. मुझे बोलने दिया गया तो भूचाल आ जाएगा. सरकार की शिकायत है कि विपक्ष संसद को चलने नहीं दे रहा. उधर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है, सांसद अपनी जिम्मेदारी निभाएं. आपको संसद में चर्चा करने के लिए भेजा गया है, पर आप हंगामा कर रहे हैं. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के बनासकांठा में हुई किसानों की रैली में कहा, मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जाता, इसलिए मैंने जनसभा में बोलने का फैसला किया है.

Wednesday, December 7, 2016

गरीबनवाज़ जयललिता

जयललिता जयराम को जबर्दस्त जुझारू और जीवट वाली राजनेता के रूप में याद किया जाएगा. उन्होंने सत्ता का भरपूर इस्तेमाल किया, शानदार जीवन जिया, अपने विरोधियों का दमन किया और बड़े-बड़े अप्रत्याशित फैसले किए. फिल्मों के ग्लैमरस संसार से आईं जयललिता को राजनीति में प्रवेश करने के पहले कई प्रकार के अवरोधों, अपमानों और दुर्व्यवहारों का सामना भी करना पड़ा. शायद उनके अप्रत्याशित व्यवहार के पीछे यह भी एक बड़ा कारण था. पर उनकी गरीबनवाज़ छवि ने उनके सारे दोषों को धो दिया.
उनके ऐसे व्यक्तित्व को विकसित करने में तमिलनाडु की विलक्षण व्यक्ति-पूजा का भी योगदान है. भारतीय राजनीति में बड़े-बड़े कटआउटों की संस्कृति तमिलनाडु में ही विकसित हुई थी, जिसे रोकने का काम भी दक्षिण से आए टीएन शेषन ने ही किया था. इस राज्य में जीवित समकालीन नेताओं, फिल्मी सितारों और खिलाड़ियों के मंदिर बनते हैं. उनकी पूजा होती है. दक्षिण की पुरुष-प्रधान राजनीति में जयललिता जैसा होना भी अचंभा है. उन्होंने साधारण परिवार में जन्म लिया, कठिन परिस्थितियों का सामना किया और एक बार सत्ता की सीढ़ियों पर चढ़ीं तो चढ़ती चली गईं.

Friday, November 25, 2016

विपक्ष के लिए एक मौका

नोटबंदी के दो हफ्ते बाद उसकी राजनीति ने अँगड़ाई लेना शुरू कर दिया है. बुधवार को संसद भवन में गांधी प्रतिमा के पास तकरीबन 200 सांसदों ने जमा होकर अपनी नाराजगी को व्यक्त किया. वहीं तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर जंतर-मंतर पर रैली की. गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस, सीपीएम तथा बसपा ने सरकार की घेराबंदी की. कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री को इस फैसले के खिलाफ खड़ा किया, जबकि अमूमन मनमोहन सिंह बोलते नहीं हैं. कांग्रेस मनमोहन की विशेषज्ञता का लाभ लेना चाहती थी. पर मनमोहन सिंह ने इस फैसले की नहीं, उसे लागू करने वाली व्यवस्था की आलोचना की, उधर मायावती ने कहा कि हिम्मत है तो लोकसभा भंग करके चुनाव करा लो. पता लग जाएगा कि जनता आपके साथ है या नहीं. उम्मीद थी कि संसद के इस सत्र पर सर्जिकल स्ट्राइक हावी होगा, पर नोटबंदी ने विपक्ष की मुराद पूरी कर दी.

Monday, November 14, 2016

नेहरू को बिसराना भी गलत है

पिछले साल जब सरकार ने योजना आयोग की जगह ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ (राष्ट्रीय  भारत परिवर्तन संस्थान) यानी ‘नीति’ आयोग बनाने की घोषणा की थी तब कुछ लोगों ने इसे छह दशक से चले आ रहे नेहरूवादी समाजवाद की समाप्ति के रूप में लिया. यह तय करने की जरूरत है कि वह राजनीतिक प्रतिशोध था या भारतीय रूपांतरण के नए फॉर्मूले की खोज. वह एक संस्था की समाप्ति जरूर थी, पर क्या योजना की जरूरत खत्म हो गई? नेहरू का हो या मोदी का विज़न या दृष्टि की जरूरत हमें तब भी थी और आज भी है.

Sunday, October 30, 2016

वक्त के साथ रूप बदलती दीवाली!

प्रेम से बोलो, जय दीवाली!

जहां में यारो अजब तरह का है ये त्यौहार।
किसी ने नकद लिया और कोई करे उधार।। 
खिलौने, खीलों, बताशों का गर्म है बाज़ार
हरेक दुकान में चिरागों की हो रही है बहार।।
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई।
पुकारते हैं कह--लाला दीवाली है आई।।
बतासे ले कोई, बरफी किसी ने तुलवाई।
खिलौने वालों की उन से ज्यादा है बन आई।।

नज़ीर अकबराबादी ने ये पंक्तियाँ अठारहवीं सदी में कभी लिखी थीं. ये बताती हैं कि दीवाली आम त्यौहार नहीं था. यह हमारे सामाजिक दर्शन से जुड़ा पर्व था. भारत का शायद यह सबसे शानदार त्यौहार है. जो दरिद्रता के खिलाफ है. अंधेरे पर उजाले, दुष्चरित्रता पर सच्चरित्रता, अज्ञान पर ज्ञान की और निराशा पर आशा की जीत. यह सामाजिक नजरिया है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय.’ ‘अंधेरे से उजाले की ओर जाओ’ यह उपनिषद की आज्ञा है. यह एक पर्व नहीं है. कई पर्वों का समुच्चय है. हम इसे यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं. नचिकेता की कथा सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है. पर क्या हमारी दीवाली वही है, जो इसका विचार और दर्शन हैआसपास देखें तो आप पाएंगे कि आज सबसे गहरा अँधेरा और सबसे ज्यादा अंधेर है। आज आपको अपने समाज की सबसे ज्यादा मानसिक दरिद्रता दिखाई पड़ेगी। अविवेक, अज्ञान और नादानी का महासागर आज पछाड़ें मार रहा है।

Monday, October 3, 2016

पाकिस्तान क्यों नहीं मानता?

गुरुवार 28-29 सितम्बर की रात भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके आतंकवादियों पर जिस रणनीति के तहत हमला किया था उसका लक्ष्य था पाकिस्तान को चेतावनी देना. अभी तक पाकिस्तान ने इस संदेश को नहीं समझा है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसे अलग-थलग करने के लिए भारत मुहिम चला रहा है. पर लगता नहीं कि पाकिस्तान अकेला पड़ेगा. प्रकट रूप से उसके हौसले कम नहीं हुए हैं. पता नहीं दुनिया हमारे नुक्ते-नज़र को समझती भी है या नहीं.

Tuesday, September 20, 2016

‘डिजिटल-डेमोक्रेसी’ के पेचो-ख़म

हाल में गूगल की एशिया-प्रशांत भाषा प्रमुख रिचा सिंह चित्रांशी ने राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्रों से कहा कि सन 2020 तक भारत की ऑनलाइन जनसंख्या 50 करोड़ पार कर जाएगी. इनमें से ज्यादातर लोग भारतीय भाषाओं के जानकार होंगे. यह सामान्य खबर है, पर इसके निहितार्थ असाधारण हैं. कनेक्टिविटी ने डायरेक्ट डेमोक्रेसीकी सैद्धांतिक सम्भावनाओं को बढ़ाया है. गोकि उस राह में अभी काफी दूर तक चलना है, पर भारत जैसे साधनहीन समाज में इंटरनेट ने बदलाव के नए रास्ते खोले हैं.

Monday, September 5, 2016

शिक्षा दो, अच्छे शिक्षक भी

1957 में अल्बेर कामू को नोबेल पुरस्कार मिला तो उन्होंने अपनी माँ को धन्यवाद दिया और फिर अपने प्राथमिक शिक्षक को। उन्होंने अपने अध्यापक को पत्र लिखा, 

19 नवंबर 1957

प्रिय महाशय जर्मेन,

मैं इन दिनों अपने आस-पास की हलचलों को थोड़ा थमने के बाद अपने दिल की गहराई से आपसे बात कर रहा हूँ। मुझे अभी-अभी बहुत बड़ा सम्मान दिया गया है, जिसे न तो मैंने चाहा था और न ही इसके लिए आग्रह किया था। लेकिन जब मैंने यह समाचार सुना, तो मेरी माँ के बाद मेरा पहला विचार आपके बारे में आया। आपके बिना, उस स्नेही हाथ के बिना जो आपने उस छोटे से गरीब बच्चे को दिया, आपकी शिक्षा और उदाहरण के बिना, यह सब कुछ नहीं हो पाता। मैं इस तरह के सम्मान को बहुत महत्व नहीं देता। लेकिन कम से कम इसने मुझे यह बताने का मौका दिया कि आप मेरे लिए क्या थे और अब भी क्या हैं, और आपको यह आश्वासन देता हूँ कि आपके प्रयास, आपका काम और आपके द्वारा इसमें लगाया गया उदार हृदय आज भी उस छोटे से स्कूली बच्चे में जीवित है, जो वर्षों से आपका आभारी शिष्य बना हुआ है। मैं आपको पूरे हृदय से गले लगाता हूँ।

अल्बेर कामू

119 November 1957

Dear Monsieur Germain,

I let the commotion around me these days subside a bit before speaking to you from the bottom of my heart. I have just been given far too great an honor, one I neither sought nor solicited. But when I heard the news, my first thought, after my mother, was of you. Without you, without the affectionate hand you extended to the small poor child that I was, without your teaching and example, none of all this would have happened. I don’t make too much of this sort of honour. But at least it gives me the opportunity to tell you what you have been and still are for me, and to assure you that your efforts, your work, and the generous heart you put into it still live in one of your little schoolboys who, despite the years, has never stopped being your grateful pupil.'

दुनिया में शिक्षक दिवस 5 अक्तूबर को मनाया जाता है. हमारे देश में उसके एक महीने पहले 5 सितम्बर को मनाते हैं. हमने पहले फैसला किया कि साल में एक दिन अध्यापक के नाम होना चाहिए. सन 1962 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने. उस साल उनके कुछ छात्र और मित्र 5 सितम्बर को उनके जन्मदिन का समारोह मनाने के बाबत गए थे. इस पर डॉ राधाकृष्णन ने कहा, मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाओ तो बेहतर होगा. मैं शिक्षकों के योगदान की ओर समाज का ध्यान खींचना चाहता हूँ.

Monday, August 22, 2016

रियो ने कहा, बेटी को खिलाओ

रियो में भारत की स्त्री शक्ति ने खुद को साबित करके दिखाया. पीवी सिंधु, साक्षी मलिक, दीपा कर्मकार, विनेश फोगट और ललिता बाबर ने जो किया उसे देश याद रखेगा. सवाल जीत या हार का नहीं, उस जीवट का है, जो उन्होंने दिखाया. इसके पहले भी करणम मल्लेश्वरी, कुंजरानी देवी, मैरी कॉम, पीटी उषा, अंजु बॉबी जॉर्ज, सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा, फोगट बहनें, टिंटू लूका, द्युति चंद, दीपिका कुमारी, लक्ष्मी रानी मांझी और बोम्बायला देवी इस जीवट को साबित करती रहीं हैं.  
इसबार ओलिम्पिक खेलों को लेकर हमारी अपेक्षाएं ज्यादा थीं. हमने इतिहास का सबसे बड़ा दस्ता भेजा था. उम्मीदें इतनी थीं कि न्यूज चैनलों ने पहले दिन से ही अपने पैकेजों पर गोल्ड रश शीर्षक लगा दिए थे. पहले-दूसरे दिन कुछ नहीं मिला तो तीसरे रोज लेखिका शोभा डे ने ट्वीट मारा जिसका हिन्दी में मतलब है, "ओलिम्पिक में भारत की टीम का लक्ष्य है-रियो जाओ, सेल्फी लो. खाली हाथ वापस आ जाओ. पैसा और मौके दोनों की बरबादी." इस ट्वीट ने एक बहस को जन्म दिया है, जो जारी है.

Monday, August 8, 2016

राजनीति का झुनझुना बना है दिल्ली का सवाल

हाल में एक वीडियो संदेश में अरविंद केजरीवाल ने नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया 'वह मेरी हत्या तक करवा सकते हैं.' इसके पहले उन्होंने मोदी को मनोरोगी बताया था, कायर और मास्टरमाइंड भी. यह भी कि मोदी मुझसे घबराता है. केंद्र की मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच जो घमासान इन दिनों मचा है वह अभूतपूर्व है. इस वजह से दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारों का सवाल पीछे चला गया है और उससे जुड़ी राजनीति घटिया स्तर पर जा पहुँची है. एक तरफ आप सरकार का आंदोलनकारी रुख है तो दूसरी तरफ उसके 12 विधायकों की गिरफ्तारी ने देश की लोकतांत्रिक प्रणाली पर कई तरह के सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. इसकी शुरूआत दिल्ली विधान सभा के पिछले चुनाव में बीजेपी के केजरीवाल विरोधी नितांत व्यक्तिगत, फूहड़ प्रचार से हुई थी.