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Monday, November 13, 2017

‘स्मॉग’ ने रेखांकित किया एनजीटी का महत्व

उत्तर भारत और खासतौर से दिल्ली पर छाए स्मॉग के कारण कई तरह के असमंजस सामने आए हैं. स्मॉग ने प्रशासनिक संस्थाओं की विफलता को साबित किया है, वहीं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के महत्व को रेखांकित भी किया है.
अफरातफरी में दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों में छुट्टी कर दी गई. फिर दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन स्कीम को फिर से लागू करने की घोषणा कर दी. यह स्कीम भी रद्द हो गई, क्योंकि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने कुछ ऐसी शर्तें रख दीं, जिनका पालन करा पाना मुश्किल होता.  
जल, जंगल और जमीन
सन 2010 में स्थापना के बाद से यह न्यायाधिकरण देश के महत्वपूर्ण पर्यावरण-रक्षक के रूप से उभर कर सामने आया है. इसके हस्तक्षेप के कारण उद्योगों और कॉरपोरेट हाउसों को मिलने वाली त्वरित अनुमतियों पर लगाम लगी है. खनन और प्राकृतिक साधनों के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगी है.

Sunday, November 12, 2017

प्रदूषण से ज्यादा उसकी राजनीति का खतरा


विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण के कारण दिल्ली में सालाना 10,000 से 30,000 मौतें होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 13 भारत के शहर हैं। इनमें राजधानी दिल्ली सबसे ऊपर है। उस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की हवा में पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 की मात्रा प्रति घन मीटर 150 माइक्रोग्राम है। पर पिछले बुधवार को एनवायरनमेंट पल्यूशन बोर्ड के मुताबिक दिल्ली की हवा में प्रति घन मीटर 200 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 प्रदूषक तत्व दर्ज किए गए। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की सेफ लिमिट से 8 गुना ज्यादा है। 25 माइक्रोग्राम को सेफ लिमिट मानते हैं।

सन 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे ने दुनियाभर के 1,600 देशों में से दिल्ली को सबसे ज्यादा दूषित करार दिया था। बार-बार लगातार इन बातों की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ रही है। सवाल है कि हमने इस सिलसिले में किया क्या है? पिछले कुछ दिन से एक तरफ दिल्ली में प्रदूषण का अंधियारा फैला तो दूसरी तरफ सरकारों और सरकारी संगठनों की बयानबाज़ी होने लगी। समस्या प्रदूषण है या उसकी राजनीति? यह सिर्फ इस साल की समस्या नहीं है और आने वाले दिनों में यह बढ़ती ही जाएगी। क्या हम एक-दूसरे पर दोषारोपण करके इसका समाधान कर लेंगे?