कुछ खेल ऐसे भी हैं, जिनमें इस एशियाड में मनोनुकूल सफलता नहीं मिली। इनमें कुश्ती और भारोत्तोलन शामिल हैं। कॉमनवैल्थ खेलों में हमने इन्हीं खेलों में बड़ी सफलता हासिल की थी। इसकी एक वजह यह भी है कि एशिया खेलों में कंपटीशन ज्यादा मुश्किल है। दूसरी तरफ हमारे खिलाड़ी घुड़सवारी, ब्रिज, गोल्फ, शतरंज, वुशु और सेपक टकरा जैसे खेलों में भी मेडल जीतकर लाए हैं। फिर भी कम से कम दो खेल ऐसे हैं, जिनमें हमें विश्व स्तर को छूना है। एक है जलाशय से जुड़े खेल यानी एक्वैटिक्स और दूसरे जिम्नास्टिक्स। इन दोनों खेलों में मेडलों की भरमार होती है।
Tuesday, October 10, 2023
खेल की दुनिया में बड़ा कदम
Wednesday, January 11, 2023
क्रिकेट-विश्वकप-23 और भारत की कहानी
विश्वकप क्रिकेट-1987 |
देस-परदेश
भारत में क्रिकेट राष्ट्रीय-भावनाओं के साथ जुड़ गया है. एक समय तक हम हॉकी को राष्ट्रीय खेल मानते थे. वह सम्मान अब भी अपनी जगह होगा, पर क्रिकेट ने कहानी बदली दी है. भारत में इस साल हॉकी और क्रिकेट दोनों की विश्वकप प्रतियोगिताएं होने वाली हैं. आप दोनों की कवरेज के फर्क से इस बात का अनुमान लगा लीजिएगा.
हॉकी विश्वकप आज से तीन
दिन बाद 13 जनवरी से शुरू हो रहा है. मीडिया ने कितनी जानकारी आपको दी? ऐसा तब है, जब
हाल के वर्षों में भारतीय हॉकी टीम ने अपनी बिगड़ी कहानी को काफी हद तक सुधारा है.
ओलिंपिक-कांस्य तक पहुँच गए हैं. उम्मीद जगाई है, ओडिशा जैसे राज्य ने, जहाँ हॉकी
का इंफ्रास्ट्रक्चर बना है.
हो सकता है कि आने
वाले समय में कॉरपोरेट जगत हॉकी की मदद में भी आगे आएं. फिलहाल हमारी दिलचस्पी हॉकी और क्रिकेट की तुलना करने में नहीं, बल्कि
राष्ट्रीय-जीवन में खेल की भूमिका में है. बैडमिंटन, कुश्ती, बॉक्सिंग और आर्चरी
जैसे खेलों का भी यह उदयकाल है.
विश्वकप फुटबॉल
हाल में क़तर में हुई विश्वकप फुटबॉल
प्रतियोगिता के दौरान मोरक्को की टीम के सेमीफाइनल तक पहुँचने पर मुस्लिम देशों,
खासतौर से अरब देशों में उत्साह की लहर देखी गई. क्रिस्टियानो रोनाल्डो की टीम
पुर्तगाल को हराने के बाद मोरक्को वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल तक पहुँचने वाला पहला
अफ़्रीकी अरब देश बना था. प्रतियोगिता के आयोजक देश कतर को भले ही सफलता नहीं
मिली, पर उसका आयोजन शानदार था. अलबत्ता सेनेगल, ट्यूनीशिया, ईरान और सऊदी अरब ने भी किसी न किसी रूप में अच्छा
प्रदर्शन किया.
अब तक इन अफ्रीकी-अरब
देशों के खिलाड़ी यूरोपियन टीमों में शामिल होकर उनका गौरव बढ़ाते रहे हैं, पर लगता
है कि अब एक नया चलन शुरू होने जा रहा है. विश्वकप जीतने का सपना टूटने के कुछ
सप्ताह बाद पुर्तगाल के कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने यूरोपीय फ़ुटबॉल क्लब मैनचेस्टर
यूनाइटेड छोड़कर, सऊदी अरब के 'अल-नस्र'
से नाता जोड़ लिया है.
सऊदी अरब का सपना
अल नस्र और रोनाल्डो के बीच हुआ क़रार अब तक का
सबसे महंगा सौदा बताया जा रहा है. अल-नस्र 2025 तक हर साल रोनाल्डो को क़रीब 1800
करोड़ रुपये का भुगतान करेगा. रोनाल्डो का सऊदी अरब पहुँचना बड़े बदलाव का संकेत
है.
सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान क़तर
विश्व कप के दौरान फीफा के प्रमुख जीवी इनफ़ैंन्तिनो के साथ कई बार नज़र आए थे. वे
अपने देश को आधुनिक बना रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने विज़न-2030 के नाम से पूरा एक
कार्यक्रम बनाया है. इस कार्यक्रम में खेलों को भी शामिल किया गया है. क्राउन
प्रिंस मानते हैं कि पश्चिम एशिया अब नया यूरोप बनेगा. अब आप आएं भारत की ओर.
क्रिकेट
विश्वकप
ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट हर साल नवंबर के दूसरे सप्ताह में एक विशेष अंक का प्रकाशन करती है, जिसका नाम होता है ‘द वर्ल्ड अहैड.’ इसमें आने वाले वर्ष की संभावित-प्रवृत्तियों और घटनाओं का अनुमान किया जाता है. इस साल के ‘द वर्ल्ड अहैड-2023’ में भारत को लेकर तीन आलेख हैं. एक नरेंद्र मोदी की 2024 में विजय-संभावनाओं पर, दूसरा अर्थव्यवस्था पर. तीसरे का शीर्षक है, ‘द क्रिकेट वर्ल्ड कप इन इंडिया इन 2023 विल बी मोर दैन जस्ट अ गेम.’
Sunday, August 8, 2021
ओलिम्पिक में स्वर्णिम सफलता
उपलब्धियों के लिहाज से देखें, तो तोक्यो भारत के लिए इतिहास का सबसे सफल ओलिम्पिक रहा है। नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल के साथ एथलेटिक्स में पदकों का सूखा खत्म किया है, साथ ही पदकों की संख्या के लिहाज से भारत ने सबसे ज्यादा सात पदक हासिल किए हैं। यह असाधारण उपलब्धि हैं, हालांकि भारत को इसबार इससे बेहतर की आशा थी। हमारा स्तर बेहतर हो रहा है। इसबार की सफलता हमारे आत्मविश्वास में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी करेगी। जिस तरह से पूरे देश ने नीरज के स्वर्ण और हॉकी टीम के कांस्य पदक जीतने पर खुशी जाहिर की है, उससे लगता है कि खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। बेशक सरकार और कॉरपोरेट मदद के बगैर काम नहीं होगा, पर सबसे जरूरी है जन-समर्थन।
खेलों को आर्थिक-सामाजिक
विकास का संकेतक मानें तो अभी तक हमारी बहुत सुन्दर तस्वीर नहीं है। दूसरी ओर चीनी
तस्वीर दिन-पर-दिन बेहतर होती जा रही है। सन 1949 की कम्युनिस्ट क्रांति के 35 साल
बाद सन 1984 के लॉस एंजेलस ओलिम्पिक खेलों में चीन को पहली बार भाग लेने का मौका
मिला और उसने 15 गोल्ड, 8 सिल्वर और 9 ब्रॉंज़ मेडल जीतकर चौथा
स्थान हासिल किया था। उस ओलिम्पिक में सोवियत गुट के देश शामिल नहीं थे। पर चीन ने
अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराकर अपनी भावी वैश्विक महत्ता को दर्ज कराया था।
चीनी वर्चस्व
सन 2008 के बीजिंग ओलिम्पिक में चीन को सबसे
ज्यादा 100 मेडल मिले थे। उस बार मेडल तालिका में उसका स्थान पहला था। लंदन
ओलिम्पिक में उसका स्थान दूसरा हो गया और रियो में तीसरा। तोक्यो ओलिम्पिक में स्वर्ण पदकों की
संख्या और कुल संख्या के आधार पर भी अमेरिका नम्बर एक और चीन नम्बर दो पर है।
इसबार केवल महिला खिलाड़ियों की पदक सूची भी उपलब्ध है। उसमें भी अमेरिका सबसे ऊपर
है।
हाल में किसी ने भारत की पूर्व एथलीट पीटी उषा से पूछा कि भारत ओलिम्पिक में चीन की तरह पदक क्यों नहीं लाता? जवाब मिला, ‘मैंने सच बोल दिया तो वह कड़वा होगा।’ कड़वा सच क्या है? चीन इतने कम समय में ओलिम्पिक सुपर पावर कैसे बन गया? उन्होंने अंग्रेज़ी के एक शब्द में इसका जवाब दिया, ‘डिज़ायर’ यानी मनोकामना। इसे महत्वाकांक्षा भी मान सकते हैं। चीनी समाज के सभी तबक़ों में मेडल जीतने करने की ज़बरदस्त चाह है।
Wednesday, October 11, 2017
खेल के मैदान में लिखी है बदलते भारत की इबारत
Monday, July 25, 2016
सामाजिक बदलाव का वाहक है खेल का मैदान
Sunday, March 29, 2015
हार पर यह कैसा हाहाकार?
Monday, October 6, 2014
खेलों में हम फिसड्डी ही साबित क्यों होते हैं?
Friday, June 14, 2013
खेल जब पेशा है तो ‘फिक्सिंग’ भी होगी
खेल को पेशा बनाने का नतीजा |
सतीश आचार्य का कार्टून |
Tuesday, December 4, 2012
राजनीति में खेल हैं या खेल में राजनीति?
Friday, October 15, 2010
हमारी खेल-संस्कृति
1.क्या हम खेल के अच्छे आयोजक हैं? कॉमनवैल्थ खेल के उद्घाटन और समापन समारोहों पर न जाएं। प्रतियोगिताओं की व्यवस्थाओं और खेल के स्तर पर ध्यान दें। किसी भी वज़ह से भारत की छवि पहले से खराब थी। ऊपर से हमारे सारे निर्माण कार्य देर से पूरे हुए।
कुछ लोग चीन से हमारी तुलना करते हैं। चीन की व्यवस्था में सरकारी निर्णयों को चुनौती नहीं दी जा सकती। हमारे यहाँ अनेक काम अदालती निर्देशों के कारण भी रुके। इसमें पेड़ों की कटाई से लेकर ज़मीन के अधिग्रहण तक सब शामिल हैं। तब हम लंदन से अपनी तुलना करें। वहाँ भी हमारे जैसा लोकतंत्र है।
हमारे पास दिल्ली मेट्रो का अनुभव था। उसके निर्माण में शुरुआती अड़ंगों के बाद सुप्रीम कोर्ट की कुछ ऐसी व्यवस्थाएं आईं कि विलम्ब नहीं हुआ। मेट्रो के कुशल प्रबंधकों ने उसके कार्यान्वयन में कभी देरी नहीं होने दी। उन्होंने अपनी कुशलता और समयबद्धता को रेखांकित करने का बार-बार प्रयास किया। कॉमनवैल्थ खेलों के साथ इस किस्म की कुशलता या पटुता को रेखांकित करने की कोशिश नहीं की गई।
मेरा अनुभव है कि हम जब पूरे समुदाय को चुनौती देते हैं तो सब खड़े होकर काम को करने के लिए आगे आते हैं। कॉमनवैल्थ खेलों को संचालित करने वालों ने प्रेरणा देने या लेने की कोई कोशिश नहीं की। यह हमारी पूरी व्यवस्था से जुड़ी बात है। निर्माण कार्यों में हेराफेरी हुई या नहीं इसपर मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा। उसके बारे में जानकारियाँ आने वाले समय में काफी आएंगी।
हमारा खेल प्रदर्शन कैसा रहा? पहले के मुकाबले कहीं बेहतर रहा। लगभग हर खेल में बेहतर था, पर खासतौर से एथलेटिक्स, तीरंदाज़ी, शूटिंग और जिम्नास्टिक का उल्लेख होना चाहिए। हॉकी में हमारी टीम बेहतरीन खेली। फाइनल का स्कोर वास्तविक कहानी नहीं कहता है। पहली बार भारतीय टीम ने फिटनेस के लेवल को सुधारा है। खेल में खिलाड़ियों के साथ-साथ पीछे काम करने वाले डॉक्टर, फिज़ियो और कोच की भूमिका होती है। इसमें कापी सुधार हुआ है। कोच ब्रासा कहते हैं कि भारतीय टीम को मनोवैज्ञानिक की ज़रूरत है। मैं उनसे सहमत हूँ। भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मानसिक रूप से हारी।
भारत सरकार ने कॉमनवैल्थ खेलों के लिए खिलाड़ियों की तैयारी पर खर्च करने के लिए 800 करोड़ रुपए दिए थे। इनमें से 500 करोड़ ही खर्च हो पाए। यह भी अकुशलता है। बहरहाल यह सब सीखने की बातें हैं। इतना स्पष्ट है कि खेल की संस्कृति पूरे समाज के मनोबल को बढ़ाने का काम कर सकती है। दूसरे यह कि हमारी अकुशलता खेल में हमारी विफलता के रूप में व्यक्त होती है।
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