गुजरात के चुनाव के बाद अब 2018 में कर्नाटक के चुनाव की तैयारी है। उसके साथ मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा के चुनाव भी होंगे। साल के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के चुनाव हैं। एक सम्भावना यह भी है कि लोकसभा चुनाव समय से पहले हो जाएं। बहरहाल अगले साल हों या 2019 में असली परीक्षा लोकसभा चुनाव में ही होगी। लम्बे असमंजस के बाद कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी को सिंहासन पर बैठा दिया है, जिनके सामने ‘मोदी मैजिक’ को तोड़ने की बड़ी चुनौती है। 2015 में बिहार में बने महागठबंधन ब्रांड सोशल इंजीनियरी को हाल में कांग्रेस पार्टी ने गुजरात में आजमाया और यकीनन लोकसभा चुनाव में भी उसे आजमाएगी। सवाल है कि बीजेपी का मिशन 2019 क्या है?
धुर-विरोधी भी मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी के भीतर ऊर्जा का भंडार है। उनकी पार्टी हर घड़ी चुनाव लड़ने को तैयार रहती है। और तीसरे अमित शाह चुनाव के कुशल प्रबंधक हैं। सन 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले जब अमित शाह को उत्तर प्रदेश का कार्यभार सौंपा जा रहा था, तो कुछ लोगों ने मजाक में पूछा था कि गुजराती नेता को उत्तर प्रदेश की क्या समझ? बहरहाल अमित शाह ने एकबार नहीं दो बार उत्तर प्रदेश के चुनावी शेरों को बिल्ली बनाकर रख दिया। कोई न कोई खूबी तो है, इस नेता में।
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी लगातार जीत रही है। बिहार, दिल्ली और पंजाब को छोड़ दें तो उसे लगातार सफलताएं मिलती गईं हैं। सम्भावनाओं का नियम कहता है कि उसके खाते में विफलताएं भी होनी चाहिए। बहरहाल इन परिणामों से कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही मतदाताओं का दिल जीतने के सबक सीखे हैं। सोशल इंजीनियरी इसका एक पहलू है, पूरा आयाम नहीं। बिहार में ओबीसी, दलितों और मुसलमानों का महागठबंधन सफल साबित हुआ था। हाल में कांग्रेस ने गुजरात में ओबीसी, दलितों, मुसलमानों और राज्य के ताकतवर जातीय समूह पाटीदारों के बीच पटरी बैठाई। क्या यह पटरी लोकसभा चुनाव में भी बैठेगी?