नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा को भारत के पुनर्जागरण की नजर
से देखा जाना चाहिए। बेशक यह मोदी की राजनीतिक उपलब्धि है, पर उससे ज्यादा यह ‘वैश्विक मंच पर भारत के आगमन’ की घोषणा है। मोदी ने इक्कीसवीं सदी को एशिया की सदी बताया है। इसमें
भारत-जापान रिश्तों की सबसे बड़ी भूमिका होगी। साथ ही इसमें चीन एक महत्वपूर्ण
भूमिका निभाएगा। मोदी ने क्योटो और वाराणसी के बीच सांस्कृतिक सेतु बनाने की घोषणा
करके दोनों देशों के परम्परागत सम्पर्कों को रेखांकित किया है। दोनों देशों के बीच
नाभिकीय समझौता फिर भी नहीं हो पाया। अलबत्ता जापान ने कुछ भारतीय कम्पनियों पर
लगी पाबंदियाँ हटाने की घोषणा की है। हमें उच्चस्तरीय तकनीक भी चाहिए, जो जापान के
पास है। भारत सरकार नए औद्योगिक शहरों को बसाने की योजना बना रही है। हमें इन्फ्रास्ट्रक्चर
की कम-खर्च व्यवस्था चाहिए, जिसमें चीन की भूमिका होगी। बहरहाल जापान-यात्रा आर्थिक
और सामरिक दोनों प्रकार के सहयोगों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।