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Monday, July 27, 2020

चीन-ईरान समझौते से चोट लगेगी भारत को

ईरान और चीन एक लम्बा सहयोग समझौता करने जा रहे हैं, जिससे वैश्विक समीकरण बदल जाने की संभावना है। चीन और ईरान की योजना के बरक्स यदि यूरोपीय देश निकट या सुदूर भविष्य में अमेरिकी प्रभा-मंडल से बाहर निकल गए, तो दुनिया की सूरत बदल जाएगी। साथ ही पश्चिम एशिया में चीन एक जबर्दस्त ताकत बनकर उभरेगा। ईरान को सऊदी अरब के वर्चस्व को समाप्त करने का मौका मिलेगा। पर ये सब संभावनाएं हैं और इस किस्म की हरेक अटकल के साथ उसके अंतर्विरोध भी जुड़े हैं। यह दो समान वजन वाली ताकतों का समझौता नहीं है। चीन विचारधारा से प्रेरित मूल्यबद्ध देश नहीं है। उसके पीछे अपनी महानता की जुनूनी मनोकामना है।

इलाके में ईरान अकेला ऐसा महत्वपूर्ण देश है, जो अमेरिका के खिलाफ खुलकर खड़ा हो सकता है। ऐसे देश की चीन को जरूरत है। चीन और ईरान दोनों को इस साल डोनाल्ड ट्रंप की पराजय का इंतजार भी है। जो बायडन का संभावित नया निजाम शायद ईरान को भटकने से रोके। ईरान के भीतर एक तत्व ऐसा भी है, जो चीन के दुर्धर्ष ‘आर्थिक अश्वमेध’ को समझता है। समझौते के दायरे में आर्थिक, सांस्कृतिक और सामरिक हर तरह का सहयोग शामिल होगा और यह कम से कम 25 साल के लिए किया जाएगा। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह खबर इसी अंदाज में लिखी है कि यह समझौता हो गया है। सबूत के तौर पर एक दस्तावेज भी प्रकाशित किया गया है, जो समझौते का प्रारूप है।