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Thursday, October 14, 2021

बीजेपी को हराएगा कौन?


पिछले शुक्रवार को एबीपी चैनल ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा समेत पाँच चुनावी राज्यों की सम्भावनाओं पर सी-वोटर के सर्वेक्षण को प्रसारित किया। सर्वेक्षण के अनुसार यूपी में सबसे ज्यादा सीटों के साथ बीजेपी फिर सरकार बना सकती है। इसे लेकर तमाम बातें हवा में हैं। माहौल बनाने की कोशिश है। सरकारी विज्ञापन देकर चैनलों से कुछ भी कहलाया जा सकता है वगैरह। बेशक चैनलों की साख खत्म है, पर सर्वे के परिणाम पूरी तरह हवाई नहीं हैं। बीजेपी नहीं, तो कौन?

2022 के उत्तर प्रदेश के परिणाम 2024 के लोकसभा चुनाव की कसौटी साबित होंगे। बीजेपी अजर-अमर नहीं है। वह भी हार सकती है। पर कैसे और कौन उसे हराएगा? केन्द्र की बात बाद में करिए, क्या उसके पहले यूपी में उसे हराया जा सकता है? पिछले सात साल से यह सवाल हवा में है कि क्या बीजेपी लम्बे अरसे तक सत्ता में रहेगी? क्या कांग्रेस धीरे-धीरे हवा में विलीन हो जाएगी? दोनों अर्धसत्य हैं। यानी एक हद तक सच हैं।

पिछले सात साल में हुए चुनावों में बीजेपी को भी झटके लगे हैं। हाल में पश्चिम बंगाल में और उसके पहले छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में वह हारी है। 2015 में बिहार में उसे झटका लगा, 2017 में पंजाब में, कर्नाटक में वह सबसे बड़ी पार्टी बनी, पर सरकार जेडीएस और कांग्रेस की बनी। गुजरात में भले ही बीजेपी की सरकार बनी, पर उसकी ताकत कम हो गई।

बीजेपी तभी हारेगी, जब राष्ट्रीय स्तर पर उसका विकल्प होगा। विचार और संगठन दोनों रूपों में। विकल्प जो बहुसंख्यक समाज को स्वीकार हो। कांग्रेस ने सायास वह जगह छोड़ी है और आज वह लकवे की शिकार है। पंजाब के घटनाक्रम को देखें, तो भ्रमित नेतृत्व की तस्वीर उभरती है। हाल में एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश के गाँव के कुछ लोग कह रहे थे, ‘चाहे कुछ हो जाए वोट तो योगी को ही देंगे। कितनी भी महंगाई हो जाए, वोट बीजेपी को ही देंगे, धन गया तो फिर कमा लेंगे, धर्म गया तो अधर्मी जीने नहीं देंगे वगैरह-वगैरह।’

Monday, June 21, 2021

शरद पवार ने विरोधी-महागठबंधन की पहल की, कल होगी बैठक

 


नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार आज दिल्ली में हैं। उन्होंने कल दिन में 4.00 बजे अपने निवास पर विरोधी दलों की बैठक बुलाई है, जिसमें 15-20 नेताओं के अलावा कुछ गैर-राजनीतिक व्यक्तियों के भी आने की सम्भावनाएं हैं, जिनमें वकील, अर्थशास्त्री और साहित्यकार शामिल हैं। शरद पवार ने आज चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से भी मुलाकात की। इससे पहले भी हाल में शरद पवार प्रशांत किशोर से मुलाकात कर चुके हैं। इस बैठक के पहले सुबह एनसीपी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक भी होने जा रही है।

तृणमूल कांग्रेस के यशवंत सिन्हा, राजद के मनोज झा, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह से भी आज शरद पवार की मुलाकात हुई। बताया जा रहा है कि यह बैठक राष्ट्रीय मंच के तत्वावधान में होने जा रही है, जिसका गठन कुछ साल पहले यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा ने किया था। खबर यह भी है कि यशवंत सिन्हा ने कहा है कि प्रशांत किशोर का इस बैठक से कोई वास्ता नहीं है। उधर प्रधानमंत्री ने 24 जून को जम्‍मू-कश्‍मीर के 14 नेताओं की बैठक बुलाई है, उसे लेकर भी कयास हैं।

इन दोनों बैठकों का राजनीतिक महत्व है। शरद पवार के घर पर होने वाली बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस को भी बुलाया गया है या नहीं, यह भी स्पष्ट नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि पार्टी का कोई प्रतिनिधि इसमें शामिल होगा या नहीं। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि बैठक यूपीए के तत्वावधान में नहीं हो रही है। इसका निमंत्रण शरद पवार और यशवंत सिन्हा की ओर से भेजा गया है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार 15 राजनीतिक दलों को निमंत्रण दिया गया है। एक सूत्र ने बताया कि सात दलों ने इसमें शामिल होने की स्वीकृति दी है।

इस मामले में मीडिया कवरेज संदेह पैदा कर रही है। बैठक विरोधी दलों की है या किसी वैचारिक मंच की, यह स्पष्ट नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार बैठक में फारूक अब्दुल्ला, यशवंत सिन्हा, संजय सिंह, पवन वर्मा, केटीएस तुलसी, डी राजा, जस्टिस एपी सिंह, करन थापर, आशुतोष, मजीद मेमन, वंदना चह्वाण, एसवाई कुरैशी, केसी सिंह, जावेद अख्तर, संजय झा, सुधीन्द्र कुलकर्णी, कॉलिन गोंज़ाल्वेस, अर्थशास्त्री अरुण कुमार, घनश्याम तिवारी और प्रीतीश नंदी शामिल हो सकते हैं। इनमें से कुछ नाम ऐसे हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। एनडीटीवी के अनुसार एनसीपी के नेता और महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने ट्वीट करके इस विस्तृत सूची को जारी किया, जिसमें प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम भी हैं। हालांकि नवाब मलिक की सूची में कांग्रेस के विवेक तन्खा और कपिल सिब्बल के नाम नहीं हैं, पर मीडिया में खबरें हैं कि उन्हें भी बुलाया गया है।  

Friday, December 25, 2020

बीजेपी-विरोध के अंतर्विरोध


ज्यादातर विरोधी दलों के निशाने पर होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कोई महामोर्चा नहीं बन पाना, अकेला ऐसा बड़ा कारण है, जो भारतीय जनता पार्टी को क्रमशः मजबूत बना रहा है। अगले साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में यह बात नजर आएगी, पर उसकी एक झलक इस समय भी देखी जा सकती है।

बीजेपी के खिलाफ रणनीति में एक तरफ ममता बनर्जी मुहिम चला रही हैं, वहीं सीपीएम ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 11 पार्टियों का जो संयुक्त बयान जारी किया है, उसमें तृणमूल का नाम नहीं है। यह बयान केंद्र सरकार के कृषि-कानूनों के विरोध में है। इसपर उन्हीं 11 पार्टियों के नाम हैं, जिन्होंने किसान-आंदोलन के समर्थन में 8 दिसंबर के भारत बंद का समर्थन किया था।