कपिल सिब्बल के हाल में इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित इंटरव्यू से इस चर्चा की शुरुआत हुई है। सिब्बल ने कहा, हम कोई ऐसी बात कह ही नहीं रहे हैं, जिसमें किसी क आलोचना हो। हम तो कह रहे हैं कि अब उस प्रक्रिया को शुरू किया जाना चाहिए, जिससे पार्टी में फिर से जान फूँकी जा सके। उधर सिब्बल की आलोचना करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, कपिल सिब्बल को बिहार और मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार में जाना चाहिए था। इसपर कपिल सिब्बल ने एक चैनल पर कहा कि भाई हमें क्यों नहीं ले जाया गया?
हालांकि कपिल सिब्बल या दूसरे वरिष्ठ
कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी या उनकी टीम पर सीधे कोई आरोप नहीं लगाया, पर
झारखंड कांग्रेस के एक नेता फुरकान अंसारी ने कहा है कि राहुल गांधी के ज्यादातर
सलाहकार एमबीए लोग हैं, जो सही सलाह दे ही नहीं सकते। उधर उत्तर प्रदेश में पार्टी
की हालत खराब है। वहाँ हुए सात विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में चार में
कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई है। मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर हुए
चुनाव में कांग्रेस केवल नौ पर जीत पाई। ये सीटें कांग्रेसी विधायकों के टूटने के
कारण खाली हुई थीं। यही हाल गुजरात में रहा, जहाँ आठ की आठ सीटें बीजेपी जीत गई।
इन सीटों पर कांग्रेस से बीजेपी में आए प्रत्याशी जीते।
इस सिलसिले में बिजनेस स्टैंडर्ड
में अदिति
फणनीस का विश्लेषण ध्यान खींचता है। उन्होंने लिखा है, बिहार के परिणामों का
विश्लेषण करते हुए पी चिदंबरम ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, '…कांग्रेस कार्य समिति
(सीडब्ल्यूसी) उचित समय पर इसकी समीक्षा करेगी और हमारे रुख को लेकर एक आधिकारिक
बयान जारी करेगी...मेरा मानना है कि 10 सीट इधर से उधर होने से सरकार बदल
जाती।'
जी-23 के एक सदस्य चिदंबरम के इस
स्पष्टवादी रुख को लेकर उदासीन थे। जी-23 नाम इसलिए क्योंकि इस साल की शुरुआत में कांग्रेस के 23 नेताओं के एक समूह ने पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग को लेकर पार्टी
आलाकमान को एक पत्र लिखा था। उन्होंने कहा, 'वर्ष 2014, 2019 और अन्य चुनावों में हमारी हार की कोई समीक्षा नहीं हुई। ऐसे में इस बार कुछ
अलग क्यों होना चाहिए?'
पार्टी बिहार में पिछले कई वर्षों में कभी सत्ता के इतने नजदीक नहीं आई थी, जितनी इस बार आई। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, 'ऑल इंडिया
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पांच सीटें जीती हैं। भाजपा को सत्ता
से बाहर रखने के लिए उसे हमें समर्थन देने के लिए थोड़ा सा मनाने की जरूरत होती।
थोड़ी सी और मेहनत करने की जरूरत थी। ऐसे में क्या यह कांग्रेस की कहानी बनने जा
रही है?
हमेशा का अफसोस? उनका कहना है कि जब जी-23 ने अगस्त में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सक्रिय और 'पूर्णकालिक' कांग्रेस अध्यक्ष की मांग की थी तो वे गांधी परिवार के नेतृत्व करने की वैधता
या अधिकार पर सवाल नहीं उठा रहे थे। इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक और
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा, 'इसका मकसद कांग्रेस को
सक्रिय और मजबूत बनाना है। लेकिन जिन्हें 'नियुक्ति पत्र' मिल गए, वे लगातार हमारे प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।
नेतृत्व की तरफ से प्रतिक्रिया नाराजगी भरी थी। एक प्रस्ताव में कहा गया, 'कांग्रेस कार्यसमिति यह साफ कर देती है कि इस समय किसी भी व्यक्ति को पार्टी
और उसके नेतृत्व को कमजोर करने की मंजूरी नहीं दी जाएगी।' लेकिन कांग्रेस
कार्यसमिति ने यह भी फैसला किया है कि चुनाव छह महीने के भीतर कराए जाएंगे। आजाद
ने कहा,
'दरअसल, राहुल और सोनिया गांधी ने कहा कि चुनाव एक महीने के भीतर कराते हैं, लेकिन हमने कहा कि यह संभव नहीं है। इसलिए यह हमारी जीत है कि छह महीने बाद
हमें पूर्णकालिक अध्यक्ष मिल जाएगा।' इस छह महीने की अवधि में से तीन
महीने निकल गए हैं। मगर चुनाव तो छोडिए, हाल फिलहाल अखिल भारतीय कांग्रेस
कमेटी के सत्र की किसी योजना का ही कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है।
गुलाम नबी आजाद के राज्य सभा से फरवरी 2021 में सेवानिवृत्त होने
और पार्टी संस्थाओं में धीरे-धीरे बदलाव से बगावत जारी रहेगी क्योंकि अब आगे
पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु में चुनाव होंगे। नेताओं का कहना है कि आलाकमान को यह फैसला करना
होगा कि वह पार्टी को कहां ले जाना चाहता है।
कांग्रेस जरूरी है। चुनाव के बाद। सरकारें बनाने के लिये दूसरे दलों को सदस्य उपलब्ध कराने के लिये। एम एल ए बैंक टाईप :)
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