Thursday, June 30, 2022

लम्बी योजना का हिस्सा है शिंदे का राजतिलक


महाराष्ट्र में सत्ता-परिवर्तन में विस्मय नहीं हुआ, पर मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे की नियुक्ति महत्वपूर्ण है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बात की घोषणा की कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री होंगे। फडणवीस इस सरकार से बाहर रहेंगे। फडणवीस ने कहा, उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी की बात को तवज्जोह दी इसलिए इन विधायकों ने आवाज़ बुलंद की। यह बग़ावत नहीं है।

पहले संभावना जताई जा रही थी कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री होंगे और शिंदे को उप मुख्यमंत्री का पद मिल सकता है। लेकिन फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबको चौंकाते हुए घोषणा की कि एकनाथ शिंदे बनेंगे महाराष्ट्र के सीएम। इस घोषणा के बाद पर्यवेक्षक अपने-अपने अनुमान लगा रहे हैं कि शिंदे को मुख्यमंत्री पद देने का अर्थ क्या है।

फौरी तौर पर माना जा रहा है कि इस फैसले से शिवसेना की बची-खुची ताकत को धक्का लगेगा और शायद कुछ लोग और उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर इधर आएं। उद्धव ठाकरे के अलावा निशाना शरद पवार भी हैं। ठाकरे के पास अब शरद पवार से जुड़े रहने का ही विकल्प है। अक्तूबर में होने वाले बृहन्मुम्बई महानगरपालिका चुनाव में बीजेपी ठाकरे की शिवसेना को हराना चाहती है। ऐसा हुआ, तो ठाकरे परिवार का वर्चस्व काफी कम हो जाएगा। अब अगली कोशिश होगी, चुनाव आयोग से असली शिवसेना का प्रमाणपत्र पाना।   

एकनाथ शिंदे ने आज उद्धव ठाकरे के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि पचास विधायक एक अलग भूमिका निभाते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। शिंदे और उनके साथी लगातार कह रहे हैं कि हम शिवसेना से बाहर नहीं गए हैं, बल्कि वास्तविक शिवसेना हम ही हैं।

महाराष्ट्र की राजनीति में अगला अध्याय

राज्यपाल को इस्तीफा सौंपते उद्धव ठाकरे 

सुप्रीम कोर्ट का बहुमत परीक्षण पर आदेश आने के कुछ समय बाद सोशल मीडिया पर लाइव आकर उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं नहीं चाहता कि शिवसैनिकों का
'ख़ून बहे, इसलिए मुख्यमंत्री का पद छोड़ रहा हूँ।  ठाकरे ने कहा कि मुझे 'पद छोड़ने का कोई दुख नहीं है।' उन्होंने कहा कि मैं विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ रहा हूँ। उनके इस्तीफे के बाद से नई सरकार के गठन की प्रक्रिया तेज हो गई है।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार आज गुरुवार को विधायक दल का नेता चुनने के लिए भाजपा की बैठक होगी, जिसमें चुने जाने के बाद देवेंद्र फडणवीस सरकार बनाने के लिए अपना पत्र विधान भवन में देंगे। जानकारी के अनुसार, वे 1 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। उनके साथ एकनाथ शिंदे उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। फडणवीस और शिंदे के साथ 6 मंत्री भी शपथ ले सकते हैं।

इस तरह महाराष्ट्र में एक अध्याय का अंत हुआ, पर यह एक नई राजनीति की शुरुआत है। फिलहाल वहाँ बीजेपी और शिवसेना के बागी विधायकों की सरकार बन जाएगी, पर निकट और सुदूर भविष्य की कुछ घटनाओं पर नजर रखनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि इस शक्ति परीक्षण के बाद आगामी 11 और 12 जुलाई को जिन दो मामलों की सुनवाई होने वाली है, उनके फैसले भी लागू होंगे। यानी कि यह अंतिम परिणति नहीं है।

दो में से एक फैसला 16 विधायकों की सदस्यता समाप्ति को लेकर है और दूसरा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर के विरुद्ध अविश्वास-प्रस्ताव को लेकर है। विधानसभा में स्पीकर पद पर इस समय कोई नहीं है, इसलिए नए स्पीकर की नियुक्ति भी महत्वपूर्ण होगी।

भविष्य की राजनीति

सुदूर भविष्य की राजनीति से जुड़ी तीन बातें महत्वपूर्ण हैं। अब शिवसेना का मतलब क्या? उद्धव ठाकरे या एकनाथ शिंदे? दोनों एक रहेंगे या अलग-अलग होंगे? बागी विधायकों में अपेक्षाकृत मुखर दीपक केसरकर ने कहा कि ठाकरे के इस्तीफे के लिए शिवसेना नेता संजय राउत जिम्मेदार हैं। यह इस्तीफा हमारे लिए खुशी की बात नहीं है। दुख की बात है। हमें जो संघर्ष करना पड़ा उसके लिए कांग्रेस, राकांपा और संजय राउत पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। इसने हमारे बीच दरार पैदा कर दी।

Wednesday, June 29, 2022

फ्लोर टेस्ट कल, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज शाम


 महाराष्ट्र के सियासी संग्राम के बीच राज्यपाल ने गुरुवार को फ्लोर-टेस्ट के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है, पर यह सब आसानी से होने वाला नहीं है। शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने राज्यपाल की ओर से महाराष्ट्र विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने को कानून और संविधान के ख़िलाफ़ बताया है। उन्होंने कहा कि 16 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में शक्ति परीक्षण का आदेश गैर-कानूनी है। 

 ताजा खबर है कि शिवसेना के चीफ ह्विप सुनील प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। महाविकास अघाड़ी की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले कि सुनवाई शाम पाँच बजे होगी। हालांकि सोमवार के हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के वकील की इस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया था कि 11 जुलाई से पहले फ्लोर-टेस्ट नहीं कराया जाए।

राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की ओर से जारी चिट्ठी में कहा गया है कि 30 जून को सुबह 11 से शाम पाँच बजे तक के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। बहुमत परीक्षण के नतीजे हैड काउंट से घोषित किए जाएं। प्रत्येक सदस्य को खड़े होकर मतदान करना है कि किसे वोट देना है। राज्यपाल ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में विधानसभा की कार्यवाही बाधित नहीं की जा सकती और प्रक्रिया को फिल्माया जाना चाहिए। इसे लाइव टेलीकास्ट भी किया जाएगा।

राज्यपाल की चिट्ठी में लिखा गया है कि इस सत्र का एकमात्र उद्देश्य उद्धव ठाकरे सरकार का शक्ति परीक्षण है। उधर बाग़ी शिवसेना विधायक और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री एकनाथ शिंदे ने गुवाहाटी में बताया है कि वे कल फ्लोर-टेस्ट के लिए मुंबई पहुँचेंगे। यह भी बताया गया है कि सभी बागी विधायक आज गोवा पहुँच जाएंगे, जहाँ से कल वे मुम्बई जाएंगे और 11 बजे विधानसभा में उपस्थित हो जाएंगे। 

फैसला फ्लोर टेस्ट से ही होगा, पर कब?

 


महाराष्ट्र की राजनीतिक हलचल में आज कोई नया मोड़ आने की सम्भावना है। मंगलवार को देर रात देवेन्द्र फडणवीस ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की और फ्लोर टेस्ट की मांग की। फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास बहुमत नहीं है। बागी विधायक उद्धव सरकार को समर्थन नहीं दे रहे हैं। इस औपचारिक माँग के बाद राज्यपाल को कोई दृष्टिकोण अपनाना होगा। देखना होगा कि वे करते हैं। बागी नेता एकनाथ शिंदे का कहना है कि फ्लोर टेस्ट गुरुवार को होगा। 

मुलाकात के दौरान फडणवीस ने राज्यपाल को एक चिट्ठी भी सौंपी है। फडणवीस ने कहा कि उद्धव सरकार को फ्लोर पर बहुमत साबित करना चाहिए। इसके पहले फडणवीस ने दिन में दिल्ली जाकर गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी।  

दूसरी तरफ शिवसेना ने स्पष्ट किया है कि राज्यपाल फ्लोर टेस्ट का फैसला करेंगे, तो हम अदालत की शरण लेंगे। शिवसेना का कहना है कि कम से कम 11 जुलाई तक फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए। 11 को सुप्रीम कोर्ट बागी विधायकों के उस नोटिस पर विचार करेगी, जिसमें डिप्टी स्पीकर पर अविश्वास व्यक्त किया गया है। यदि इस नोटिस को वैध माना गया, तो शक्ति परीक्षण डिप्टी स्पीकर के प्रति अविश्वास पर ही हो जाएगा। डिप्टी स्पीकर के हटने का मतलब है सरकार की हार।

सवाल है कि क्या 11 के पहले फ्लोर टेस्टसम्भव है? शिंदे गुट के विधायक बीजेपी के साथ गए, तो सरकार गिर जाएगी। अब स्थिति यह है कि यदि वे मतदान से अलग रहेंगे, तब भी सरकार गिर जाएगी।

Tuesday, June 28, 2022

वैश्वीकरण का चोला क्या अब बदलेगा?


पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की 1992 की एक बहुचर्चित टिप्पणी है, इट इज द इकोनॉमी स्टुपिड। यानी सारा खेल अर्थव्यवस्था का है। नब्बे के दशक में जब वैश्वीकरण ने शक्ल लेनी शुरू की, तब इसका केवल आर्थिक पक्ष ही सामने नहीं था। इसके तीन पहलू हैं: आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक। इन तीन वर्गीकरणों में सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और तमाम दूसरे विषय शामिल हैं। एक मायने में वैश्वीकरण का मतलब है मानव-समुदाय का साझा विकास। 1992 में ही फ्रांसिस फुकुयामा की किताब द एंड ऑफ हिस्ट्री भी प्रकाशित हुई थी। इतिहास का अंत एक तरह से शीत-युद्ध की अवधारणा और पश्चिम की विजय की घोषणा थी। सोवियत संघ के पराभव के बाद पूँजीवाद और खासतौर से अमेरिकी प्रभुत्व के आलोचकों और फुकुयामा समर्थकों के बीच बहस छिड़ी थी, जो आज भी जारी है।

वैश्विक सप्लाई-चेन

दुनिया की सप्लाई-चेन चीन के गुआंगदोंग, अमेरिका के ओरेगन, भारत के मुम्बई, दक्षिण अफ्रीका के डरबन, अमीरात के दुबई, फ्रांस के रेन से लेकर चिली के पुंटा एरेनास जैसे शहरों से होकर गुजरने वाले विमानों, ईमेलों, कंटेनर पोतों, रेलगाड़ियों, पाइपलाइनों और ट्रकों पर सवार होकर चलती है। एयरबस, बोइंग, एपल, सैमसंग, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, ऑरेकल, वीज़ा और मास्टरकार्ड ने अपने बहुराष्ट्रीय ऑपरेशनों की मदद से दुनिया को जोड़ रखा है। एक देश से उठकर कच्चा माल दूसरे देश में जाता है, जहाँ वह प्रोडक्ट के रूप में तैयार होकर फिर दूसरे देशों में जाता है।    

महामारी ने दुनिया की पारस्परिक-निर्भरता की जरूरत के साथ-साथ विश्व-व्यवस्था की  खामियों को भी उभारा। यूक्रेन के युद्ध ने इसे जबर्दस्त धक्का दिया है। कहा जा रहा है कि लागत कम करने की होड़ में ऐसे तानाशाही देशों का विकास हो गया है, जो मानवाधिकारों के विरुद्ध हैं। यानी रूस और चीन। पिछले पाँच वर्षों से वैश्विक-तंत्र में तनाव बढ़ रहा है। अमेरिका और चीन के बीच आयात-निर्यात शुल्कों के टकराव के साथ इसकी शुरुआत हुई। संरा कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड) के निवेश तथा उद्यमिता निदेशक जेम्स जैन ने हाल में अपने एक लेख में लिखा कि इस दशक में 2030 आते-आते ग्लोबल वैल्यू चेन के रूपांतरण की सम्भावना है।

रूपांतरण शुरू

यह रूपांतरण नजर आ रहा है। एपल ने कुछ प्रोडक्ट्स का उत्पादन चीन से हटाकर वियतनाम में शुरू कर दिया है। चीनी कम्पनियों ने मोंटेरी, मैक्सिको में एक विशाल औद्योगिक पार्क स्थापित किया है, ताकि अमेरिकी उपभोक्ताओं की माँग करीबी देश से पूरी की जा सके। मई के महीने में सैमसंग, स्टेलैंटिस और ह्यूंडे ने अमेरिका की इलेक्ट्रिक कार फैक्टरियों में 8 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। तीन दशक पहले जो बाजार चीन-केंद्रित था, वह दूसरी जगहों की तलाश में है। बहुत से देश आत्मनिर्भरता की नीति अपना रहे हैं।

Monday, June 27, 2022

महाराष्ट्र-घमासान से जुड़े राजनीतिक-अंतर्विरोध

संविधान सभा में डॉ भीमराव आम्बेडकर ने एकबार कहा था-राजनीति जिम्मेदार हो तो खराब से खराब सांविधानिक व्यवस्था भी सही रास्ते पर चलती है, पर यदि राजनीति में खोट हो तो अच्छे से अच्छा संविधान भी गाड़ी को सही रास्ते पर चलाने की गारंटी नहीं दे सकता। महाराष्ट्र का घमासान हमारे राजनीतिक-अंतर्विरोधों को रेखांकित कर रहा है। यह टकराव विधानसभा सचिवालय और राजभवन तक पहुँच चुका है। इसक निपटारा फ्लोर-टेस्ट से सम्भव है, जो न्यायपालिका की देन है। पर वह आसानी से नहीं होगा। अभी मानसिक युद्ध चल रहा है। इसके बाद राज्यपाल और सदन के डिप्टी स्पीकर की भूमिकाएं महत्वपूर्ण होंगी। इस मामले को अदालत में ले जाने की शुरुआत भी हो गई है। एकनाथ शिंदे के पक्ष ने विधानसभा के उपाध्यक्ष के फैसले को चुनौती दी है।  

फैसला जो भी हो, इस परिघटना ने राजनीति की विडंबनाओं को रेखांकित किया है। उद्धव ठाकरे सरकार के मंत्री एकनाथ शिंदे बागी विधायकों के साथ असम के एक पाँच सितारा होटल में डेरा डाले हुए हैं। मामला जिस करवट भी बैठे, पर सच यह है कि मुख्यधारा के मीडिया की नजर असम की पीड़ित जनता पर कम और राजनीति पर ज्यादा है।  

बेशक इन विडंबनाओं के अनेक पहलू हैं, पर 2014 के बाद की राष्ट्रीय राजनीति के दो कारक इसके जिम्मेदार हैं। एक, भारतीय जनता पार्टी का अतिशय सत्ता-प्रेम और दूसरे, उसे रोक पाने या संतुलित करने में विरोधी दलों की विफलता। इस समय सत्ता-समीकरण बेहद असंतुलित है। इसका एक कारण कांग्रेस पार्टी का पराभव है। पर यह कुल मिलाकर यह राष्ट्रीय राजनीति और लोकतांत्रिक संस्थाओं की विफलता है।

पार्टियों का आंतरिक लोकतंत्र भी कसौटी पर है। हैरत है कि महाराष्ट्र के बागियों को गठबंधन के ढाई साल बाद विचारधारा से जुड़ी बातें याद आ रही हैं। दूसरी तरफ शिवसेना के नेतृत्व और उसके विधायकों का ढाई साल लम्बा अबोला भी अविश्वसनीय है। यह कैसा लोकतंत्र है? इस राजनीतिक-व्यवस्था में राज्यपालों और पीठासीन अधिकारियों की भूमिका है और चुनाव सुधारों को लागू करा पाने से जुड़ी विफलताएं हैं। राजनीति में एक तरफ मनी और मसल पावरकी भूमिका बढ़ रही है और दूसरी तरफ धार्मिक-साम्प्रदायिक संकीर्णता विचारधारा का स्थान ले रही है।

कोलकाता से नया हिन्दी दैनिक 'वर्तमान'

आज 27 जून से कोलकाता से एक नए हिन्दी दैनिक वर्तमान पत्रिका का प्रारम्भ हुआ है। बांग्ला वर्तमान राज्य का प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है। प्रख्यात पत्रकार और लोकप्रिय राजनीतिक आलोचक बरुण सेनगुप्ता ने पश्चिम बंगाल के कोलकाता से 7 दिसंबर सन 1984 को इसकी शुरुआत की थी। वे वर्तमान अखबार के संस्थापक संपादक थे। अपने तीखे राजनीतिक विश्लेषण और उसकी सरल प्रस्तुति के लिए वे याद किए जाते हैं। संघर्ष की आग में तप-तप निखरता वर्तमान बंगाल में बांग्ला अखबारों में पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय है। साप्ताहिक वर्तमान, सुखी गृहकोण और शरीर ओ स्वास्थ्य इस संस्था द्वारा प्रकाशित अनुषंगी प्रकाशन हैं।

विगत 38 वर्षों से पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करता आ रहे 'वर्तमान' के प्रकाशकों का कहना है कि पाठकों का हित ही अखबार की प्राथमिकता होगी। हिन्दीभाषी समाज और पाठकों की उन्नति की राह में हमसफर बनने की एक ईमानदार कोशिश अखबार के माध्यम से की जायेगी। 'ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर' के सिद्धांत को आत्मसात करते हुए एक निष्पक्ष अखबार की नींव उस बंगाल की धरती से रखी जाएगी जहां से हिन्दी के पहले अखबार 'उदंत मार्तंड' का प्रकाशन शुरू हुआ  था।

अखबार का यह भी कहना है कि सामाजिक विद्वेष के खिलाफ लड़ाई और सच का साथ हमारी प्राथमिकता होगी। बंगाल के हिन्दीभाषी समाज को एक नए कलेवर और स्वाद के साथ एक संपूर्ण अखबार देने की दिशा में हमारी कोशिश जारी है। वर्तमान पत्रिका पूरे हिन्दुस्तान की बात करेगा। बिना किसी से प्रभावित हुए सबकी बात मजबूती से रखने में कोई कोर कसर नहीं रखी जाएगी।

Sunday, June 26, 2022

धागे से लटकी उद्धव सरकार


महाराष्ट्र में मचा राजनीतिक घमासान अब विधानसभा सचिवालय और राजभवन तक पहुँच चुका है। इस मसले को अब तक फ्लोर-टेस्ट के लिए विधानसभा तक पहुँच जाना चाहिए था, पर अभी मानसिक लड़ाई चल रही है।  लगता नहीं कि महाविकास अघाड़ी सरकार चलेगी, पर फिलहाल वह एकजुट है। यह एकजुटता कब तक चलेगी, यही देखना है। विधानसभा उपाध्यक्ष यदि कुछ सदस्यों के निष्कासन का फैसला करेंगे, तो मामला अदालतों में भी जा सकता है। जिसका मतलब होगा विलम्ब। यह लड़ाई प्रकारांतर से बीजेपी लड़ रही है और दोनों पक्ष फिलहाल कानूनी पेशबंदियाँ कर रहे हैं। महाराष्ट्र के खिसकने का मतलब है राजनीतिक दृष्टि से देश के दूसरे और आर्थिक दृष्टि से पहले नम्बर के राज्य का राकांपा और कांग्रेस के हाथ से निकल जाना। साथ ही शिवसेना के सामने अस्तित्व का संकट है।

हिन्दुत्व का सवाल

शिवसेना के सामने हिन्दुत्व का सवाल भी है। कांग्रेस और राकांपा के साथ जाने पर पार्टी के हिन्दुत्व का धार पहले ही कम हो चुकी थी। इस बगावत ने धर्मसंकट पैदा कर दिया है। वर्तमान उद्वेलन के पीछे चार कारण नजर आते हैं। एक, हिन्दुत्व और विचारधारा के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से अलगाव और एनसीपी, कांग्रेस से दोस्ती। दो, ठाकरे परिवार का वर्चस्व। 2019 में जब सरकार बन रही थी, तब उद्धव ठाकरे ने कोशिश की थी कि उनके बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तब शरद पवार ने उन्हें समझाया था। तीसरा कारण है बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का आसन्न चुनाव, जिसमें शिवसेना के अंतर्विरोध सामने आएंगे। इन तीन कारणों की प्रकृति कमोबेश एक जैसी है। इनके अलावा जिस कारण का जिक्र एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे भी कर रहे हैं, वह है बीजेपी का ऑपरेशन कमल। यानी कि बीजेपी ने इस उद्वेलन को हवा दी है। कुछ और कारण भी हैं, पर इन चार वजहों की कोई न कोई भूमिका है।  

बीएमसी चुनाव

इस साल अक्तूबर तक राज्य के शहरी निकायों के चुनाव भी होने हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का चुनाव है, जो देश की सबसे समृद्ध नगर महापालिका है। इस साल इसका बजट 45 हजार 900 करोड़ रुपये से ऊपर का है। इसके हाथ से निकलने का मतलब है शिवसेना की प्राणवायु का रुक जाना।  मुम्बई और राज्य के कुछ क्षेत्रों में शिवसैनिकों के हाथों में सड़क की राजनीति भी है। उद्योगों तथा कारोबारी संस्थानों के श्रमिक संगठनों से जुड़े ये कार्यकर्ता शिवसेना के हिरावल दस्ते का काम करते हैं। इनके दम पर ही संजय राउत बार-बार एकनाथ शिंदे को मुम्बई आने की चुनौती दे रहे हैं। हालांकि बीजेपी प्रत्यक्षतः इस बगावत के पीछे अपना हाथ मानने से इनकार कर रही है, पर पर्यवेक्षक मानते हैं कि शिंदे यदि सफल हुए, तो उसमें काफी हाथ बीजेपी का ही होगा।

Friday, June 24, 2022

तलफ़्फ़ुज़ से जुड़े सवाल


प्रतिष्ठित पत्रकार प्रभात डबराल ने उर्दू (यानी अरबी या फारसी) शब्दों के तलफ़्फ़ुज़ यानी उच्चारण और हिन्दी में उनकी वर्तनी को लेकर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी है, जिसे पहले पढ़ें:

बहुत पुरानी बात है.. सन अस्सी के इर्द-गिर्द की. दिल्ली के बड़े अख़बार में रिपोर्टर था लेकिन तब के एकमात्र टीवी चैनल दूरदर्शन में  हर हफ़्ते एकाध प्रोग्राम कर लेता था. एक विदेशी टीवी न्यूज़ चैनल के दिल्ली ब्यूरो में तीन साल काम कर चुका था इसलिए टीवी की बारीकियों की थोड़ा बहुत समझ रखता था लेकिन हिंदी में उर्दू से आए शब्दों के उच्चारण में हाथ बहुत तंग था.

कोटद्वार से स्कूलिंग और मसूरी से डिग्री करके आया था इसलिए नुक़्ता क्या होता है अपन को पता ही नहीं था. सच कहूँ तो अभी भी नुक़्ता कहाँ लगाना है कहाँ नहीं ये सोच कर पसीना आ जाता है. ख़ासकर ज पर लगने वाला नुक़्ता. हालत ये कि किसी ने  सिखाया कि भाई ये बजार नहीं बाज़ार होता है तो हम बिजली को भी बिज़ली कहने लगे..जरा को ज़रा और ज़र्रा को जर्रा कहने वाले  अभी भी बहुत मिल जाते हैं…

नुक़्ते के इस आतंक के बीच आज आकाशवाणी में काम करने वाले एक (सोशल मीडिया में मिले)मित्र प्रतुल जोशी की इस पोस्ट पर नज़र पड़ी तो लगा शेयर करनी चाहिए…:

ज़बान के रंग, नाचीज़ लखनवी के संग

आप अगर सही तरह से अल्फ़ाज़ को पेश नहीं करते तो यह प्रदर्शित करता है कि आप का भाषा के प्रति ज्ञान अधूरा है। आज मैं हिंदुस्तानी ज़बान के कुछ रोचक तथ्यों की तरफ़ अपने मित्रों का ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा।

1. सही शब्द है यानी, प्रायः लिखा जाता है यानि

2. शब्द है रिवाज। प्रायः लिखा/ बोला जाता है रिवाज़। इस को याद रखने का आसान तरीक़ा है कि शब्द "रियाज़" याद रखा जाए। जहां रिवाज में नुक़्ता नहीं लगता, रियाज़ में लगता है।

.3. उर्दू में दो शब्द नुक़्ता लगाने से बिल्कुल दो भिन्न अर्थों को संप्रेषित करते हैं। यह हैं एजाज़ और एज़ाज़। जहां ऐजाज़ का अर्थ चमत्कार होता है, वहीं ऐज़ाज़ का अर्थ है "सम्मान"।

Thursday, June 23, 2022

उद्धव ठाकरे के सामने मुश्किल चुनौती


ताजा समाचार है कि गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ 41 विधायक आ गए हैं। इतना ही नहीं पार्टी के 18 में से 14 सांसद बागियों के साथ हैं। शिंदे ने अभी तक अपने अगले कदम की घोषणा नहीं की है। शिवसेना के इतिहास के सबसे बड़े घमासान में एक तरफ़ जहां महाविकास अघाड़ी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग गया है, वहीं दूसरी ओर शिवसेना के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं। बीबीसी हिंदी में विनीत खरे की रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कैसे हो गया कि मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बड़ी संख्या में विधायकों ने विद्रोह कर दिया और उन्हें इसकी ख़बर ही नहीं लगी? वह भी तब जब मुंबई में जानकार बताते हैं कि राज्य में ये बात आम थी कि एकनाथ शिंदे नाख़ुश चल रहे हैं। बीबीसी मराठी के आशीष दीक्षित की रिपोर्ट के अनुसार शिवसेना के इस संकट के पीछे भारतीय जनता पार्टी का हाथ है।

अस्तित्व का सवाल

बीबीसी में दिलनवाज़ पाशा की रिपोर्ट के अनुसार अब उद्धव ठाकरे के सामने सिर्फ़ सरकार ही नहीं अपनी पार्टी बचाने की भी चुनौती है क्योंकि बाग़ी एकनाथ शिंदे ने शिव सेना पर ही दावा ठोक दिया है। महाराष्ट्र के मौजूदा सियासी घमासान का एक नतीजा ये भी हो सकता है कि एकनाथ शिंदे बाग़ी शिव सेना विधायकों के साथ बीजेपी से हाथ मिले लें और राज्य में सत्ता बदल जाए। इसी के साथ उद्धव ठाकरे के लगभग ढाई साल के कार्यकाल का भी अंत हो जाएगा।

विश्लेषक मानते हैं कि पिछले ढाई साल में उद्धव ठाकरे ने कोविड के ख़िलाफ़ तो जमकर काम किया लेकिन इसके अलावा वे कुछ और उल्लेखनीय नहीं कर पाए। कोविड महामारी के दौरान उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के रूप में सोशल मीडिया पर सुपर एक्टिव थे और जनता से सीधा संवाद कर रहे थे। महामारी के दौरान हुए एक सर्वे में उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ पाँच मुख्यमंत्रियों में शामिल किया गया था।

अदृश्य नेतृत्व

उद्धव ठाकरे ने अपने आप को घर तक ही सीमित रखा और वे बहुत कम बाहर निकले। उद्धव दिल के मरीज़ हैं और 2012 में सर्जरी के बाद उन्हें 8 स्टेंट भी लग चुके हैं। नवंबर 2021 में उद्धव अस्पताल में भरती हुए थे और उनकी रीढ़ की सर्जरी की गई थी। उद्धव ठाकरे ने अधिकतर कैबिनेट बैठकें वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए ही कीं। वे बहुत कम मंत्रालय गए। सरकारी आवास वर्षा, जहाँ से सरकार चलती है, वहाँ भी वे कम ही रहे और अपने निजी बंगले में ही अधिक रहे। उन्होंने स्वास्थ्य की वजह से अपने आप को सीमित रखा। हालांकि महाराष्ट्र में ही शरद पवार जैसे बुज़ुर्ग नेता हैं जो बहुत सक्रिय रहते हैं और आमतौर पर दौरे करते रहते हैं।

संख्या की जाँच होगी

महाराष्‍ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि ज‍िरवाल ने एक न्यूज़ चैनल से कहा क‍ि जो मुझे पत्र मिला है, उसमें 34 का नाम है। कभी कम बोलते हैं, कभी ज्यादा बोलते हैं। जो उन्होंने लिखा है उसकी जांच करने की जरूरत पड़ेगी। एक दो दिन में फैसला हो जाएगा। लिस्ट में कुछ हस्ताक्षर पर संशय है। कानून में जैसा होगा वैसी मैं जांच करूंगा। उन्होंने कहा क‍ि जांच करने के लिए विधायकों को सामने बुलाना पड़ेगा। अभी तक कोई कम्युनिकेशन नहीं हुआ है। देखूंगा अभी पढ़ रहा हूं क्या-क्या है, उसके बाद निर्णय लूंगा। दूसरी तरफ पार्टी के नेता संजय राउत ने दावा किया है कि शिंदे के पाले में गए 40 में से कम से कम आधे विधायक वापस आने के लिए संपर्क में हैं।

लिस्ट का इंतजार

उधर एबीपी न्यूज के अनुसार बीजेपी फिलहाल एकनाथ शिंदे की तरफ से जारी होने वाली उस लिस्ट का इंतजार कर रही है जिसके आधार पर आधिकारिक तौर पर यह पता चल सके कि एकनाथ शिंदे के साथ में कुल कितने विधायकों का समर्थन मौजूद है और इन विधायकों में कितने शिवसेना के विधायक हैं। सूत्रों के मुताबिक एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि इस वक्त उनके साथ 37 से ज्यादा शिवसेना के विधायक मौजूद है और ऐसे में अब उनके खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती।

 

 

Wednesday, June 22, 2022

वात्याचक्र में घिरी शिवसेना


बुधवार की रात एकनाथ शिंदे की प्रेस कांफ्रेंस टलती चली गई। यह भी पता नहीं लगा कि उनकी बैठक में क्या तय हुआ। अब आज दिन में कुछ बातें साफ होंगी। गुवाहाटी में 34 बागी विधायक मौजूद हैं। इसका इतना मतलब है कि शिवसेना विधायक दल में उद्धव ठाकरे अल्पमत में हैं। ऐसा कैसे सम्भव है? क्या यह सिर्फ शिंदे और बीजेपी का खेल है? कल रात शरद पवार ने कहीं कहा कि राज्य की इंटेलिजेंस कैसी है कि विधायकों के भागने की जानकारी तक नहीं हो पाई। दिन के अपने टीवी प्रसारण में उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं इस्तीफा देने को तैयार हूँ। रात में खबर आई कि शरद पवार ने उनसे कहा कि इस्तीफा देने की जरूरत है। शायद वे विधानसभा में शक्ति परीक्षण के लिए तैयार हैं। उधर ठाकरे में सरकारी भवन वर्षा छोड़कर निजी भवन मातोश्री में सामान पहुँचा दिया है। पर वे एमवीए के साथ हैं। और यह भी स्पष्ट है कि वे काफी हद तक शरद पवार के प्रभाव में हैं। 

शिवसेना के वर्तमान उद्वेलन के पीछे चार कारण नजर आते हैं। एक, हिन्दुत्व और विचारधारा के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से अलगाव और एनसीपी, कांग्रेस से दोस्ती। दो, ठाकरे परिवार का वर्चस्व। 2019 में जब सरकार बन रही थी, तब उद्धव ठाकरे ने कोशिश की थी कि उनके बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तब शरद पवार ने उन्हें समझाया था।

तीसरा कारण है बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का आसन्न चुनाव, जिसमें शिवसेना के अंतर्विरोध सामने आएंगे। इन तीन कारणों की प्रकृति कमोबेश एक जैसी है। इनके अलावा जिस कारण का जिक्र एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे भी कर रहे हैं, वह है बीजेपी का ऑपरेशन कमल। यानी कि बीजेपी ने इस उद्वेलन को हवा दी है। कुछ और कारण भी हैं, पर इन चार वजहों में से किसी एक को केंद्र में रखकर भी बात करने के बजाय सभी कारणों पर ध्यान देना चाहिए।

क्रॉसवोटिंग

हाल में महाराष्ट्र के अंतर्विरोध हाल में हुए राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावी नतीजों में व्यक्त हो गए थे। ये अंतर्विरोध केवल शिवसेना से जुड़े हुए ही नहीं हैं। इनके पीछे एनसीपी और कांग्रेस के भीतर चल रही उमड़-घुमड़ भी जिम्मेदार है। क्रॉसवोटिंग केवल शिवसेना में नहीं हुई थी। विधान परिषद की कुल 30 में से 10 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने पांच उम्मीदवार उतारे थे जबकि उसके पास संख्या केवल चार को जिताने लायक ही थी। पाँचों जीते और अब एकनाथ शिंदे की बगावत के अचानक सामने आने से सबको हैरत हो रही है, पर लगता है कि शिंदे की नाराजगी पहले से चल रही थी।

इस साल के पाँच राज्यों में हुए चुनावों बाद महाराष्ट्र के विधायकों के मन में अपने भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे थे। एक तरफ शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस पार्टी के महा विकास अघाड़ी के बीच दरार बढ़ी, वहीं तीनों पार्टियों के भीतर से खटपट सुनाई पड़ने लगी। सबसे बड़ा असमंजस कांग्रेस के भीतर था। पार्टी के विधायकों का एक दल अप्रैल के पहले हफ्ते में हाईकमान से मिलने दिल्ली भी आया था। विधायकों की मुलाकात पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल से ही हुई, जबकि वे सोनिया गांधी या राहुल गांधी से मिलने आए थे। दिल्ली आए विधायकों ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा 'सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही सनसनीखेज खुलासे होंगे।'

मोदी की तारीफ

गत 10 मार्च को पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणाम आने के कुछ दिन बाद शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य मजीद मेमन ने एक ट्वीट में लिखा कि पीएम मोदी में कुछ गुण होंगे या उन्होंने कुछ अच्छे काम किए होंगे, जिसे विपक्षी नेता ढूंढ नहीं पा रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी, जब नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर उनकी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच तलवारें तनी हुईं थीं। मजीद मेमन वाली बात तो आई-गई हो गई, पर अघाड़ी सरकार के भीतर की कसमसाहट छिप नहीं पाई।

कांग्रेस के नेता दबे-छुपे पंजाब और उत्तर प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा देखकर परेशान हैं और उन्हें लगने लगा है कि यहाँ अब और रुकना खतरे से खाली नहीं है। उनका विचार है कि 2024 के विधान सभा चुनाव तक अघाड़ी बना भी रहा, तो वह सफल नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने विकल्प की तलाश शुरू कर दी है।

कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि राज्य में जब अघाड़ी सरकार बनी थी, तब मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे विधायकों की बातों को सुनें। हरेक मंत्री के साथ तीन-तीन विधायक जोड़े गए थे। यह व्यवस्था हुई भी होगी, तो हमें पता नहीं। अलबत्ता सरकार बनने के ढाई साल बाद जब एक मंत्री एचके पाटील ने जब तीन विधायकों के साथ बैठक की, तब इस व्यवस्था की जानकारी शेष विधायकों को हुई।

विधायकों को कई तरह की शिकायतें हैं, जिन्हें लेकर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी। दूसरी तरफ शरद पवार दिल्ली में बीजेपी-विरोधी राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की गतिविधियों में जुड़े हैं, पर इस बीच भाजपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच अचानक सम्पर्क बढ़ने से भी अघाड़ी सरकार के भीतर चिंता बढ़ गई। उसी दौरान नितिन गडकरी ने राज ठाकरे से मुलाकात की। कांग्रेस के पार्टी 25 विधायक गठबंधन की सरकार से नाराज हैं और उन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी।

सब नाराज

उधर केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा कि अघाड़ी के 25 विधायक भाजपा के सम्पर्क में हैं। उन्होंने यह नहीं बताया था कि किस पार्टी के नेताओं ने सम्पर्क किया है, किन्तु यह संकेत जरूर किया कि ये सभी नेता सरकार में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। ज्यादातर पर्यवेक्षक मानते हैं कि नाराजगी मुख्यतः राकांपा से है सरकार के भीतर और बाहर भी शिवसेना और राकांपा हावी हैं।

दूसरी तरफ अघाड़ी गठबंधन में सिर्फ कांग्रेस के नेता ही नाराज नहीं हैं। शिवसेना के पास मुख्यमंत्री पद होने के बावजूद उसके नेता भी नाराज हैं। गत 22 मार्च को शिवसेना के सांसद श्रीरंग बारने ने कहा था कि सबसे ज्यादा फायदा शरद पवार की राकांपा ने उठाया है। नेतृत्व करने के बावजूद शिवसेना को नुकसान उठाना पड़ रहा है। शिवसेना विधायक तानाजी सावंत ने भी ऐसी ही बात कही थी।

Tuesday, June 21, 2022

आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस: बुद्धि और चेतना क्या टकराएंगी?


भारत के समानव अंतरिक्ष-अभियान गगनयान की पहली परीक्षण उड़ान जल्द ही होने वाली है। शुरुआती उड़ान में अंतरिक्ष-यात्री नहीं होंगे, पर जब जाएंगे तब  उनके साथ ‘व्योममित्र’ नामक एक रोबोट भी अंतरिक्ष जाएगा। यह रोबोट पूरे यान के मापदंडों पर निगरानी रखेगा। इसमें कोई नई बात नहीं है, केवल आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दायरे की ओर इशारा है।

तकनीकी विकास के हम ऐसे दौर में हैं, जब आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का प्रवेश जीवन में हो रहा है। पहले हमें लगता था कि मशीनें ज्यादा से ज्यादा सोचेंगी भी तो एक सीमा तक ही सोचेंगी। पर हाल में ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का अब कविता, पेंटिंग और साहित्य जैसी ललित कलाओं में भी प्रवेश होगा। ऐसा कम्प्यूटर की डीप लर्निंग तकनीक के कारण सम्भव हुआ है। पेंटिंग वगैरह तो कम्प्यूटर बना ही रहे थे, पर वे अब आपके पसंदीदा कलाकार की शैली में पेंटिंग बना देंगे। सभी बारीकियों के साथ।

डीप लर्निंग

यह तकनीक मनुष्य के मस्तिष्क में काम करने वाले करोड़ों-अरबों न्यूरॉन्स की डीप लर्निंग के सिद्धांत पर काम करती है। शुरू में लगता था कि इसकी भी सीमा है, पर हाल में विकसित फाउंडेशन मॉडल्स ने साबित किया है कि पहले से कई गुना जटिल डीप लर्निंग सम्भव है। आप कम्प्यूटर पर जो वाक्य लिखते हैं, उसे व्याकरण-सम्मत आपका कम्प्यूटर बनाता जाता है। आप चाहते हैं कि आपके आलेख का अच्छा सा शीर्षक बन जाए, बन जाएगा। लेख का सुन्दर सा इंट्रो बन जाएगा।

आप मोबाइल फोन पर संदेश लिखते हैं, तो आपकी जरूरत के शब्द अपने आप आपके सामने बनते जाते हैं। तमाम जटिल पहेलियों के समाधान कम्प्यूटर निकाल देता है। लूडो से लेकर शतरंज तक आपके साथ खेलता है। शतरंज के चैम्पियनों को हराने लगा है। तकनीक ने हमारे तमाम काम आसान किए हैं। अब वह मनुष्य की तरह काम करने लगी है।

आप संगीत-रचना रिकॉर्ड कर रहे हैं। उसके दोष दूर करता जाएगा। इससे रचनात्मकता के नए आयाम खुल रहे हैं। आप चाहते हैं कि पिकासो या रैम्ब्रां की शैली में कोई चित्र बनाएं, तो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यह काम कर देगी, क्योंकि उसके पास सम्बद्ध कलाकार की शैली से जुड़ा छोटे से छोटा विवरण मौजूद है। उस जानकारी के आधार पर कम्प्यूटर चित्र बना देगा।

Sunday, June 19, 2022

'अग्निपथ' पर पेट्रोल किसने छिड़का?


सेना में भरती से जुड़े 'अग्निपथ' कार्यक्रम के विरोध में देश के कई क्षेत्रों में हिंसा की जैसी लहर पैदा हुई है, उसे रोकने की जरूरत है। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की ही नहीं है, विरोधी दलों की भी है। नौजवानों को भड़काना बंद कीजिए। बेशक उनकी सुनवाई होनी चाहिए, पर विरोध को शांतिपूर्ण तरीके से व्यक्त करना चाहिए। जिस प्रकार की हिंसा सड़कों पर देखने को मिली है, वह देशद्रोह है। रेलगाड़ियों, बसों और सरकारी बसों में आग लगाने वाले सेना में भरती के हकदार कैसे होंगे? सरकार ने फौरी तौर पर इस स्कीम भरती होने वालों की आयु में इस साल दो साल की छूट भी दी है। साथ ही रक्षा मंत्रालय से जुड़ी अन्य सेवाओं में अग्निवीरों को 10 प्रतिशत का आरक्षण देने की घोषणा की है। सरकार ने यह भी कहा है कि भविष्य में अर्धसैनिक बलों की भरती में अग्निवीरों को वरीयता दी जाएगी। राज्य सरकारों की पुलिस में भी इन्हें वरीयता दी जा सकती है। वायुसेना ने भरती की प्रक्रिया 24 जून से शुरू करने का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया है। इससे माहौल को सुधारने में मदद मिलेगी। 14 जून को जिस दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अग्निपथ कार्यक्रम को स्वीकृति दी, उसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी विभागों और मंत्रालयों में मानव संसाधन की स्थिति की समीक्षा की और निर्देश दिया कि अगले डेढ़ साल में सरकार द्वारा मिशन मोड में 10 लाख लोगों की भरती की जाए। इन दोनों फैसलों का असर सकारात्मक असर होने के बजाय नकारात्मक होना चिंता का विषय है।

हिंसा के पीछे कौन?

यह देखने की जरूरत भी है कि अचानक शुरू हुए इस आंदोलन के पीछे किन लोगों की भूमिका है और वे चाहते क्या हैं। यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि सरकार को आंदोलन की धमकियाँ देकर दबाया जा सकता है। शाहीनबाग, किसान आंदोलन और नूपुर शर्मा से जुड़े मामलों में सरकार की नरम नीति से बेजा फायदे उठाने की कोशिशों को सफलता नहीं मिलनी चाहिए। अग्निपथ कार्यक्रम सेनाओं के आधुनिकीकरण और देश के सुधार कार्यक्रमों का हिस्सा है। देश को अत्याधुनिक हथियारों से लैस एक युवा सशस्त्र बल की ज़रूरत है। यह रोजगार गारंटी कार्यक्रम नहीं है। उसे इस प्रकार आंदोलनों का शिकार बनने से रोकना चाहिए। शुक्रवार तक की जानकारी के अनुसार विरोध प्रदर्शनों के कारण 300 से अधिक ट्रेनें प्रभावित हुई हैं, जबकि 200 से अधिक रद्द की जा चुकी हैं। इनमें 94 मेल व एक्सप्रेस और 140 पैसेंजर ट्रेन रद्द की जा चुकी हैं। वहीं 65 मेल व एक्सप्रेस ट्रेन और 30 यात्री ट्रेन आंशिक रूप से रद्द की गई हैं। तेलंगाना, बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रदर्शनकारियों ने तमाम स्थानों पर रेलवे स्टेशनों को नुकसान पहुँचाया है, कैश-काउंटरों से रुपयों की लूट की है और ट्रेनों में आग लगाई है। यह भयावह स्थिति है और इसे किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

अग्निपथ योजना

योजना के तहत 90 दिनों के भीतर क़रीब 40 हजार युवकों की सेना में भरती की जाएगी। उन्हें 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी। भरती होने के लिए उम्र साढ़े 17 साल से 21 साल के बीच होनी चाहिए। चूंकि पिछले दो साल भरती नहीं हो पाई थी, इसलिए पहले बैच के लिए अधिकतम आयु सीमा दो साल बढ़ाई गई है। इसमें भाग लेने के लिए शैक्षणिक योग्यता 10वीं या 12वीं पास होगी। जनरल ड्यूटी सैनिक में प्रवेश के लिए, शैक्षणिक योग्यता कक्षा 10 है। इस स्कीम के तहत भरती चार साल के लिए होगी। पहले साल का वेतन प्रति महीने 30 हज़ार रुपये होगा, जो हर साल बढ़ते हुए चौथे साल में प्रति माह 40 हज़ार रुपये हो जाएगा। चार साल बाद सेवाकाल में प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन होगा और 25 प्रतिशत लोगों को नियमित किया जाएगा। योजना का विरोध करने वाले कहते हैं कि चार साल की सेवा के बाद उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है।

सामयिक परिवर्तन

कुछ लोगों का कहना है कि चार साल बाद नौजवान एटीएम का गार्ड बनकर रह जाएगा। इस कार्यक्रम को बदलते समय के दृष्टिकोण से भी देखा चाहिए। सभी देशों की सेनाओं का आकार छोटा हो रहा है, क्योंकि युद्धों में सैनिकों की भूमिका कम हो रही है और तकनीकी भूमिका बढ़ रही है। चीन की सेना ने पिछले तीन-चार साल में अपना आकार करीब आधा कर लिया है। भारतीय सेना की थिएटर कमांड योजना और इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स बेहतर समन्वय और संसाधनों के इस्तेमाल को देखते हुए बनाए जा रहे हैं। सेना को बदलती चुनौतियों के बीच अपनी गैर-परंपरागत युद्ध क्षमताओं और साइबर और खुफ़िया इकाइयों का विस्तार करने की ज़रूरत है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने एक टेलीविज़न चैनल से कहा, योजना अभी आई ही है। इसे शुरू तो होने दें, इसमें पहली नियुक्तियां होने दें। ये देखें कि ये योजना कैसे काम करती है। सुधार सभी योजनाओं में होते हैं। शॉर्ट सर्विस कमीशन को पांच साल के लिए शुरू किया गया था और बाद में उसे कोई पेंशन और चिकित्सकीय सुविधा नहीं मिलती थी।

Monday, June 13, 2022

भस्मासुर साबित होने लगे हैं इमरान खान

जबसे इमरान खान की कुर्सी छिनी है, उन्होंने आंदोलन छेड़ रखा है। पाकिस्तान के सामने तमाम तरह की चुनौतियाँ खड़ी हैं। उनके बीच इमरान खुद बड़ी समस्या बन गए हैं। वे फौरन चुनाव चाहते हैं। उन्हें लगता है कि आज चुनाव हों, तो उन्हें भारी जीत मिलेगी। सच है कि उनकी लोकप्रियता बढ़ी है और भड़काऊ भाषणों से उनके समर्थकों का हौसला बुलंद है। पर, अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है। आंदोलनों की आँधी के कारण उसे सुधारने की कोशिशों को पलीता लग रहा है। अब उन्होंने देश के तीन टुकड़े होने, सेना की तबाही और एटम बम छिनने का शिगूफा छेड़कर जनता को भयभीत कर दिया है।

फौरन चुनाव की माँग

गत 10 अप्रैल को नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के बाद वे सत्ता से बाहर हो गए थे। इसके बाद उन्होंने सार्वजनिक भाषणों में बार-बार दावा किया था कि हम 20 लाख पीटीआई कार्यकर्ताओं को इस्लामाबाद लाएंगे और तब तक वहीं रहेंगे, जब तक चुनाव की तारीख़ों की घोषणा नहीं की जाती। फिर 25 मई को देशव्यापी ‘लांग मार्च’ की घोषणा की और ‘पूरे देश’ को इस्लामाबाद पहुंचने का आह्वान किया।

उनकी अपील बेअसर रही और उन्होंने उसे इस घोषणा के साथ मार्च समाप्त कर दिया, कि हम ‘अगले छह दिनों में दोबारा मार्च करेंगे’। अब कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। अब कह रहे हैं कि सरकार मुझपर ग़द्दारी का मुक़दमा बनाकर रास्ते से हटाना चाहती है। 4 जून को ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में एक जलसे में उन्होंने कहा, जब तक ख़ून है वक़्त के यज़ीदों का मुक़ाबला करता रहूँगा। वे अपने भाषणों में धार्मिक प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल करते हैं।

तबाह अर्थव्यवस्था

इमरान खान ने आंदोलन के लिए ‘लांग मार्च’ का सहारा लिया है। एक शहर से दूसरे शहर के बीच कारों, बसों और ट्रकों पर बैठे आंदोलनकारियों के काफिले सड़कों पर हैं। एक तरफ देश आर्थिक संकट से घिरा है और दूसरी तरफ आंदोलनों की बाढ़ है। जुलूसों को रोकने के लिए इस्लामाबाद में कंटेनरों के ढेर लगे हैं। इससे सड़कों पर यातायात प्रभावित हुआ है, आए दिन स्कूल बंद होते हैं खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो जाती है।

Sunday, June 12, 2022

इस हिंसक-विरोध के पीछे कौन?


पैग़ंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर शुक्रवार को देश के अलग-अलग शहरों में जिस स्तर पर विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, उन्हें लेकर चिंता पैदा होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र के अलावा जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन हुए हैं। कई जगह इंटरनेट सेवाओं को स्थगित करना पड़ा है। विरोध यदि लोकतांत्रिक तरीके से किया जाए, तो इसमें आपत्ति नहीं है, पर यदि पत्थरबाजी और आगजनी जैसी हिंसक कार्रवाइयों का सहारा लिया जाएगा, तो चिंता होना स्वाभाविक है। इस दौरान सकारात्मक बातें भी हुई हैं। दिल्ली के शाही इमाम ने खुद को जामा मस्जिद के बाहर हुए प्रदर्शन से अलग किया। दूसरी तरफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम मौलानाओं से कहा है कि वे ऐसी टीवी बहसों में शामिल नहीं हों, जिनका उद्देश्य ‘इस्लाम और मुसलमानों’ का अपमान करना हो। सवाल है कि कौन है जो ‘इस्लाम और मुसलमानों’ का अपमान करना चाहता है? पर ऐसी बहसों की जरूरत ही क्या है? वैश्विक-मंच पर यह चुनौतियों से भरा समय है। भारत सरकार पर भी मित्र-देशों के साथ सम्बन्ध बनाए रखने की चुनौती है। सरकार राष्ट्रीय-हितों को देख-समझकर ही कदम उठाती है। इसलिए हमें माहौल को शांत बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इन उपद्रवों के कारण मुसलमानों का गुस्सा सामने जरूर आया है, पर उनके आंदोलन का नैतिक-आधार कमजोर हुआ है।

खुल्लम-खुल्ला विद्वेष

समय आ गया है कि मीडिया में इस्तेमाल की जा रही भाषा और अभिव्यक्ति के बारे में पुनर्विचार किया जाए। टीवी की बहसों में जो अनाप-शनाप बातें खुल्लम-खुल्ला बोली जा रही हैं, चिंता उनपर भी होनी चाहिए। इसके पीछे राजनीतिक कारण भी हैं, पर राजनीति के कारण यह विद्वेष नहीं है। हमारे सामाजिक जीवन में यह दरार पहले से मौजूद है, जिसका प्रतिविम्ब हमें राजनीति में देखने को मिल रही है। देश के विभाजन ने इस दरार को और गहरा किया है। अलबत्ता इन जहरीली बातों से ध्रुवीकरण बढ़ेगा। मुसलमानों को कुछ भी नहीं मिलेगा, बल्कि नुकसान होगा। देखना होगा कि हिंसक-रोष अनायास है या इसके पीछे कोई योजना है? भारत सरकार के स्पष्टीकरण और सम्बद्ध दोनों व्यक्तियों के पार्टी से निष्कासन और एफआईआर दर्ज होने के बावजूद इतने बड़े स्तर पर भावनाओं को किसने भड़काया? अभी यह तय होना है कि जिस टिप्पणी को लेकर आंदोलन खड़ा हुआ है, उसमें आपत्ति किस बात पर है। टिप्पणीकार का और उनके साथ बहस करने वाले का लहजा कैसा था वगैरह। पर यह सब कौन तय करेगा? कोई अदालत ही तय कर सकती है। जाँच इस बात की भी होनी चाहिए कि टीवी डिबेट के बाद सोशल मीडिया पर किसने इसे ‘गुस्ताख़-ए-रसूल’ का रंग दिया? किसने इसका अरबी में अनुवाद करके पश्चिम एशिया में सनसनी फैलाई?

बैकलैश का खतरा

क्या किसी को उस ‘बैकलैश’ का अनुमान है, जो इसके बाद सम्भव है?  किसी ने सोचा है कि अरब देशों की कड़वी बातों और देशभर में हुए हिंसक-विरोध की प्रतिक्रिया कैसी होगीकुछ लोगों को लगता है कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की फज़ीहत होगी। इस बात से उन्हें खुशी क्यों मिलती है? उनका इसमें क्या फायदा है? देश की बहुसंख्यक जनता की खामोशी को पढ़ने की कोशिश भी कीजिए।  थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि भारत सरकार ने अरब देशों के दबाव को मानते हुए जवाब दिया और कार्रवाई की। पर किसलिए? क्योंकि करीब 85 लाख भारतीय पश्चिम एशिया के देशों में काम करते हैं। उनमें बड़ी संख्या मुसलमानों की है। उनके हितों को चोट न लगने पाए। अरब देशों के हित भी हमारे साथ जुड़े हैं। अरब देशों का ऐसा ही रुख जारी रहा, तो उनके खिलाफ भी भारत में माहौल बनेगा। देश की जनता अपने अंदरूनी मामलों में विदेशी-हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगी। पेट्रोलियम का कारोबार खत्म होने वाला है। उन्हें पूँजी निवेश के लिए नए बाजार की जरूरत है।

पाकिस्तानी भूमिका

भारत-विरोधी परियोजनाओं के पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष पाकिस्तान का हाथ भी होता है। भारत में कौन लोग हैं, जो इसे अंतरराष्ट्रीय रंग देना चाहते हैं? शाहीनबाग, हिजाब और जहाँगीरपुरी जैसे प्रसंगों के बाद पीएफआई और एसडीपीआई जैसे संगठनों के नाम सामने आए हैं। इस मसले को ही नहीं अपने सभी मसलों को हम देश की उपलब्ध न्याय-प्रणाली के अनुसार ही सुलझाएंगे। पर एक नजर पाकिस्तान पर डालना जरूरी है। इसकी एक वजह ईशनिंदा से जुड़ा कानून है, जो विभाजन से पहले के अंग्रेजी राज की देन है और जिसमें स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान में बदलाव किया गया। पिछले साल शुक्रवार 3 दिसंबर को पाकिस्तान के शहर सियालकोट में उन्मादी भीड़ ने ईशनिंदा के नाम पर श्रीलंका के एक नागरिक की बर्बर तरीके से पीट-पीट कर हत्या कर दी और बाद में उनके शव में आग लगा दी। प्रियांथा कुमारा नाम के श्रीलंकाई नागरिक ईसाई थे और सियालकोट ज़िले में वज़ीराबाद रोड स्थित एक परिधान फैक्ट्री राजको इंडस्ट्रीज़ में मैनेजर के तौर पर पिछले नौ साल से काम कर रहे थे। इस हत्या के बाद पाकिस्तान की न्याय-व्यवस्था ने आनन-फानन सजाएं भी दे दी हैं। इसकी एक वजह दुनिया में हुई बदनामी है।

ईशनिंदा

ईशनिंदा के नाम पर हिंसा ऐसा अपराध है, जिसमें हत्यारों को हीरो बना दिया जाता है। उनपर फूल मालाएं चढ़ाई जाती हैं। उन्हें फाँसी की सजा मिल जाए, तो उनकी कब्र को तीर्थ का रूप दे दिया जाता है। एक नहीं ऐसे अनेक मामले हैं। पाकिस्तान के इस कानून की पृष्ठभूमि में अविभाजित भारत की घटनाएं है। 1920 के दशक में भारत के हिन्दू और मुस्लिम सम्प्रदायों के बीच करीब-करीब ऐसी ही बहसें चल रही थीं, जैसी आज हैं। सन 1929 में लाहौर के प्रकाशक महाशय राजपाल की हत्या इल्मुद्दीन नाम के एक किशोर ने कर दी। इल्मुद्दीन को हत्या के आरोप में फाँसी की सजा हुई थी, पर पाकिस्तान में आज भी उसे गाज़ी इल्मुद्दीन शहीद माना जाता है। उसकी कब्र पर हजारों की भीड़ जमा होती है। खैबर पख्तूनख्वा सरकार के आदेश से स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में एक अध्याय गाज़ी इल्मुद्दीन शहीद पर भी है।

धारा 295(ए)

महाशय राजपाल की हत्या के पहले ब्रिटिश सरकार ने 1927 में भारतीय दंड संहिता में धारा 295 (ए) जोड़ दी थी, जिसका उद्देश्य हेट स्पीच और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने की कोशिशों को रोकना था। अंग्रेज सरकार के कानून में ज्यादा से ज्यादा दो साल की कैद की सजा थी, पर आज के पाकिस्तानी कानून में मौत की सजा है। इसके कारण पाकिस्तानी समाज में कट्टरता बढ़ी है। कोई भी किसी पर भी आरोप मढ़कर उसकी हत्या कर देता है। पाकिस्तान यह भी चाहता है कि ईशनिंदा का जैसा कानून उसके यहाँ है, उसे दुनिया स्वीकार करे। वहाँ ईशनिंदा के कारण हत्या करने वाले को हीरो बना दिया जाता है। जैसे सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज़ कादरी को बनाया गया। अदालत ने 2016 में कादरी को फाँसी दे दी, पर जिस दिन उसे दफनाया गया था, उसी दिन उसका स्मारक बनाने के लिए आठ करोड़ रुपये जमा हो गए थे और उसका स्मारक बन गया है। पाकिस्तानी समाज में ऐसा पहली बार नहीं हुआ। पाकिस्तान की अवधारणा के जनक इकबाल और जिन्ना तक ने ऐसी हत्याओं का समर्थन किया था। यह समर्थन महाशय राजपाल की हत्या करने वाले किशोर इल्मुद्दीन के लिए था।

Monday, June 6, 2022

गुज़रे ज़माने के पॉप-संगीत का पुनरागमन ‘अब्बा वॉयेज़’


करीब 41 साल पहले एबीबीए यानी एबा या अब्बा संगीत-मंडली ने अपना आखिरी कंसर्ट मिलकर संचालित किया था। वह भी श्रोताओं के लिए लाइव शो नहीं था, बल्कि स्वीडिश टीवी का एक शो था। अब 27 मई को इस स्वीडिश-मंडली के लंदन में नए शो अब्बा वॉयेज़ ने तहलका मचाया है। यह तहलका इस संगीत-मंडली ने नहीं, बल्कि तकनीकी-कर्णधारों ने मचाया है।

इस शो में वे खुद शामिल नहीं थे, बल्कि वर्क फ्रॉम होम की तर्ज पर वे वर्चुअल रूप में उपस्थित थे। वैसे ही जैसे 1977 में थे। इसमें अब्बा की टीम भौतिक रूप से उपस्थित नहीं थी, बल्कि उसके युवा अब्बातार (आभासी अवतार) उपस्थित थे। उन्होंने 10-पीस बैंड के साथ अब्बा के पुराने अल्बमों को पेश किया।  अब्बा के चारों सदस्य 1982 के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से लंदन में एकसाथ मौजूद थे, परफॉर्मर के रूप में नहीं, दर्शकों के रूप में।

तकनीकी-सफलता

उम्र की सीमाओं को देखते हुए उनकी भौतिक-उपस्थिति सम्भव नहीं थी। फिर भी शो हुआ और उसकी समीक्षाएं बहुत सकारात्मक आईं हैं। इस शो में भी उनके 3,000 उत्साही फैन शामिल थे। इसे पेश करने में 140 एनिमेटरों, चार बॉडी-डबल्सकी भूमिका थी, ताकि यह एकदम वास्तविक शो जैसा नजर आए। इस शो पर करीब साढ़े सत्रह करोड़ डॉलर का खर्चा आया। सवाल है कि कोई बैंड भौतिक रूप से उपस्थित हुए बिना कैसे स्टेज पर वापसी की दावा कर सकता है?

शो देखने के बाद एक अब्बा सितारे ब्योर्न उल्वेस ने कहा, मेरी उम्मीदों से ज्यादा शानदार यह शो रहा। स्वीडन के सम्राट कार्ल 16वें गुस्ताफ और महारानी सिल्विया भी मेहमानों में शामिल थे। इस प्रदर्शन के लिए खासतौर से बनाए गए पंचकोणीय सभागार में करीब तीन हजार दर्शक मौजूद थे। चारों संगीतकार रोशनी के छपाकों के बीच सत्तर के दशक के हेयर-स्टाइल और परिधानों में मंच पर उतरे। दर्शकों ने अपनी सीटों से निकलकर नाचना शुरू कर दिया। मंच पर मौजूद अब्बा-मंडली के सदस्य वास्तविक नहीं थे। उन्हें सावधानी के साथ 77-79 के दौर के रूप में डिजिटली डिजाइन किया गया था। वास्तविक अब्बा, जिनमें से ज्यादातर की उम्र 72 साल या ज्यादा है, स्टैंड्स में मौजूद थे। 

दिसम्बर तक चलेगा शो

90 मिनट के अब्बा-वॉयज़ कार्यक्रम का यह वर्ल्ड-प्रीमियर था। यह शो अब इस साल दिसम्बर तक हफ्ते के सातों दिन चलेगा। इसके बाद भी इसे अप्रेल 2026 तक बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए बनाए गए विशेष एरेना को तब तक की अनुमति मिली हुई है। इस जमीन पर बाद में आवासीय-भवन बनने वाले हैं।

स्टेज के दोनों तरफ लगाए गए स्क्रीन पर 30 फुट ऊँचे ये अवतार गाते और झूमते नजर आ रहे थे। शो के डायरेक्टर बेली वॉल्श का कहना है कि यह प्रोजेक्ट होलोग्राम प्रदर्शनों से भी आगे की चीज़ है। इसपर काफी लम्बे अर्से से काम किया जा रहा था। लम्बे अर्से से स्वीडन में असली अब्बा की फिल्मिंग का काम किया गया। इसमें चार बॉडी-डबल्स और 140 एनिमेटरों की मदद ली गई। यह काम जॉर्ज लुकास द्वारा स्थापित प्रसिद्ध विजुअल इफैक्ट्स फर्म इंडस्ट्रियल लाइट एंड मैजिक (जो आईएलएम नाम से प्रसिद्ध है) ने किया। यह फर्म हॉलीवुड ब्लॉकबस्टरों में विशेष दृश्यों को तैयार करने में मदद करती है।