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Monday, January 21, 2019

‘आप’ की अग्निपरीक्षा होगी अब

क्या दिल्ली और पंजाब में 'आप' का अस्तित्व दाँव पर है?- नज़रिया

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए

पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले देश की राजनीति में नरेन्द्र मोदी के 'भव्य-भारत की कहानी' और उसके समांतर आम आदमी पार्टी 'नई राजनीति के स्वप्न' लेकर सामने आई थी.
दोनों की अग्नि-परीक्षा अब इस साल लोकसभा चुनावों में होगी. दोनों की रणनीतियाँ इसबार बदली हुई होंगी.
ज़्यादा बड़ी परीक्षा 'आप' की है, जिसका मुक़ाबला बीजेपी के अलावा कांग्रेस से भी है. दिल्ली और पंजाब तक सीमित होने के कारण उसका अस्तित्व भी दाँव पर है.
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने पिछले रविवार को बरनाला से पंजाब में पार्टी के लोकसभा चुनाव अभियान की शुरूआत की है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी राज्य की सभी 13 सीटों पर अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ेगी.

पार्टी का फोकस बदला
हाल में हुई पार्टी की कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठकों में फ़ैसला किया गया कि 2014 की तरह इस बार हम सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेंगे.
पार्टी का फोकस अभी सिर्फ़ 33 सीटों पर है (दिल्ली में 7, पंजाब में 13, हरियाणा में10, गोवा में 2 और चंडीगढ़ में एक ). ज्यादातर जगहों पर उसका बीजेपी के अलावा कांग्रेस से भी मुक़ाबला है.
कुछ महीने पहले तक पार्टी कोशिश कर रही थी कि किसी तरह से कांग्रेस के साथ समझौता हो जाए, पर अब नहीं लगता कि समझौता होगा. दूसरी तरफ़ वह बीजेपी-विरोधी महागठबंधन के साथ भी है, जो अभी अवधारणा है, स्थूल गठबंधन नहीं.


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Monday, August 21, 2017

2022 के सपने क्यों?

नज़रिया: कार्यकाल 2019 में खत्म तो 2022 की बात क्यों कर रही है मोदी सरकार?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंहइमेज कॉपीरइट AFP
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी जब जीतकर आई थी, तब उसने 'अच्छे दिन' लाने के लिए पाँच साल माँगे थे. तीन साल गुजर गए हैं और सरकार के पास ऐसी कोई 'चमत्कारिक उपलब्धि' नहीं है, जिसे वह पेश कर सके. पर बड़ी 'एंटी इनकंबैंसी' भी नहीं है. इसी वजह से सरकार भविष्य की ग़ुलाबी तस्वीर खींचने की कोशिश कर रही है.
यह साल बारहवीं पंचवर्षीय योजना का आख़िरी साल था. पिछली सरकार ने इस साल 10 फ़ीसदी आर्थिक विकास दर हासिल करने का लक्ष्य रखा था. वह लक्ष्य तो दूर, पंचवर्षीय योजनाओं की कहानी का समापन भी इस साल हो गया.
अब भारतीय जनता पार्टी ने 'संकल्प से सिद्धि' कार्यक्रम बनाया है, जिससे एक नए किस्म की सांस्कृतिक पंचवर्षीय योजना का आग़ाज़ हुआ है.
नज़रिया: बीजेपी को क्यों लगता है कि जीत जाएगी 2019?
मोदी और शाह: ज़बानें दो, मक़सद एक
'संकल्प से सिद्धि' का रूपक है- 1942 की अगस्त क्रांति से लेकर 15 अगस्त 1947 तक स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच साल की अवधि का. रोचक बात यह है कि बीजेपी ने कांग्रेस से यह रूपक छीनकर उसे अपने सपने के रूप में जनता के सामने पेश कर दिया है. सन 2022 में भारतीय स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं और बीजेपी उसे भुनाना चाहती है.

पाँच साल लंबा सपना

मोदी सरकार ने ख़ूबसूरती के साथ देश की जनता को पाँच साल लंबा एक नया स्वप्न दिया है. पिछले साल के बजट में वित्तमंत्री ने 2022 तक भारत के किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प किया था. उस संकल्प से जुड़े कार्यक्रमों की घोषणा भी की गई है.
बीजपी की रैलीइमेज कॉपीरइट Getty Images
सवाल है कि क्या 2022 का स्वप्न 2019 की बाधा पार करने के लिए है या 'अच्छे दिन' नहीं ला पाने के कारण पैदा हुए असमंजस से बचने की कोशिश है? सवाल यह भी है कि क्या जनता उनके सपनों को देखकर मग्न होती रहेगी, उनसे कुछ पूछेगी नहीं?
मोदी सरकार देश के मध्य वर्ग और ख़ासतौर से नौजवानों के सपनों के सहारे जीतकर आई थी. उनमें आईटी क्रांति के नए 'टेकी' थे, अमेरिका में काम करने वाले एनआरआई और दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और मुम्बई के नए प्रोफ़ेशनल, काम-काजी लड़कियाँ और गृहणियाँ भी.
पिछले तीन साल में बीजेपी का हिंदू राष्ट्रवाद भी उभर कर सामने आया है. देखना होगा कि गाँवों और कस्बों के अपवार्ड मूविंग नौजवान को अब भी उनपर भरोसा है या नहीं.

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Monday, February 23, 2015

अब होगी मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

बजट सत्र में मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

  • 56 मिनट पहले
पिछले कुछ महीनों से लगातार सफलता के शिखर पर पैर जमाकर खड़ी नरेंद्र मोदी सरकार के सामने सोमवार से शुरू हो रहा संसद का बजट सत्र बड़ी चुनौती साबित होगा.
संसद से सड़क तक की राजनीति, देश के आर्थिक स्वास्थ्य और प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर अनेक गंभीर सवालों के जवाब सरकार को देने हैं.
पिछले साल जुलाई में पेश किए गए रेल और आम बजट पिछली सरकार के बजटों की निरंतरता से जुड़े थे.
देखना होगा कि वित्त मंत्री का जोर राजकोषीय घाटे को कम करने पर है या वो सरकारी खर्च बढ़ाकर सामाजिक विकास को बढ़ावा देंगे.

पढ़ें, रिपोर्ट विस्तार से

यह मोदी सरकार के हनीमून की समाप्ति का सत्र होगा.
सत्र के ठीक पहले सरकारी दफ्तरों से महत्वपूर्ण दस्तावेजों की चोरी के मामले ने देश की प्रशासनिक-आर्थिक व्यवस्था को लेकर गम्भीर सवाल खड़े किए हैं. इसकी गूँज इस सत्र में सुनाई पड़ेगी.
संसदीय कर्म के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण और लम्बा सत्र है. दो चरणों में यह 8 मई तक चलेगा.
तब तक संसद के बाहर सम्भवतः कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व परिवर्तन और मोदी सरकार के कामकाज का पहले साल का अंतिम सप्ताह शुरू होगा.

नए भारत की कहानी

मध्यवर्ग की दिलचस्पी आयकर छूट को लेकर होती है. क्या बजट में ऐसी नीतिगत घोषणाएं होंगी, जिनसे इस साल आर्थिक संवृद्धि की गति तेज होगी?

Sunday, December 28, 2014

हिन्दू विरोधी नहीं उलझनों भरी पार्टी है कांग्रेस

'हिंदू विरोधी’ छवि कांग्रेस के पतन का कारण ?

  • 1 घंटा पहले
राहुल गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस
लोकसभा चुनावों में हार के बाद विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस पार्टी के लिए निराशाजनक रहे हैं.
मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार पार्टी अपनी 'बिगड़ती छवि' पर चिंतन करने के मूड में है. वहीं यह भी कहा गया कि एक के बाद एक हार मिलने की वजह है पार्टी की 'हिंदू विरोधी' छवि.
हालांकि कांग्रेस के बारे में ऐसे बयान नए नहीं हैं.
लेकिन पार्टी की लोकप्रियता में कमी के कारण शायद कुछ और हैं, जिन्हें समझने के लिए ज़रूरी आत्ममंथन से पार्टी शायद गुज़रना नहीं चाहती?

पढ़ें, लेख विस्तार से

राहुल गांधी, कांग्रेस
कांग्रेस क्या वास्तव में अपनी बिगड़ती छवि से परेशान है? या इस बात से कि उसकी छवि बिगाड़कर ‘हिंदू विरोधी’ बताने की कोशिश की जा रही हैं?
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि वह अपनी बदहाली के कारणों को समझना भी चाहती है या नहीं?
छवि वाली बात कांग्रेस के आत्ममंथन से निकली है. पर क्या वह स्वस्थ आत्ममंथन करने की स्थिति में है? आंतरिक रूप से कमज़ोर संगठन का आत्ममंथन उसके संकट को बढ़ा भी सकता है.
अस्वस्थ पार्टी स्वस्थ आत्ममंथन नहीं कर सकती. कांग्रेस लम्बे अरसे से इसकी आदी नहीं है. इसे पार्टी की प्रचार मशीनरी की विफलता भी मान सकते हैं. और यह भी कि वह राजनीति की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ में फेल हो रही है.

आरोप नया नहीं

सोनिया गांधी, कांग्रेस
यह मामला केवल ‘हिंदू विरोधी छवि’ तक सीमित नहीं है.
पचास के दशक में जब हिंदू कोड बिल पास हुए थे, तबसे कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं पर कांग्रेस की लोकप्रियता में तब कमी नहीं आई.
साठ के दशक में गोहत्या विरोधी आंदोलन भी उसे हिंदू विरोधी साबित नहीं कर सका.
वस्तुतः इसे कांग्रेस के नेतृत्व, संगठन और विचारधारा के संकट के रूप में देखा जाना चाहिए. एक मोर्चे पर विफल रहने के कारण पार्टी दूसरे मोर्चे पर घिर गई है.
कांग्रेस की रणनीति यदि सांप्रदायिकता विरोध और धर्मनिरपेक्षता की है, तो वह उसे साबित करने में विफल रही.

Thursday, August 28, 2014

राजनीति ने बनाया राजभवनों को अपना अखाड़ा

 बुधवार, 27 अगस्त, 2014 को 16:51 IST तक के समाचार
भारत की संसद
लोकसभा में नेता विपक्ष के पद और राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति और बर्ख़ास्तगी का सवाल पहले भी सुप्रीम कोर्ट में उठा है.
इसी के साथ इन सवालों के इर्द-गिर्द देश की क्लिक करेंलोकतांत्रिक संस्थाओं पर विमर्श एक नई शक्ल में शुरू हुआ है. सरकार भले ही फिलहाल राज्यपालों को बदल दे, पर आने वाले वक्त में यह काम आसान नहीं रहेगा.
दिल्ली में नरेंद्र मोदी की सरकार के बनने के बाद पहली खबरें थी कि अब राज्यपालों की बारी है. पहले भी ऐसा ही होता रहा है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को काम देने के लिए राज्यपाल का पद सबसे उचित माना जाता है.

पढ़िए विश्लेषण

इसके बाद ख़बर आई कि क्लिक करेंछह राज्यपालों को सलाह दी गई है कि वे अपने इस्तीफ़े दे दें. कुछ ने इस्तीफ़े दिए और कुछ ने आना-कानी की. ताज़ा मामला महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल के शंकरनारायणन का है, जिनका तबादला मिज़ोरम कर दिया गया था.
मनमोहन सिंह और पृथ्वीराज चौहान के साथ के शंकरनारायण (बीच में)
मनमोहन सिंह और पृथ्वीराज चौहान के साथ के शंकरनारायण (बीच में).
उन्होंने वहां जाने की बजाय इस्तीफा देना उचित समझा. हाल में कमला बेनीवाल वहीं लाने के बाद हटाई गईं थीं. इस मायने में मिज़ोरम काला पानी साबित हो रहा है.
इस बीच, केरल की राज्यपाल शीला दीक्षित ने भी मिज़ोरम तबादला किए जाने की खबरों के बीच इस्तीफा दे दिया है. सोमवार को गृहमंत्री से उनकी मुलाकात के बाद उनके इस्तीफे से जुड़ी अटकलें शुरू हो गई थीं.
हालांकि कुछ क्लिक करेंसियासी हलकों में माना जा रहा था कि वे लड़ने के मूड में हैं, लेकिन आख़िरकार उन्होंने इस्तीफे का रास्ता चुना. मौजूदा परिदृश्य में राज्यपाल का पद राजनीति की ज़बर्दस्त जकड़ में है.

विवादों का लम्बा इतिहास

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और केरल की पूर्व राज्यपाल शीला दीक्षित.
राज्यपालों की राजनीतिक भूमिका को लेकर क्लिक करेंभारतीय इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं. लंबे अरसे तक राजभवन राजनीति के अखाड़े बने रहे. अगस्त, 1984 में एनटी रामाराव की सरकार को आंध्रप्रदेश के राज्यपाल रामलाल की सिफ़ारिश पर बर्ख़ास्त किया गया.
उत्तर प्रदेश में रोमेश भंडारी, झारखंड में सिब्ते रज़ी, बिहार में बूटा सिंह, कर्नाटक में हंसराज भारद्वाज और गुजरात में कमला बेनीवाल के फ़ैसले राजनीतिक विवाद के कारण बने.
अनेक मामलों में क्लिक करेंसुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की भूमिका की आलोचना भी की है. जब राजनेता-राज्यपाल का मुकाबला दूसरी रंगत के मुख्यमंत्री से होता है तब परिस्थितियाँ बिगड़ती हैं.
सन 1994 में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री जे जयललिता और राज्यपाल एम चेन्ना रेड्डी के बीच टकराव का नुकसान प्रशासनिक व्यवस्था को उठाना पड़ा था. हाल में बिहार और झारखंड में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के बीच टकराव देखा गया.

Friday, June 20, 2014

होलसेल नियुक्तियों की राजनीतिक संस्कृति

 शुक्रवार, 20 जून, 2014 को 16:20 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे अपने साथ ऐसे मंत्रालयी कर्मचारियों को ‘किसी भी रूप में’ न रखें जो यूपीए सरकार के मंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं. यह निर्देश अपने ढंग का अनोखा है और नौकरशाही के राजनीतिकरण को रेखांकित करता है.
नई सरकार बनने के साथ नियुक्तियां और इस्तीफे चर्चा का विषय बन रहे हैं.
शुरुआत प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र की नियुक्ति से हुई थी, जिसके लिए सरकार ने एनडीए सरकार के बनाए एक नियम को बदलने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया था.
राज्यपालों, अटॉर्नी और एडवोकेट जनरलों, महिला आयोग और अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग या योजना आयोग के अध्यक्षों तक मामला समझ में आता है.
हम मानकर चल रहे हैं कि ऐसे पदों पर नियुक्तियाँ राजनीतिक आधार पर होती हैं लेकिन इस निर्देश का मतलब क्या है? क्या यह नौकरशाही की राजनीतिक प्रतिबद्धता का संकेत नहीं है?
नियुक्तियों का दौर शुरू हुआ है तो अभी यह चलेगा. मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव होगा. फिर दूसरे पदों पर. यह क्रम नीचे तक जाएगा. ऊँचा अधिकारी नीचे की नियुक्तियाँ करेगा. पर कुछ सवाल खड़े होंगे, जैसे इस बार राज्यपालों के मामले पर हो रहे हैं.

Thursday, June 5, 2014

अब संसद में होगा कांग्रेसी सेहत का पहला टेस्ट

 गुरुवार, 5 जून, 2014 को 08:09 IST तक के समाचार
राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह
पिछले साल जून में भाजपा के चुनाव अभियान का जिम्मा सम्हालने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से 'कांग्रेस मुक्त भारत निर्माण' के लिए जुट जाने का आह्वान किया था.
उस समय तक वे अपनी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नहीं बने थे. उन्होंने इस बात को कई बार कहा था.
सोलहवीं क्लिक करेंसंसद के पहले सत्र में मोदी सरकार की नीतियों पर रोशनी पड़ेगी. संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार का पहला नीतिपत्र होगा. इसके बाद बजट सत्र में सरकार की असली परीक्षा होगी.
एक परीक्षा कांग्रेस पार्टी की भी होगी. उसके अस्तित्व का दारोमदार भी इस सत्र से जुड़ा है. आने वाले कुछ समय में कुछ बातें कांग्रेस का भविष्य तय करेंगी. इनसे तय होगा कि कांग्रेस मज़बूत विपक्ष के रूप में उभर भी सकती है या नहीं.

सबसे कमज़ोर प्रतिनिधित्व

मोदी की बात शब्दशः सही साबित नहीं हुई लेकिन सोलहवीं लोकसभा में बिलकुल बदली रंगत दिखाई दे रही है. कांग्रेस के पास कुल 44 सदस्य हैं. पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की उम्र से एक ज्यादा. लोकसभा के इतिहास में पहली बार कांग्रेस इतनी क्षीणकाय है.

Friday, May 16, 2014

मोदी से क्या नाराज़गी है आडवाणी और सुषमा को

 शुक्रवार, 16 मई, 2014 को 19:58 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी आडवाणी
इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के बजाय क्लिक करेंलालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव लड़ती तो क्या उसे ऐसी सफलता मिलती?
इस भारी विजय की उम्मीद शायद भाजपा को भी नहीं थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंतरिक सर्वे में भी इसकी उम्मीद ज़ाहिर नहीं की गई थी.
चुनाव परिणाम आने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भ्रष्टाचार, महंगाई और कुशासन के तीन परिणामों को गिनाया है.
उन्होंने कहा कि यह वोट भ्रष्टाचार और परिवारवाद के ख़िलाफ़ है. उन्होंने नरेंद्र मोदी का भी सरसरी तरीक़े से उल्लेख किया पर खुलकर श्रेय नहीं दिया.

‘शुद्ध रूप से’ बीजेपी की जीत

इसी प्रकार की प्रतिक्रिया सुषमा स्वराज की भी है. उनका कहना है कि यह ‘शुद्ध रूप से’ बीजेपी की जीत है.
आडवाणी ने सार्वजनिक रूप से न तो मोदी को बधाई दी और न श्रेय दिया, बल्कि मोदी का नाम लेते वक़्त कहा कि इस बात का विश्लेषण किया जाना चाहिए कि इस जीत में नरेंद्र मोदी की भूमिका कितनी है.

Wednesday, April 30, 2014

निर्णायक होंगे आज से शुरू हो रहे चुनाव के आखिरी तीन दौर

 बुधवार, 30 अप्रैल, 2014 को 07:02 IST तक के समाचार
चुनाव अधिकारी
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव का सातवां दौर आज पूरा हो जाने के बाद 105 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान बाक़ी रह जाएगा.
यानी काम निपटता जा रहा है. पर राजनीतिक दृष्टि से देखें तो चुनाव अपने सबसे महत्वपूर्ण दौर में प्रवेश कर रहा है. आज के सातवें दौर में 89 सीटों का फ़ैसला होगा. कई लिहाज से यह मतदान दिल्ली की भावी सरकार की शक्लो-सूरत तय करेगा.
कांग्रेस और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्षों की लोकसभा सदस्यता का फ़ैसला आज होगा. श्रीमती सोनिया गांधी रायबरेली से और राजनाथ सिंह लखनऊ से चुनाव लड़ रहे हैं.
जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव बिहार के मधेपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका फ़ैसला भी आज हो जाएगा.

वर्चस्व की लड़ाई

आज गुजरात की 26, आंध्र की 17, बिहार की सात, जम्मू कश्मीर की एक, पंजाब की 13, उत्तर प्रदेश की 14, पश्चिम बंगाल की नौ, दादरा-नगर हवेली की एक और दमण-दीव की एक सीट पर मतदान होगा.