यूक्रेन पर रूसी हमले के 50 से ज्यादा दिन हो
चुके हैं और लड़ाई का फैसला होता नजर नहीं आ रहा है। इस लड़ाई की वजह से दुनियाभर
में आर्थिक-संकट पैदा हो गया है। उधर रूस ने यूक्रेन के कई शहरों को तबाह कर दिया
है। उसकी सेना कभी इधर गोले बरसा रही है, उधर मिसाइलें दाग रही है, कभी इस शहर पर
कब्जा कर रही है और कभी उसपर, पर परिणाम क्या है
? रूस
ने क्या सोचकर हमला किया था? क्या उसे अपने लक्ष्यों को हासिल करने
में सफलता मिली? वह कौन सा लक्ष्य है, जिसके पूरा होने पर लड़ाई
रुकेगी? रूसी लक्ष्य पूरे नहीं हुए, तब क्या होगा? ऐसे बीसियों सवाल अब पूछे जा रहे हैं।
कब रुकेगी लड़ाई?
पर्यवेक्षक मानते हैं कि लड़ाई के थमने के दो
ही रास्ते बचे हैं। या तो रूस इतना भयानक नर-संहार करे कि यूक्रेन उसकी हरेक शर्त
मानने को तैयार हो जाए। या फिर रूस मान ले कि फिलहाल वह इससे ज्यादा कुछ और हासिल
नहीं कर सकता। यों भी रूस के लिए अपनी माली हालत को संभालना मुश्किल होगा। उसने
यूक्रेन को ही तबाह नहीं किया है, खुद भी तबाह हो गया है। उसके हाथ लगभग खाली हैं,
यूक्रेन ने अभी तक हार नहीं मानी है, बल्कि ब्लैक सी में रूसी
युद्धपोत मोस्कवा को डुबोकर रूसी खेमे में दहशत पैदा कर दी है।
रूसी पोत डूबा
लड़ाई से जुड़े ज्यादातर विवरण पश्चिमी सूत्रों
से मिल रहे हैं। रूसी-विवरणों में भी अब सफलता की उम्मीदें कम और विफलता के विवरण
ज्यादा मिल रहे हैं। युद्धपोत मोस्कवा के बारे में पहले रूसी सूत्रों ने बताया था
कि उसके शस्त्रागार में विस्फोट हुआ है, पर बाद में स्वीकार कर लिया कि पोत डूब
गया है। ब्लैक सी में रूसी नौसेना का यह फ्लैगशिप था। इसका डूबना भारी धक्का है। पश्चिमी
देश मानकर चल रहे हैं कि रूस के साथ कुछ ले-देकर समझौता हो सकता है, पर मॉस्को का
माहौल बता रहा है कि पुतिन ने इसे धर्मयुद्ध मान लिया है। यानी कि हमारी पूरी
शर्तें माननी होंगी। इसलिए अब रूस की उस सामर्थ्य की परीक्षा है, जो इतने बड़े
स्तर पर लड़ाई को संचालित करने से जुड़ी है। राष्ट्रपति पुतिन पुराने सोवियत संघ
के दौर की वापसी चाहते हैं। ऐसा कैसे होगा?
हमलों में तेजी
युद्धपोत डूब जाने के बाद रूस ने हमले और तेज
कर दिए हैं। रूस के मुताबिक़ उसके क्रूज़ मिसाइलों ने रात में कीव स्थित एक
फ़ैक्टरी को निशाना बनाया, जहाँ पर एयर डिफ़ेंस सिस्टम्स और एंटी-शिप
मिसाइलें बनाई जाती हैं। रूस ने यूक्रेन पर यह आरोप भी लगाया कि वे सीमा पार रूस
के कई शहरों को निशाना बनाने के लिए हेलिकॉप्टर भेज रहा है। रूस का आरोप है कि
रूसी जमीन पर यूक्रेन ने हमले किए हैं। इनमें बेल्गोरोद के तेल डिपो पर हुआ हमला
भी शामिल है। यूक्रेन ने इस बात की न तो पुष्टि की है और न खंडन किया है।
नागरिक-प्रतिरोध
जिन इलाकों पर रूस ने कब्जा कर भी लिया है,
उनके भीतर मौजूद यूक्रेनी नागरिक पश्चिमी देशों से प्राप्त हथियारों की मदद से
प्रतिरोध कर रहे हैं। उन्होंने कई शहरों से रूस को पीछे हटने को मजबूर कर दिया है।
राजधानी कीव पर फरवरी में ही कब्जे की उम्मीदें व्यक्त की जा रही थी, जो अबतक पूरी
नहीं हुई हैं। बल्कि रूस ने अब उत्तरी इलाकों पर कब्जा करने का विचार त्याग दिया
है और पूर्वी तथा उससे जुड़े दक्षिणी इलाकों पर उसकी नजर है।
विशेषज्ञों का मानना है कि रूस पूरे समुद्री तट
पर कब्जा करके भी उसे अपने नियंत्रण में नहीं रख पाएगा। आज किसी गाँव पर रूसी झंडा
लगता है, तो अगले दिन वहाँ फिर से यूक्रेनी झंडा लग जाता है।
छापामार लड़ाई
हजारों की मौत हो जाने के बावजूद यूक्रेनी
नागरिकों का मनोबल ऊँचा है। छापामार युद्ध के लिए लगातार भोजन, हथियारों और उससे
जुड़ी कुमुक की जरूरत होती है। साथ ही विपरीत मौसम से लड़ने की क्षमता भी। इन सभी
मामलों में यूक्रेनी नागरिक बेहतर स्थिति में हैं, जबकि रूसी सेना के सामने
परिस्थितियाँ विपरीत हैं। ऐसे में रूसी लक्ष्य अब क्रमशः सीमित होते जा रहे हैं। शायद
उसने मान लिया है कि निर्णायक लड़ाई सम्भव नहीं है, इसलिए समुद्र से लगे इलाकों पर
कब्जा करके लड़ाई को खत्म किया जाए, ताकि भविष्य में इस इलाके पर पकड़ बनी रहे। इसीलिए
लग रहा है कि फिलहाल बंदरगाह के शहर मारियुपोल पर कब्जा करने का लक्ष्य लेकर रूसी
सेना लड़ रही है। यहां भी रूस को कड़ी टक्कर मिल रही है। मारियुपोल पर रूसी कब्जा
हो जाएगा, तो क्राइमिया प्रायद्वीप तक जमीनी गलियारा बन जाएगा। क्राइमिया पर रूसी
कब्जा 2014 में हो चुका है।