बजट एक राजनीतिक दस्तावेज भी है। सालाना हिसाब-किताब से ज्यादा उसमें की गई
नीतियों की घोषणाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं। इन बातों का सीधा रिश्ता चुनाव से है। सरकारें
चुनाव जीतने के लिए ही काम करती हैं। पाँच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बजट लाने
का कांग्रेस ने विरोध ही इसलिए किया था कि सरकार कहीं खुद को ज्यादा बड़ा
देश-हितैषी साबित न कर दे।
पाँचों राज्यों में हो रहे चुनावों में केंद्र सरकार के बजट की अनुगूँज निश्चित
रूप से सुनाई पड़ेगी। चुनाव का आगाज ही इसबार नोटबंदी से हुआ है। विपक्ष जहाँ
नोटबंदी के मार्फत बीजेपी के दुर्ग में दरार डालना चाहता है वहीं आम बजट का मूल
स्वर नोटबंदी के नकारात्मक असर को कम करने का है।