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Wednesday, February 7, 2024

इमरान को सज़ा और पाकिस्तान के खानापूरी चुनाव


मंगलवार 30 जनवरी को पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने साइफर मामले में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को दस साल जेल की सजा सुनाई. उसके अगले ही दिन एक और अदालत ने उन्हें और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को तोशाखाना मामले में 14 साल कैद की सजा सुना दी.

इतना ही काफी नहीं था. शनिवार को एक अदालत ने इमरान और बुशरा बीबी की शादी को गैर इस्लामिक करार दिया. इमरान खान इसके पहले आरोप लगा चुके हैं देश की सेना ने मेरे पास संदेश भेजा था कि तीन साल के लिए राजनीति छोड़ दूँ, तो शादी बच जाएगी. इमरान और बुशरा बीबी को इस मामले में सात साल सजा सुनाई गई है.

इंतक़ाम की आग

इन सज़ाओं के पीछे प्रतिशोध की गंध आती है. साबित यह भी हो रहा है कि पाकिस्तान क एस्टेब्लिशमेंट (यानी सेना) बहुत ताकतवर है. सारी व्यवस्थाएं उसके अधीन हैं. इन बातों के राजनीतिक निहितार्थ अब इसी महीने की 8 तारीख को हो रहे चुनाव में भी देखने को मिलेंगे.

स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान में जो चंद चुनाव हुए हैं, उनकी साख कभी नहीं रही, पर इसबार के चुनाव अबतक के सबसे दाग़दार चुनाव माने जा रहे हैं. बहरहाल अब सवाल दो हैं. इसबार बनी सरकार क्या पाँच साल चलेगी? क्या वह सेना के दबाव और हस्तक्षेप से मुक्त होगी?

Wednesday, June 7, 2023

इमरान बनाम सेना बनाम पाकिस्तानी लोकतंत्र


पाकिस्तानी राजनीति में इमरान खान का जितनी तेजी से उभार हुआ था, अब उतनी ही तेजी से पराभव होता दिखाई पड़ रहा है. उनकी पार्टी के वफादार सहयोगी एक-एक करके साथ छोड़ रहे हैं. कयास हैं कि उन्हें जेल में डाला जाएगा, देश-निकाला हो सकता है, उनकी पार्टी को बैन किया जा सकता है वगैरह.

पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है. ऊपर जो बातें गिनाई हैं, ऐसा अतीत में कई बार हो चुका है. पहले भी सेना ने ऐसा किया था और इस वक्त इमरान के खिलाफ कार्रवाई भी सेना ही कर रही है. परीक्षा पाकिस्तानी नागरिकों की है. क्या वे यह सब अब भी होने देंगे?

कुल मिलाकर यह लोकतंत्र की पराजय है. इमरान खान ने सेना का सहारा लेकर प्रतिस्पर्धी राजनीतिक दलों को पीटा, अब वे खुद उसी लाठी से मार खा रहे हैं. पर उन्होंने अपनी इस गलती को कभी नहीं माना. 

ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि इमरान को पिछले साल अपदस्थ करने के बजाय, लँगड़ाते हुए ही चलने दिया जाता, तो अगले चुनाव में जनता उसे रद्द कर देती. लोकतंत्र में खराब सरकारों को जनता खारिज करती है. इसकी नज़ीर बनती है और आने वाले वक्त की सरकारें डरती हैं.

सेना का हस्तक्षेप

जनरलों ने किसी भी सरकार को पूरे पाँच साल काम करने नहीं दिया. पिछले साल इमरान को हटाने के पीछे भी जनरल ही थे, जिन्होंने एक विफल राजनेता को सफल बनने का मौका दिया. इमरान ने साजिशों की कहानियाँ गढ़ लीं, और उनके समर्थकों की तादाद बढ़ती चली गई.

Wednesday, May 17, 2023

केवल इमरान की देन नहीं है पाकिस्तानी कलह, पूरी व्यवस्था का हाथ है


इमरान खान की गिरफ्तारी, उसके बाद हुई हिंसा, अफरा-तफरी और फिर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इमरान खान की रिहाई होने के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हुई है, बल्कि कलह और ज्यादा खुलकर सामने आ गई है. देश की सेना, राजनीति और न्यायपालिका तीनों आरोपों के घेरे में हैं. सोमवार को सत्तारूढ़ पीडीएम के कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट बाहर धरना दिया और संसद ने अदालत की भूमिका की जाँच के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव पास किया है.

पाकिस्तान को इस वात्याचक्र से बाहर निकालने के लिए नए सिरे से अपनी शुरुआत करनी होगी. यह शुरुआत कैसे होगी और इसकी पहल कौन करेगा, कहना मुश्किल है. पिछले 76 साल में वहाँ जो कुछ हुआ है, वह इसके लिए जिम्मेदार है. स्वतंत्रता के बाद से वहाँ जो व्यवस्था कायम की गई है, वह सेना, सुरक्षा और युद्ध पर केंद्रित है. अब पहिया उल्टा घुमाना भी आसान नहीं है.

इरादा क्या है?

यह स्थिति न तो एक दिन में बनी है और न कोई एक व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार है. वहाँ के अवाम और राजनीति को विचार करना चाहिए कि पाकिस्तान की विचारधारा क्या है? वे चाहते क्या हैं?

इमरान खान लोकतंत्र और भ्रष्टाचार की बातें कर ज़रूर रहे हैं, पर उनके पास भी इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं है. वे धार्मिक नारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इनके सहारे वे एकबार को सत्ता में वापस आ भी जाएंगे, तो देश को संकट से बार किस तरह निकालेंगे, यह स्पष्ट नहीं है.

इमरान खान ने राजनीति में अपने विरोधियों को चोर-डाकू बताकर प्रवेश किया था. उन्होंने 2016 में पनामा पेपर्स ने देश के राजनेताओं की कारगुजारियों का पर्दाफाश किया. इसके सहारे इमरान ने सेना की मदद से नवाज़ शरीफ को जेल का रास्ता दिखाने में कामयाबी हासिल की, पर आज वे वैसे ही आरोपों के कठघरे में हैं. उन्हें लेकर दस्तावेजी सबूत भी हैं. सिर्फ आंदोलन और हंगामे की मदद से वे कैसे बचेंगे?

Thursday, May 11, 2023

इमरान खान को सेना से पंगा लेने की सजा मिलेगी


पाकिस्तान में जिस तरह की अफरा-तफरी में इमरान खान की गिरफ्तारी हुई है और उसके बाद जैसी अराजकता देश में देखने को मिल रही है, उससे दो-तीन बातें स्पष्ट हो रही हैं. पहली बात यह कि देश को इस अराजकता से बाहर निकालना काफी मुश्किल होगा.

इमरान खान को जिस तरीके से गिरफ्तार करके ले जाया गया, वह भी खराब ऑप्टिक्स था. उसके बाद जो हुआ, वह और भी खराब था. दोनों तरफ से तलवारें खिंच गई हैं, जिसकी पऱिणति सैनिक कार्रवाई के रूप में होगी. इमरान खान को सेना से पंगा लेने की सजा मिलेगी. वे अब कानूनी शिकंजे में फँसते चले जाएंगे, जिसकी शुरुआत अल-क़ादिर ट्रस्ट और तोशाखाना केस से हो गई है. 

दूसरी तरफ खबरें यह भी हैं कि इमरान को लेकर सेना के भीतर भी मतभेद हैं. जूनियर सैनिक अफसर इमरान के समर्थक हैं. पाकिस्तानी सेना के बारे में आयशा सिद्दीका की टिप्पणियाँ विश्वसनीय होती हैं. उन्होंने लिखा है कि 9 मई को सैनिक छावनी में तोड़फोड़ करने वालों में बहुत से लोग सर्विंग कर्नल और ब्रिगेडियर रैंक के अफसरों के रिश्तेदार थे.

सेना ने 9 मई को देश के इतिहास का काला अध्याय बताया है और कहा है कि हमने बहुत ज्यादा आत्मानुशासन बरता है, पर अब सख्त कार्रवाई करेंगे. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है कि उपद्रवियों के साथ अब सख्ती बरती जाएगी. माना जा रहा है कि अब इमरान के समर्थकों पर शिकंजा कसा जाएगा.

अभी तक देखा गया है कि सत्ता-प्रतिष्ठान के एक तबके और अवाम के बीच इमरान खान का कद लगातार बढ़ रहा है. वे विक्टिम कार्ड खेलकर लोकप्रिय होते जा रहे हैं. उन्हें दबाने की कोशिशें उल्टी पड़ रही हैं.

देखना होगा कि सरकार अराजकता पर काबू पाने में कामयाब होती है या नहीं. अराजकता जारी रही, तो उसकी तार्किक परिणति क्या होगी? देश की संसद और न्यायपालिका के बीच भी टकराव है. क्या मार्शल लॉ की वापसी होगी? उससे क्या स्थिति सुधर जाएगी?

इमरान ही रोकें

फिलहाल इस अराजकता को रोकने में भी इमरान खान की भूमिका है. उनकी पार्टी में कोई दो नंबर का नेता नहीं है. आंदोलन का नेतृत्व अब भीड़ के हाथों में है. छिटपुट नेता है, वे आंदोलन को उकसा रहे हैं. इमरान खान ही जनता से हिंसा रोकने की अपील करें, तो कुछ हो सकता है. क्या वे ऐसा करेंगे?

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता महमूद कुरैशी ने देशवासियों से कहा है कि वे सड़कों पर उतर आएं. खैबर-पख्तूनख्वा के कुछ शहरों, कराची और लाहौर सहित दूसरे कुछ शहरों से हिंसा और आगज़नी की खबरें हैं. पूरे देश में मोबाइल इंटरनेट पर रोक लग जाने के बाद संवाद टूट गया है.

पीडीएम सरकार कोशिश कर रही है कि चुनाव फौरन नहीं होने पाएं, पर इन कोशिशों का फायदा इमरान खान को मिलेगा. लगता है कि इमरान की गिरफ्तारी के पीछे सेना का हाथ है, पर इस दौरान सेना की जैसी फज़ीहत हो रही है, वह भी अभूतपूर्व है.

Tuesday, May 9, 2023

इमरान की गिरफ्तारी से पाकिस्तान में अराजकता की लहर आने का खतरा

 


पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद देश में अराजकता की लहर फैलने का अंदेशा पैदा हो गया है। इमरान की तहरीके इंसाफ पार्टी के नेता महमूद कुरैशी ने देशवासियों से कहा है कि वे सड़कों पर उतर आएं। खैबर-पख्तूनख्वा के कुछ शहरों, कराची और लाहौर सहित दूसरे कुछ शहरों से हिंसा और आगज़नी की खबरें हैं।

देशभर में मोबाइल ब्रॉडबैंड सेवा स्थगित कर दी गई है। सरकार का दावा है कि हालात काबू में हैं, पर अगले कुछ दिनों में स्थिति स्पष्ट होगी। ज़ाहिर है कि जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है, इस प्रकार की अस्थिरता खतरनाक है।

इस्लामाबाद पुलिस के मुताबिक़ साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म इमरान ख़ान को नेशनल एकाउंटेबलिटी ब्यूरो (नैब) ने अल-क़ादिर ट्रस्ट केस में गिरफ़्तार किया है। देश में भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों की पकड़-धकड़ के लिए नैब एक स्वायत्त और संवैधानिक संस्था है।

नैब ने भी इस सिलसिले में बयान जारी करते हुए बताया है कि उन्हें नैब ऑर्डिनेंस और क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया है। नैब ने कहा है, नैब हैडक्वॉर्टर रावलपिंडी ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को अल क़ादिर ट्रस्ट में कदाचार करने के जुर्म में हिरासत में लिया है।

Friday, April 7, 2023

पाकिस्तान में सांविधानिक-संकट का खतरा


पाकिस्तान में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सरकार के बीच तलवारें खिंच गई हैं। मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में तीन जजों को बेंच ने 14 मई को पंजाब में चुनाव कराने का आदेश दिया है, जिसे मानने से सरकार ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केवल पंजाब में चुनाव कराने की तारीख दी है, खैबर पख्तूनख्वा के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया है, जबकि वहाँ भी चुनाव होने हैं। गुरुवार 6 अप्रेल को राष्ट्रीय असेंबली ने प्रस्ताव पास करके प्रधानमंत्री से कहा है कि इस फैसले को मानने की जरूरत नहीं है।

चुनाव आयोग ने हुकूमत के एतराज़ के बावजूद चुनाव का कार्यक्रम जारी कर दिया है। उधर सुप्रीम कोर्ट के भीतर न्यायाधीशों की असहमतियाँ भी खुलकर सामने आ रही हैं, जिनसे लगता है कि पाकिस्तान की न्यायपालिका पर राजनीतिक रंग चढ़ता जा रहा है। हालांकि पाकिस्तान की न्यायपालिका की भूमिका अतीत में बदलती रही है, पर ऐसा पहली बार हो रहा है, जब उसके फैसले को सरकार ने मानने से इनकार कर दिया है।

इसके पहले 4 अप्रेल को मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने पंजाब में 14 मई को चुनाव कराने का निर्देश दिया था।  पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) द्वारा दायर याचिका पर फैसले की घोषणा करते हुए, शीर्ष अदालत ने 30 अप्रैल से 8 अक्टूबर तक पंजाब और केपी में चुनाव स्थगित करने के पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) के फैसले को अमान्य और शून्य घोषित कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि 22 मार्च, 2023 को ईसीपी के आदेश को असंवैधानिक घोषित किया गया है। पाकिस्तान के उर्दू मीडिया के शब्दों में अदालत ने इलेक्शन कमीशन के आठ अक्तूबर को इंतख़ाबात करवाने के 22 मार्च के हुक्मनामे को 'गैर-आईनी क़रार देते हुए कहा है कि इलेक्शन कमीशन ने अपने दायरा इख़्तियार से तजावुज़ (सीमोल्लंघन) किया। चुनाव आयोग ने पंजाब में 8 अक्‍टूबर को चुनाव कराने का ऐलान किया था। इस दौरान वर्तमान पाकिस्‍तानी राष्‍ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बंदियाल दोनों ही अपनी कुर्सी से हट जाएंगे। ये दोनों ही इमरान खान के समर्थक माने जाते हैं।

संघीय कैबिनेट के सूत्रों ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला अल्पमत का फैसला है, इसलिए कैबिनेट इसे खारिज करती है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मुख्य आयोजक मरियम नवाज ने ट्विटर पर लिखा कि आज का फैसला उस साजिश का आखिरी झटका है, जो पीठ के चहेते इमरान खान को संविधान को फिर से लिखकर और पंजाब सरकार को थाली में पेश करके शुरू किया गया था। अब देश में मार्शल लॉ का खतरा फिर से मंडराने लगा है।

पाकिस्‍तानी मीडिया का कहना है कि सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर अभी चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में अब कई विश्लेषक आशंका जता रहे हैं कि देश में या तो आपातकाल लग सकता है या फिर मार्शल लॉ। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के एक दिन पहले विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा था कि देश में मार्शल लॉ लग सकती है। सेना जल्‍द चुनाव के लिए तैयार नहीं है, तो चुनाव कराना असंभव होगा। पाकिस्‍तानी अखबार डॉन के अनुसार जनरल मुनीर जल्दी या अलग-अलग चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं। वे चाहते हैं कि पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के चुनाव शहबाज़ शरीफ सरकार का कार्यकाल खत्म होने के बाद एक साथ कराए जाएं।

चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बावजूद अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान के सबसे बड़े सूबे में इंतख़ाबात मुकर्रर वक़्त पर हो पाएँगे या नहीं। संघीय सरकार मानती है कि अदालत ने यह फैसला 10 सदस्यों की पूर्ण पीठ के माध्यम से किया होता, तब उसे स्वीकार किया जा सकता था, पर जिस तरीके से मुख्य न्यायाधीश ने इस मसले को स्वतः संज्ञान (अज़खु़द नोटिस) में लिया और बेंच में रद्दोबदल किया, उससे न्यायालय पर से विश्वास उठ गया है। शासन मानता है कि देश में सभी चुनाव एकसाथ होने चाहिए।

वस्तुतः पद से हटाए जाने के बाद से इमरान खान की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। सरकार को डर है कि वे फिर से चुनाव जीतकर आ जाएंगे। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि इमरान खान चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं। उनपर गिरफ्तारी की छाया है। इतना ही नहीं पिछले साल अक्तूबर में चुनाव आयोग ने उन्हें पाँच साल तक के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया था। इमरान ने इस फैसले के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की है। इमरान खान पर देश की सेना को बदनाम करने और आर्थिक-संकट पैदा करने वगैरह के आरोप भी हैं।

सरकार की रणनीति है कि यदि सूबों के चुनाव चल जाएं, तो फिर राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव टालना आसान हो जाएगा। इस साल जनवरी में पंजाब विधानसभा भंग हो गई थी। संविधान के अनुसार इसके बाद 90 दिन के भीतर चुनाव होने चाहिए, पर देश का चुनाव आयोग मानता था कि किन्हीं कारणों से चुनाव टालने होंगे। इसपर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की बेंच ने 14 मई को चुनाव कराने का आदेश दिया है। इस साल मध्य-अक्तूबर के पहले राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव भी होने हैं। पिछले साल अप्रेल में सरकार से बाहर हुए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान फौरन चुनाव कराने की माँग करते रहे हैं। पंजाब विधानसभा पर भी उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) का बहुमत था। केंद्र पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने पंजाब विधानसभा को समय से पहले भंग करा दिया था। पंजाब के अलावा खैबर पख्तूनख्वा सूबे में भी चुनाव होने हैं।

मंगलवार 4 अप्रेल को जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, संघीय सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि हम इस फैसले को नहीं मानेंगे। यह इमरान खान समर्थक जजों का फैसला है। यह केवल तीन जजों की बेंच थी। छह जज इसमें शामिल होने से इनकार कर चुके थे।  

Friday, March 17, 2023

इमरान की गिरफ्तारी होने या नहीं होने से खत्म नहीं होगा पाकिस्तान का राजनीतिक-संकट


हालांकि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान फिलहाल गिरफ्तारी से बचे हुए हैं, पर लगता है कि तोशाखाना केस में वे घिर जाएंगे. इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उनके गिरफ्तारी वारंट पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसका मतलब है कि अदालत ने इस मामले में फौरन रिलीफ नहीं दी है. लाहौर हाई कोर्ट ने पहले गुरुवार सुबह 10 बजे तक ज़मान पार्क में पुलिस-कार्रवाई पर रोक लगाई और फिर उसे एक दिन के लिए और बढ़ा दिया. इससे फिलहाल टकराव रुक गया है, पर राजनीतिक-संकट कम नहीं हुआ है. वस्तुतः गिरफ्तारी हुई, तो एक नया संकट शुरू होगा. और नहीं हुई, तो एक नज़ीर बनेगी, जो देश की कानून-व्यवस्था के लिए सवाल खड़े करेगी. उधर तोशाखाना केस की सुनवाई कर रहे जज ने कहा है कि इमरान अदालत में हाजिर हो जाएं, तो गिरफ्तारी वारंट वापस हो जाएगा.

पाकिस्तान के वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक और सामरिक संकटों का हल तभी संभव है, जब वहाँ की राजनीतिक-शक्तियाँ एक पेज पर आएं. ताजा खबर है कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने इसकी पेशकश की है, और इमरान ने कहा है कि देशहित में मैं किसी से भी बात करने को तैयार हूँ। फिर भी इसकी कल्पना अभी नहीं की जा सकती है. सरकार और इमरान के राष्ट्रीय-संवाद के बीच तमाम अवरोध हैं। बहरहाल जो टकराव चल रहा है, उसे किसी तार्किक परिणति तक पहुँचना होगा. इस संकट की वजह से अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का बेलआउट पैकेट खटाई में पड़ा हुआ है.

आर्थिक-संकट

पाकिस्तान की कोशिश है कि अमेरिका की मदद से मुद्राकोष के रुख में कुछ नरमी आए. पिछले हफ्ते देश के वित्त सचिव हमीद याकूब शेख ने कहा था कि पैकेज की घोषणा अब कुछ दिन के भीतर ही हो जाएगी. यह बात पिछले कई हफ्तों से कही जा रही है. मुद्राकोष देश की वित्तीय और खासतौर से राजनीतिक-स्थिति को लेकर आश्वस्त नहीं है. दूसरी तरफ ऐसी अफवाहें उड़ाई जा रही हैं कि आईएमएफ ने देश के नाभिकीय-मिसाइल कार्यक्रम को रोकने की शर्त भी लगाई है. इसपर सरकार ने सफाई भी दी है.

Wednesday, November 9, 2022

पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान के रहस्य क्या कभी खुलेंगे?


 देश-परदेस

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि इमरान खान ने अपने ऊपर हुए हमले के बाबत जो आरोप लगाए हैं, उनकी जाँच के लिए आयोग बनाया जाए. इमरान खान ने उनके इस आग्रह का समर्थन किया है. पाकिस्तानी सत्ता के अंतर्विरोध खुलकर सामने आ रहे हैं. पर बड़ा सवाल सेना की भूमिका को लेकर है. उसकी जाँच कैसे होगी? एक और सवाल नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति से जुड़ा है. यह नियुक्ति इसी महीने होनी है.

पाकिस्तानी सेना, समाज और राजनीति के तमाम जटिल प्रश्नों के जवाब क्या कभी मिलेंगे? इमरान खान के पीछे कौन सी ताकत? जनता या सेना का ही एक तबका? सेना ने ही इमरान को खड़ा किया, तो फिर वह उनके खिलाफ क्यों हो गई? व्यवस्था की पर्याय बन चुकी सेना अब राजनीति से खुद को अलग क्यों करना चाहती है?

पाकिस्तान में शासन के तीन अंगों के अलावा दो और महत्वपूर्ण अंग हैं- सेना और अमेरिका. सेना माने एस्टेब्लिशमेंट. क्या इस बात की जाँच संभव है कि इमरान सत्ता में कैसे आए? पिछले 75 साल में सेना बार-बार सत्ता पर कब्जा करती रही और सुप्रीम कोर्ट ने कभी इस काम को गैर-कानूनी नहीं ठहराया. क्या गारंटी कि वहाँ सेना का शासन फिर कभी नहीं होगा?  

अमेरिका वाले पहलू पर भी ज्यादा रोशनी पड़ी नहीं है. इमरान इन दोनों रहस्यों को खोलने पर जोर दे रहे हैं. क्या उनके पास कोई ऐसी जानकारी है, जिससे वे बाजी पलट देंगे? पर इतना साफ है कि वे बड़ा जोखिम मोल ले रहे हैं और उन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है.

लांग मार्च फिर शुरू होगा

हमले के बाद वज़ीराबाद में रुक गया लांग मार्च अगले एक-दो रोज में उसी जगह से फिर रवाना होगा, जहाँ गोली चली थी. इमरान को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है, पर वे मार्च में शामिल नहीं होगे, बल्कि अपने जख्मों का इलाज लाहौर में कराएंगे. इस दौरान वे वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मार्च में शामिल लोगों को संबोधित करते रहेंगे. उम्मीद है कि मार्च अगले 10 से 14 दिन में रावलपिंडी पहुँचेगा.

पाकिस्तानी शासन का सबसे ताकतवर इदारा है वहाँ की सेना. देश में तीन बार सत्ता सेना के हाथों में गई है. पिछले 75 में से 33 साल सेना के शासन के अधीन रहे, अलावा शेष वर्षों में भी पाकिस्तानी व्यवस्था के संचालन में किसी न किसी रूप में सेना की भूमिका रही.

लोकतांत्रिक असमंजस

भारत की तरह पाकिस्तान में भी संविधान सभा बनी थी, जिसने 12 मार्च 1949 को संविधान के उद्देश्यों और लक्ष्यों का प्रस्ताव तो पास किया, पर संविधान नहीं बन पाया. नौ साल की कवायद के बाद 1956 में पाकिस्तान अपना संविधान बनाने में कामयाब हो पाया.

23 मार्च 1956 को इस्कंदर मिर्ज़ा राष्ट्रपति बनाए गए. उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया था, पर 7 अक्तूबर 1958 को उन्होंने अपनी लोकतांत्रिक सरकार ही बर्खास्त कर दी और मार्शल लॉ लागू कर दिया. उनकी राय में पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र मुफीद नहीं.

Sunday, November 6, 2022

पाकिस्तान पर ‘सिविल वॉर’ की छाया

इमरान खान पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान में अराजकता फैल गई है। इमरान समर्थकों ने कई जगह हिंसक प्रदर्शन किए हैं। एइस हमले के पहले पिछले हफ्ते ही इमरान के एक वरिष्ठ सहयोगी ने दावा किया था कि देश में हिंसा की आंधी आने वाली है। तो क्या यह हमला योजनाबद्ध है? इस मामले ने देश की राजनीति के अंतर्विरोधों को उधेड़ना
शुरू कर दिया है। कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि यह कहाँ तक जाएगा। अलबत्ता इमरान खान इस परिस्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। अप्रेल के महीने में गद्दी छिन जाने के बाद से उन्होंने जिस तरीके से सरकार, सेना और अमेरिका पर हमले बोले हैं, उनसे हो सकता है कि वे एकबारगी कुर्सी वापस पाने में सफल हो जाएं, पर हालात और बिगड़ेंगे। फिलहाल देखना होगा कि इस हमले का राजनीतिक असर क्या होता है।

सेना पर आरोप

गुरुवार को हुए हमले के बाद शनिवार को कैमरे के सामने आकर इमरान ने सरकार, सेना और अमेरिका के खिलाफ अपने पुराने आरोपों को दोहराया है। उनका दावा है कि जनता उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है, लेकिन कुछ लोगों को ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने ही हत्या की यह कोशिश की है। उन्होंने इस हमले के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, गृहमंत्री राना सनाउल्ला और आईएसआई के डायरेक्टर जनरल (काउंटर इंटेलिजेंस) मेजर जनरल फ़ैसल नसीर को ज़िम्मेदार बताया है। उन्हें हाल में ही बलोचिस्तान से तबादला करके यहाँ लाया गया है। फ़ैसल नसीर को सेनाध्यक्ष क़मर जावेद बाजवा का विश्वासपात्र माना जाता है। इस तरह से यह आरोप बाजवा पर भी है। इस आशय का बयान गुरुवार की रात ही जारी करा दिया था। यह भी साफ है कि यह बयान जारी करने का निर्देश इमरान ने ही दिया था।

हिंसा की धमकी

बेशक पाकिस्तानी सेना हत्याएं कराती रही है, पर क्या वह इतना कच्चा काम करती है? हमला पंजाब में हुआ है, जिस सूबे में पीटीआई की सरकार है। उन्होंने अपनी ही सरकार की पुलिस-व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाया है। हत्या के आरोप में जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह इमरान पर अपना गुस्सा निकाल रहा है। क्या वह हत्या करना चाहता था? उसने पैर पर गोलियाँ मारी हैं। हैरत की बात है कि इतने गंभीर मामले पर पुलिस पूछताछ का वीडियो फौरन सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। पीटीआई के नेता फवाद चौधरी का कहना है कि यह साफ हत्या की कोशिश है। एक और नेता असद उमर ने कहा कि इमरान खान ने मांग की है कि इन लोगों को उनके पदों से हटाया जाए, नहीं तो देशभर में विरोध प्रदर्शन होंगे। माँग पूरी नहीं हुई तो जिस दिन इमरान खान बाहर आकर कहेंगे तो कार्यकर्ता पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर देंगे।

सेना से नाराज़गी

2018 में इमरान को प्रधानमंत्री बनाने में सेना की हाथ था, पर पिछले डेढ़-दो साल में परिस्थितियाँ बहुत बदल गई हैं। इस साल अप्रेल में जब इमरान सरकार के खिलाफ संसद का प्रस्ताव पास हो रहा था, तब से इमरान ने खुलकर कहना शुरू कर दिया कि सेना मेरे खिलाफ है। पाकिस्तान में सेना को बहुत पवित्र और आलोचना के परे माना जाता रहा है, पर अब इमरान ने ऐसा माहौल बना दिया है कि पहली बार सेना के खिलाफ नारेबाजी हो रही है। इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कार्यकर्ताओं ने पेशावर कोर कमांडर सरदार हसन अज़हर हयात के घर को भी घेरा और नारेबाजी की। पाकिस्तानी-प्रतिष्ठान में सेना के बाद जो दूसरी ताकत सबसे महत्वपूर्ण रही है वह है अमेरिका। इमरान खान ने अमेरिका को भी निशाना बनाया और आरोप लगाया कि उनकी सरकार गिराने में अमेरिका का हाथ है। वे शहबाज़ शरीफ की वर्तमान सरकार को इंपोर्टेड बताते हैं।

Monday, June 13, 2022

भस्मासुर साबित होने लगे हैं इमरान खान

जबसे इमरान खान की कुर्सी छिनी है, उन्होंने आंदोलन छेड़ रखा है। पाकिस्तान के सामने तमाम तरह की चुनौतियाँ खड़ी हैं। उनके बीच इमरान खुद बड़ी समस्या बन गए हैं। वे फौरन चुनाव चाहते हैं। उन्हें लगता है कि आज चुनाव हों, तो उन्हें भारी जीत मिलेगी। सच है कि उनकी लोकप्रियता बढ़ी है और भड़काऊ भाषणों से उनके समर्थकों का हौसला बुलंद है। पर, अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है। आंदोलनों की आँधी के कारण उसे सुधारने की कोशिशों को पलीता लग रहा है। अब उन्होंने देश के तीन टुकड़े होने, सेना की तबाही और एटम बम छिनने का शिगूफा छेड़कर जनता को भयभीत कर दिया है।

फौरन चुनाव की माँग

गत 10 अप्रैल को नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के बाद वे सत्ता से बाहर हो गए थे। इसके बाद उन्होंने सार्वजनिक भाषणों में बार-बार दावा किया था कि हम 20 लाख पीटीआई कार्यकर्ताओं को इस्लामाबाद लाएंगे और तब तक वहीं रहेंगे, जब तक चुनाव की तारीख़ों की घोषणा नहीं की जाती। फिर 25 मई को देशव्यापी ‘लांग मार्च’ की घोषणा की और ‘पूरे देश’ को इस्लामाबाद पहुंचने का आह्वान किया।

उनकी अपील बेअसर रही और उन्होंने उसे इस घोषणा के साथ मार्च समाप्त कर दिया, कि हम ‘अगले छह दिनों में दोबारा मार्च करेंगे’। अब कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। अब कह रहे हैं कि सरकार मुझपर ग़द्दारी का मुक़दमा बनाकर रास्ते से हटाना चाहती है। 4 जून को ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में एक जलसे में उन्होंने कहा, जब तक ख़ून है वक़्त के यज़ीदों का मुक़ाबला करता रहूँगा। वे अपने भाषणों में धार्मिक प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल करते हैं।

तबाह अर्थव्यवस्था

इमरान खान ने आंदोलन के लिए ‘लांग मार्च’ का सहारा लिया है। एक शहर से दूसरे शहर के बीच कारों, बसों और ट्रकों पर बैठे आंदोलनकारियों के काफिले सड़कों पर हैं। एक तरफ देश आर्थिक संकट से घिरा है और दूसरी तरफ आंदोलनों की बाढ़ है। जुलूसों को रोकने के लिए इस्लामाबाद में कंटेनरों के ढेर लगे हैं। इससे सड़कों पर यातायात प्रभावित हुआ है, आए दिन स्कूल बंद होते हैं खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो जाती है।

Thursday, June 2, 2022

हताश इमरान खान ने कहा, पाकिस्तान के तीन टुकड़े होंगे?


पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि देश के एस्टेब्लिशमेंट यानी सत्ता प्रतिष्ठान यानी सेना ने दुरुस्त फ़ैसले नहीं किए तो फ़ौज तबाह हो जाएगी और 'पाकिस्तान के तीन टुकड़े हो जाएंगे। इमरान खान की यह बात हारे और हताश राजनेता की बात लगती है, पर उन्होंने उस खतरे की ओर इशारा भी किया है, जो पाकिस्तान के सामने है।

पाकिस्तान की मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी (पीएमआरए) ने इस इंटरव्यू के कुछ हिस्सों को दोबारा प्रसारित करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। पीएमआरए की तरफ़ से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि इमरान ख़ान ने अपने इंटरव्यू के दौरान कुछ ऐसी बातें कही थीं, जो देश की सुरक्षा, संप्रभुता, स्वतंत्रता और विचारधारा के लिए गंभीर ख़तरा हैं। इससे देश में नफ़रत पैदा हो सकती है और उनका बयान शांति व्यवस्था बनाए रखने में रुकावट की वजह बन सकता है।

हालांकि इमरान खान यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सेना ने उनका साथ नहीं दिया, जिसके कारण यह खतरा खड़ा हुआ है, पर वे जाने-अनजाने कुछ सच्चाइयों को भी सामने आने का मौका दे रहे हैं। इन विचारों को उन्होंने निजी टीवी चैनल 'बोल' के एंकर समी इब्राहीम से गुफ़्तगू के दौरान किया। उनसे पूछा गया कि अगर मुल्क का एस्टेब्लिशमेंट उनका साथ नहीं देता तो उनका भावी कार्यक्रम क्या होगा।

सेना पर आरोप

जवाब में उनका कहना था कि 'ये असल में पाकिस्तान का मसला है, सेना का मसला है। अगर एस्टेब्लिशमेंट सही फ़ैसले नहीं करेंगे, वे भी तबाह होंगे। फ़ौज सबसे पहले तबाह होगी। उन्होंने कहा कि 'अगर हम डिफॉल्ट (यानी कर्ज चुकाने में विफल) कर जाते हैं, तो सबसे बड़ा इदारा कौन सा है जो मुतास्सिर होगा, पाकिस्तानी फ़ौज।

इमरान ख़ान की इस राय पर उनके राजनीतिक विरोधियों के अलावा सोशल मीडिया पर जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई है। चेयरमैन तहरीक-ए-इंसाफ़ के हामी जहां उनकी बात से इत्तफ़ाक़ कर रहे हैं वहीं बाज़ लोगों का ख़्याल है कि उन्हें 'ऐसी गुफ़्तगू से गुरेज़ करना चाहिए था। प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ ने कहा कि इमरान अब सीमा पार कर रहे हैं। उन्हें देश के टुकड़े होने जैसी बातें नहीं करनी चाहिए।

बयान की आलोचना

पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने कहा कि 'कोई भी पाकिस्तानी इस मुल्क के टुकड़े करने की बात नहीं कर सकता, ये ज़बान एक पाकिस्तानी की नहीं बल्कि मोदी की है। इमरान ख़ान दुनिया में इक़तिदार ही सब कुछ नहीं होता, बहादुर बनो और अपने पाँव पर खड़े हो कर सियासत करना अब सीख लो। इस देश के तीन टुकड़े करने की ख़्वाहिश हमारे और हमारी नस्लों के जीते-जी पूरी नहीं हो सकती।

दूसरी तरफ साबिक़ (पूर्व) वज़ीर-ए-इत्तलात फ़वाद चौधरी ने ट्विटर पर अपने पैग़ाम में कहा कि 'इमरान ख़ान ने जायज़ तौर पर उन ख़तरात की निशानदेही की जो मआशी (आर्थिक) तबाही की सूरत में पाकिस्तान को दरपेश होंगे।

Tuesday, April 12, 2022

अपने प्रधानमंत्रियों को ठोकर मारकर क्यों हटाता है पाकिस्तान?

पाकिस्तान के फ्राइडे टाइम्स से साभार

इमरान खान क्या चाहते थे और उन्हें क्यों हटना पड़ा, इन बातों पर काफी लम्बे समय तक रोशनी पड़ती रहेगी. पर अब समय आ गया है, जब इस बात पर रोशनी पड़ेगी कि नवाज शरीफ को सजा क्यों मिली थी. जुलाई, 2019 में ऐसा एक ऑडियो टेप सामने आया था, जिससे लगता था कि नवाज शरीफ को सजा देने वाले जज को मजबूर किया गया था कि जैसा कहा जा रहा है वैसा करो. हालांकि जज ने इस बात से इनकार किया था, पर वह बात खत्म नहीं हुई है. अब कहानी जिस तरफ जा रही है, उससे लगता है कि नवाज शरीफ की देश-वापसी तो होगी ही, उनके मुकदमों को भी खोला जाएगा.

अब यह विचार करने का समय भी आ रहा है कि पाकिस्तान में कोई प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर पाता? क्या वजह है कि वहाँ आजतक एक प्रधानमंत्री नहीं हुआ, जिसने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया हो. कार्यकाल पूरा करना तो अलग रहा, ज्यादातर प्रधानमंत्री या तो हटाए गए या किसी वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. राजनेताओं के भाषणों पर यकीन करें, तो पहली नजर में लगेगा है कि वहाँ की व्यवस्था भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े फैसले करती है, पर व्यावहारिक स्थिति यह है कि वहाँ जिसकी लाठी, उसकी भैंस का सिद्धांत चलता है.

इम्पोर्टेड-सरकार

पाकिस्तानी समाज ने शुरू से ही लोकतंत्र को गलत छोर से पकड़ा. यों भी माना जाता है कि यह अंग्रेजी-राज की व्यवस्था है, हम इसे लोकतंत्र मानते ही नहीं. लोकतंत्र वहाँ की पसंदीदा व्यवस्था नहीं है और अराजकता वहाँ का स्वभाव है. इस समय भी देखें, तो वहाँ बड़ी संख्या में लोग संसद के बहुमत और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महत्वपूर्ण मान ही नहीं रहे हैं. उन्हें लगता है कि सब बिक चुके हैं और इमरान खान को हटाने के पीछे अमेरिका का हाथ है. नई सरकार को इम्पोर्टेड-सरकार का दर्जा दिया गया है.

इमरान खान को शामिल करते हुए पाकिस्तान में 28 प्रधानमंत्री हुए हैं. इनमें से कुछ को एक से ज्यादा बार मौके भी मिले हैं. इमरान सवा साल और अपना कार्यकाल पूरा कर लेते तो ऐसा कर पाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री होते. पिछले 75 साल से पाकिस्तान को एक ऐसी लोकतांत्रिक सरकार का इंतजार है, जो पाँच साल चले. 75 साल में बमुश्किल 23 साल चले जम्हूरी निज़ाम में वहाँ 28 वज़ीरे आज़म हुए हैं. अब जो नए बनेंगे, वे 29वें होंगे.  

हत्या से शुरुआत

पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां की हत्या हुई. उनके बाद आए सर ख्वाजा नजीमुद्दीन बर्खास्त हुए. फिर आए मोहम्मद अली बोगड़ा. वे भी बर्खास्त हुए. 1957-58 तक आने-जाने की लाइन लगी रही. वास्तव में पाकिस्तान में पहले लोकतांत्रिक चुनाव सन 1970 में हुए. पर उन चुनावों से देश में लोकतांत्रिक सरकार बनने के बजाय देश का विभाजन हो गया और बांग्लादेश नाम से एक नया देश बन गया.

सन 1973 में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि शायद अब देश का लोकतंत्र ढर्रे पर आएगा. ऐसा नहीं हुआ. सन 1977 में जनरल जिया-उल-हक ने न केवल सत्ता पर कब्जा किया, बल्कि ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को फाँसी पर भी चढ़वाया. आज पाकिस्तान में जो कट्टरपंथी हवाएं चल रहीं हैं, उनका श्रेय जिया-उल-हक को जाता है. देश को धीरे-धीरे धार्मिक कट्टरपंथ की ओर ले जाने में उस दौर का सबसे बड़ा योगदान है.

Sunday, April 10, 2022

इमरान का गुब्बारा फूटा, अहंकार नहीं टूटा


पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली में इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सफल रहने के बाद सोमवार से पाकिस्तानी राजनीति का एक नया अध्याय शुरू होगा, जिसमें संभवतः शहबाज़ शरीफ देश के नए प्रधानमंत्री बनेंगे। सोमवार को असेंबली का एक विशेष सत्र होने वाला है जिसमें नए प्रधानमंत्री का चुनाव किया जाएगा, जो अगले चुनावों तक कार्यभार संभालेंगे। चुनाव समय से पहले नहीं  हुए, तो वे अक्तूबर 2023 तक प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं। अगले एक साल और कुछ महीने का समय पाकिस्तान के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था और विदेश-नीति से जुड़े कुछ बड़े फैसले इस दौरान होंगे। खासतौर से अमेरिका-विरोधी झुकाव में कमी आएगी। उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से सहायता लेने और एफएटीएफ की ग्रे-लिस्ट से बाहर आने के लिए अमेरिकी मदद की जरूरत है।

पहले प्रधानमंत्री

शनिवार देर रात नेशनल असेंबली में उनकी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में 174 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। मतदान से पहले नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। असद कैसर के बाद पीएमएल-एन नेता अयाज़ सादिक ने सत्र की अध्यक्षता की। पाकिस्तान के इतिहास में इमरान देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें अविश्वास-प्रस्ताव के मार्फत हटाया गया है। इसके पहले 2006 में शौकत अजीज और 1989 में बेनजीर भुट्टो के विरुद्ध अविश्वास-प्रस्ताव लाए गए थे, पर उन्हें हटाया नहीं जा सका था।

पिछले दो  हफ्ते के घटनाक्रम में बार-बार इमरान खान के तुरुप क पत्त का जिक्र होता रहा, जिसे कुछ पर्यवेक्षकों ने ट्रंप-कार्ड कहा। सत्ता से चिपके रहने, हार को अस्वीकार करने और भीड़ को उकसाने और भड़काने की अराजक-प्रवृत्ति। उन्होंने संसद में अविश्वास-प्रस्ताव को जिस तरीके से खारिज कराया, उससे इस बात की पुष्टि हुई। उनके समर्थकों ने उसे मास्टर-स्ट्रोक बताया। अपनी ही सरकार का कार्यकाल खत्म होने का जश्न मनाया गया। साथ ही उन 197 सांसदों को देशद्रोही घोषित कर दिया गया, जो उनके खिलाफ खड़े थे। इनमें वे सहयोगी दल भी शामिल थे, जो कुछ दिन पहले तक सरकार के साथ थे। उन्होंने इस बात पर भी विचार नहीं किया कि उनकी अपनी पार्टी के करीब दो दर्जन सदस्य उनसे नाराज क्यों हो गए। ये सब बिके हुए नहीं, असंतुष्ट लोग हैं।

Sunday, April 3, 2022

पाकिस्तान में एक सितारे का बुझना


इमरान खान का खिलाड़ी-करिअर विजेता के रूप में खत्म हुआ था, पर लगता है कि राजनीति का करिअर पराजय के साथ खत्म होगा। उनका दावा है कि उन्हें हटाने के पीछे अमेरिका की साजिश है। यूक्रेन पर हमले के ठीक पहले उनकी मॉस्को-यात्रा से अमेरिका नाराज है। पर बात इतनी ही नहीं है। वे देश की समस्याओं का सामना नहीं कर पाए। साथ ही सेना का भरोसा खो बैठे, जिसे पाकिस्तान में सत्ता-प्रतिष्ठान कहा जाता है। उन्होंने अपने विरोधियों को कानूनी दाँव-पेचों में फँसाने का काम किया। अब उनके विरोधी एक हो गए हैं। कोई चमत्कार नहीं हुआ, तो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के भाई शहबाज़ शरीफ प्रधानमंत्री बनेंगे। शरीफ बंधुओं पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, पर पाकिस्तान में आरोप किस पर नहीं हैं। फिलहाल देश की व्यवस्था एक बड़ा मोड़ लेगी। इस मोड़ का भारत पर क्या असर होगा, इसपर विचार करने का समय है। अलबत्ता सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने अविश्वास-प्रस्ताव पर फैसला होने के एक दिन पहले दो महत्वपूर्ण बातें कहकर विदेश-नीति के मोड़ को स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में कहा है कि यूक्रेन पर रूसी हमला फौरन बंद होना चाहिए। उन्होंने पिछले साल इसी कार्यक्रम में भारत से रिश्ते सुधारने की जो पहल की थी, उसे शनिवार को भी दोहराया है। दोनों बातें महत्वपूर्ण हैं।

आज होगा फैसला

इमरान खान की हार पर संसद की मोहर आज लग जाएगी। उन्होंने इस हार को स्वीकार नहीं किया है और खुद को शहीद साबित करने पर उतारू हैं। नवीनतम दावा है कि उनकी हत्या की साजिश की जा रही है। उन्होंने देश की विदेश-नीति को दाँव पर लगा दिया है। जनता को अमेरिका के खिलाफ भड़का कर उन्होंने पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान को बुरी तरह झकझोर दिया है। अनाप-शनाप बोल रहे हैं। हालांकि 25 मार्च से संसद का सत्र शुरू हो चुका है, पर इमरान खान के इशारे पर अविश्वास-प्रस्ताव पर विचार लगातार टलता रहा। 23 मार्च को देश में ‘पाकिस्तान-दिवस’ मनाया गया, जिसमें पहली बार 57 इस्लामिक देशों के विदेशमंत्रियों के अलावा चीन के विदेशमंत्री वांग यी भी शामिल हुए थे। उस रोज इमरान खान ने दावा किया कि मेरे पास एक ‘तुरुप का पत्ता’ है, जिससे मेरे विरोधी हैरत में पड़ जाएंगे।

तुरुप का पत्ता

उन्होंने संसदीय-प्रक्रिया को दूसरा मोड़ दे दिया। 27 मार्च को उन्होंने अपने समर्थकों की विशाल रैली आयोजित की, जिसमें दो घंटे का भाषण दिया। उन्होंने दावा किया कि विदेशी ताकतें मुझे हटाना चाहती हैं, जिसका ‘सबूत’ मेरी जेब में है। फिर एक कागज हवा में लहराते हुए कहा कि यह खत है सबूत। उन्होंने उस देश का नाम नहीं बताया था, जहाँ से यह पत्र आया था, पर 31 मार्च के राष्ट्रीय-संदेश में अमेरिका का नाम भी लिया। पाकिस्तान के अमेरिका स्थित राजदूत का वह पत्र था, जिसे राजनयिक भाषा में ‘टेलीग्राम’ कहा जाता है। यह अनौपचारिक सूचना होती है, जिसमें मेजबान देश के राजनेताओं या अधिकारियों से हुई बातों का विवरण राजदूत लिखकर भेजते हैं।

Sunday, March 27, 2022

हार के कगार पर इमरान खान


पाकिस्तान के राजनीतिक-संग्राम में इमरान खान करीब-करीब हार चुके हैं, पर वे हार मानने को तैयार नहीं हैं। हालांकि 25 मार्च से संसद का सत्र शुरू हो चुका है, पर अविश्वास प्रस्ताव विचारार्थ नहीं रखा जा सका, क्योंकि एक सांसद का निधन हो जाने के कारण शोक में सदन स्थगित हो गया। अब सोमवार को प्रस्ताव रखा जाएगा। उसके बाद कम से कम तीन दिन की बहस के बाद ही मतदान होने की सम्भावना है, पर सम्भव यह है कि आज इस्लामाबाद में होने वाली रैली में वे अपने इस्तीफे की घोषणा कर दें। इसके पहले बुधवार को उन्होंने दावा किया था कि मेरे पास अपने विरोधियों को ‘
हैरत में डालने वाला तुरुप का पत्ता है। 

गत 23 मार्च को पाकिस्तान-दिवस मनाया, जिसमें पहली बार 57 इस्लामिक देशों के विदेशमंत्रियों के अलावा चीन के विदेशमंत्री वांग यी भी शामिल हुए। उनके पास कौन सी जादू कि पुड़िया है, जिससे वे अपने विरोधियों को हैरत में डालेंगे? नम्बर-गेम वे हार चुके हैं। हो सकता है कि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की कोई रूलिंग आ जाए या समय से पहले चुनाव की घोषणा हो जाए, जिसका संकेत गृहमंत्री शेख रशीद ने दिया है। इमरान जीते या हारे, पाकिस्तान अब एक बड़े बदलाव के द्वार पर खड़ा है।   

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर ने प्रधानमंत्री इमरान-सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर विचार करने के लिए 25 मार्च को सदन का सत्र बुलाया है। उधर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के 48वें शिखर सम्मेलन का पाकिस्तान में समापन हुआ है। इसमें भाग लेने के लिए 57 देशों के विदेशमंत्री पाकिस्तान आए हैं। चीन के विदेशमंत्री वांग यी इसमें शामिल हुए हैं, जिन्हें पाकिस्तान ने विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। इस मौके पर उनकी उपस्थिति भी महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान के अलावा वे अफगानिस्तान भी गए। इसके बाद वे भारत भी आए, जिसका आधिकारिक कार्यक्रम पहले से घोषित नहीं किया गया था। 

Wednesday, March 23, 2022

संकट में इमरान, पाक-राजनीति में घमासान

कार्टून फ्राइडे टाइम्स से साभार
पाकिस्तान में इमरान सरकार के सामने परेशानियों के पहाड़ खड़े हो गए हैं। उनके खिलाफ संसद में अविश्वास-प्रस्ताव रखा गया है। उनके विरोधी एकजुट होकर उन्हें हर कीमत पर अपदस्थ करना चाहते हैं। शायद सेना भी ने भी उनकी पीठ पर से हाथ हटा लिया है। पूरे आसार हैं कि संसद में रखे गए अविश्वास प्रस्ताव में वे हार जाएंगे। इमरान सरकार को अभी तीन साल आठ महीने हुए हैं। लगता है कि पाँच साल का पूरा कार्यकाल इसके नसीब में भी नहीं है। विडंबना है कि पाकिस्तान में किसी भी चुने हुए प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।  

इमरान खान की हार या जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण है, पाकिस्तानी व्यवस्था का भविष्य। यह केवल वहाँ की आंतरिक राजनीति का मसला नहीं है, बल्कि विदेश-नीति में भी बड़े बदलावों का संकेत मिल रहा है। इमरान जीते या हारे, कुछ बड़े बदलाव जरूर होंगे। बदलते वैश्विक-परिदृश्य में यह बदलाव बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा। 

अविश्वास-प्रस्ताव

बताया जा रहा है कि 28 मार्च को अविश्वास-प्रस्ताव पर मतदान हो सकता है। इमरान खान की पार्टी तहरीके इंसाफ ने उसके एक दिन पहले 27 मार्च को इस्लामाबाद में विशाल रैली निकालने का एलान किया है। उसी रोज विरोधी ‘पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट’ की विशाल रैली भी इस्लामाबाद में प्रवेश करेगी। क्या दोनों रैलियों में आमने-सामने की भिड़ंत होगी? देश में विस्फोटक स्थिति बन रही है।

पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नून और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के करीब 100 सांसदों ने 8 मार्च को नेशनल असेंबली सचिवालय को अविश्वास प्रस्ताव दिया था। सांविधानिक व्यवस्था के तहत यह सत्र 22 मार्च या उससे पहले शुरू हो जाना चाहिए था, पर 22 मार्च से संसद भवन में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का 48वाँ शिखर सम्मेलन शुरू हुआ है, इस वजह से अविश्वास-प्रस्ताव पर विचार पीछे खिसका दिया गया है।