कांग्रेस
पार्टी कह रही है कि राफेल मामले में घोटाला हुआ है और सरकार कह रही है कि
कांग्रेस ‘घोटाले को गढ़ने का काम’ कर रही है। ऐसा घोटाला, जो
हुआ ही नहीं। यह मामला रोचक हो गया है। शायद राफेल प्रकरण पर कांग्रेस की काफी
उम्मीदें टिकी हैं। पर क्या उसे सफलता मिलेगी?
शुक्रवार को रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने गोपनीयता का हवाला देते
हुए कुछ बातों की सफाई भी दी है। फिर भी लगता नहीं कि कांग्रेस इन स्पष्टीकरणों से
संतुष्ट है या होगी। संदेह जितना घना होगा, उतना उसे लाभ मिलेगा। उधर निर्मला सीतारमण ने कहा कि बोफोर्स के कारण
कांग्रेस सरकार चुनाव हारी थी और देशहित में हुए राफेल सौदे के कारण बीजेपी फिर से
जीत कर आएगी। क्या यह मामला केवल चुनाव जीतने या हारने का है? देश की सुरक्षा पर भी राजनीति!
राहुल
गांधी का कहना है कि इस मसले का ‘की पॉइंट’ है एचएएल के बजाय अम्बानी की फर्म को
ऑफसेट ठेका मिलना। उन्हें बताना चाहिए कि यह ‘की पॉइंट’ क्यों है? क्या
एचएएल ऑफसेट की लाइन में था? या अम्बानी को विमान बनाने का लाइसेंस मिल गया
है? क्या दोनों के बीच प्रतियोगिता थी? सवाल यह भी है कि रिलायंस को क्या मिला? 30,000
करोड़ का या छह-सात सौ करोड़ का ऑफसेट ठेका?
जैसा कि बुधवार को वित्तमंत्री अरुण
जेटली ने संसद में बताया था। मिला भी तो किसने दिया? सरकार ने या विमान कम्पनी दासो ने?