दिल्ली में केंद्र और राज्य
सरकार के बीच टकराव मर्यादा की सीमाएं तोड़ रहा है. स्थिति हास्यास्पद हो चुकी है.
सरकार का कानून मंत्री फर्जी डिग्री के आरोप में गिरफ्तार है. सवाल उठ रहे हैं कि
गिरफ्तारी की इतनी जल्दी क्या थी? इस मामले में अदालती फैसले
का इंतज़ार क्यों नहीं किया गया? मंत्री के खिलाफ एफआईआर
करने वाली दिल्ली बार काउंसिल से भी सवाल किया जा रहा है कि उसके पंजीकरण की
व्यवस्था कैसी है, जिसमें बगैर कागज़ों की पक्की पड़ताल के वकालत का लाइसेंस मिल
गया? प्रदेश सरकार अपने ही उप-राज्यपाल के खिलाफ
कानूनी कार्रवाई की धमकी दे रही है. उप-राज्यपाल ने एंटी करप्शन ब्रांच के प्रमुख
पद पर एक पुलिस अधिकारी की नियुक्ति कर दी. सरकार ने उस नियुक्ति को खारिज कर
दिया, फिर भी उस अधिकारी ने नए पद पर काम शुरू करके अपने अधीनस्थों के साथ बैठक कर
ली. कहाँ है दिल्ली की गवर्नेंस? यह सब कैसा नाटक है? आम आदमी पार्टी इसे केजरीवाल बनाम मोदी की लड़ाई के रूप
में पेश कर रही है. क्या है इसके पीछे की सियासत?