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Thursday, October 30, 2025

आगे जाता आसियान और पिछड़ता सार्क


हाल में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया को लेकर दो तरह की खबरें मिली थीं, जिनसे दो तरह की प्रवृत्तियों के संकेत मिलते हैं। आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल तरीके से और विदेशमंत्री एस जयशंकर स्वयं उपस्थित हुए थे। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कम्युनिटी विज़न 2045 को अपनाने के लिए आसियान की सराहना की। कम्युनिटी विज़न 2045 अगले बीस वर्षों में इस क्षेत्र को एक समेकित समन्वित विकास-क्षेत्र में तब्दील करने की योजना है।

अपने आसपास के राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह ज़ाहिर होता जा रहा है कि भारत को पूर्व की दिशा में अपनी कनेक्टिविटी का तेजी से विस्तार करना होगा। यह विस्तार हो भी रहा है, पर म्यांमार की अस्थिरता और बांग्लादेश की अनिश्चित राजनीति के कारण कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया के पाँच देशों (कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम) के साथ सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देने वाले गंगा-मीकांग सहयोग कार्यक्रम में हमें तेजी लानी चाहिए।

अब उस दूसरी खबर की ओर आएँ, जो इस सिलसिले में महत्वपूर्ण है। भारत के सरकारी स्वामित्व वाले भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने गत 22 अक्तूबर से अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए बांग्लादेश से इंटरनेट बैंडविड्थ का आयात बंद कर दिया। इस कदम का सीधा असर पूर्वोत्तर की इंटरनेट कनेक्टिविटी पर पड़ेगा, जो अभी तक बांग्लादेश अखौरा बंदरगाह के माध्यम से आयातित बैंडविड्थ पर निर्भर थी।

यह फैसला अचानक नहीं हुआ है। पिछले साल दिसंबर में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हसीना सरकार के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें भारत के पूर्वोत्तर को बैंडविड्थ की आपूर्ति के लिए बांग्लादेश को ट्रांज़िट पॉइंट के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। बांग्लादेश टेलीकम्युनिकेशंस रेग्युलेटरी कमीशन (बीटीआरसी) का कहना था कि भारत को ट्रांज़िट पॉइंट देने से क्षेत्रीय इंटरनेट हब बनने की हमारी क्षमता कमज़ोर हो जाएगी।

भारत का पूर्वोत्तर पहले घरेलू फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क का उपयोग करके चेन्नई में समुद्री केबलों के माध्यम से सिंगापुर से जुड़ा हुआ था। चूंकि चेन्नई में लैंडिंग स्टेशन पूर्वोत्तर से लगभग 5,500 किमी दूर है, इसलिए इंटरनेट की गति पर असर पड़ता था।

Wednesday, September 6, 2023

ठंडा क्यों पड़ा दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय-सहयोग?

 


भारत-उदय-05

भारतीय विदेश-नीति की सबसे बड़ी परीक्षा अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने में है. दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम कुछ इस प्रकार घूमा है कि दक्षिण एशिया की घड़ी की सूइयाँ अटकी रह गई हैं. भारत ने दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ को अपनाया है. ‘नेबरहुड फर्स्ट’ का अर्थ अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने से है.

इस उदार दृष्टिकोण के बावजूद दक्षिण एशिया दुनिया के उन क्षेत्रों में शामिल है, जहाँ क्षेत्रीय-सहयोग सबसे कम है. हम आसियान के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर सकते हैं, पर दक्षिण एशिया में उससे कहीं कमतर समझौता भी पाकिस्तान से नहीं कर सकते. 1985 में बना दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (दक्षेस) आज ठंडा पड़ा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कश्मीर.