कनाडा में करीब हफ्ते से जारी ट्रक ड्राइवरों का विरोध प्रदर्शन खत्म हो गया है, पर यह परिघटना कनाडा के इतिहास में याद रखी जाएगी। इतिहास में दूसरी बार कनाडा में आपातकाल की घोषणा की गई। सरकार ने जो कड़े कदम उठाए, वे कनाडा की सौम्य-व्यवस्था से मेल नहीं खाते हैं। प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पुलिस ने पेपर स्प्रे और स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल करके संसद के सामने के ज्यादातर हिस्से को साफ किया।
आंदोलन खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री जस्टिन
ट्रूडो ने आपातकाल की घोषणा को वापस ले लिया है। कनाडा के इतिहास में दूसरी बार इन
शक्तियों का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि इन शक्तियों के इस्तेमाल की पुष्टि संसद
में होनी थी, पर उससे पहले ही इन्हें वापस ले लिया गया है। देश में शांति-व्यवस्था
की स्थापना तो हो गई है, पर बहुत से सवाल खड़े हैं, जिनके जवाबों का इंतजार है।
यह आंदोलन केवल कनाडा के लिए ही नहीं अमेरिका समेत
पश्चिमी-लोकतंत्र के लिए एक नज़ीर बनेगा। हजारों की भीड़ ने कनाडा की राजधानी पर
धावा बोला और मुख्य-मार्गों को अवरुद्ध कर दिया। ट्रक यातायात में गिरावट ने फलों, सब्ज़ियों, ग्रोसरी और
अन्य जरूरी वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ा दीं, जिससे व्यापक अशांति फैल गई है। ख़ासतौर
पर अमेरिका और कनाडा के बीच कार और ट्रक-कंपनियों का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ।
अराजकता का अनुभव
इस किस्म की अराजकता पश्चिम के अनुशासित जीवन में
नए किस्म का अनुभव है। एक तरफ नाराज ड्राइवर थे और दूसरी तरफ इस आंदोलन से नाराज
नागरिक। कनाडा के लोग देश के राजनीतिक भविष्य के बारे में सवाल कर रहे हैं। कुछ
पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह आंदोलन भारत के किसान-आंदोलन से प्रेरित था। पर
पश्चिमी सरकारों ने इस आंदोलन की भर्त्सना की और इसके दमन का समर्थन। अमेरिका और
यूरोप में भी वैक्सीन की अनिवार्यता और कोविड-19 प्रतिबंधों के खिलाफ आंदोलन चल रहे हैं।
पिछले एक दशक में अमेरिका और यूरोप में इस प्रकार के जनांदोलन बढ़ते जा रहे हैं। क्या यह सिर्फ फौरी-उफान था या पश्चिमी-व्यवस्था के तख़्तापलट की भूमिका? देश के राजनीतिक परिदृश्य में कहीं बुनियादी बदलाव की शुरुआत तो नहीं है? ऑक्यूपाई वॉलस्ट्रीट से लेकर पेरिस के पीली-कुर्ती आंदोलन तक सोशल मीडिया एक प्रेरक शक्ति रहा है। क्या यह एक नए युग की शुरुआत है? क्या यह एक बड़े राजनीतिक-विभाजन की शुरुआत है?