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Thursday, September 30, 2021

कांग्रेस को क्यों बचाना है?


मंगलवार को कम्युनिस्ट पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए कन्हैया कुमार ने कहा, देश के लाखों-करोड़ों नौजवानों को लगने लगा है कि कांग्रेस नहीं बची तो देश नहीं बचेगा। उनके इस बयान में एक प्रकार की नकारात्मकता है। कांग्रेस नहीं बची तो…’ जैसी बात उनके मन में क्यों आई? कन्हैया कुमार ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा, ‘यह देश की सबसे पुरानी और सबसे लोकतांत्रिक पार्टी है। मैं 'लोकतांत्रिक' पर जोर दे रहा हूं...मैं ही नहीं कई लोग सोचते हैं कि देश कांग्रेस के बिना नहीं रह सकता।

कन्हैया कुमार कहें या न कहें, सच यह है कि कांग्रेस पार्टी के पास भारतीय राष्ट्र-राज्य की व्यापक संकल्पना है। फिर भी कोई नौजवान नेता, जो राष्ट्रीय-राजनीति में कदम रख रहा है, उसका यह कहना मायने रखता है, कांग्रेस नहीं बची तो खतरा किसे है, कांग्रेस संगठन को या उस व्यापक संकल्पना को, जो हमारे राष्ट्रीय-आंदोलन की धरोहर है?

कन्हैया कुमार ने कहा, मैं कांग्रेस में इसलिए शामिल हो रहा हूं, क्योंकि मुझे महसूस होता है कि देश में कुछ लोग, सिर्फ लोग नहीं वे एक सोच हैं, देश की सत्ता पर न सिर्फ काबिज हुए हैं, देश की चिंतन परम्परा, संस्कृति, मूल्य, इतिहास, वर्तमान, भविष्य खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस एक बड़े जहाज की तरह है, अगर इसे बचाया जाता है तो,महात्मा गांधी की एकता, भगत सिंह की हिम्मत और बीआर आम्बेडकर के समानता के विचार की रक्षा होगी।

कन्हैया कुमार ने जो बातें कही हैं, उनसे असहमति का प्रश्न पैदा नहीं होता है, पर यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि कांग्रेस के जहाज को बचाने की बात कहने की नौबत क्यों आई? कांग्रेस के पास वह वैचारिक छतरी है (या थी), जो पूरे देश की भावनाओं को व्यक्त करती है। केवल विचार ही नहीं, उसके पास वह संगठन भी था, जिसके भीतर तमाम तरह के विचारों को एक साथ जोड़कर रखने की ताकत थी। उसके भीतर धुर वामपंथी थे और धुर दक्षिणपंथी भी। नरमपंथी थे तो आक्रामक गरमपंथी भी।

Tuesday, September 28, 2021

कन्हैया कुमार का कांग्रेस में आगमन और सिद्धू का मिसगाइडेड मिसाइल


कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी के आगमन से कांग्रेस को खुशी होगी, क्योंकि उदीयमान युवा नेता उसके साथ आ रहे हैं, पर उसी रोज नवजोत सिद्धू की कलाबाज़ी एक परेशानी भी पैदा करेगी। सिद्धू के इस्तीफे की खबर मिलने के कारण दिल्ली में हो रहे कार्यक्रम को दो-तीन बार स्थगित करना पड़ा। दोनों परिघटनाएं पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की दृढ़ता, समझदारी और दूरदर्शिता को लेकर सवाल खड़े करने वाली हैं। कम्युनिस्ट पार्टी का साथ छोड़ने वाले कन्हैया कुमार और गुजरात के दलित कार्यकर्ता-विधायक जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दिल्ली में हुए कार्यक्रम में जब इन दोनों का पार्टी में स्वागत किया जा रहा था, गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल भी मौजूद थे।

माना जा रहा है कि कई राज्यों में बागियों से परेशान कांग्रेस युवाओं पर दांव खेलेगी। सवाल है कि क्या उसके भीतर युवा नेता नहीं हैं? क्या वजह है कि उसके अपने युवा नेता परेशान हैं? सवाल कई प्रकार के हैं। एक सवाल पार्टी की युवा छवि का है, पर ज्यादा बड़ा सवाल पार्टी के नैरेटिव या राजनीतिक-दृष्टिकोण का है। पार्टी किस विचार पर खड़ी है?

दृष्टिकोण या विचारधारा

कांग्रेस के नेतृत्व को बेहतर समझ होगी, पर मुझे लगता है कि उसने अपने नैरेटिव पर ध्यान नहीं दिया है, या जानबूझकर जनता की भावनाओं की तरफ से मुँह मोड़ा है। शायद नेतृत्व का अपने जमीनी कार्यकर्ता के साथ संवाद भी नहीं है, अन्यथा उसे जमीनी धारणाओं की समझ होती। कन्हैया कुमार के शामिल होने के ठीक पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट किया कि कुछ कम्युनिस्ट नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की खबरें हैं। ऐसे में शायद 1973 में लिखी गई किताब 'कम्युनिस्ट्स इन कांग्रेस' को फिर से पढ़ा जाना चाहिए। चीजें जितनी बदलती हैं, उतनी ही बदस्तूर भी रहती हैं। मैंने आज इसे फिर पढ़ा है।