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Monday, August 28, 2023

दुनिया ने माना भारत को ‘स्पेस-पावर’

 


चंद्रयान अभियान-2

चंद्रयान-3 की सफलता ने देश-विदेश में करोड़ों भारतीयों को खुशी का मौका दिया है। इतिहास में ऐसे अवसर कभी-कभी आते हैं, जब इस तरह करोड़ों भावनाएं एकाकार होती हैं। इस अभियान का एक लाभ यह भी होगा कि कभी भविष्य में हम चाँद पर बस्तियाँ बसाना चाहेंगे, तो इसमें बहुत मदद मिलेगी। उसके पहले सुदूर अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए चंद्रमा पर प्रयोगशालाओं की स्थापना की जा सकती है। भारत ने इसमें पहल ले ली है, जो भविष्य में फलदायी होगी।

प्रतिष्ठा की मनोकामना, प्रतियोगिता को बढ़ाती है। लंबे समय तक भारत की छवि पोंगापंथी, गरीब, पिछड़े और अराजक देश के रूप में रही या बनाई गई, पर अब उसमें तेजी से बदलाव आ रहा है। दुनिया ने भारत को स्पेस-पावर के रूप में स्वीकार कर लिया है। हालांकि रूस और अमेरिका पाँच दशक पहले चंद्रमा पर विजय प्राप्त कर चुके हैं, फिर भी भारत की यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के संसाधनों को देखते हुए हमारी उपलब्धि हल्की नहीं है।

तकनीकी कौशल

बेशक हम गरीब हैं, पर हमारे लोगों ने तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया है। भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों और अंतरिक्ष-विज्ञानियों से लेकर अर्थशास्त्रियों तक ने दुनिया में अपनी श्रेष्ठता साबित की है। चंद्रयान की इस सफलता के चार दिन पहले ही रूस को चंद्रमा पर निराशा का सामना करना पड़ा। भारत ने जिस तकनीक और किफायत से इस उपलब्धि को हासिल किया, उसपर गौर करने की जरूरत है। किफायती हाई-टेक के क्षेत्र में भारत ने अपने झंडे गाड़े हैं।

चंद्रयान-2 की विफलता से हासिल अनुभव का इसरो ने फायदा उठाया और उन सारी गलतियों को दूर कर दिया, जो पिछली बार हुई थीं। उन्नत चंद्रयान-3 लैंडर को आकार देने के लिए 21 उप-प्रणालियों को बदला गया। ऐसी व्यवस्था की गई कि यदि किसी एक पुर्जे या प्रक्रिया में खराबी आ जाए, तो दूसरा उसकी जगह काम संभाल लेगा। लैंडिंग की प्रक्रिया को मिनटों और सेकंडों के छोटे-छोटे कालखंडों में बाँटकर इस तरह से संयोजित किया गया कि अभियान के विफल होने की संभावना ही नहीं बची।

Sunday, August 27, 2023

चंद्रमा पर हमारे प्रतिनिधि विक्रम और प्रज्ञान

 


चंद्रयान अभियान-1

चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद अब कुछ सवाल खड़े होते हैं। पहला सवाल है कि लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान अब अगले कुछ दिनों तक क्या काम करेंगे? वे कब तक चंद्रमा पर रहेंगे और कितने समय तक सक्रिय रहेंगे?  चंद्रयान-3 का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना महत्वपूर्ण क्यों है? अभी तक किसी देश ने वहाँ अपना यान क्यों नहीं उतारा? भारत ने अपना यान उतारने का फैसला क्यों किया?  दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आने वाले कुछ समय में भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़ी परियोजनाएं क्या हैं? तीसरा सवाल है कि इस अभियान से वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक और राजनयिक क्षेत्र में भारत के रुतबे और रसूख पर क्या फर्क पड़ने वाला है?

ये तीन अलग विषय हैं, पर चंद्रयान-3 के कारण एक-दूसरे से जुड़े हैं। सबसे पहले चंद्रयान-3 की संरचना पर ध्यान दें। चंद्रयान का जब प्रक्षेपण किया गया था, तब रॉकेट पर चंद्रयान-3 दो भागों में उससे जुड़ा हुआ था। एक था प्रोपल्शन मॉड्यूल और दूसरा, दूसरा लैंडर विक्रम। लैंडर विक्रम के भीतर रखा गया था रोवर प्रज्ञान, जो सॉफ्ट लैंडिंग के बाद बाहर निकल कर अब चंद्रमा की सतह पर भ्रमण कर रहा है।

प्रणोदन (प्रोपल्शन) मॉड्यूल 100 किमी चंद्र कक्षा तक लैंडर और रोवर विन्यास को लेकर गया और वहाँ से वह अलग हो गया। पर उसका काम इतना ही नहीं था। चंद्र कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवीय मीट्रिक मापों का अध्ययन करने के लिए उसमें स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ (एसएचएपीई) नीतभार (पेलोड) है। इससे वह चंद्रमा की कक्षा में परावर्तित प्रकाश के जरिए पृथ्वी का अध्ययन करेगा।