Showing posts with label नोटबंदी. Show all posts
Showing posts with label नोटबंदी. Show all posts

Saturday, November 4, 2017

‘नोटबंदी’ पार लगा देगी कांग्रेसी नैया?

सोशल मीडिया सेल की जिम्मेदारी रम्या उर्फ दिव्य स्पंदना को मिल जाने के बाद से कांग्रेस के प्रचार में जान पड़ गई है। हाल में ट्विटर पर प्रचारित एक वीडियो देखने को मिला, जिसमें गब्बर सिंह हाथ में दो तलवारें लिए ठाकुर के दोनों हाथ काट रहा है। दोनों तलवारों में एक जीएसटी की है और दूसरी नोटबंदी की। कहा जा रहा है कि गुजरात में दोनों बातें बीजेपी को हराने में मददगार होंगी। कांग्रेस पार्टी इसी उम्मीद में 8 नवम्बर को काला दिन मनाने जा रही है। उसी दिन भारतीय जनता पार्टी ने काला धन विरोधी दिवस के रूप में जश्न मनाने की योजना भी बनाई है।

नोटबंदी और जीएसटी पर यदि गुजरात में बीजेपी को धक्का लगा तो उसके बाद के चुनावों को बचाना आसान नहीं होगा। इसलिए यह चुनाव काफी रोचक हो गया है। कांग्रेस पार्टी के नज़रिए से देखें तो उसकी उम्मीदें बीजेपी की नकारात्मकता पर टिकी हैं। यानी लोग सरकार से नाराज हैं, 22 साल की इनकम्बैंसी है और जातीय समीकरण भी उसके खिलाफ जा रहा है। लोगों को यह भी बताना होगा कि इन बातों से निजात दिलाने के लिए कांग्रेस क्या करने जा रही है। राष्ट्रीय राजनीति में उसकी स्थिति क्या है और आर्थिक नीतियों में वह ऐसा क्या करेगी, जो बीजेपी सरकार की नीतियों से बेहतर होगा। केवल नोटबंदी से उम्मीदें बाँध लेना काफी नहीं होगा।

यह सच है कि नोटबंदी को शुरू में जनता का समर्थन मिला था। उत्तर प्रदेश के चुनाव में मिली भारी विजय से बीजेपी का उत्साह काफी बढ़ा, पर हाल में आर्थिक मोर्चे पर मंदी की खबरें आने से जनता के दिलो-दिमाग में सवाल खड़े होने लगे हैं। बीजेपी यह बताने की कोशिश कर रही है कि परेशानी अस्थायी है और लम्बी बीमारी के इलाज में तकलीफें भी होती हैं। फिर भी जनता संशय में है और इस संशय का लाभ गुजरात में कांग्रेस को मिल भी सकता है। पर कितना? क्या यह लाभ इतना बड़ा होगा कि वह गुजरात में सरकार बना सके? उसे निर्णायक जीत मिले?  

Tuesday, December 20, 2016

राहुल के तेवर इतने तीखे क्यों?

राहुल गांधी के तेवर अचानक बदले हुए नजर आते हैं। उन्होंने बुधवार को नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोलकर माहौल को विस्फोटक बना दिया है। उन्हें विपक्ष के कुछ दलों का समर्थन भी हासिल हो गया है। इनमें तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी शामिल हैं। हालांकि बसपा भी उनके साथ नजर आ रही है, जबकि दूसरी ओर यूपी में कांग्रेस और सपा के गठबंधन की अटकलें भी हैं। बड़ा सवाल फिलहाल यह है कि राहुल ने इतना बड़ा बयान किस बलबूते दिया और वे किस रहस्य पर से पर्दा हटाने वाले हैं? क्या उनके पास ऐसा कोई तथ्य है जो मोदी को परेशान करने में कामयाब हो? 
बहरहाल संसद का सत्र खत्म हो चुका है और राजनीति का अगला दौर शुरू हो रहा है। नोटबंदी के कारण पैदा हुई दिक्कतें भी अब क्रमशः कम होती जाएंगी। अब सामने पाँच राज्यों के चुनाव हैं। देखना है कि राहुल इस दौर में अपनी पार्टी को किस रास्ते पर लेकर जाते हैं।  

Sunday, December 18, 2016

नोटबंदी के बाद अब क्या हो?

नरेंद्र मोदी कोई बड़ा काम करना चाहते हैं। ऐसा उनकी शैली से पता लगता है। नोटबंदी का उनका फैसला बताता है कि इसके पीछे पूरी व्यवस्था के साथ व्यापक विमर्श नहीं किया गया होगा। विचार-विमर्श हुआ होता तो शायद दिक्कतें इस कदर नहीं होतीं। इसमें बरती गई गोपनीयता का क्या मतलब है अभी यह भी समझ में नहीं आया है। यह भी दिखाई पड़ रहा है कि अर्थ-व्यवस्था की गति इससे धीमी होगी और छोटे कामगारों को दिक्कतें होंगी। पर ये दोनों बातें लंबे समय की नहीं हैं। हालांकि अभी आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, पर अनुमान है कि दो से तीन लाख करोड़ रुपए तक की राशि एकाउंटिंग में आएगी। वास्तव में ऐसा होने के बाद ही बात करनी चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो भविष्य में राजस्व में काफी वृद्धि होगी। इसके साथ ही दबाव में या समय की जरूरत को देखते हुए डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया तेज होगी। डिजिटाइजेशन भी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने में मददगार होगा। 
इस नोटबंदी ने व्यवस्था पर हावी ताकतों पर से भी पर्दा उठाया है। वकीलों, चार्टर एकाउंटेंटों, बैंक अफसरों, हवाला कारोबारियों, बिल्डरों, सर्राफों और कुल मिलाकर राजनेताओं की पकड़ और पहुँच का पता भी इस दौरान लगा है। भविष्य की व्यवस्था में इन बातों से बचने के रास्ते भी खोजने होंगे। व्यवस्था के दोष खुलते हैं तो उसे ठीक करने के रास्ते भी बनते हैं। ऐसा नहीं है कि अंधेर पूरी तरह अंधेर ही बना रहे। राजनीतिक दलों, धार्मिक ट्रस्टों और इसी प्रकार की संस्थाओं को मिली छूटों के बारे में ध्यान देने की जरूरत है। हम लोग शिकायतें बहुत करते हैं, पर जब संसदीय समितियाँ किसी सवाल पर आपकी राय माँगती हैं, तब आगे नहीं आते। फेसबुक और ट्विटर पर गालियाँ देते हैं। व्यवस्था में नागरिक की भागीदारी होगी तो अंधेर इतना आसान नहीं होगा। बाढ़ के वक्त नदी का पानी गंदला होता है, पर कुछ समय बाद वह साफ भी होता है। बदलाव की धारा का श्रेय केवल मोदी को नहीं दिया जाना चाहिए। यूपीए सरकार ने सन 2009 के बाद उदारीकरण की गति को धीमा कर दिया था। मोदी सरकार ने यूपीए के छोड़े कामों को ही पूरा करना शुरू किया है। उसकी हिम्मत भी दिखाई है। पर सच यह है कि हमारी राजनीति उदारीकरण को मुद्दा बना नहीं पाई है। 

शीत सत्र भी पूरी तरह धुल गया। लोकसभा ने मुकर्रर समय में से केवल 15 फीसदी और राज्यसभा ने 18 फीसदी काम किया। लोकसभा में 07 घंटे और राज्यसभा में 101 घंटे शोरगुल की भेंट चढ़े। राज्यसभा में प्रश्नोत्तर काल के लिए सूचीबद्ध 330 प्रश्नों में से केवल दो का जवाब मौखिक रूप से दिया जा सका। लोकसभा में केवल 11 फीसदी सूचीबद्ध सवालों के जवाब मौखिक रूप से दिए जा सके। संसदीय कर्म के सारे मानकों पर यह सत्र विफल रहा। वह भी ऐसे मौके पर जब देश अपने नेताओं का मुँह जोह रहा था कि वे रास्ता बताएं।

Wednesday, December 14, 2016

क्या राहुल के पास वास्तव में कुछ कहने को है?

राहुल गांधी ने विस्फोट भले ही नहीं किया, पर माहौल विस्फोटक जरूर बना दिया है. यह उनकी छापामार राजनीति की झलक है, जिसे उन्होंने पिछले साल के मॉनसून सत्र से अपनाया है. यह संजीदा संसदीय विमर्श का विकल्प नहीं है. वे क्या कहना चाहते हैं और क्या जानकारी उनके पास है, इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए. उन्होंने जिस अंदाज में बातें की हैं, उनसे लगता है कि अब कुछ धमाके और होंगे.

Saturday, November 26, 2016

कांग्रेस एक पायदान नीचे

नोटबंदी के दो हफ्ते बाद राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष की भावी रणनीति भी सामने आने लगी है। इसमें सबसे ज्यादा तेजी दिखाई है ममता बनर्जी ने, जिन्होंने जेडीयू, सपा, एनसीपी और आम आदमी पार्टी के साथ सम्पर्क करके आंदोलन खड़ा करने की योजना बना ली है। इसकी पहली झलक बुधवार को दिल्ली में दिखाई दी। जंतर-मंतर की रैली के बाद अचानक ममता बनर्जी का कद मोदी की बराबरी पर नजर आने लगा है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण है कांग्रेस का विपक्षी सीढ़ी पर एक पायदान और नीचे चले जाना। नोटबंदी के खिलाफ एक आंदोलन ममता ने खड़ा किया है और दूसरा आंदोलन कांग्रेस चला रही है। बावजूद संगठनात्मक लिहाज से ज्यादा ताकतवर होने के कांग्रेस के आंदोलन में धार नजर नहीं आ रही है। राहुल गांधी अब मुलायम सिंह, मायावती और नीतीश कुमार के बराबर के नेता भी नजर नहीं आते हैं।

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी साध्य नहीं, साधन है

नरेन्द्र मोदी ने 8 नवम्बर के संदेश और उसके बाद के भाषणों में इस बात को कहा है कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ मैं बड़ी लड़ाई लड़ना चाहता हूँ। बहुत से लोगों को उनकी बात पर यकीन नहीं है, पर जिन्हें यकीन है उनकी तादाद भी कम नहीं है। मोदी ने कहा है कि मुझे कम से कम 50 दिन दो। भारतीय जनता के मूड को देखें तो वह उन्हें पचास दिन नहीं पाँच साल देने को तैयार है, बशर्ते उस काम को पूरा करें, जिसका वादा है। सन 1971 और 1977 में देश की जनता ने सत्ताधारियों को ताकत देने में देर नहीं लगाई थी।
नोटबंदी की घोषणा होने के बाद से कांग्रेस सहित ज्यादातर विरोधी दलों ने आंदोलन का रुख अख्तियार किया है। वे जनता की दिक्कतों को रेखांकित कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अरविन्द केजरीवाल भी इस फैसले के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यह फैसला खुद में बड़ा स्कैम है। कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी ने नोटबंदी की चाल अपने राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों को यूपी में मात देने के लिए चली है। बीजेपी ने अपना इंतजाम करने के बाद विरोधियों को चौपट कर दिया है।

Sunday, November 13, 2016

काले धन पर वार तो यह है

काफी लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि नोटों को बदल देने से काला धन कैसे बाहर आ जाएगा। अक्सर हम काले धन का मतलब भी नहीं जानते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि बड़ी मात्रा में  किसी के पास कैश हो तो वह काला धन है। कैश का मतलब हमेशा काला धन नहीं है। पर प्रायः कैश के रूप में काला धन होता है। यदि नकदी का विवरण किसी के पास है और वह व्यक्ति उसमें से उपयुक्त राशि टैक्स वगैरह के रूप में जमा करता है तो वह काला धन नहीं है। 
फिलहाल दुनिया में समझ यह बन रही है कि लेन-देन को नकदी के बजाय औपचारिक रिकॉर्डेड तरीके से करना सम्भव हो तो 'काले धन' का बनना कम हो जाएगा। इनफॉर्मेशन तकनीक ने इसे सम्भव बना दिया है। भारत में गरीबी, अशिक्षा और तकनीकी नेटवर्क के अधूरे विस्तार के कारण दिक्कतें हैं। उन्हें दूर करने की कोशिश तो करनी ही होगी।