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Saturday, October 1, 2022

सुरक्षा परिषद में रूस का वीटो

 


रूस ने शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में प्रस्तुत एक प्रस्ताव को वीटो कर दिया है जिसमें यूक्रेन के चार क्षेत्रों को अपनी सीमाओं में मिलाने के प्रयासों को अवैध क़रार दिया गया है. प्रस्ताव में रूस की इस कार्रवाई को “अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिये एक ख़तरा” बताया गया है और इस निर्णय को तत्काल व बिना शर्त पलटने की माग भी की गई है.

 रूस ने यूक्रेन में पहले से ही अपने क़ब्ज़े वाले चार क्षेत्रों को, औपचारिक रूप से रूस के क्षेत्र में मिलाने की घोषणा करने के लिये, शुक्रवार को, राजधानी मॉस्को में एक समारोह भी आयोजित किया.

 सूरक्षा परिषद इस प्रस्ताव का प्रारूप संयुक्त राज्य अमेरिका और यूक्रन ने वितरित किया था, जिसे 15 में से 10 सदस्यों का समर्थन हासिल हुआ, रूस ने इस प्रस्ताव पर वीटो किया.

 चार सदस्यों – ब्राज़ील, चीन, गैबॉन और भारत ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.

Sunday, February 27, 2022

यूक्रेन-प्रसंग पर भारत और चीन के नजरियों की समानता और उनके फर्क

 


यूक्रेन पर रूसी हमले पर भारत और चीन की प्रतिक्रियाओं पर पर्यवेक्षकों ने खासतौर से ध्यान दिया है। दोनों देशों के साथ रूस के मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। दोनों ने ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस-विरोधी प्रस्ताव पर मतदान में भाग लेना उचित नहीं समझा। मतदान में यूएई की अनुपस्थिति भी ध्यान खींचती है, जबकि उसे अमेरिकी खेमे का देश माना जाता है। तीनों के अलग-अलग कारण हैं, पर तीनों ही रूस को सीधे दोषी मानने को तैयार नहीं हैं। दूसरी तरफ चीन जिसे रूस का निकटतम मित्र माना जा रहा है, उसने रूसी हमले का खुलकर समर्थन भी नहीं किया है। प्रकारांतर से भारत ने भी इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण माना है।

भारत ने जहाँ साफ शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया लिखित रूप में व्यक्त की है, वहीं चीनी प्रतिक्रिया अव्यवस्थित रही है। उसने जहाँ वैश्विक मंच पर रूस का सीधा विरोध नहीं किया, वहीं अपने नागरिकों को जो सफाई दी है, उसमें रूस से उस हद तक हमदर्दी नजर नहीं आती है। चीन अपनी विदेश-नीति में एकसाथ तीन उद्देश्यों को पूरा करना चाहता है। एक, रूस के साथ दीर्घकालीन नीतिगत दोस्ती, दूसरे देशों की क्षेत्रीय-अखंडता का समर्थन और तीसरे किसी सम्प्रभुता सम्पन्न देश में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति।

गत 24 फरवरी को यूक्रेन पर हुए हमले के बाद चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 25 को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ टेलीफोन पर बात की, जिसमें उन्होंने यूक्रेन पर हमले शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि पूर्वी यूक्रेन की स्थिति में नाटकीय परिवर्तन कहा। साथ ही इच्छा व्यक्त की कि यूक्रेन और रूस आपसी बातचीत से समझौता करें। उन्होंने सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की परंपरागत चीनी नीति का उल्लेख भी किया। दूसरी तरफ चीनी मीडिया ने इसे रूस का विशेष मिलिट्री ऑपरेशन नाम दिया। चीनी मीडिया ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के बयानों को उधृत किया और यूक्रेन में होते विस्फोटों के चित्र भी दिखाए। दूसरी तरफ रूस के सरकारी मीडिया ने यूक्रेन के नागरिक जीवन को शांतिपूर्ण बताया और सड़कों पर जन-जीवन शांतिपूर्ण और व्यवस्थित बताया। कम से कम मीडिया के मामले में रूसी और चीनी-दृष्टिकोण एक जैसे नहीं हैं।

चीन ने रूसी हस्तक्षेप की निन्दा नहीं की है, पर दूसरी तरफ यह भी कहा है कि रूस के विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंध बेकार हैं और इस लड़ाई के लिए पश्चिमी देश जिम्मेदार हैं, जिन्होंने नेटो का विस्तार करके रूस को इस हद तक दबा दिया था कि उसे पलटवार करना पड़ा। चीन के सोशल मीडिया पर चीन के एक वरिष्ठ संपादक ने इस बात को साफ कहा।

उधर भारत ने इस स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण जरूर बताया, पर किसी पक्ष की निंदा नहीं की, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्लादिमीर पुतिन के साथ फोन पर हुए संवाद में बातचीत से मामले को सुलझाने का सुझाव दिया। भारत ने ज्यादातर खुद को रूस के खिलाफ मतदान से अलग रखा है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि हम केवल अपनी स्वतंत्र विदेश-नीति और राष्ट्रहित को रेखांकित करना चाहते हैं। अतीत में भी भारत ने मध्य-यूरोप की सुरक्षा-व्यवस्था में सोवियत संघ का समर्थन किया था। 1956 में हंगरी में और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में सोवियत सेनाओं के हस्तक्षेप का भारत ने विरोध नहीं किया था। 1980 में अफगानिस्तान में सोवियत सेना के प्रवेश का भी भारत ने विरोध नहीं किया था। 

Sunday, August 8, 2021

अफगानिस्तान पर विचार के लिए ट्रॉयका की बैठक में भारत को बुलावा नहीं

अफगानिस्तान की ताजा स्थिति पर संरा सुरक्षा परिषद की बैठक

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इस महीने भारत के पास है, जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत की पहल पर हाल में अफगानिस्तान को लेकर सुरक्षा परिषद की बैठक हुई। इधर लड़ाई चल रही है और दूसरी तरफ राजनयिक स्तर पर बातचीत भी चल रही है। रूस ने तालिबान की
बढ़ती आक्रामकता और अफ़गानिस्तान में बिगड़ते हालात पर चर्चा करने के लिए 11 अगस्त को दोहा में ट्रॉयका प्लस की बैठक बुलाई है।

ट्रॉयका तीन देशों, रूस, अमेरिका और चीन का एक समूह है, जो अफगानिस्तान के मसलों पर विचार के लिए बनाया गया है। इस बैठक में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को भी बुलाया गया है। इस बैठक में रूस ने अमेरिका, चीन और पाकिस्तान को तो बुलाया है लेकिन भारत को आमंत्रित नहीं किया। जब इस सिलसिले में भारत के विदेश विभाग के प्रवक्ता अरिंदम बागची से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को लेकर रूस के साथ भारत लगातार सम्पर्क में है।

इसी तरह की एक और कोशिश इसी साल 18 मार्च से 30 अप्रैल के बीच भी हुई थी। उसमें भी भारत को नहीं बुलाया गया था। एक्सटेंडेड ट्रॉयका में भारत को आमंत्रित न किए जाने पर तरह-तरह की अटकलें शुरू हो गई हैं। ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि पिछले महीने ही रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने ताशकंद में कहा था कि रूस अफ़गानिस्तान में जारी हालात के मसले पर भारत को साथ लेकर काम करना जारी रखेगा। सर्गेई लावरोव के इस बयान के बाद यह उम्मीद जताई जा रही थी एक्सटेंडेड ट्रॉयका में भारत को भी बुलाया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

रूस ने इसकी वजह बताते हुए कहा है कि भारत का तालिबान पर कोई प्रभाव नहीं है। रूसी समाचार एजेंसी तास की रिपोर्ट अनुसार अफ़गानिस्तान में रूसी राजदूत ज़ामिर कबुलोव ने 20 जुलाई को ही कह दिया था कि भारत एक्सटेंडेड ट्रॉयका का हिस्सा नहीं बन सकता क्योंकि उसका तालिबान पर कोई प्रभाव नहीं है। रूसी राजदूत ने कहा, एक्सटेंडेड ट्रॉयका का फॉर्मेट ऐसा है कि इसमें रूस के साथ सिर्फ़ चीन, पाकिस्तान और अमेरिका ही शामिल हो सकते हैं। इस बातचीत में वही देश शामिल हो सकते हैं जिनका दोनों पक्षों (तालिबान और अफ़गानिस्तान) पर स्पष्ट प्रभाव हो। वैसे तो अफ़गानिस्तान संकट को लेकर रूस का अमेरिका के साथ कई मुद्दों पर मतभेद है. लेकिन अब दोनों ही देश शांति प्रक्रिया पर ज़ोर दे रहे हैं।

सुरक्षा परिषद

अफगानिस्तान सरकार की माँग पर संरा सुरक्षा परिषद में भी देश की ताजा स्थिति पर विचार किया गया। इस बैठक में भारत के राजदूत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभालने के एक हफ्ते के भीतर हमारे देश ने अफगानिस्तान पर शक्तिशाली वैश्विक निकाय की महत्वपूर्ण बैठक की, जिसमें सदस्य देशों से हिंसा और शत्रुता को खत्म करने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया गया और इससे दुनिया को युद्धग्रस्त देश की गंभीर स्थिति दिखाने में भी मदद मिली।

परिषद की बैठक में अफगानिस्तान के दूत गुलाम इसाकज़ई ने कहा कि तालिबान को देश में पनाह मिल रही है और पाकिस्तान से युद्ध के लिए जरूरी साजो-सामान उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, अफगानिस्तान में प्रवेश करने के लिए डूरंड रेखा के करीब तालिबान लड़ाकों के जुटने की खबरें और वीडियो, निधि जुटाने के कार्यक्रम, सामूहिक अंतिम संस्कार के लिए शवों को ले जाने और पाकिस्तानी अस्पतालों में तालिबान के घायल लड़ाकों के इलाज की खबरें आ रही हैं।

Saturday, September 7, 2019

सुरक्षा परिषद क्यों नहीं करा पाई कश्मीर समस्या का समाधान?


अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने की रेस में शामिल रह चुके वरिष्ठ सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने पिछले हफ्ते कहा कि कश्मीर के हालात को लेकर उन्हें चिंता है। अमेरिकी मुसलमानों की संस्था इस्लामिक सोसायटी ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका के 56वें अधिवेशन में उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी सरकार को इस मसले के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव का समर्थन में खुलकर समर्थन करना चाहिए। हालांकि बर्न सैंडर्स की अमेरिकी राजनीति में कोई खास हैसियत नहीं है और यह भी लगता है कि वे मुसलमानों के बीच अपना वोट बैंक तैयार करने के लिए ऐसा बोल रहे हैं, पर उनकी दो बातें ऐसी हैं, जो अमेरिकी राजनीति की मुख्यधारा को अपील करती हैं।
इनमें से एक है कश्मीर में अमेरिकी मध्यस्थता या हस्तक्षेप का सुझाव और दूसरी कश्मीर समस्या का समाधान सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत करने की। पाकिस्तानी नेता भी बार-बार कहते हैं कि इस समस्या का समाधान सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत करना चाहिए। यानी कि कश्मीर में जनमत संग्रह कराना चाहिए। आज सत्तर साल बाद हम यह बात क्यों सुन रहे हैं? सन 1949 में ही समस्या का समाधान क्यों नहीं हो गया? भारत इस मामले को सुरक्षा परिषद में संरा चार्टर के अनुच्छेद 35 के तहत ले गया था। जो प्रस्ताव पास हुए थे, उनसे भारत की सहमति थी। वे बाध्यकारी भी नहीं थे। अलबत्ता दो बातों पर आज भी विचार करने की जरूरत है कि तब समाधान क्यों नहीं हुआ और इस मामले में सुरक्षा परिषद की भूमिका क्या रही है?
प्रस्ताव के बाद प्रस्ताव
सन 1948 से 1971 तक सुरक्षा परिषद ने 18 प्रस्ताव भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर पास किए हैं। इनमें प्रस्ताव संख्या 303 और 307 सन 1971 के युद्ध के संदर्भ में पास किए गए थे। उससे पहले पाँच प्रस्ताव 209, 210, 211, 214 और 215 सन 1965 के युद्ध के संदर्भ में थे। प्रस्ताव 123 और 126 सन 1956-57 के हैं, जो इस इलाके में शांति बनाए रखने के प्रयास से जुड़े थे। वस्तुतः प्रस्ताव 38, 39 और 47 ही सबसे महत्वपूर्ण हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है प्रस्ताव 47 जिसमें जनमत संग्रह की व्यवस्था बताई गई थी।

Tuesday, February 15, 2011

सं रा सुरक्षा परिषद में बदलाव


हाल में ग्रुप-4 के देशों की न्यूयॉर्क में हुई बैठक के बाद जारी वक्तव्य में उम्मीद ज़ाहिर की गई है कि इस साल जनरल असेम्बली के सत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों की दिशा में कोई ठोस कदम उठा लिया जाएगा। जी-4 देशों में भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील आते हैं। ये चार देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं।