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Monday, August 9, 2021

अमेरिका की स्वास्थ्य-चेतना ऐसी बदहाल क्यों?


अमेरिका को दुनिया के सबसे आधुनिक-देश के रूप में गिना जाता है, पर कोविड-19 के दौर में वहाँ से कुछ ऐसी बातें निकलकर बाहर आ रही हैं, जिनसे स्वास्थ्य के प्रति उसकी जागरूकता को लेकर संदेह पैदा होता है। सबसे बड़ा संदेह वैक्सीन के प्रति नागरिकों के रवैये को लेकर है। कोविड-19 का असर कम होने की वजह से वहाँ मास्क पहनने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई और प्रतिबंधों में ढील दे दी गई। रेस्तराँओं में बगैर-मास्क भीड़ जा रही है। कुछ रेस्तरां में सूचना लगी होती है कि जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगाई है, कृपया मास्क पहन कर आएं, पर यह देखने वाला कोई नहीं है कि किसने वैक्सीन लगाई है और किसने नहीं।

परिणाम यह हुआ कि वहाँ संक्रमण का खतरा फिर बढ़ रहा है। देश के स्वास्थ्य सलाहकार डॉ एंथनी फाउची ने पिछले हफ्ते कहा, टीका न लगवाना कोरोना को फैलाने का सबसे अहम कारण होगा। अभी तक अमेरिका की 49.7 प्रतिशत आबादी को दोनों टीके लगाए गए हैं और करीब 58 फीसदी आबादी को कम से कम एक टीका लगा है। करीब 17 करोड़ लोगों को टीका नहीं लगा है। अब जो संक्रमण हो रहा है, उनमें से ज्यादातर लोग वे हैं, जिन्हें अभी तक टीका नहीं लगा है। मरने वालों में करीब 90 फीसदी ऐसे लोग हैं।

वैक्सीन का विरोध

पूरे देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। देश के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार जुलाई में नए मामलों की औसतन साप्ताहिक संख्या में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है। जिन इलाकों में वैक्सीनेशन कम हुआ है, वहाँ बीमारी का प्रकोप ज्यादा है। देश में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो वैक्सीन के विरोधी हैं। राजनीतिक-दृष्टि से देखें तो रिपब्लिकन पार्टी के 49 प्रतिशत पुरुष समर्थक और 34 फीसदी महिला समर्थक खुद को एंटी-वैक्सर्स  मानते हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी के 14 प्रतिशत पुरुष और 6 प्रतिशत महिला समर्थक वैक्सीन-विरोधी हैं। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हालांकि टीका लगवा लिया, पर वे इस बात को  छिपाते रहे। अलबत्ता वैक्सीन-विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं प्राकृतिक चिकित्सक डॉ जोसफ मर्कोला। वे होम्योपैथी तथा वैकल्पिक चिकित्सा के समर्थक हैं। उनके लेख सोशल मीडिया में लोकप्रिय हैं। वैक्सीन के खिलाफ जबर्दस्त ऑनलाइन अभियान है।

Tuesday, August 3, 2021

कम होता वैक्सीन-भय और दुनियाभर में बढ़ता तीसरी-चौथी लहर का खतरा


कोरोना वायरस से बचाव के लिए दुनिया टीकाकरण पूरा होने का इंतज़ार कर रही है। डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और महामारी विशेषज्ञों के बड़े हिस्से का मानना है कि कोरोना के मुकम्मल इलाज के लिए वैक्सीन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, फिर भी एक तबका ऐसा हो, जो टीका लगवाना नहीं चाहता। कुछ लोग ऐसे हैं, जो टीका लगवाने से घबराते हैं। वे उन खबरों को गौर से सुनते हैं, जिनमें टीका लगवाने के बाद पैदा हुई परेशानियों का विवरण हो। दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे हैं, जो टीके के सख्त विरोधी हैं। कुछ वैज्ञानिक सिद्धांतों का हवाला देते हैं और कुछ धार्मिक विश्वासों का।

पिछले साल दुनिया में कोविड-19 से सबसे ज्यादा संक्रमण अमेरिका में हो रहे थे और वहाँ मौतें भी सबसे ज्यादा हुई थीं। पर जैसे ही टीके लगने शुरू हुए वहाँ बीमारी पर काफी हद तक काबू पा लिया गया। जहाँ इस साल 12 जनवरी को साढ़े चार हजार के ऊपर मौतें हुई थीं, वहीं अब यह संख्या सौ से डेढ़ सौ के बीच है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मरने वालों में करीब 90 फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने टीका नहीं लगवाया है।

वैक्सीन-विरोध

दुनियाभर में ऐसे संगठित समूह हैं, जो हर तरह की वैक्सीन के विरोधी हैं। वे अनिवार्य टीकाकरण को नागरिक अधिकारों, वैयक्तिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता का उल्लंघन मानते हैं। उनके अनुसार वैक्सीन से कोई फ़ायदा नहीं। यह इंसान के प्राकृतिक-प्रतिरक्षण के साथ दखलंदाजी है। इन्हें एंटी-वैक्स कहा जाता है। कुछ धार्मिक समूह हैं, कुछ वैकल्पिक मेडिसिन के समर्थक। कुछ मानते हैं कि वैक्सीन कुछ नहीं बड़ी कम्पनियों की कमाई का धंधा है। एक प्रकार की विश्व-व्यापी साजिश।