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Saturday, March 13, 2021

टेक्नो-लोकतंत्र की खुली खिड़की और हवाओं को कैद करने की कोशिशें


डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के विनियमन के लिए केंद्र सरकार की नवीनतम कोशिशों को लेकर तीन तरह की दलीलें सुनाई पड़ रही हैं। पहली यह कि विनियमन न केवल जरूरी है, बल्कि इसे
नख-दंत की जरूरत है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी कही है। दूसरी, विनियमन ठीक है, पर इसका अधिकार सरकार के पास नहीं रहना चाहिए। इस दलील में उन बड़ी तकनीकी कंपनियों के स्वर भी शामिल हैं, जिनके हाथों में डिजिटल (या सोशल) मीडिया की बागडोर है। और तीसरी दलील मुक्त-इंटरनेट के समर्थकों की है, जिनका कहना है कि सरकारी गाइडलाइन न केवल अनैतिक है, बल्कि असांविधानिक भी हैं। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन का यह विचार आगे जाकर आधार, आरोग्य सेतु और  प्रस्तावित डीएनए कानून को भी सरकारी सर्विलांस का उपकरण मानता है।  

लोकतंत्र के तीन स्तम्भ धीरे-धीरे आकार ले रहे हैं। इनमें पहला राज्य है, जिसमें सरकार एक निकाय है, और जिसमें न्यायपालिका और राजनीतिक संस्थाएं शामिल हैं। दूसरे बाजार है, यानी बड़ी तकनीकी कम्पनियाँ। तीसरे स्वयं नागरिक। दुनिया के करीब सात अरब नागरिकों में से हरेक का अपना एजेंडा है। उनके प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला एक अलग संसार है।

ग्लोबल ऑडियंस

सूचना के नियमन की कोशिश केवल भारत में ही नहीं है। युवाल नोवा हरारी के शब्दों में वैश्विक समस्याओं के वैश्विक समाधानखोजे जा रहे हैं। हाल में पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए अदालत ने कहा था, बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में ग्लोबल ऑडियंस की तलाश का अधिकार शामिल है। संचार पर भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं। एक नागरिक के पास कानून के अनुरूप संचार प्राप्त करने के सर्वोत्तम साधनों का उपयोग करने का मौलिक अधिकार है।

स्वतंत्रता का यह एक नया आयाम है। इंटरनेट ने यह वैश्विक-खिड़की खोली है। नागरिक के जानकारी पाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े अधिकारों को पंख लगाने वाली तकनीक ने उसकी उड़ान को अंतरराष्ट्रीय जरूर बना दिया है, पर उसकी आड़ में बहुत से खतरे राष्ट्रीय सीमाओं में प्रवेश कर रहे हैं। सोचना उनके बारे में भी होगा।

Sunday, February 28, 2021

डिजिटल मीडिया पर नकेल


सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म हमेशा निरंकुश-निर्द्वंद नहीं रह सकते थे। जिस तरह उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में प्रिंट मीडिया के नियमन ने शक्ल ली, उसी तरह नब्बे के दशक में आकाश मीडिया के नियमन की शुरुआत हुई। पहले उसने केबल के रास्ते आकाश मार्ग से प्रवेश किया, फिर उसका नियमन हुआ, उसी तरह नए डिजिटल माध्यमों के विनियमन की जरूरत होगी। इनकी अंतर्विरोधी भूमिका पर भारत में ही नहीं दुनियाभर में चर्चा है। अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में ओटीटी प्लेटफॉर्मों की सामग्री का नियमन होता है और उल्लंघन होने पर सजा देने की व्यवस्था भी है। पर इस विनियमन को युक्तिसंगत भी होना चाहिए। इस मामले में विवेकशीलता नहीं बरती गई, तो लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति का गला घुट सकता है।

पिछले गुरुवार को सरकार ने जो सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 जारी किए हैं, उन्हें आना ही था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस आशय के निर्देश दिए थे और हालात खुद कह रहे हैं कि कुछ करना चाहिए। हाल में अमेरिकी संसद और लालकिले पर हुए हमलों से इसकी जरूरत और पुख्ता हुई है।

मर्यादा रेखाएं

इंटरनेट और डिजिटल मीडिया ने सामाजिक-शक्तियों और राजशक्ति के बीच भी मर्यादा रेखा खींचने जरूरत को रेखांकित किया है। सामान्यतः माना जाता है कि सार्वजनिक हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी राज्य की है। पर जैसे-जैसे तकनीक का दायरा हमें राज्य की राजनीतिक सीमाओं से भौगोलिक रूप से बाहर ले जा रहा है, नए सवाल उठ रहे हैं। नियामक संस्थाओं की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर तक होती है, पर भविष्य में अंतरराष्ट्रीय नियमन की जरूरत भी होगी।