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Friday, May 16, 2014

मोदी से क्या नाराज़गी है आडवाणी और सुषमा को

 शुक्रवार, 16 मई, 2014 को 19:58 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी आडवाणी
इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के बजाय क्लिक करेंलालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव लड़ती तो क्या उसे ऐसी सफलता मिलती?
इस भारी विजय की उम्मीद शायद भाजपा को भी नहीं थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंतरिक सर्वे में भी इसकी उम्मीद ज़ाहिर नहीं की गई थी.
चुनाव परिणाम आने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भ्रष्टाचार, महंगाई और कुशासन के तीन परिणामों को गिनाया है.
उन्होंने कहा कि यह वोट भ्रष्टाचार और परिवारवाद के ख़िलाफ़ है. उन्होंने नरेंद्र मोदी का भी सरसरी तरीक़े से उल्लेख किया पर खुलकर श्रेय नहीं दिया.

‘शुद्ध रूप से’ बीजेपी की जीत

इसी प्रकार की प्रतिक्रिया सुषमा स्वराज की भी है. उनका कहना है कि यह ‘शुद्ध रूप से’ बीजेपी की जीत है.
आडवाणी ने सार्वजनिक रूप से न तो मोदी को बधाई दी और न श्रेय दिया, बल्कि मोदी का नाम लेते वक़्त कहा कि इस बात का विश्लेषण किया जाना चाहिए कि इस जीत में नरेंद्र मोदी की भूमिका कितनी है.

Monday, June 10, 2013

अब तो शुरू हुई है मोदी की परीक्षा

रविवार की शाम नरेन्द्र मोदी ने नए दायित्व की प्राप्ति के बाद ट्वीट किया : 'आडवाणी जी से फोन पर बात हुई. अपना आशीर्वाद दिया. उनका आशीर्वाद और सम्मान प्राप्त करने के लिए अत्यंत आभारी.' पर अभी तक आडवाणी जी ने सार्वजनिक रूप से मोदी को आशीर्वाद नहीं दिया है। यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का टकराव है या कोई सैद्धांतिक मतभेद है? उमा भारती, सुषमा स्वराज और यशवंत सिन्हा ने सार्वजनिक रूप से मोदी को स्वीकार कर लिया है। इसके बाद क्या लालकृष्ण आडवाणी अलग-थलग पड़ जाएंगे? या राजनाथ सिंह उन्हें मनाने में कामयाब होंगे? और यह भी समझना होगा कि पार्टी किस कारण से मोदी का समर्थन कर रही है? 


भारतीय जनता पार्टी को एक ज़माने तक पार्टी विद अ डिफरेंस कहा जाता था। कम से कम इस पार्टी को यह इलहाम था। आज उसे पार्टी विद डिफरेंसेज़ कहा जा रहा है। मतभेदों का होना यों तो लोकतंत्र के लिए शुभ है, पर क्या इस वक्त जो मतभेद हैं वे सामान्य असहमति के दायरे में आते हैं? क्या यह पार्टी विभाजन की ओर बढ़ रही है? और क्या इस प्रकार के मतभेदों को ढो रही पार्टी 2014 के चुनाव में सफल हो सकेगी?

Monday, May 20, 2013

पराजय-बोध से ग्रस्त भाजपा




कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद पिछले हफ्ते लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा कि यह हार न होती तो मुझे आश्चर्य होता। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा के प्रति उनकी कुढ़न का पता इस बात से लगता है कि उन्होंने उनका पूरा नाम लिखने के बजाय सिर्फ येद्दी लिखा है। 

वे इतना क्यों नाराज़ हैं? उनके विश्वस्त अनंत कुमार ने घोषणा की है कि येद्दियुरप्पा की वापसी पार्टी में संभव नहीं है। पर क्या कोई वापसी चाहता है?

उससे बड़ा सवाल है कि भाजपा किस तरह से पार्टी विद अ डिफरेंस नज़र आना चाहती है। उसके पास नया क्या है, जिसके सहारे वोटर का मन जीतना चाहती है? और उसके पास कौन ऐसा नेता है जो उसे चुनाव जिता सकता है?

भाजपा अभी तक कर्नाटक, यूपी और बिहार की मनोदशा से बाहर नहीं आ पाई है। उसके भीतर कहा जा रहा है कि सन 2008 में जब कर्नाटक में सरकार बन रही थी तब बेल्लारी के खनन माफिया रेड्डी बंधुओं को शामिल कराने का दबाव तो केन्द्रीय नेताओं ने डाला। क्या वे उनकी पृष्ठभूमि नहीं जानते थे? आडवाणी जी कहते हैं कि हमने भ्रष्टाचार में मामले में समझौता नहीं किया, पर क्या उन्होंने रेड्डी बंधुओं के बारे में अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी?

यह सिर्फ संयोग नहीं है कि पिछले साल जब मुम्बई में पार्टी कार्यकारिणी में पहली बार नरेन्द्र मोदी भाग लेने आए तो येद्दियुरप्पा भी आए थे। पार्टी की भीतरी कलह कुछ नहीं केवल राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व का झगड़ा है। और इस वक्त यह झगड़ा नरेन्द्र मोदी बनाम आडवाणी की शक्ल ले चुका है। पिछले हफ्ते कर्नाटक के एमएलसी लहर सिंह सिरोया ने आडवाणी जी को चार पेज की करारी चिट्ठी लिखी है, जिसमें कुछ कड़वे सवाल हैं। सिरोया को पार्टी कोषाध्यक्ष पद से फौरन हटा दिया गया, पर क्या सवाल खत्म हो गए?

Sunday, May 12, 2013

आडवाणी जी का टेलपीस


आज भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कर्नाटक में भाजपा की पराजय पर अपने ब्लॉग में लिखा है कि मुझे इस हार पर विस्मय नहीं हुआ, बल्कि भाजपा जीतती तो विस्मय होता। उनका कहना है कि भाजपा ने नैतिक दृष्टि से भ्रष्टाचार को स्वीकार नहीं किया इसलिए यह पराजय हुई।


उनके ब्लॉग का रोचक हिस्सा था उसका टेलपीस, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री को उलाहना दिया था कि अब मंत्रियों को हटाने का फैसला भी ऊपर से होता है। इतनी ही नहीं सोनिया गांधी अब मंत्रिमंडल विस्तार के बारे में भी फैसले करेंगी। इस टेलपीस ने कांग्रेसी नेृतृत्व को व्यथित कर दिया है। पहले इस टेलपीस को पढ़ें :-

TAILPIECE

Today’s PIONEER carries on its front page a highlighted box item captioned : SNUB TO PM?  It goes on to say that Smt. Sonia Gandhi will be meeting senior party leaders soon to discuss the Cabinet reshuffle.

Has the Prime Minister abdicated his right even to decide about his own cabinet? Today’s news reports about the removal of two Union Ministers generally emphasise that it is Soniaji who has sacked ‘two PM’s men.’

Sheer self-respect demands that the PM calls it a day, and orders an early general election.

इस टेलपीस का असर था कि कांग्रेस को वक्तव्य जारी करके सफाई देनी पड़ी कि यह फैसला अकेले सोनिया गांधी का नहीं था, संयुक्त फैसला था। हिन्दू की वैबसाइट में इस खबर को इस तरह दिया गया:-

Dropping of P.K. Bansal and Ashwani Kumar from the Union Cabinet was the “joint decision” of Prime Minister Manmohan Singh and Sonia Gandhi, the Congress said on Sunday dismissing reports that the action was at the insistence of the party president.
“It has appeared in a section of the media that it was at the insistence of Congress president Sonia Gandhi that the two Ministers were dropped. This perception is not correct.
“The correct position is that it was the joint decision of the Congress president and Prime Minister Manmohan Singh,” party general secretary Janardan Dwivedi said in New Delhi.
The statement of Mr. Dwivedi, the AICC Media Department chief, is significant as reports had suggested that Mr. Bansal and Mr. Kumar, seen to be close to the Prime Minister, were made to resign by him late on Friday after the Congress president expressed her displeasure over their continuance in office.