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Sunday, October 24, 2021

कोयला-संकट के दूरगामी निहितार्थ


कोरोना के संकट से उबर रहे देश को अचानक ऊर्जा-संकट ने घेर लिया है। इससे अर्थव्यवस्था को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। मध्य जुलाई से पैदा हुई कोयले की कमी के कारण उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के 135 ताप-बिजलीघरों के सामने संकट की स्थिति पैदा हो गई है। इन बिजलीघरों में 11.4 गीगावॉट (एक गीगावॉट यानी एक हजार मेगावॉट) उत्पादन की क्षमता है। देश में कुल 388 गीगावॉट बिजली उत्पादन की क्षमता है। इनमें से कोयले पर चलने वाले ताप-बिजलीघरों की क्षमता 208.8 गीगावॉट (करीब 54 फीसदी) है। चूंकि औद्योगिक गतिविधियों में बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका है, इसलिए इस खतरे को गम्भीरता से लेने की जरूरत है।

राजनीति की गंध

आर्थिक-संकट के अलावा कोयला-संकट के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में चुनाव होने वाले हैं। बिजली की कटौती होगी, तो वोटर का ध्यान इस तरफ जाएगा। पहली नजर में लगा कि यह बात वैसे ही राजनीतिक-विवाद का विषय बनेगी, जैसा इस साल अप्रेल-मई में मेडिकल-ऑक्सीजन की किल्लत के कारण पैदा हुआ था। इसकी खुशबू आते ही दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलन्द कर दी। मनीष सिसौदिया ने ऑक्सीजन का ही हवाला दिया।

इन आशंकाओं को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने 'निराधार' करार दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले की तरह कोयले का 17 दिन का स्टॉक नहीं है लेकिन 4 दिन का स्टॉक है। कोयले की यह स्थिति इसलिए है क्योंकि हमारी माँग बढ़ी है और हमने आयात कम किया है। फिर भी बिजली आपूर्ति बाधित होने का बिल्कुल भी खतरा नहीं है। कोल इंडिया लिमिटेड के पास 24 दिनों की कोयले की मांग के बराबर 4.3 करोड़ टन का पर्याप्त कोयले का स्टॉक है वगैरह-वगैरह।

सच इन दोनों बातों के बीच में कहीं है। संकट तो है, शायद उतना गम्भीर नहीं, जितना समझा जा रहा है। शायद स्थिति पर जल्द नियंत्रण हो जाएगा। पर ऐसा करने के लिए बहुत से गैर-बिजली उपभोक्ताओं की कोयला-आपूर्ति रुकेगी। इसका असर दूसरे क्षेत्रों पर पड़ेगा। कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी का कहना है कि बिजलीघरों तक कोयला पहुँचाने की गति बढ़ाई जा रही है, ताकि उनके पास पर्याप्त स्टॉक बना रहे।

क्यों पैदा हुआ संकट?

सामान्यतः मॉनसून के महीनों में कोयलों खदानों में उत्पादन प्रभावित होता है। ग्रिड प्रबन्धन के लिहाज से अक्तूबर का महीना मुश्किल होता है। इस साल मॉनसून देर तक रहा है, इसका असर भी उत्पादन पर है। इसके विपरीत इस साल बिजली की माँग भी पहले से ज्यादा रही है। सामान्यतः अप्रेल-मई के महीनों में कोयले का भंडार जमा कर लिया जाता है, ताकि वर्षा के दौरान कमी न होने पाए, पर इस साल अप्रेल-मई में कोविड-19 की दूसरी लहर अपने सबसे रुद्र रूप में चल रही थी, इसलिए भंडारण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा।

दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत बढ़ने के कारण भारत ने कोयले का आयात कम कर दिया। ऐसा ही गैस के साथ हुआ। इस समय चीन से लेकर यूरोप तक दुनिया भर में कोयले और गैस की किल्लत है।

विदेशी कोयला आएगा

बहरहाल केंद्र सरकार ने ताप बिजलीघरों को 15 फीसद तक विदेशी कोयले की अनुमति देने का फैसला किया है। इससे बिजली महंगी होगी और फिर उसके दूरगामी परिणाम होंगे। विदेशी कोयले का मूल्य हाल ही में 60 से 200 डॉलर प्रति टन तक बढ़ा है। चूंकि अभी तक ज्यादातर बिजली घरों में विदेशी कोयले का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए वर्तमान संकट का बिजली की दर पर असर नहीं पड़ा था, पर अब विदेशी कोयले के इस्तेमाल की अनुमति के बाद उसमें वृद्धि हो सकती है।

Monday, October 11, 2021

बिजली-संकट पर क्या राजनीतिक रंग चढ़ेगा?

 


इसमें दो राय नहीं कि देश में कोयले का संकट है, जिसके कारण बिजली संकट पैदा होने का खतरा है, पर क्या यह बात वैसे ही राजनीतिक-विवाद का विषय बनेगी, जैसा इस साल अप्रेल-मई में मेडिकल-ऑक्सीजन की किल्लत के कारण पैदा हुआ था?  शायद उसकी खुशबू आते ही दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलन्द करनी शुरू कर दी है।

ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार दोनों ने सम्भावित संकट को देखते हुए अभी से पेशबन्दी शुरू कर दी है। दिल्ली के उप-मुख्यमन्त्री मनीष सिसौदिया ने ऑक्सीजन का ही हवाला दिया। उसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने फौरन जवाब दिया। सवाल है कि क्या बिजली-संकट पैदा होगा? या केन्द्र सरकार हालात पर काबू पा लेगी?

सारी आशंकाओं को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने 'निराधार' करार दिया है। उन्होंने रविवार को कहा कि संकट न तो कभी था, न आगे होगा। ऊर्जा मंत्री ने कहा कि 'हमारे पास आज के दिन में कोयले का चार दिन से ज़्यादा का औसतन स्टॉक है, हमारे पास प्रतिदिन स्टॉक आता है। कल जितनी खपत हुई, उतना कोयले का स्टॉक आया।…'हमें कोयले की अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ानी है हम इसके लिए कार्रवाई कर रहे हैं।'

कोयला मंत्रालय ने कहा कि गत 9 अक्तूबर को ताप बिजलीघरों के लिए 19 लाख 20 हजार टन कोयला भेजा गया है, जबकि कुल माँग 18 लाख 70 हजार टन की है। स्थिति बदल रही है और हम अपने भंडारों को फिर से बेहतर बना रहे हैं।

Wednesday, October 6, 2021

कोयले की किल्लत, बिजली संकट का अंदेशा

 


खबर है कि देश में केवल चार दिन के कोयले का स्टॉक बचा है, जिसकी वजह से बिजली उत्पादन में गिरावट आने का अंदेशा है। हाल के वर्षों में ऐसा संकट देखा नहीं गया है। अगस्त के महीने में बिजलीघरों में औसतन 13 दिन के कोयला का स्टॉक था, जो अब चार दिन का रह गया है। सरकार का निर्देश है कि बिजलीघरों के पास कम से कम 14 दिन का कोयला रहना चाहिए। गत 4 अक्तूबर को देश के 16 बिजलीघरों के पास एक दिन का स्टॉक भी नहीं बचा था। इन 16 बिजलीघरों की क्षमता 17,475 मेगावॉट की है। इनके अलावा 45 बिजलीघरों के पास, केवल दो दिन का कोयला था। इनकी क्षमता 59,790 मेगावॉट है।

बिजली-उत्पादन करने वाले आधे से अधिक बिजलीघरों को सावधान कर दिया गया है। बिजली मंत्री आरके सिंह का कहना है कि हम नहीं कह सकते कि अगले पांच-छह महीने में राहत मिलेगी या नहीं। हाँ इतना स्पष्ट है कि पिछले एक सप्ताह से हालात बेहद खराब हैं। देश में 40 से 50 गीगावॉट (एक गीगावॉट में 1000 मेगावॉट होते हैं) बिजली का उत्पादन करने वाले ताप बिजलीघरों अब केवल तीन दिन का स्टॉक बचा है।

 देश में कोयले से बिजली उत्पादन क्षमता 203 गीगावॉट है। इसमें से 70 फीसदी बिजली कोयले से पैदा होती है। अगले कुछ साल में देश में बिजली की मांग काफी बढ़ने वाली है। कई केंद्रीय मंत्रालय इस वक्त कोल इंडिया और एनटीपीसी के साथ मिलकर कोयला खदानों का उत्पादन बढ़ाने के उपायों पर विचार कर रहे हैं। फिलहाल कोयला खनन कंपनियां उन्हीं कंपनियों को पहले कोयला देंगी, जिन्होंने बकाये का भुगतान कर दिया है।

बिजली संकट के पीछे एक वजह कोरोना भी है जिसके कारण दफ्तर के काम से लेकर अन्य काम घर से ही निपटाए जा रहे थे और लोगों ने इस दौरान बिजली का काफी इस्तेमाल किया। दूसरे हर घर को बिजली देने का लक्ष्य भी एक कारण है। ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में बिजली की कुल खपत 10 हजार 660 करोड़ यूनिट  प्रति महीना थी। अब 2021 में बढ़कर यह 12 हजार 420 करोड़ यूनिट प्रति महीने है।