यूक्रेन के ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र
में शुक्रवार तड़के रूसी हमले के कारण आग लग गई। अब यह बंद है और रूसी कब्जे में
है। हालांकि आग बुझा ली गई है,
पर इससे संभावित खतरों पर रोशनी पड़ती
है। यूक्रेन दुनिया के उन देशों में शामिल हैं,
जो
आधी से ज्यादा बिजली के लिए नाभिकीय ऊर्जा पर निर्भर हैं। जरा सी चूक से पूरे
यूरोप पर रेडिएशन का खतरा मंडरा रहा है। रूस गारंटी चाहता है कि यूक्रेन,
नाटो के पाले में नहीं जाएगा। वस्तुतः उसकी यह लड़ाई यूक्रेन के साथ
नहीं,
सीधे अमेरिका के साथ है। पर उसके सामने इस
लड़ाई की फौजी और डिप्लोमैटिक दोनों तरह की कीमत चुकाने के जोखिम भी हैं। इस हमले
से केवल विश्व-शांति को ठेस ही नहीं लगी है,
बल्कि
दूसरे सवाल भी खड़े हुए हैं,
जिनके दूरगामी असर होंगे। पहला असर
आर्थिक है। पेट्रोलियम की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गई हैं। अंदेशा है
कि भारत में पेट्रोल की कीमतें 12 से 15 रुपये की बीच बढ़ेंगी। दूसरी उपभोक्ता
सामग्री की कीमतें भी बढ़ेंगी। रूस पर आर्थिक-बंदिशों का असर भी हमपर पड़ेगा।
दुनिया के शक्ति-संतुलन में बुनियादी बदलाव होंगे,
जिनसे
हम भी प्रभावित होंगे।
भारत पर दबाव
आर्थिक परेशानियों के अलावा भारत के सामने
विदेश-नीति को स्वतंत्र और दबाव-मुक्त बनाए रखने और यूक्रेन में फँसे भारतीय
नागरिकों को बाहर निकालने की चुनौतियाँ हैं। काफी छात्रों को निकाला जा चुका है और
बाकी को अगले कुछ दिन में निकाल लिया जाएगा। यह मसला विदेश-नीति से ज्यादा स्थानीय
राजनीति का विषय है। यह समस्या तब खड़ी हुई है, जब
उत्तर प्रदेश के चुनाव अंतिम चरण में थे। ऐसे वीडियो वायरल हुए, जिनसे सरकार की अक्षमता उजागर हो। भारत ने संरा में हुए मतदानों से
अलग रहकर तटस्थ बने रहने की कोशिश जरूर की है, पर
इसे ज्यादा समय तक चलाने में दिक्कत होगी। इसका पहला संकेत गुरुवार को हुई क्वॉड
देशों की वर्चुअल बैठक में मिला। इसमें जो बाइडन ने यूरोप में सुरक्षा और यूक्रेन
युद्ध का मुद्दा उठाया। बैठक के बाद एक संयुक्त बयान भी जारी किया गया, लेकिन भारत के पीएमओ ने अलग से भी एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि क्वाड को अपने उद्देश्यों पर ही केंद्रित रहना
चाहिए।
चीन-फैक्टर
भारत ने रूसी हमले की निंदा नहीं की है,
पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति के बयान को
ध्यान से पढ़ें। उन्होंने कहा है कि संरा चार्टर, अंतरराष्ट्रीय
कानूनों और राष्ट्रीय सम्प्रभुता का सम्मान होना चाहिए। ये तीनों बातें रूसी
कार्रवाई की ओर इशारा कर रही हैं। रूस और चीन का साझा यदि दीर्घकालीन है, तो भारतीय दृष्टिकोण बदलेगा। भारत और चीन दीर्घकालीन प्रतिस्पर्धी
हैं। बदलते वैश्विक-परिप्रेक्ष्य में निर्भर यह भी करेगा कि रूस अपने उद्देश्यों
में किस हद तक सफल होता है। हाल में अमेरिका के साथ भारत के जो सामरिक रिश्ते बने
हैं, वे टूट नहीं जाएंगे। इन सब बातों को हमें
दूरगामी पहलुओं से सोचना चाहिए। एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि यूरोप
में तनाव को देखते हुए अमेरिका शायद चीन के प्रति अपने रुख को नरम करे। शायद इसी
वजह से अमेरिका क्वॉड को यूक्रेन से जोड़ना चाहता है। इन शायद और किन्तु-परन्तुओं
का जवाब कुछ देर से मिलेगा।
रूसी-कूच की गति धीमी
यूक्रेन की स्थिति का अनुमान लगाना आसान भी
नहीं है। पश्चिमी और रूसी मीडिया की सूचनाएं एक-दूसरे की विरोधी हैं। अलबत्ता लगता
है कि रूसी सेना का कूच धीमा पड़ा है। पूर्वोत्तर से सैनिक ट्रकों का करीब 64
किलोमीटर लम्बा काफिला राजधानी कीव की तरफ बढ़ता देखा गया है, पर छह दिन में वह गंतव्य पर पहुँच नहीं पाया है। इस क़ाफ़िले की
सैटेलाइट से ली गई तस्वीरें 28 फ़रवरी को सामने आई थीं। इसके धीमे पड़ने की वजह यह
है कि रूसी सेना ने इन ट्रकों-टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों के लिए ईंधन, रसद, स्पेयर पार्ट्स और भोजन-पानी की जो
व्यवस्था की है, वह चरमरा रही है। ब्रेकडाउन समस्या बन
रहा है। यूक्रेन के नागरिकों ने भी हथियार हासिल कर लिए हैं, जो प्रतिरोध कर रहे हैं। पश्चिमी देशों के भाड़े या ठेके के सैनिकों
ने भी मोर्चा संभाल रखा है। अमेरिका को पता था कि रूस किसी दिन हमला करेगा।
अफगानिस्तान के अनुभव के बाद अमेरिका ने यूक्रेन में इस काउंटर-रणनीति को इस्तेमाल
किया है। अमेरिका के रिटायर्ड फौजी अधिकारियों की कम्पनी ब्लैकवॉटर या एकेडमी नाम
से काम करती है। खबरें है कि ब्लैकवॉटर के सैनिक यूक्रेन के नागरिकों को ट्रेनिंग
दे रहे हैं। अमेरिका ने बड़ी संख्या में स्टिंगर, जैवलिन
और दूसरे किस्म मिसाइलें और छोटे रॉकेट इन्हें उपलब्ध कराए हैं, जिनसे विमानों और टैंकों को निशाना बनाया जा सकता है। शहरी इमारतों
से आगे बढ़ते टैंकों को निशाना बनाया जा रहा है।