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Monday, September 17, 2012
बोलने की आज़ादी और देशद्रोह
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Tuesday, September 11, 2012
देशप्रेम, देशद्रोह या सिर्फ राजनीति
कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शोर ज्यादा हुआ। अखबारों में खबरें तो हैं, पर विचार कम हैं। खासतौर से देशद्रोह के आरोप को लेकर अधिकतर हिन्दी अखबारों ने टिप्पणियाँ भी नहीं की हैं। असीम त्रिवेदी के मसले में तीन बातें हैं। एक तो वे राजनीतिक एक्टिविस्ट हैं। दूसरे कार्टूनिस्ट के रूप में उनकी अभिव्यक्ति का मामला है और तीसरे उनके खिलाफ देशद्रोह का आरोप है। असीम को अपनी देशभक्ति का विश्वास है और सरकार को लगता है कि वे व्यवस्था की आलोचना करते हैं इसलिए देशद्रोही हैं। कविता के रूपकों में हमने भारत माता का अपमान करती परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया, पर कार्टून का रूपक हमें स्वीकार नहीं। भारत माता के गैंग रेप को दिखाकर असीम ने गैंग रेप का समर्थन किया है या एक परिस्थिति की ओर पाठकों का ध्यान खींचा है? भेड़ियों का रूपक क्या राष्ट्रीय चिह्न के सम्मान की रक्षा के लिए है या राष्ट्रीय चिह्न पर हमला है? ऐसा ही संविधान के बाबत है। असीम का इरादा संविधान की रक्षा का है या अपमान करने का? चूंकि चित्र बनाया है इसलिए अपमान किया है माना जाए या यह माना जाए कि देश को शीशा दिखाया है? ऐसे तमाम सवाल है। इन सवालों पर 11 सितम्बर के अखबारों की कुछ सम्पादकीय टिप्पणियाँ यहाँ पेश हैं।
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