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Wednesday, March 2, 2016

इरोम शर्मीला और हमारा असमंजस

देश का मीडिया जिस रोज आम बजट पर चर्चा कर रहा था उसी दिन एक खबर थी जो चैनलों और अखबारों के किनारे पर रही हो तो अलग बात है, सुर्खियों में नहीं थी। मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मीला को इम्फाल की एक अदालत के आदेश के बाद सोमवार को न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया गया। खबर यह भी थी कि अस्पताल के वॉर्ड से निकल कर शर्मीला शहीद मीनार में फिर से अनशन पर जा बैठीं।

सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को खत्म करने की मांग को लेकर उनके अनशन के 15 साल पिछले नवम्बर में पूरे हुए हैं। अनोखा है उनका आंदोलन और अनोखी है उनकी प्रतिबद्धता। पर दूसरी ओर इस आंदोलन से जुड़े मसले भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। क्या दोनों बातों के बीच कोई समझौता हो सकता है? सवाल यह भी है कि हम पूर्वोत्तर को लेकर कितने संवेदनशील हैं। पूर्वोत्तर के साथ मुख्यधारा के भारत का यह द्वंद कई सौ साल पुराना है।