देवयानी खोब्रागडे के मामले को लेकर हमारे मीडिया में जो
उत्तेजक माहौल बना उसकी जरूरत नहीं थी. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता था. इसे
भारत-अमेरिका रिश्तों के बनने या बिगड़ने का कारण मान लिया जाना निहायत नासमझी
होगी. दो देशों के रिश्ते इस किस्म की बातों से बनते-बिगड़ते नहीं है. भारत में इस
साल चुनाव होने हैं और यह मामला बेवजह गले की हड्डी बन सकता है. सच यह है कि यह एक
बीमारी का लक्षण मात्र है. बीमारी है संवेदनशील मसलों की अनदेखी. बेहतर होगा कि हम
बीमारी को समझने की कोशिश करें. हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर
केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए.