इंचियॉन के एशिया खेलों में जब भारत की टीम जा रही थी तब
उम्मीद ज़ाहिर की गई थी कि सन 2010 के ग्वांगझो एशियाड के मुकाबले इस बार हमारे
खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करेंगे। ग्वांगझो में हमें कुल 65 मेडल मिले थे। एशिया
खेलों में वह हमारा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इसके पहले सन 1982 के
दिल्ली एशियाड में हमें 57 मेडल मिले थे। पहले एशिया खेल सन 1951 में दिल्ली में
हुए थे। तब पदक तालिका में हम 51 मेडलों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि 60
मेडलों के साथ जापान पहले स्थान पर रहा। 1982 में कुल 57 मेडलों के साथ हम पाँचवें
पर, 2010 में छठे पर और इस बार 57 मेडलों के साथ हम आठवें स्थान पर रहे। 342
मेडलों के साथ चीन का पहला नम्बर रहा।
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Monday, October 6, 2014
Thursday, January 23, 2014
फंदे में फँसी 'आप'
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन
के सिलसिले में चौरी चौरा का नाम अक्सर सुनाई पड़ता है, जब महात्मा गांधी ने
आंदोलन के हिंसक हो जाने के बाद उसे वापस ले लिया था। हिंसा से आहत गांधी ने सविनय
अवज्ञा आंदोलन को स्थगित कर दिया, जो बारदोली से शुरू होने वाला था। गांधी की
राजनीति दीर्घकालीन थी। उसमें साधन और साध्य की एकता को साबित करने की इच्छा थी। लगता
है कि अरविंद केजरीवाल को किसी बात की जल्दी है। उनके दो दिन के आंदोलन के दौरान
एक बात साफ दिखाई पड़ी कि वे जितना करते हैं उससे ज्यादा दिखाते हैं। केंद्र सरकार
की भी किरकिरी हो रही थी, इसलिए ‘आप’ को नाक बचाने का मौका दिया। और केजरीवाल ने शुक्रिया के
अंदाज में इसे ‘महान विजय’ घोषित कर दिया।
Saturday, December 14, 2013
राजनीति के ढलते-उगते सूरज
पिछले साल उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में
भारी सफलता पाने के बाद मुलायम सिंह का अनुमान था कि लोकसभा चुनाव समय से पहले
होंगे। उस अनुमान में उनकी राजनीति भी छिपी थी। उन्हें लगता था कि आने वाला वक्त
लोकसभा में उनकी पार्टी को स्थापित करेगा। इसी उम्मीद में उन्होंने खुद को
केंद्रीय राजनीति के साथ जोड़ा। ऐसा अनुमान ममता बनर्जी और जयललिता का भी था। छह
महीने पहले तक लगता था कि केंद्र सरकार 2013 के विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा
चुनाव भी कराएगी। ऐसा नहीं हुआ तो सरकार के लिए दिक्कत पैदा होंगी। दीवार पर लिखा
था कि उत्तर भारत की विधान सभाएं कांग्रेस के लिए अच्छा संदेश लेकर नहीं आने वाली
हैं। झटका लगा तो फिर ‘रिपल इफैक्ट’ रुकेगा नहीं। शायद
कांग्रेस अपने ‘गेम चेंजर’ का असर देखने के लिए कुछ समय चाहती थी।
Monday, November 25, 2013
चुनाव रैलियों में भीड़ क्यों नहीं जाती?
जयपुर का रामलीला मैदान अपेक्षाकृत छोटा है। तकरीबन बीस
हजार वर्ग फुट क्षेत्र में मंच की जगह छोड़ने के बाद ज़मीन पर बैठें तो छह हजार के
आसपास दर्शक आएंगे। गुरुवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जयपुर सभा जान-बूझकर
रामलीला मैदान में रखी गई थी। आयोजकों ने मैदान में तीन हज़ार कुर्सियाँ फैलाकर
लगाई थीं। मनमोहन सिंह के नाम पर यों भी भीड़ नहीं उमड़ती। उम्मीद थी कि शहर के बीच
में होने के कारण और फिर देश के प्रधानमंत्री के नाम पर कुछ लोग तो आएंगे।ऐसा हुआ
नहीं। तकरीबन 1200 सुरक्षा कर्मियों की उपस्थिति के बावज़ूद मैदान भरा नहीं था।
हाल में नरेंद्र मोदी की भोपाल-रैली में भी भीड़ उम्मीद से
काफी कम थी। दो महीने पहले इसी जगह पर नरेंद्र मोदी को सुनने के लिए लाखों लोग जमा
हो गए थे। इस बार पाँच-छह हज़ार के आसपास थे। सागर, छतरपुर और गुना में हुई उनकी
रैलियों में भी उम्मीद से कम लोग थे। हाल में दिल्ली में राहुल गांधी की सभा में
दर्शक भाषण शुरू होने के पहले ही खिसकने लगे। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हाथ
जोड़कर निवेदन करना पड़ा, कृपया रुक जाएं। मोदी और राहुल की सभाओं का यह हाल है तो
बाकी का क्या होगा? खबर है कि भोजपुर में सुषमा स्वराज, अरुण जेटली,
शमशाबाद में मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं की सभाओं से भीड़
नदारद थी। शरद यादव ने पेटलावद में हेलिकॉप्टर से झांककर देखा तो सौ लोग भी नहीं
थे और वे आसमान में ही वापस थांदला लौट गए। उनकी जबलपुर सभा में भी लोग काफी कम थे।
अब लोग हेलिकाप्टर देखने भी नहीं आते।
Saturday, October 26, 2013
भावनाओं के भँवर में गोते लगाते राहुल
लगता है कि राहुल गांधी के भाषणों को लिखने वाले या उनके इनपुट्स तय करने वाले तीन-चार दशक पुरानी परम्परा के हिसाब से चल रहे हैं। उन्हें लगता है कि नेता जो बोल देगा उसका तीर सीधे निशाने पर जाकर लगेगा। उसके बाद अहो-अहो कहने वाली मंडली उस बात को आसमान पर पहुँचा देगी। मुज़फ्फरनगर के युवाओं के पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों के सम्पर्क में आने वाली बात कह कर राहुल ने नासमझी का परिचय दिया है। नरेन्द्र मोदी के हाथों उनकी फज़ीहत हुई सो अलग किसी दूसरे समझदार व्यक्ति को भी यह बात समझ में नहीं आएगी। उन्हें अपने भाषणों में सावधानी बरतनी होगी।
राहुल गांधी अपने राजनीतिक जीवन के बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। निर्णायक रूप से उनके सफल या विफल होने में अभी कुछ महीने बाकी हैं, पर अंतर्विरोध उजागर होने लगे हैं। उनकी विश्व-दृष्टि और राजनीतिक मिशन को लेकर सवाल उठे हैं। अपनी पार्टी का भविष्य वे किस रूप में देख रहे हैं और इसमें व्यक्तिगत रूप से वे क्या भूमिका निभाना चाहते हैं? ऐसे समय में जब उन्हें दृढ़-निश्चयी, सुविचारित और सुलझे राजनेता के रूप में सामने आना चाहिए, वे संशयी और उलझे व्यक्ति के रूप में नज़र आ रहे हैं। पहले अपनी माँ, फिर पिता, फिर दादी का ज़िक्र करते वक्त बेशक वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं और इसका उन्हें अधिकार है। पर इससे विसंगति पैदा होती है। उनके परिवार की त्रासदी पर पूरे देश की हमदर्दी है। वे कहते हैं कि उन्होंने मेरे पिता को मारा, मेरी दादी की हत्या की और शायद एक दिन मेरी भी हत्या हो सकती है। ऐसा कहते ही वे अपने पारिवारिक अंतर्विरोधों का पिटारा खोल रहे हैं।
राहुल गांधी अपने राजनीतिक जीवन के बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। निर्णायक रूप से उनके सफल या विफल होने में अभी कुछ महीने बाकी हैं, पर अंतर्विरोध उजागर होने लगे हैं। उनकी विश्व-दृष्टि और राजनीतिक मिशन को लेकर सवाल उठे हैं। अपनी पार्टी का भविष्य वे किस रूप में देख रहे हैं और इसमें व्यक्तिगत रूप से वे क्या भूमिका निभाना चाहते हैं? ऐसे समय में जब उन्हें दृढ़-निश्चयी, सुविचारित और सुलझे राजनेता के रूप में सामने आना चाहिए, वे संशयी और उलझे व्यक्ति के रूप में नज़र आ रहे हैं। पहले अपनी माँ, फिर पिता, फिर दादी का ज़िक्र करते वक्त बेशक वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं और इसका उन्हें अधिकार है। पर इससे विसंगति पैदा होती है। उनके परिवार की त्रासदी पर पूरे देश की हमदर्दी है। वे कहते हैं कि उन्होंने मेरे पिता को मारा, मेरी दादी की हत्या की और शायद एक दिन मेरी भी हत्या हो सकती है। ऐसा कहते ही वे अपने पारिवारिक अंतर्विरोधों का पिटारा खोल रहे हैं।
Tuesday, October 1, 2013
क्या यह शुद्धीकरण का श्रीगणेश है?
चारा मामले में लालू यादव के अपराधी घोषित होने के बाद एक सवाल
मन में आता है कि क्या राहुल गांधी के दिमाग में कहीं बिहार की भावी राजनीति का नक्शा
तो नहीं था? उन्होंने यह सब सोचा हो या न सोचा हो, पर नीतीश
कुमार ने राहुल के वक्तव्य का तपाक से स्वागत किया। चारा घोटाले में उनके भी एक सांसद
शहीद हुए हैं, पर लालू की शिकस्त उनकी विजय है। अब राजनेताओं का गणित नए सिरे से बनेगा
और बिगड़ेगा। सीबीआई की राजनीतिक भूमिका और रंग लाएगी। सुप्रीम कोर्ट का 10 जुलाई का
फैसला दुधारी तलवार है, जिससे दोनों ओर की गर्दनें कटेंगी। राहुल गांधी की मंशा न जाने
क्या थी, पर निशाने पर मनमोहन सिंह भी आ गए हैं। उनका सीना भी जख्मी है। लालू का मामला
एक ओर सुधरती व्यवस्था को लेकर आश्वस्त करता है, वहीं राजनीति में बढ़ने वाले सम्भावित
अंतर्विरोधों की ओर इशारा भी कर रहा है।
चुनाव के इस दौर में राजनीति का रथ गहरे ढलान पर उतर गया है।
देखना यह है कि समतल पर पहुँचने के पहले इसके कितने चक्के बचेंगे। पिछले शुक्रवार को
राहुल ने जो कुछ कहा उससे उनकी राजनीति का कच्चापन सामने आता है। वे व्यवस्थावादी हैं,
यानी सिस्टम की बात करते हैं, व्यक्ति की नहीं। दूसरी नेता के रूप में उन्होंने शासन-व्यवस्था
को ढेर कर दिया। वे सत्ता के भीतर हैं या बाहर यह समझ में नहीं आता। शुद्धतावादी हैं
या व्यावहारिक राजनीति के क्रमबद्ध सुधार के समर्थक? उन्होंने जो लक्ष्मण रेखा खींची है उसे लाँघना सरकार के लिए मुश्किल होगा।
पर लालू इस ‘राहुल रेखा’ की पहली कैजुअल्टी
हैं। इससे बिहार का ही नहीं आने वाले समय की केन्द्रीय राजनीति का गणित बिगड़ेगा। राजनीति
का गटर फिर भी साफ नहीं होगा। पिछले तीन साल की उथल-पुथल के बावजूद व्यवस्था-सुधार
की सारी बातें पीछे रह गईं हैं। लोकपाल कानून, ह्विसिल ब्लोवर कानून, सिटिजन चार्टर
और चुनाव सुधार कहाँ चले गए?
Friday, June 14, 2013
खेल जब पेशा है तो ‘फिक्सिंग’ भी होगी
खेल को पेशा बनाने का नतीजा |
सतीश आचार्य का कार्टून |
स्पॉट फिक्सिंग मामले में जेल से छूटने के बाद एस श्रीशांत ने
कहा कि मैं इस प्रकरण को कभी नहीं भूलूँगा। इसने मुझे कई चीजें सिखाई हैं। श्रीशांत,
अंकित चह्वाण और अजित चंडीला को एक आप खारिज कर दीजिए, भर्त्सना कीजिए। पर सब जानते
हैं कि इस पापकर्म के वे सूत्रधार नहीं हैं। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी इन्होंने मारी
है। इनके पास इज़्जत, शोहरत और पैसे की कमी नहीं थी। खेल जीवन में यह सब इन्हें मिलता।
फिर भी इन्होंने अपना करियर चौपट करना मंज़ूर किया। किस लालच ने इन्हें इस गलीज़ रास्ते
पर डाला? उसी क्रिकेट ने जिसे यह खेल समझ कर आए थे। हमारे
जीवन में पहले से मौज़ूद ‘फिक्सिंग’ शब्द
को आईपीएल ने नया आयाम दिया है। यह अति उत्साही कारोबारियों का कमाल है, जिन्होंने
सब देखा उस गड़्ढे को नहीं देखा जिसपर उनके कदम पड़ चुके हैं।
Friday, November 23, 2012
टू-जी नीलामी के पेचो-खम
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
कपिल सिब्बल की बात जायज़ है। पर सीएजी सांविधानिक संस्था है। उसकी आपत्ति केवल राजस्व तक सीमित नहीं थी। अब नीलामी में तकरीबन उतनी ही रकम मिलेगी, जितनी ए राजा ने हासिल की थी। इतने से क्या राजा सही साबित हो जाते हैं? सवाल दूसरे हैं, जिनसे मुँह मोड़ने का मतलब है राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करना। सन 2007 या 2008 में नीलामी हुई होती तो क्या उतनी ही कीमत मिलती, जितनी अब मिल रही है? यह भी कि सीएजी 1.76 लाख करोड़ के फैसले पर कैसे और क्यों पहुँचे? यह सवाल भी है कि प्राकृतिक सम्पदा का व्यावसायिक दोहन सरकार और उपभोक्ता के हित में किस तरीके से किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी कहा है कि नीलामी अनिवार्य नहीं है। दूसरे तरीकों का इस्तेमाल भी होना चाहिए।
Friday, August 3, 2012
किसने बिगाड़ा हमारा खेल
हिन्दू में केशव का कार्टून |
किसने सोख ली हमारी खेल प्रतिभा?
दो-दो एटम बमों से तबाह जापान ने विश्व युद्द के बाद बीस साल में जो चमत्कार किया उसे दिखाने के लिए उसने 1964 के तोक्यो ओलंपिक खेलों का इस्तेमाल किया। उस मौके का प्रतीक थी बुलेट ट्रेन जो ओलंपिक के मौके पर शुरू की गई थी। दूसरा विश्वयुद्ध न रोकता तो 1940 के ओलंपिक तोक्यो में होते। बहरहाल खेल और समाज का रिश्ता है। इस रिश्ते को जापान के बाद 1988 में दक्षिण कोरिया ने और 2008 में चीन ने शोकेस किया। ऐसी ही कोशिश 2010 के कॉमनवैल्थ गेम्स के मार्फत भारत ने की थी। सब कुछ ठीक रहता तो 2020 के ओलंपिक खेल भारत में कराने की पहल होती। पर अब ऐसा सम्भव नहीं है। 2016 के खेल ब्राज़ील में होंगे जिसे इस वक्त नई अर्थव्यवस्थाओं में भारत के साथ खड़ा किया जाता है। 2020 के खेल कहाँ होंगे इसका फैसला अगले साल सितम्बर में होगा। दावेदारों में इस्तांबूल और मैड्रिड के साथ तोक्यो भी है, भारत नहीं।
Friday, February 10, 2012
हाइपर मीडिया और हमारे स्टार
अभी पिछले दिनों यह खौफनाक खबर आई कि युवराज के सीने में कैंसर पनप रहा है। साथ में दिलासा भी थी कि इस बीमारी का इलाज संभव है। एक बेहतरीन खिलाड़ी, जिसने देश का सम्मान कई बार बनाया और बचाया अचानक संकट में आ गया। हम सब हैरान और परेशान हैं। इस हैरानी के बरक्स अचानक युवराज खबरों में आ गए। युवराज ही नहीं उनके फिजियो, फिजियो की डिगरी, युवराज के पिताजी, जोकि खुद भी क्रिकेटर रह चुके हैं और डॉक्टर तमाम लोग टीवी पर शाम के शो में उतर आए। और उसके बाद? उत्तर प्रदेश में मतदान की खबरें आने लगीं। कैमरा पैन कर दिया गया। विषय बदल गया, सरोकार बदल गए। युवराज की खबर पीछे चली गई, और सियासी समर की खबरें परवान चढ़ने लगीं।
Thursday, January 19, 2012
भारतीय उम्मीदों का 'आकाश'
दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने तय किया है कि वह अपने स्कूल के छात्रों को आकाश टेबलेट पीसी मुफ्त में देगा। एमसीडी के 1740 स्कूलों में इस वक्त 9,42,135 बच्चे पढ़ने जाते हैं। इस काम पर 45 करोड़ रुपया खर्च करने की योजना बनाई गई है। देश में इस वक्त तकरीबन 22 करोड़ बच्चे स्कूल या कॉलेजों में पढ़ते हैं। भारत सरकार की योजना है कि अगले कुछ साल में इन सभी को आकाश पर काम करने का मौका मिलेगा। जिन बच्चों के पास अपना कम्प्यूटर नहीं होगा तो उन्हें स्कूल या कॉलेज की लाइब्रेरी से इसे हासिल करने का मौका मिलेगा।
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