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Monday, January 17, 2022

ओमिक्रॉन की धुआँधार तेजी के बाद अब बचाव का रास्ता क्या है?

ताजा खबर है कि ओमिक्रॉन के बाद एक नया वेरिएंट और सामने आया है, जो डेल्टा और ओमिक्रॉन का मिला-जुला रूप है। इसकी खबर सायप्रस से आई है। युनिवर्सिटी ऑफ सायप्रस के बायलॉजिकल साइंसेज़ के प्रोफेसर लेंडियस कोस्त्रीकिस ने इसकी जानकारी दी है, जिसके 25 केस सामने आए हैं। इसका नाम इन्होंने डेल्टाक्रॉन रखा है। बहरहाल यह एकदम शुरूआती जानकारी है, जिसकी पुष्टि अगले कुछ दिनों में होगी। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि लैब में सैम्पलों की मिलावट से भी ऐसा हो सकता है।

भारत में एक हफ्ते में रोजाना आ रहे संक्रमण दस हजार से बढ़कर एक लाख और फिर देखते ही देखते दो लाख की संख्या पार कर गए हैं। दूसरे दौर के पीक पर यह संख्या चार लाख से कुछ ऊपर तक पहुँची थी। उसके बाद गिरावट शुरू हुई थी। दूसरे देशों में भारत की तुलना में तीन से चार गुना गति से संक्रमण बढ़ रहा है। यह इतना तेज है कि विशेषज्ञों को विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त डेटा हासिल करने तक का समय नहीं मिल पाया है। रोजाना तेजी से मानक बदल रहे हैं।

हालात सुधरेंगे या बिगड़ेंगे?

अब तक का निष्कर्ष है कि वेरिएंट बी.1.1.529 यानी ओमिक्रॉन का संक्रमण भले ही तेज है, पर इसका असर कम है। इसका मतलब क्या हुआ?  क्या यह महामारी खत्म होने का लक्षण है या किसी नए वेरिएंट की प्रस्तावना? क्या अगले वेरिएंट का संक्रमण और तेज होगा?  ज्यादातर विशेषज्ञ मानकर चल रहे हैं कि यह पैंडेमिक नहीं एंडेमिक बनकर रहेगा। पिछले दो साल का अनुभव है कि आप मास्क लगाएं, दूरी रखकर बात करें और हाथ धोते रहें, तो बचाव संभव है।

भारत में आईआईटी कानपुर, आईआईटी हैदराबाद तथा कुछ अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञ मिलकर गणितीय मॉडल सूत्रपर काम कर रहे हैं। सूत्र का अनुमान है कि इसबार हर रोज की पीक संख्या चार से आठ लाख तक हो सकती है। इससे जुड़े विशेषज्ञ आईआईटी कानपुर के मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा है कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका दिल्ली और मुम्बई में हो रहे तेज संक्रमण की होगी। इन दोनों शहरों में पीक भी जनवरी के मध्य तक यानी इन पंक्तियों के प्रकाशन तक हो जाना चाहिए, जबकि शेष देश में फरवरी में पीक संभव है।

Tuesday, January 11, 2022

अफरा-तफरी नहीं, धैर्य से सामना कीजिए ओमिक्रॉन का


ओमिक्रॉन-संक्रमण जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए किसी एक संख्या पर उँगली रखना मुश्किल है। कई राज्यों ने आंशिक लॉकडाउन शुरू कर दिया है। दिल्ली में स्कूल, कॉलेज, जिम, सिनेमा हॉल बंद हैं। मेट्रो-बसों में यात्रियों की संख्या सीमित की गई है। रात 10 से सुबह 5 बजे तक नाइट कर्फ्यू है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने रविवार को राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ ऑनलाइन बैठक की और नए निर्देश जारी किए हैं।

भारत में ओमिक्रॉन का पहला मरीज दक्षिण अफ्रीका से आया था। इसके कुछ दिन बाद वह दुबई चला गया। इसके बाद यह बात चर्चा का विषय बनी कि जब दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर कई देश रोक लगा चुके हैं तो भारत इसे क्यों नहीं रोक रहा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा मुंबई और तेलंगाना समेत कई राज्यों ने जोखिम वाले देशों से यात्रा बंद करने की मांग की। पश्चिम बंगाल सरकार ने ब्रिटेन से कोलकाता आने वाली उड़ानों को निलंबित करने का फैसला किया है।

Monday, January 3, 2022

ओमिक्रॉन की पहेली, कितना खतरनाक?


कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का असर अब अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, एशिया और यूरोप समेत करीब 100 देशों पर दिखाई पड़ रहा है। अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (आईएचएमई) का अनुमान है कि अगले दो महीने में इससे संक्रमित लोगों की संख्या तीन अरब के ऊपर पहुँच जाएगी। यानी कि दुनिया की आधी आबादी से कुछ कम। यह संख्या पिछले दो साल में संक्रमित लोगों की संख्या से कई गुना ज्यादा होगी।

डरावना माहौल

पता नहीं ऐसा होगा या नहीं, पर सामान्य व्यक्ति के मन में इससे डर पैदा होता है। खतरा इतना बड़ा है, तो वैश्विक आवागमन को फौरन क्यों नहीं रोका जा रहा है? इस दौरान दो तरह की बातें सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का एक वर्ग कह रहा है कि ओमिक्रॉन का दुष्प्रभाव इतना कम है कि बहुत से लोगों को पता भी नहीं लगेगा कि वे बीमार हुए थे। दूसरी तरफ ऐसे विशेषज्ञ भी हैं, जो मानते हैं कि इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह भी पहले जैसा खतरनाक है।

इस दौरान वैक्सीन कंपनियाँ भी अपने टीकों में बदलाव कर रही हैं, पर वैक्सीन के वितरण में असमानता बदस्तूर है। क्या पिछले दो साल की तबाही से हमने कोई सबक नहीं सीखा है? कोविड-19 का सबक है कि महामारी जितनी देर टिकेगी, उतने म्यूटेंशंस-वेरिएशंस होंगे। वैक्सीनेशन में देरी का मतलब है म्यूटेशंस बढ़ते जाना। इसमें दो राय नहीं कि ओमिक्रॉन का संक्रमण बहुत तेज है। ब्रिटेन में हर दो दिन में इसके केस दुगने हो रहे हैं। इसका आर-रेट 3.5 है।

Sunday, January 2, 2022

उम्मीदों पर हावी असमंजस


नए साल की शुरुआत वैष्णो देवी परिसर में हुई दुखद दुर्घटना के साथ हुई है। कुछ समय पहले लगता था कि 2022 का साल संभावनाओं और समाधानों को लेकर आएगा, पर आज यह कोहरे में लिपटी धूप जैसा है। खट्टा-मीठा या गुनगुना सा एहसास है। शुरुआत एक नए वैश्विक-असमंजस के साथ हुई है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (आईएचएमई) का अनुमान है कि अगले दो महीने में कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों की संख्या तीन अरब के ऊपर पहुँच जाएगी। तीन अरब यानी दुनिया की आधी आबादी से कुछ कम। यह संख्या पिछले दो साल में संक्रमित लोगों की कुल-संख्या से कई-कई गुना ज्यादा है।

तीन चुनौतियाँ

भारत के सामने इस साल तीन बड़ी चुनौतियाँ हैं। ओमिक्रॉन, अर्थव्यवस्था और चुनाव। महामारी का तीनों से रिश्ता है। पिछले साल अप्रेल-मई में दूसरी लहर का जैसा कहर बरपा हुआ, उसे याद करके डर लगता है। भारत को इस बात का श्रेय भी जाता है कि उसने हालात का काबू में करके दिखाया, पर क्या आगामी चुनौती का सामना हम कर पाएंगे?   

भारत की आजादी के 75वें साल का समापन इस साल होगा। यह ऐतिहासिक वर्ष है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की भविष्यवाणी है कि इस साल भारत की पूरे वेग के साथ वापसी होने वाली है। दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2024-25 तक हम देश को पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देंगे। फिलहाल ऐसा होता लग नहीं रहा है। दस फीसदी या उससे भी ज्यादा की वार्षिक दर हो, तब भी नहीं। फिर भी, शायद इस साल अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन पार कर लेगी

ओमिक्रॉन का खतरा

ओमिक्रॉन पहेली बनकर सामने आया है। यह जबर्दस्त तेजी से फैलने वाला वैरिएंट है, इसलिए खतरनाक है। पर, इसका असर काफी हल्का है, साधारण फ्लू का दशमांश। इसलिए खतरनाक नहीं है। शायद वह दुनिया को कोविड-19 से बाहर निकालने के लिए आया है। इसके बाद यह बीमारी साधारण फ्लू बनकर रह जाएगी। पर क्या यह शायद सच होगा? 

Sunday, December 12, 2021

कोरोना और वैश्विक-जागरूकता


संयोग है कि आज अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज दिवसहै और हम  ओमिक्रॉन पर चर्चा कर रहे हैं, जो सार्वभौमिक-स्वास्थ्य के लिए नए खतरे के रूप में सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिन हर साल 12 दिसंबर को मनाया जाता है। सार्वभौमिक-स्वास्थ्य वैसा ही एक अधिकार है, जैसे जीवित रहना, शिक्षा प्राप्त करना, रोजगार पाना और विचरण करना जैसे मानवाधिकार हैं। उद्देश्य सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज के बारे में जागरूकता को बढ़ाना है। इस साल की थीम हैकिसी के स्वास्थ्य की उपेक्षा न हो, सबके स्वास्थ्य पर निवेश हो। आइए दुनिया के स्वास्थ्य और उससे जुड़ी जागरूकता पर एक नजर डालें।

गरीबों को मयस्सर नहीं

दूसरे से तीसरे साल में प्रवेश कर रही महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य-कवरेज पर विचार के लिए यह उचित समय है। टीकाकरण ठीक से हुआ, तो सार्वभौमिक इम्यूनिटी पैदा हो सकती है। पर इसमें भारी असमानता वैश्विक गैर-बराबरी को रेखांकित कर रही है। टीके कारगर हैं, पर उस स्तर को नहीं छू पा रहे हैं, जिससे हर्ड इम्युनिटी पैदा हो। अमीर देशों में टीके इफरात से हैं और लगवाने वाले उनका विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ गरीब देशों में लोग टीकों का इंतजार कर रहे हैं, और उन्हें टीके मयस्सर नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि अमीर देश, वैक्सीन वितरण के लिए यूएन समर्थित ‘कोवैक्स’ पहल में मदद करने के बजाय, टीकों को अपने कब्जे में रखेंगे, तो महामारी का जोखिम बढ़ेगा।

अनैतिक-अत्याचार

तमाम नकारात्मक खबरों के बावजूद विशेषज्ञों को भरोसा है कि आने वाले साल में महामारी पर नियंत्रण पाना संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य विशेषज्ञ मारिया वान करखोव ने हाल में पत्रकारों से कहा था, महामारी को रोकने के औजार हमारे हाथों में है। जरूरत ऐसे पड़ाव पर पहुँचने की है जहाँ से कह सकें कि संक्रमण पर नियंत्रण पा लिया गया है। अब तक हम ऐसा कर भी सकते थे, पर कर नहीं पाए। अमीर देशों में करीब 65 प्रतिशत लोग टीके लगवा चुके हैं और गरीब देशों में सात प्रतिशत को टीके की कम से कम एक खुराक मिली है। यह असंतुलन अनैतिक और अत्याचार है। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुरुवार को अमीर देशों को चेतावनी दी कि वे अपने यहाँ बूस्टर शॉट्स की व्यवस्था के बारे में फिलहाल न सोचें, बल्कि गरीब देशों के लिए टीके भेजें, क्योंकि वहाँ टीकाकरण बहुत धीमा है।

जबर्दस्त असंतुलन

जनसंख्या के आधार पर देखें, तो अमीर देशों में गरीब देशों की तुलना में 17 गुना टीकाकरण हुआ है। पीपुल्स वैक्सीन अलायंस संगठन के अनुसार अकेले ब्रिटेन में तीसरे बूस्टर शॉट्स की संख्या निर्धनतम देशों के कुल वैक्सीनेशन से ज्यादा है। युनिसेफ के अनुसार 10 दिसंबर तक दुनिया के 144 देशों को कोवैक्स के माध्यम से केवल 65 करोड़ से कुछ ऊपर डोज़ मिल पाई हैं। अफ्रीका की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को पहली डोज़ भी नहीं मिल पाई है। ये गरीब देश पूरी तरह से कोवैक्स-व्यवस्था पर ही निर्भर हैं। उदाहरण के लिए हेती में 1.00, कांगो में 0.02 और बुरुंडी में 0.01 फीसदी लोगों को कम से कम एक डोज़ लगी है।