वैश्विक राजनीति और भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने के लिए समरकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के संवाद पर ध्यान देना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की आमने-सामने की बैठक ने दुनिया के मीडिया ने ध्यान खींचा है। मोदी ने प्रकारांतर से पुतिन से कह दिया कि आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है। यूक्रेन की लड़ाई बंद होनी चाहिए। पुतिन ने जवाब दिया कि मैं भारत की चिंता को समझता हूँ और लड़ाई जल्द से जल्द खत्म करने का प्रयास करूँगा। इन दो वाक्यों में छिपे महत्वपूर्ण संदेश को पढ़ें। भारत की ‘स्वतंत्र विदेश-नीति’ को रूस, चीन और अमेरिका की स्वीकृति और असाधारण सम्मान मिला है। इस साल फरवरी में रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुए संघर्ष के बाद दोनों नेताओं के बीच पहली मुलाकात थी। दोनों के बीच कई बार फ़ोन पर बातचीत हुई है।
समरकंद का संदेश
भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की
आलोचना नहीं की है, पर यह संदेश महत्वपूर्ण है। युद्ध के मोर्चे पर रूस थक रहा है।
चीन भी रूस से दूरी बना रहा है। मोदी-पुतिन वार्ता से पहले शी चिनफिंग ने भी पुतिन
से कहा कि हम युद्ध को लेकर चिंतित हैं। इस साल जनवरी-फरवरी में रूस-चीन रिश्ते
आसमान पर थे, तो वे अब ज़मीन पर आते दिखाई पड़ रहे हैं। अलबत्ता चीन का प्रभाव
मध्य एशिया के देशों पर है। उसके ‘वन बेल्ट, वन रोड’
कार्यक्रम का भारत को छोड़ सभी देश समर्थन करते हैं। संयुक्त घोषणापत्र में इसका
उल्लेख है। भारत के साथ ये देश कारोबार चाहते हैं, पर पाकिस्तान जमीनी रास्ता देने
को तैयार नहीं हैं। मोदी ने अपने वक्तव्य में पारगमन सुविधा का जिक्र किया है।
भारत की भूमिका
इस संगठन में चीन और रूस के बाद भारत तीसरा
सबसे बड़ा देश है, जिसका कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है। एससीओ भी धीरे-धीरे
दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बनता जा रहा है। भारत की दिलचस्पी अपनी ऊर्जा
की जरूरतों को पूरा करने के अलावा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में है। सम्मेलन में
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हम भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहते हैं। भारत
की अर्थव्यवस्था में इस साल 7.5 फीसदी की वृद्धि की उम्मीद है जो दुनिया की बड़ी
अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक होगी। उन्होंने मिलेट्स यानी बाजरे का भी ज़िक्र
किया और कहा, दुनिया की खाद्य-समस्या का एक समाधान यह भी है।
इसकी खेती में लागत कम होती है। इसे एससीओ देशों के अलावा दूसरे देशों में हज़ारों
साल से उगाया जाता रहा है। एससीओ देशों के बीच आयुर्वेद और यूनानी जैसी पारंपरिक औषधियों
का सहयोग बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए भारत पारंपरिक दवाओं पर एक नया एससीओ
वर्किंग ग्रुप बनाने की पहल करेगा।
अगला अध्यक्ष
भारत को एससीओ के अगले अध्यक्ष के रूप में
मनोनीत किया गया है। अगला शिखर सम्मेलन अब 2023 में भारत में होगा। एससीओ में नौ देश
पूर्ण सदस्य हैं-भारत, चीन, रूस,
पाकिस्तान, क़ज़ाक़िस्तान, किर्गिस्तान,
ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और ईरान। ईरान की सदस्यता अगले साल अप्रेल
से मानी जाएगी। तीन देश पर्यवेक्षक हैं-अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस
और मंगोलिया। छह डायलॉग पार्टनर हैं-अजरबैजान, आर्मीनिया,
कंबोडिया, नेपाल, तुर्की,
श्रीलंका। नए डायलॉग पार्टनर हैं-सऊदी अरब, मिस्र,
क़तर, बहरीन, मालदीव,
यूएई, म्यांमार। शिखर सम्मेलन में इनके अलावा
आसियान, संयुक्त राष्ट्र और सीआईएस के प्रतिनिधियों को
भी बुलाया जाता है। मूलतः यह राजनीतिक, आर्थिक और
सुरक्षा सहयोग का संगठन है, जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व
में यूरेशियाई देशों ने की थी। अप्रैल 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन,
रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान
और ताजिकिस्तान जातीय और धार्मिक तनावों को दूर करने के इरादे से आपसी सहयोग पर
राज़ी हुए थे। इसे शंघाई फाइव कहा गया था। इसमें उज्बेकिस्तान के शामिल हो जाने के
बाद जून 2001 में शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना हुई। पश्चिमी मीडिया मानता है कि
एससीओ का मुख्य उद्देश्य नेटो के बराबर खड़े होना है। भारत इसमें सबसे बड़ी
संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभर कर आ रहा है।
चीनी तेवर ढीले
चीन के तेवर ढीले पड़े हैं। एससीओ का प्रवर्तन
चीन ने किया है। वह अपने राजनयिक-प्रभाव का विस्तार करने के लिए इस संगठन का
इस्तेमाल करना चाहता है। साथ ही यह भी लगता है कि पश्चिमी देशों का दबाव उसपर बहुत
ज्यादा है। उसकी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे मंदी की ओर बढ़ रही है। समरकंद में चीनी
राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ भी मौजूद थे,
लेकिन सम्मेलन में औपचारिक भेंट के अलावा इन दोनों से पीएम मोदी की अलग से
मुलाक़ात नहीं हुई। ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाकात जरूर हुई। पर्यवेक्षकों
का अनुमान था कि पूर्वी लद्दाख के कुछ इलाकों में हाल में हुई सेनाओं की वापसी के
बाद शायद शी चिनफिंग और शहबाज़ शरीफ से उनकी सीधी बात हो। चीन और पाकिस्तान के
प्रति अपने रुख को नरम करने के लिए भारत तैयार नहीं है। भारत-चीन सीमा पर तनाव कम
करने के लिए दोनों पक्षों में कोर कमांडर स्तर पर बातचीत के 16 दौर हो चुके हैं, लेकिन
तनाव पूरी तरह कम नहीं हो सका है।
पाकिस्तान से रिश्ते
पाकिस्तान के साथ भी भारत के रिश्ते बीते कई
साल से बिगड़ते गए हैं। 2019 में पुलवामा-बालाकोट हमलों और अनुच्छेद 370 को
निष्प्रभावी बनाए जाने के बाद दोनों देशों के राजनयिकों को वापस बुला लिया गया और
सभी व्यापार संबंधों को रद्द कर दिया गया। करतारपुर कॉरिडोर के ज़रिए संबंधों को
पटरी पर लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। पिछले
साल फरवरी में नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बंद करने का समझौता हुआ था, जिसके बाद
उम्मीदें बढ़ी थीं कि दोनों के कारोबारी रिश्ते फिर से शुरू होंगे, पर पाकिस्तान
की आंतरिक राजनीति के कारण वह भी संभव नहीं हुआ। इमरान ख़ान के बाद शहबाज़ शरीफ़
जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने
के संकेत दिए थे। वे समरकंद में मौजूद थे, पर वहाँ से किसी नई पहल की खबर नहीं
मिली है।
स्वतंत्र विदेश-नीति
इस दौरान भारतीय विदेश-नीति की दृढ़ता और
स्वतंत्र-राह स्थापित हो रही है। हाल में चीनी मीडिया के हवाले से खबर थी कि चीनी
जनता मानती है कि भारत अमेरिका की पिट्ठू नहीं है, जैसाकि वहाँ की सरकार दावा करती
है। पिछले दो-तीन वर्षों में भारत ने रूस के सामने भी इस बात को दृढ़ता से रखा है
कि हमारी दिलचस्पी राष्ट्रीय-हितों में है। हम किसी के पिछलग्गू नहीं हैं और दब्बू
भी नहीं हैं। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूसी एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को
अपने यहाँ स्थापित कर लिया है। दूसरी तरफ अमेरिका को भी आश्वस्त किया है कि हम
लोकतांत्रिक मूल्यों से आबद्ध हैं और चीनी आक्रामकता से दबने को तैयार नहीं हैं।
अमेरिका ने हाल में पाकिस्तान को एफ-16 विमानों के कल-पुर्जे सप्लाई करने का फैसला
किया है, जिसका भारत ने पुरज़ोर विरोध किया है।
राष्ट्रहित सर्वोपरि
अपनी रक्षा-व्यवस्था को लेकर हम किसी प्रकार का
समझौता नहीं करेंगे। हिंद प्रशांत क्षेत्र में हम ‘क्वॉड’ में शामिल हैं। सुदूर पूर्व में जापान के साथ हमारी
दोस्ती भी बहुत मजबूत है। समरकंद सम्मेलन के एक हफ्ते पहले भारत
और जापान के बीच ‘टू प्लस टू वार्ता’ हुई है,
जिसमें कारोबारी रिश्तों के साथ-साथ सहयोग पर भी विचार किया गया। बंगाल की
खाड़ी में 11 सितंबर से शुरू हुआ जिमेक्स (जापान-इंडिया मैरीटाइम एक्सरसाइज़) नौसैनिक
युद्धाभ्यास चल रहा है, जो 22 सितंबर तक चलेगा। हर
साल होने वाले मालाबार-युद्धाभ्यास
में अब भारत और अमेरिका के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। दूसरी तरफ
भारत ने रूसी युद्धाभ्यास वोस्तोक-2022 में भी भाग लिया, जो 30 अगस्त से 5 सितंबर
तक चला। इसमें चीन भी शामिल था। इस अभ्यास में तीनों तरह के बलों का इस्तेमाल करते
हुए उसे आतंकवाद-विरोधी अभ्यास बताया गया। यह अभ्यास रूस के सुदूर पूर्व और जापान
सागर में दक्षिणी कुरील द्वीप समूह (जिस पर जापान और रूस दोनों अपना दावा करते
हैं) के निकटवर्ती क्षेत्र में हुआ था। भारत ने इस युद्धाभ्यास में गोरखा रेजिमेंट
की थलसेना की एक टुकड़ी को भेजा, पर जापान की संवेदनशीलता को देखते हुए नौसैनिक
अभ्यास से खुद को अलग रखा और अपने पोत नहीं भेजे। यह बात राजनयिक सूझ-बूझ और
स्वतंत्र विदेश-नीति को रेखांकित करती है। रूसी-चीनी गरमाहट के बावजूद हमने रूस से
किनाराकशी नहीं की।
रूस-चीन ठंडापन
दूसरी तरफ रूस और चीन
के रिश्ते कुछ महीने पहले जितने सरगर्म लग रहे थे, उतने इस समय नज़र नहीं आ रहे
हैं। इस साल के शुरु में रूस और चीन के नेताओं ने कहा
था कि हमारी दोस्ती की कोई सीमा नहीं है, पर समरकंद में रिश्ते ठंडे पड़ते दिखाई
पड़े। इस सम्मेलन में शी जिनपिंग ने यूक्रेन युद्ध का ज़िक्र भी नहीं किया। पिछले
कुछ महीनों का अनुभव है कि आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहे रूस की चीन ने किसी
किस्म की आर्थिक सहायता नहीं की। उसने रूस की सीधे तौर पर मदद करने से खुद को
रोका, ताकि अपनी अर्थव्यवस्था को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के असर से बचा सके।
पश्चिमी देशों के साथ चीन अपने रिश्ते बिगाड़ना नहीं चाहता, क्योंकि उसकी
अर्थव्यवस्था पश्चिम से जुड़ी है।
हरिभूमि में प्रकाशित