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Sunday, January 23, 2022

विषमता के चक्रव्यूह की चुनौती


जनवरी के तीसरे हफ्ते में वैश्विक महत्व की दो महत्वपूर्ण आर्थिक घटनाएं हर साल होती हैं। पहले, ऑक्सफ़ैम की वैश्विक विषमता रिपोर्ट और उसके बाद स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम का सम्मेलन। दुनिया में नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए विश्व आर्थिक फोरम की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। यह कारोबारी संस्था है, जो कॉरपोरेट दुनिया को साथ लेकर चलती है, पर नब्बे के दशक से शुरू हुए वैश्वीकरण अभियान के बाद से दुनिया की सरकारों की भागीदारी दावोस में बढ़ी है। असमानता के कई रूप हैं, उनमें आर्थिक असमानता सबसे प्रमुख है, जो दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है।  

ऑक्सफ़ैम क्या है?

ऑक्सफोर्ड कमेटी फॉर फ़ैमीन यानी ऑक्सफ़ैम, वैश्विक-गरीबी को दूर करने के इरादे से गठित ब्रिटिश संस्था 1942 से काम कर रही है। इसके साथ 21 संस्थाएं और जुड़ी हैं। यह संस्था दुनियाभर में मुफलिसों और ज़रूरतमंदों की सहायता करती है और भूकंप, बाढ़ या अकाल जैसी आपदाओं के मौके पर राहत पहुँचाती है। वैश्विक असमानता पर केवल ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट ही नहीं आती। पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब भी इस सिलसिले में शोध-कार्य करती है। इस लैब ने 7 दिसंबर 2021 को वर्ल्ड इनइक्वैलिटीरिपोर्ट-2022 जारी की थी। इसे तैयार करने में लुकाच चैंसेल, टॉमस पिकेटी, इमैनुएल सेज़ और गैब्रियल जुचमैन ने करीब चार साल तक मेहनत की थी।

जानलेवा विषमता

17 जनवरी को ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट जारी हुई और 17-21 जनवरी तक दावोस सम्मेलन हुआ। ऑक्सफ़ैम-रिपोर्ट का शीर्षक है ‘इनइक्वैलिटीकिल्स यानी जानलेवा विषमता।’ हालांकि इसमें वैश्विक-संदर्भ हैं, पर हमारी दिलचस्पी भारत में ज्यादा है। इसमें कहा गया है कि 2021 में भारत के 84 फीसदी परिवारों की आय घटी है, पर इसी अवधि में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। मार्च 2020 से 30 नवंबर, 2021 तक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये (313 अरब डॉलर) से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपये (719 अरब डॉलर) हो गई है, जबकि 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक देशवासी आत्यंतिक गरीबी-रेखा के दायरे में आ गए।

अरबपतियों की चाँदी

वैश्विक संदर्भ में रिपोर्ट कहती है कि कोरोना महामारी के दौर में दुनिया ने अरबपतियों की संपदा में अभूतपूर्व वृद्धि होते देखी है। कोविड-19 के संक्रमण के बाद से हरेक 26 घंटे में एक नया अरबपति पैदा हुआ है। दुनिया के 10 सबसे अमीर व्यक्तियों की इस दौरान संपत्ति दोगुनी हो गई, जबकि मार्च, 2020 से नवंबर, 2021 के बीच, कम से कम 16 करोड़ लोग गरीबी में धकेल दिए गए। चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा ऐसा देश है, जहां अरबपतियों की संख्या सबसे अधिक है। फ्रांस, स्वीडन और स्विट्जरलैंड की तुलना में 2021 में भारत में अरबपतियों की संख्या में 39 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब भारत में बेरोजगारी दर शहरी इलाकों में 15 फीसदी तक है और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमरा रही है। कोरोना संक्रमण के दौर में देश के स्वास्थ्य बजट में 2020-21 के संशोधित अनुमान से 10 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। शिक्षा के आवंटन में 6 फीसदी की कटौती की गई, जबकि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन कुल बजट के 1.5 फीसदी से 0.6 हो गया। इस असमानता को आर्थिक हिंसा करार दिया गया है, जो तब होती है, जब सबसे अमीर और ताकतवर लोगों के लिए सहूलियत वाली ढांचागत नीतियां बनाई जाती हैं।

Monday, June 21, 2021

दुनिया पर भारी पड़ेगी वैक्सीन-असमानता


ब्रिटेन के कॉर्नवाल में हुए शिखर सम्मेलन में जी-7 देशों ने घोषणा की है कि हम गरीब देशों के 100 करोड़ वैक्सीन देंगे। यह घोषणा उत्साहवर्धक है, पर 100 करोड़ वैक्सीन ऊँट में मुँह में जीरा जैसी बात है। दूसरी तरफ खबर यह है कि दक्षिण अफ्रीका में आधिकारिक रूप से कोविड-19 की तीसरी लहर चल रही है। वहाँ अब एक्टिव केसों की संख्या एक महीने के भीतर दुगनी हो रही है और पॉज़िटिविटी रेट 16 प्रतिशत के आसपास पहुँच गया है, जो कुछ दिन पहले तक 9 प्रतिशत था। सारी दुनिया में तीसरी लहर को डर पैदा हो गया है। ब्रिटेन में भी तीसरी लहर के शुरूआती संकेत हैं।

इतिहास बताता है कि महामारियों की लहरें आती हैं। आमतौर पर पहली के बाद दूसरी लहर के आने तक लोगों का इम्यूनिटी स्तर बढ़ जाता है। पर दक्षिण अफ्रीका और भारत में यह बात गलत साबित हुई। चूंकि अब दुनिया के पास कई तरह की वैक्सीनें भी हैं, इसलिए भावी लहरों को रोकने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनिया की बड़ी आबादी को समय रहते टीके लगा दिए जाएं, तो सम्भव है कि वायरस के संक्रमण क्रमशः कम करने में सफलता मिल जाए, पर ऐसा तभी होगा, जब वैक्सीनेशन समरूप होगा।

टीकाकरण की विसंगतियाँ

दुनिया में टीकाकरण इस साल जनवरी से शुरू हुआ है। इसकी प्रगति पर नजर डालें, तो वैश्विक-असमानता साफ नजर आएगी। दुनिया के 190 से ज्यादा देशों में इस हफ्ते तक 2.34 अरब से ज्यादा टीके लग चुके हैं। वैश्विक आबादी को करीब 7.7 अरब मानें तो इसका मतलब है कि करीब एक तिहाई आबादी को टीके लगे हैं। पर जब इस डेटा को ठीक से पढ़ें, तो पता लगेगा कि टीकाकरण विसंगतियों से भरा है।

Monday, May 24, 2021

वैक्सीन ने उघाड़ कर रख दी गैर-बराबरी की चादर

कोविड-19 ने मानवता पर हमला किया है, पर उससे बचाव हम राष्ट्रीय और निजी ढालों तथा छतरियों की मदद से कर रहे हैं। विश्व-समुदाय की सामूहिक जिम्मेदारी का जुमला पाखंडी लगता है। वैश्विक-महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीन की योजनाएं भी सरकारें या कम्पनियाँ अपने राजनीतिक या कारोबारी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कर रही हैं। पिछले साल जब महामारी ने सिर उठाया, तो सबसे पहले अमीर देशों में ही वैक्सीन की तलाश शुरू हुई। उनके पास ही साधन थे।

वह तलाश वैश्विक मंच पर नहीं थी और न मानव-समुदाय उसका लक्ष्य था।  गरीब तो उसके दायरे में ही नहीं थे। उन्हें उच्छिष्ट ही मिलना था। पिछले साल अप्रेल में विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोलीशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सेपी) और ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइज़ेशन यानी गावी ने गरीब और मध्यम आय के देशों के लिए वैक्सीन की व्यवस्था करने के कार्यक्रम कोवैक्स का जिम्मा लिया। इसके लिए अमीर देशों ने दान दिया, पर यह कार्यक्रम किस गति से चल रहा है, इसे देखने की फुर्सत उनके पास नहीं है।

अमेरिका ने ढाई अरब दिए और जर्मनी ने एक अरब डॉलर। यह बड़ी रकम है, पर दूसरी तरफ अमेरिका ने अपनी कम्पनियों को 12 अरब डॉलर का अनुदान दिया। इतने बड़े अनुदान के बाद भी ये कम्पनियाँ पेटेंट अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं। कम से कम महामारी से लड़ने के लिए कारोबारी फायदों को छोड़ दो।   

गरीबों की बदकिस्मती

इस साल मार्च तक 10 करोड़ डोज़ कोवैक्स कार्यक्रम को मिलनी थीं, पर अप्रेल तक केवल 3.85 करोड़ डोज़ ही मिलीं। उत्पादन धीमा है और कारोबारी मामले तय नहीं हो पा रहे हैं। जनवरी में गावी ने कहा था कि जिन 46 देशों में टीकाकरण शुरू हुआ है, उनमें से 38 उच्च आय वाले देश हैं। अर्थशास्त्री जोसफ स्टिग्लिट्ज़ ने वॉशिंगटन पोस्ट के एक ऑप-एडिट में कहा, कोविड-वैक्सीन को पेटेंट के दायरे में बाँधना अनैतिक और मूर्खता भरा काम होगा।

Saturday, September 30, 2017

असमानता भरा विकास

चुनींदा-1
बिजनेस स्टैंडर्ड के सम्पादक टीएन नायनन के साप्ताहिक कॉलम में इस बार टॉमस पिकेटी और लुकास चैसेल के एक ताजा शोधपत्र का विश्लेषण किया गया है। टॉमस पिकेटी हाल के वर्षों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के संजीदा विश्लेषकों में शामिल किए जा रहे हैं। नायनन के आलेख का यह हिंदी अनुवाद है जो बिजनेस स्टैंडर्ड के हिंदी संस्करण में प्रकाशित हुआ है। पूरे लेख का लिंक नीचे दिया हैः-

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की धीमी प्रगति को लेकर मोदी सरकार गंभीर आलोचनाओं के घेरे में है। इस चर्चा से यह भी साफ होता है कि मुखर जनता की राय में जीडीपी वृद्धि ही ïराष्ट्रीय उद्देश्य के लिहाज से केंद्र में होनी चाहिए। बढ़ती असमानता के बारे में हाल में प्रकाशित एक शोधपत्र पर चर्चा न होना भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है। थॉमस पिकेटी (कैपिटल के चर्चित लेखक) और सह-लेखक लुकास चैंसेल ने 'फ्रॉम ब्रिटिश राज टू बिलियनरी राज?' शीर्षक वाला यह पत्र पेश किया है।