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Wednesday, February 28, 2024

हिंद महासागर में ‘चीनी इशारे’ और मालदीव के तेवर


लद्दाख की सीमा पर चल रहे गतिरोध को तोड़ने के लिए गत 19 फरवरी को भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की बातचीत का 19वाँ दौर भी पूरा हो गया, पर कोई नतीजा निकल कर नहीं आया. एजेंसी-रिपोर्टों के अनुसार पिछले साढ़े तीन साल से ज्यादा समय से चले आ रहे गतिरोध को खत्म करने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा है.

निष्कर्ष यह है कि चीन इस समस्या को बनाए रखना चाहता है. उसकी गतिविधियाँ केवल उत्तरी सीमा तक सीमित नहीं हैं. वह हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहा है. दूसरी तरफ भारत लगातार विश्व-समुदाय का ध्यान चीनी-दादागीरी की ओर खींच रहा है.  

Wednesday, October 4, 2023

मालदीव में राजनीतिक-परिवर्तन के मायने


मालदीव में राष्ट्रपति पद के चुनाव में चीन-समर्थक मुहम्मद मुइज़्ज़ू की विजय का हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय रणनीति पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह कुछ समय बाद स्पष्ट होगा, पर आमतौर पर माना जा रहा है कि प्रभाव पड़ेगा ज़रूर. नए राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू ने पहली घोषणा यही की है कि मैं देश में तैनात भारतीय सैनिकों को वापस भेजने के वायदे को पूरा करूँगा. अलबत्ता पिछले कुछ वर्षों का अनुभव कहता है कि हालात 2013 से 2018 के बीच जैसे नहीं बनेंगे. देश की नई सरकार भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर चलना चाहेगी.

यह चुनाव मुइज़्ज़ू के 'इंडिया आउट' और इब्राहिम सोलिह के इंडिया फर्स्ट के बीच हुआ था, जिसमें मुइज़्ज़ू को जीत मिली. दोनों देशों में मालदीव पर अपने असर को लेकर अरसे से होड़ चल रही है. चुनाव का यह नतीजा भारत और चीन से मालदीव के रिश्तों को एक बार फिर परिभाषित करेगा.

पिछले पाँच साल से वहाँ भारत-समर्थक सरकार थी, पर अब चीन फिर से वहाँ की राजनीति में अपने पैर जमाएगा. इस दौर में चीन को वैसी ही सफलता मिलेगी या नहीं, अभी कहना जल्दबाजी होगी. चीन के कर्जों को लेकर हाल के वर्षों में बांग्लादेश, श्रीलंका और यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी विरोध हुआ है. क्या मालदीव इस बात से बचा रहेगा?

Monday, September 4, 2023

भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और जी-20

 


भारत-उदय-02

दिल्ली में हो रहे शिखर सम्मेलन में रूस और चीन की भूमिकाओं को लेकर कई तरह के संदेह हैं, पर कुछ नई बातें भी हो रही हैं. भारत ने पहल करके अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की पूर्ण-सदस्यता की पेशकश की है. इस प्रकार दुनिया की एक बड़ी आबादी को जी-20 के साथ जुड़कर अपने विकास का मौका मिलेगा. जी-20 की सदस्यता देश या संगठन की वैधानिकता और प्रभाव को व्यक्त करती है और उसे बढ़ाती भी है.

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के दौरान दुनिया की सुरक्षा केवल सैनिक-संघर्षों को टालने तक की मनोकामना तक सीमित थी. पिछले सात दशकों में असुरक्षा का दायरा क्रमशः बड़ा होता गया है. आर्थिक-असुरक्षा या संकट इनमें सबसे बड़े हैं. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण ऐसा क्षेत्र है, जिसका विस्तार वैश्विक है. हाल के वर्षों में इंटरनेट से जुड़े हमलों और अपराधों के कारण सायबर-सुरक्षा एक और नया विषय सामने आया है.

जी-20 का गठन मूलतः आर्थिक-संकटों का सामना करते हुए हुआ है. पर उसका दायरा बढ़ रहा है. दुनिया के 19 देशों और यूरोपियन यूनियन का यह ग्रुप-20 दुनिया की 85 फीसदी अर्थव्यवस्था और करीब दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, पर  अभी तक इसमें अफ्रीका महाद्वीप से केवल दक्षिण अफ्रीका ही इस ग्रुप का सदस्य है.

Sunday, September 3, 2023

चीन का नया नक्शा और नक्शेबाज़ी


गत 28 अगस्त को अपने चीन ने अपने राष्ट्रीय मानचित्र का नया संस्करण प्रकाशित किया है, जिसमें उसने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है। इस नक्शे में समूचे दक्षिण चीन सागर को भी चीनी सीमा के भीतर दिखाया गया है, जिसकी वजह से भारत के अलावा  फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम और ताइवान की सरकारों ने भी आपत्ति व्यक्त की है। उन्होंने कड़े शब्दों में आरोप लगाया है कि चीन उनके इलाकों पर दावा कर रहा है। फिलीपींस ने 2013 में चीन के राष्ट्रीय मानचित्र के प्रकाशन का विरोध भी किया था, जिसमें कलायान द्वीप समूह या स्प्राटली के कुछ हिस्सों को चीन की राष्ट्रीय सीमा के भीतर रखा गया था। चीनी नक्शा अचानक जारी नहीं हो गया है। पिछले कई वर्षों से जो बात मुँह-जुबानी कही जा रही थी, उसे अब उसने आधिकारिक रूप से जारी कर दिया है। 

अपने आर्थिक-विकास की बिना पर चीन ने न केवल सामरिक-शक्ति का खुला प्रदर्शन शुरू कर दिया है, बल्कि अपने नेतृत्व में एक नई विश्व-व्यवस्था बनाने की घोषणा भी की है। इसके लिए उसने अमेरिका से सीधा टकराव मोल ले लिया है। यूक्रेन में रूसी सैनिक-कार्रवाई के बाद से नए शीत-युद्ध की स्थितियाँ पैदा हो गई हैं। यह टकराव ताइवान में सैनिक-टकराव के अंदेशों को जन्म दे रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस हफ्ते दिल्ली में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन से अलग रहने का इशारा करके भी भारत पर दबाव डालने की कोशिश की है। पुतिन भी इस सम्मेलन में नहीं आएंगे। हालांकि पुतिन के नहीं आने के पीछे भारत से जुड़ी वजह नहीं है, पर इतना स्पष्ट है कि भारत उस पाले में नहीं है, जिस पाले में रूस और चीन हैं। हालांकि आज की परिस्थितियाँ शीत-युद्ध के दौर जैसी नहीं है और आज का भारत पचास के दशक जैसा भारत भी नहीं है।

व्यापारिक-युद्ध

अमेरिका के साथ चीन का व्यापारिक-युद्ध भी चल रहा है। इस दौरान चीनी अर्थव्यवस्था ने अपने आपको वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अच्छी तरह जोड़ लिया है, इसलिए उसका अलगाव आसान नहीं है। अमेरिका भी आज उतनी बड़ी ताकत नहीं है कि चीन को दबाव में ले सके। इसके साथ चीन ने कई तरह के कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें बॉर्डर रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) एक महत्वपूर्ण पहल है। उसने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और पश्चिम एशिया में अपने लिए दोस्त खोजने शुरू किए हैं। पाकिस्तान में ग्वादर के बंदरगाह का विकास वह कर ही रहा है। कई तरह के विवादों के बावजूद सीपैक पर उसका काम चल रहा है। इस बहाने पाक अधिकृत कश्मीर के कुछ हिस्सों में उसके सैनिक भी तैनात हैं। 

चीन की आक्रामक-नीतियों के कारण भारत का झुकाव धीरे-धीरे पश्चिमी देशों की ओर हो रहा है। भारत ने वैश्विक सप्लाई चेन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का फैसला किया है, जिसका मतलब है कि चीन के साथ कारोबार में कमी आएगी। यह काम बहुत जल्दी संभव नहीं है, पर अब जरूरी हो गया है। अमेरिका ने भी फंदा कसना शुरू कर दिया है, जिसकी वजह से चीनी अर्थव्यवस्था में अचानक तेजी से गिरावट आ रही है। चीन ने इस दबाव के जवाब में पश्चिम एशिया में सऊदी अरब, ईरान और यूएई को अपने पाले में खींचने के प्रयास किए हैं, जिसमें उसे सफलता भी मिली है। दूसरी तरफ पिछले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और फ्रांस की यात्राओं और एससीओ के शिखर सम्मेलन से भारतीय विदेश-नीति की दिशा स्पष्ट होने लगी है। पश्चिमी देशों के साथ भारत अपने सामरिक और आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर रहा है।  

Wednesday, August 30, 2023

लद्दाख के गतिरोध को खत्म करने में चीनी आनाकानी


भारत और चीन के बीच पिछले तीन साल से चले आ रहे गतिरोध को तोड़ने की कोशिश में पिछले हफ्ते हुई दो बड़ी गतिविधियों के बावजूद समाधान दिखाई पड़ नहीं रहा है. जोहानेसबर्ग में ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच संवाद ने उम्मीदों को जगाया था, पर लगता नहीं कि समाधान होगा.

कहना मुश्किल है कि अब सितंबर में दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाले जी-20 के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर दोनों नेताओं की मुलाकात होगी भी या नहीं. दोनों नेता उसके पहले 5 से 7 सितंबर तक जकार्ता में होने वाले आसियान शिखर सम्मेलन में भी शामिल होने वाले हैं. वैश्विक घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में भी दोनों देशों के बीच का तनाव कम होता दिखाई नहीं पड़ रहा है.  

चीनी आनाकानी 

भारत की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि जबतक सीमा पर शांति और स्थिरता नहीं होगी, दोनों देशों के रिश्तों में स्थिरता नहीं आ सकेगी. दूसरी तरफ 1977 के बाद से लगातार चीनी दृष्टिकोण रहा है कि किसी एक कारण से पूरे रिश्तों पर असर नहीं पड़ना चाहिए.

Wednesday, July 19, 2023

वैश्विक-मंच पर तेज होती जाएगी भारत-चीन स्पर्धा


पिछले तीन महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और फ्रांस की यात्राओं और एससीओ के शिखर सम्मेलन से भारतीय विदेश-नीति की दिशा स्पष्ट हो रही है. भारत पश्चिमी देशों के साथ अपने सामरिक और आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर रहा है, पर कोशिश यह भी कर रहा है कि उसकी स्वतंत्र पहचान बनी रहे.

भारत और चीन के रिश्तों में फिलहाल पाँच फ्रिक्शन एरियाज़ माने जा रहे हैं, जो पूर्वी लद्दाख सीमा से जुड़े हैं, पर प्रत्यक्षतः दो बड़े अवरोध हैं. एक कुल सीमा-विवाद और दूसरे पाकिस्तान. पिछले शुक्रवार को भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर और चीन के पूर्व विदेशमंत्री वांग यी के बीच जकार्ता में हुए ईस्ट एशिया समिट के हाशिए पर मुलाकात हुई. इसमें भी रिश्तों को सामान्य बनाने वाले सूत्रों का जिक्र हुआ, पर सीमा-विवाद सुलझ नहीं रहा है.

चीन की वैश्विक-राजनीति इस समय दुनिया को एक-ध्रुवीय बनने से रोकने की है, तो भारत एशिया को एक-ध्रुवीयबनने नहीं देगा.  भारत की रणनीति ग्लोबल साउथो एकजुट करने में है, जो विश्व-व्यवस्था को भविष्य में प्रभावित करने वाली ताकत साबित होगी. चीन भी इसी दिशा में सक्रिय है, इसलिए हमारी प्रतिस्पर्धा चीन से होगी.  

जी-20 और ब्रिक्स

सितंबर के महीने में नई दिल्ली में होने वाले जी-20 के शिखर सम्मेलन में और दक्षिण अफ्रीका में होने वाले ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में चीन के बरक्स यह प्रतिस्पर्धा और स्पष्ट होगी. चीन चाहता है कि ब्रिक्स की सदस्य संख्या बढ़ाई जाए, पर भारत चाहता है कि बगैर एक सुपरिभाषित व्यवस्था बनाए बगैर ब्रिक्स का विस्तार करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

चीन की मनोकामना जल्द से जल्द पश्चिमी देशों की बनाई विश्व-व्यवस्था के समांतर एक नई व्यवस्था खड़ी करने की है. भारत और चीन के दृष्टिकोणों का टकराव अब ब्रिक्स में देखने को मिल सकता है.   

ग्लोबल साउथ

भारत की कोशिश है कि 54 देशों के संगठन अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का सदस्य बनाया जाए. इससे इस समूह को वैश्विक प्रतिनिधित्व मिलेगा. भारत की ग्लोबल साउथ योजना का यह भी एक हिस्सा है. यों अफ्रीकन यूनियन को सभी शिखर सम्मेलनों में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है. उसकी सदस्यता को केवल औपचारिक रूप ही दिया जाना है.

जी-20 में यूरोपीय देशों का प्रभाव और दबाव है. भारत चाहता है कि इसमें विकासशील देशों की बातों को स्वर मिले. यह ऐसा समूह है, जिसमें जी-7 देशों और चीन-रूस गुट का सीधा टकराव देखने को मिल रहा है.

Sunday, April 30, 2023

एससीओ में भारत की चुनौतियाँ


वैश्विक राजनीति और भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने के लिए इस साल भारत में हो रही जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठकों पर ध्यान देना होगा। पिछले दिनों भारत में जी-20 के विदेशमंत्रियों की बैठक में वैश्विक अंतर्विरोध खुलकर सामने आए थे, वैसा ही इस शुक्रवार को नई दिल्ली में एससीओ रक्षामंत्रियों की बैठक में हुआ। विदेश-नीति के लिहाज से भारत और चीन के रक्षामंत्रियों की रूबरू बैठक से यह भी स्पष्ट हुआ कि दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ जल्दी पिघलने के आसार नहीं हैं। ऑप्टिक्स के लिहाज से यह बात महत्वपूर्ण थी कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने चीनी रक्षामंत्री ली शांगफू से सम्मेलन में हाथ नहीं मिलाया। वैश्विक-राजनीति की दृष्टि से पिछले साल समरकंद में हुए एससीओ के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की आमने-सामने की बैठक ने दुनिया के मीडिया ने ध्यान खींचा था और उम्मीद बँधी थी कि यूक्रेन की लड़ाई को रोकने में मदद मिलेगी। मोदी ने प्रकारांतर से पुतिन से कहा था कि आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है। यूक्रेन की लड़ाई बंद होनी चाहिए। पुतिन ने जवाब दिया कि मैं भारत की चिंता को समझता हूँ और लड़ाई जल्द से जल्द खत्म करने का प्रयास करूँगा। पर तब से अब तक दुनिया काफी आगे जा चुकी है और रिश्तों में लगातार तल्खी बढ़ती जा रही है। रक्षामंत्रियों की बैठक के बाद आगामी 4-5 मई को विदेशमंत्रियों की बैठक होने वाली है, उसमें भी किसी बड़े नाटकीय मोड़ की आशा नहीं है, सिवाय इसके कि उसमें पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी आने वाले हैं।

Saturday, March 11, 2023

चीन पर काबू पाने की कोशिशें

 देस-परदेश

अमेरिका-चीन और भारत-2, इस आलेख की पहली किस्त पढ़ें यहाँ


नब्बे के दशक के वैश्वीकरण का सबसे बड़ा फायदा चीन को मिला. पश्चिमी देशों के पूँजी निवेश के कारण उसकी अर्थव्यवस्था का तेज विस्तार हुआ. पश्चिम को शुरुआती वर्षों में चीन का उदय अपने पक्ष में जाता नज़र आता था, पर ऐसा हुआ नहीं. सामरिक और आर्थिक, दोनों मोर्चों पर चीन आज पश्चिम के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर कर आया है. असली टकराव अब अमेरिका और चीन के बीच है.

हाल में जी-20 की बैठक में भाग लेने आए रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि हम भारत और चीन की दोस्ती चाहते हैं. रूस, भारत और चीन के विदेशमंत्री इस साल त्रिपक्षीय समूह की बैठक के लिए मिलेंगे, पर भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि जब तक उत्तरी सीमा की स्थिति में सुधार नहीं होगा, भारत ऐसी किसी बैठक में भाग नहीं लेगा. आरआईसी (रूस, भारत, चीन) के विदेशमंत्री पिछली बार नवंबर 2021 में वर्चुअल माध्यम से मिले थे. फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से नहीं मिले हैं. लावरोव जो भी कहें भारत और चीन की प्रतिस्पर्धा आकाश में लिखी दिखाई पड़ती है. रूस और चीन के हित भी टकराते हैं, पर आज वे दिखाई पड़ नहीं रहे हैं.

अमेरिकी रुख

भारत और अमेरिका आज जितने करीबी नज़र आ रहे हैं, उतने अतीत में नहीं थे. 1971 में बांग्लादेश-युद्ध के दौरान अमेरिका की दिलचस्पी चीन से दोस्ती गाँठने की थी, ताकि वह रूस को संतुलित करने वाली ताकत बने. पर चीन अब भस्मासुर बन चुका है. बांग्लादेश की मुक्ति सामान्य लड़ाई नहीं थी. उस मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के नाम जो खुला पत्र लिखा था, उसे फिर से पढ़ने की जरूरत है.

उस दौरान अमेरिकी पत्रकारों ने अपने नेतृत्व की इस बात के लिए आलोचना भी की थी कि भारत को रूस के साथ जाने को मजबूर होना पड़ा. विदेशमंत्री एस जयशंकर ने गत 10 अक्तूबर को ऑस्ट्रेलिया में एक प्रेस-वार्ता के दौरान कहा कि हमारे पास रूसी सैनिक साजो-सामान होने की वजह है, पश्चिमी देशों की नीति. पश्चिमी देशों ने हमें रूस की ओर धकेला.

1998 में भारत के एटमी परीक्षण के फौरन बाद पाकिस्तान ने भी एटमी परीक्षण किया. दुनिया जानती थी कि पाकिस्तानी एटम बम वस्तुतः चीनी मदद से तैयार हुआ है. उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को एक पत्र लिखा, ‘हमारी सीमा पर एटमी ताकत से लैस एक देश बैठा है, जो 1962 में हमला कर भी चुका है… इस देश ने हमारे एक और पड़ोसी को एटमी ताकत बनने में मदद की है.’ कहा जाता है कि अमेरिकी प्रशासन ने इस पत्र को सोच-समझकर लीक किया. यह अमेरिकी नीति में बदलाव का प्रस्थान-बिंदु था.

चीन पर नकेल

अमेरिका अब उस प्रक्रिया को उलटना चाहता है, जिसके कारण चीन का आर्थिक महाविस्तार हुआ है. सवाल है कि क्या उसे सफलता मिलेगी? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड एक कदम है. उधर अमेरिका के दबाव में दिसंबर 2020 में हुआ यूरोपियन यूनियन और चीन का कांप्रिहैंसिव एग्रीमेंट ऑन इनवेस्टमेंट (सीएआई) खटाई में पड़ गया. इस निवेश समझौते (सीएआई) पर सहमति सात साल तक चली बातचीत के बाद जाकर बनी थी. इसमें व्यवस्था थी कि ईयू और चीन की कंपनियां एक दूसरे के यहां आसानी से निवेश कर पाएंगी.

Thursday, March 9, 2023

चीन को काबू करने की कोशिशें और भारत

 देस-परदेश

अमेरिका-चीन और भारत-1

ताज़ा खबर है कि चीन ने इस साल 5 फीसदी संवृद्धि का लक्ष्य तय किया है, जो पिछले 35 वर्षों का सबसे नीचा स्तर है. चीनी संसद में प्रधानमंत्री ली ख छ्यांग ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन यह घोषणा की है. सन 1978 में जबसे चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला है उसकी संवृद्धि औसतन नौ फीसदी तक रही है, पर अब उसमें ठहराव आ रहा है.

इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है तीन साल तक चली कोविड-19 महामारी. उधर तरफ अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी खेमे की कोशिश है कि चीन के आर्थिक और सैनिक विस्तार पर किसी तरह से रोक लगाई जाए. जिस तरह पहले अमेरिका ने सोवियत संघ को काबू में करने की कोशिशें की थीं, अब उसी तर्ज पर वह चीन को काबू करने का प्रयास कर रहा है.

क्या अमेरिका अपने इस प्रयास में सफल होगा? बड़ी संख्या में पर्यवेक्षक मानते हैं कि इसमें देर हो चुकी है. चीन अब अमेरिका के दबाव में आने वाला नहीं है. अब शीतयुद्ध की तरह दुनिया की अर्थव्यवस्था दो भागों में विभाजित नहीं है. वह आपस में जुड़ी हुई है. वह एक-ध्रुवीय भी नहीं है, पर अब दो-ध्रुवीय भी नहीं रहेगी, जैसी कि चीनी मनोकामना है.

दुनिया अब बहुध्रुवीय होने जा रही है. इसमें एक बड़ी भूमिका भारत की होगी. यह भूमिका केवल दुनिया को बहुध्रुवीय बनाने वाली ही नहीं है, बल्कि विश्व-व्यवस्था में संतुलन स्थापित करने की है. पर उसके पहले हमें चीन की जवाबी ताकत बनना होगा.

जी-20 की बैठकें

पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी देशों की चीन-विरोधी रणनीति ने धीरे-धीरे अपनी जगह बनाई है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका पिछले साल यूक्रेन पर हुए रूसी सैनिक हस्तक्षेप ने निभाई है. यूक्रेन में रूसी हठ के पीछे चीन का हाथ नज़र आने लगा है. पिछले हफ्ते भारत में हुई जी-20 की दो मंत्रिस्तरीय बैठकों में वैश्विक-राजनीति का यह टकराव खुलकर सामने आया. बेंगलुरु में वित्तमंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों तथा दिल्ली में विदेशमंत्रियों की बैठक, विश्व-व्यवस्था पर कोई आमराय बनाए बगैर ही संपन्न हो गईं.

हालांकि भारतीय-नजरिए में औपचारिक बदलाव नहीं है, पर इस घटनाक्रम का दूरगामी असर होगा, जिसके संकेत मिलने लगे हैं. नवंबर में जी-20 का शिखर सम्मेलन जब होगा, तब ज्यादा बड़ी चुनौतियाँ सामने आएंगी. जी-20 की बैठकों के फौरन बाद शुक्रवार को दिल्ली में हुई क्वॉड विदेशमंत्रियों की बैठक से इस मसले के अंतर्विरोध और ज्यादा खुलकर सामने आए हैं.

Wednesday, January 18, 2023

वैश्विक-घटनाक्रम में भारत की उत्साहवर्धक शुरुआत


 देस-परदेश

भारत की विदेश-नीति के लिहाज से साल की शुरुआत काफी उत्साहवर्धक है. जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता के कारण इस साल ऐसी गतिविधियाँ चलेंगी, जिनसे देश का महत्व रेखांकित होगा. इसकी शुरुआत वॉयस ऑफ ग्लोबल-साउथ समिट से हुई है, जिससे आने वाले समय की दिशा का पता लगता है.

यह भी सच है कि पिछले तीन-चार दशक के तेज विकास के बावजूद भारत अभी आर्थिक रूप से अमेरिका या चीन जैसा साधन-संपन्न नहीं है, फिर भी विकसित और विकासशील देशों के बीच सेतु के रूप में उसकी परंपरागत छवि काफी अच्छी है. सीमा पर तनाव के बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापार 2022 में बढ़कर 135.98 अरब डॉलर के अबतक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. इसमें भारत 100 अरब डॉलर से ज्यादा के घाटे में है.

चीन का विकल्प

यह घाटा फौरन दूर हो भी नहीं सकता, क्योंकि वैकल्पिक सप्लाई-चेन अभी तैयार नहीं हैं. कारोबारों को चलाए रखने के लिए हमें इस आयात की जरूरत है. पिछले चार दशक में विश्व की सप्लाई चेन का केंद्र चीन बना है. इसे बदलने में समय लगेगा. अब भारत समेत कुछ देश विकल्प बनने का प्रयास कर रहे हैं. देखते ही देखते दुनिया में मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादन भारत में होने लगा है.

पहले अमेरिका और अब जापान ने चीन को सेमीकंडक्टर सप्लाई पर पाबंदी लगाई है. जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की पिछले हफ्ते अमेरिका-यात्रा के दौरान चीन को घेरने की रणनीति दिखाई पड़ने लगी है. स्पेस, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, इलेक्ट्रिक वेहिकल्स, ऑटोमोबाइल्स, मेडिकल-उपकरणों, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर शस्त्र-प्रणालियों तक में सेमीकंडक्टर महत्त्वपूर्ण हैं.

Saturday, January 14, 2023

चीन के साथ व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर के पार


भारत और चीन के बीच व्यापार 2022 में बढ़कर 135.98 अरब डॉलर के अबतक के उच्च स्तर पर पहुंच गया। इसके साथ भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार हो गया। चीन के सीमा शुल्क विभाग के शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार भारत-चीन व्यापार 2022 में 8.4 प्रतिशत बढ़कर 135.98 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। चीन के सरकारी मीडिया के अनुसार 2022 में देश ने कोविड-19 के कारण आई सारी बाधाओं को पार करते हुए 5.96 ट्रिलियन डॉलर का कारोबार किया।

Tuesday, December 27, 2022

नेपाल और भारत के रिश्तों में चीन की बाधा


नेपाल-भारत रिश्ते-2

नेपाल की नई सरकार ने कहा है कि हम भारत और चीन के साथ अपने रिश्तों को संतुलित रखेंगे. यह बयान देने की जरूरत बता रही है कि कहीं पर कुछ असंतुलित या गड़बड़ है. रविवार को पुष्प कमल दहल के प्रधानमंत्री की घोषणा होने के बाद उन्हें बधाई देने वाले पहले शासनाध्यक्ष थे, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. उन्होंने ट्वीट किया, 'नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने पर हार्दिक बधाई। भारत और नेपाल के बीच अद्वितीय संबंध गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव और लोगों से लोगों के बीच संबंधों पर आधारित है। मैं इस दोस्ती को और मजबूत करने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने की आशा करता हूं।'

चीन ने भी बधाई दी, पर यह बधाई काठमांडू में चीन के दूतावास के प्रवक्ता ने ट्वीट करके दी. उसने ट्वीट में कहा, 'नेपाल के 44 वें प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति पर पुष्प कमल दहल प्रचंड को हार्दिक बधाई।' उधर प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद सोमवार को प्रचंड के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से चीन के क्रांतिकारी नेता माओत्से तुंग की 130वीं जयंती की बधाई देते हुए लिखा गया, ''अंतरराष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग के महान नेता कॉमरेड माओत्से तुंग की 130वीं जयंती पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.''

अविश्वसनीय नेपाल

यह फर्क प्रतीकों में है, पर यह है. हालांकि नेपाल की राजनीति का कोई भरोसा नहीं है. वहाँ किसी भी समय कुछ भी हो सकता है. वहाँ दो मुख्यधारा की कम्युनिस्ट पार्टियाँ हैं. दोनों एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ती रही हैं. 2017 के चुनाव के बाद दोनों ने मिलकर सरकार बनाई और फिर बड़ी तेजी से उनका विलय हो गया. विलय के बाद प्रचंड और केपी शर्मा ओली की व्यक्तिगत स्पर्धा में पार्टी 2021 में टूट गई.

इसबार दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, पर परिस्थितियाँ ऐसी बनीं, जिसमें दोनों फिर एक साथ आ गई हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों पार्टियों को नियंत्रित करने की कोशिश चीन की कम्युनिस्ट पार्टी खुलेआम करती है. सन 2015 के बाद से भारत के नेपाल के साथ रिश्ते लगातार डगमग डोल हैं. इसके पीछे नेपाल की राजनीति, जनता और समाज के जुड़ा दृष्टिकोण है, तो चीन की भूमिका भी है. वैश्विक महाशक्ति के रूप में चीन अपनी महत्वाकांक्षाओं को पक्के तौर पर स्थापित करना चाहता है.

कालापानी विवाद

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित भारत-नेपाल सीमा पर इन दिनों फिर से तनाव है. गत  4 दिसंबर की शाम नेपाल की तरफ से भारतीय मजदूरों पर पथराव किया गया, जिससे कई मजदूरों को चोटें आईं. पत्थरबाजी के विरोध में ट्रेड यूनियन ने भारत-नेपाल को जोड़ने वाले पुल को बंद कर दिया, जिससे पिथौरागढ़ के धारचूला से होकर दोनों देशों के बीच होने वाली आवाजाही बंद हो गई थी. हालांकि बाद में अधिकारियों के समझाने पर पुल खोल दिया गया है, पर तनाव जारी है.

Sunday, December 18, 2022

भारत-चीन टकराव और आंतरिक राजनीति


गत 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम से ज्यादा भारतीय राजनीति का विषय बन गई हैं। पाकिस्तान ने संरा में जहाँ कश्मीर के मसले को उठाया है और उनके विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ने नरेंद्र मोदी पर बेहूदा टिप्पणी की है, वहीं इसी अंदाज में आंतरिक राजनीति के स्वर सुनाई पड़े हैं। भारत के विदेशमंत्री जहाँ चीन-पाक गठजोड़ पर प्रहार कर रहे हैं, वहीं आंतरिक राजनीति नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर वार कर रही है। तवांग-प्रकरण देश की सुरक्षा और आत्म-सम्मान से जुड़ा है, पर आंतरिक राजनीति के अंतर्विरोधों ने इसे दूसरा मोड़ दे दिया है। इस हफ्ते संरा सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता में वैश्विक आतंकवाद को लेकर कुछ सवाल उठाए गए हैं, जिनके कारण भारत-चीन और पाकिस्तान के रिश्तों की तल्खी एकबार फिर से साथ उभर कर आई है।

टकराव और कारोबार

क्या वजह है कि नियंत्रण रेखा पर चीन ऐसी हरकतें करता रहता है, जिससे बदमज़गी बनी हुई है? पिछले दो-ढाई साल से पूर्वी लद्दाख में यह सब चल रहा था। अब पूर्वोत्तर में छेड़खानी का मतलब क्या है? क्या वजह है कि लद्दाख-प्रकरण में भी सोलह दौर की बातचीत के बावजूद चीनी सेना अप्रेल 2020 से पहले की स्थिति में वापस नहीं गई हैं? यह भारतीय राजनय की विफलता है या चीनी हठधर्मी है? सुरक्षा और राजनयिक मसलों के अलावा चीन के साथ आर्थिक रिश्तों से जुड़े मसले भी हैं। चीन के साथ जहाँ सामरिक रिश्ते खराब हो रहे हैं, वहीं कारोबारी रिश्ते बढ़ रहे हैं। 2019-20 में दोनों देशों के बीच 86 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था, जो 2021-22 में बढ़कर 115 अरब डॉलर हो गया। इसमें आयात करीब 94 अरब डॉलर और निर्यात करीब 21 अरब डॉलर का था। तमाम प्रयास करने के बावजूद हम अपनी सप्लाई चेन को बदल नहीं पाए हैं। यह सब एक झटके में संभव भी नहीं है।

क्या लड़ाई छेड़ दें?

राहुल गांधी के बयान ने आग में घी का काम किया। उन्होंने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को राजनीतिक बयानों से अब तक अलग रखा था, पर अब वे अपने आपको रोक नहीं पाए। उन्होंने कहा, चीन हमारे सैनिकों को पीट रहा है और देश की सरकार सोई हुई है। फौरन बीजेपी का जवाब आया, राहुल गांधी के नाना जी सो रहे थे और सोते-सोते उन्होंने भारत का 37000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र गँवा दिया। इस जवाबी कव्वाली से इस प्रसंग की गंभीरता प्रभावित हुई है। सवाल है कि भारत क्या करे? क्या लड़ाई शुरू कर दे? अभी तक माना यही जाता है कि बातचीत ही एक रास्ता है। इसमें काफी धैर्य की जरूरत होती है, पर ऐसे बयान उकसाते हैं। यूपीए की सरकार के दौरान भी ऐसी कार्रवाइयाँ हुई हैं, तब मनमोहन सिंह की तत्कालीन सरकार ने मीडिया से कहा था कि वे चीन के साथ सीमा पर होने वाली गतिविधियों को ओवरप्ले न करें। इतना ही नहीं एक राष्ट्रीय दैनिक के दो पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज भी की गई थी। 2013 में भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन ने पूर्वी लद्दाख में इसी किस्म की गश्त से भारत का 640 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हथिया लिया है। श्याम सरन तब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष थे। पहले सरकार ने और फिर श्याम सरन ने भी इस रिपोर्ट का खंडन कर दिया। भारत ने उस साल चीन के साथ बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीसीडीए) पर हस्ताक्षर किए थे। बावजूद इसके उसी साल अप्रैल में देपसांग इलाके में चीनी घुसपैठ हुई और उसके अगले साल चुमार इलाके में। दरअसल चीन के साथ 1993, 1996, 2005 और 2012 में भी ऐसे ही समझौते हुए थे, पर सीमा को लेकर चीन के दावे हर साल बदलते रहे।

किसने किसको पीटा?

9 दिसंबर को तवांग के यांग्त्से क्षेत्र में हुई घटना का विस्तृत विवरण अभी उपलब्ध नहीं है। कुछ वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए हैं, पर उन्हें विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को पीटा है। गलवान में भारतीय सैनिकों को मृत्यु की सूचना सेना और रक्षा मंत्रालय ने घटना के दिन ही दे दी थी। इस घटना की सूचना रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 13 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में दी है। प्राप्त सूचनाओं से दो बातें स्पष्ट हो रही हैं। एक यह कि चीनी सैनिकों ने पहाड़ी की चोटी पर एक भारतीय चौकी पर कब्जा करने की कोशिश की थी, जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली और वापस जाना पड़ा। दूसरी तरफ चीनी सेना के प्रवक्ता ने कहा है कि पीएलए (चीनी सेना) का दस्ता चीनी भूभाग पर रोजमर्रा गश्त लगा रहा था, तभी भारतीय सैनिक चीन के हिस्से में आ गए और उन्होंने चीनी सैनिकों को रोका। इस टकराव में दोनों पक्षों को सैनिकों को चोटें आई हैं, पर यह भी बताया जाता है कि चीनी सैनिकों को ज्यादा नुकसान हुआ। बताया जाता है कि टकराव के समय चीन के 300 से 600 के बीच सैनिक उपस्थित थे। सामान्य गश्त में इतने सैनिक नहीं होते। वस्तुतः चीन इस इलाके पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कई बार कर चुका है। अक्तूबर, 2021 में भी यांग्त्से में चीन ने 17,000 फुट ऊँची इस चोटी पर कब्जा करने का प्रयास किया था। इस चोटी से नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ के क्षेत्र का व्यापक पर्यवेक्षण संभव है। इस समय भारतीय वायुसेना भी इस इलाके में टोही उड़ानें भर रही है।

Tuesday, December 13, 2022

तवांग की झड़प पर रक्षामंत्री का संसद में वक्तव्य


अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीन और भारत के सैनिकों की झड़प पर लोकसभा में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सरकार का पक्ष रखा है. उन्होंने कहा, ''नौ दिसंबर 2022 को तवांग सेक्टर के यांग्त्से में पीएलए ने एकतरफ़ा कार्रवाई कर यथास्थिति बदलने की कोशिश की. लेकिन भारतीय सेना उन्हें रोका और इस दौरान हाथापाई हुई और चीनी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. इसमें किसी भी सैनिक की मौत नहीं हुई है. चीनी पक्ष से एक फ्लैग मीटिंग हुई और उनसे यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा. मैं इस सदन को आश्वस्त करना चाहता हूँ कि सरकार सीमा की सुरक्षा के लिए कोई समझौता नहीं करेगी.''

उन्होंने कहा, "चीनी सैनिकों ने नौ दिसंबर 2022 को तवांग सेक्टर के यांग्त्से इलाक़े में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अतिक्रमण कर यथास्थिति को एकतरफ़ा रूप से बदलने का प्रयास किया. चीन के इस प्रयास का हमारी सेना ने दृढ़ता के साथ सामना किया.

इस तनातनी में हाथापाई हुई. भारतीय सेना ने बहादुरी से चीनी सैनिकों को हमारे इलाक़े में अतिक्रमण करने से रोका और उन्हें उनकी पोस्ट पर वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया. इस झड़प में दोनों ओर के कुछ सैनिकों को चोटें आईं.''

समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, चीन ने कहा है कि भारत से लगी सरहद पर हालात स्थिर हैं. चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने वांग वेनबिन ने कहा कि भारत से सैन्य और राजनयिक स्तर पर बात चल रही है. अलबत्ता भारत में रक्षामंत्री के वक्तव्य के पहले ही इस मसले ने राजनीतिक रंग पकड़ लिया था. संसद के दोनों सदनों में विरोधी दलों ने आक्रोश व्यक्त किया. वे इस विषय पर संसद में चर्चा की माँग कर रहे थे. लोकसभा में कांग्रेस ने सदन से बहिर्गमन भी किया.

चीनी सैनिकों के साथ झड़प की ख़बरों पर कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए ढुलमुल रवैया छोड़ने को कहा है. कांग्रेस ने ट्वीट किया, "अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत-चीन के सैनिकों के बीच झड़प की ख़बर है. वक्त आ गया है कि सरकार ढुलमुल रवैया छोड़कर सख्त लहजे में चीन को समझाए कि उसकी यह हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी."

Wednesday, August 17, 2022

हंबनटोटा में चीनी-हठधर्मी सफल और कर्ज पर कर्ज से घिरता श्रीलंका

हंबनटोटा बंदरगाह में चीनी पोत युआन वांग 5

अंततः चीनी-हठधर्मी सफल हुई और उसके पोत युआन वांग 5 ने मंगलवार 16 अगस्त को श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर लंगर डाल दिए। इस परिघटना से भारत और श्रीलंका के रिश्ते कितने प्रभावित होंगे, यह अब देखना होगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि श्रीलंका सरकार के भविष्य के फैसले किस प्रकार के होंगे। चीनी पोत के आगमन की अनुमति पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देकर गए थे। आज देश में उनकी लानत-मलामत हो रही है। उधर चीनी कर्ज उतारने के लिए श्रीलंका को और कर्ज की जरूरत है, जिससे वह चीनी-जाल में फँसता जा रहा है।

इसके पहले भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि श्रीलंका संप्रभु देश है और अपने फैसले स्वयं करता है। हम इस पोत के आगमन को भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं, पर हमने इसके आगमन को रोकने के लिए श्रीलंका पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला है, अलबत्ता हम इस आगमन और उसके संभावित परिणामों का विवेचन और विश्लेषण करेंगे।

भारतीय चिंता

गत 8 अगस्त को चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि श्रीलंका पर दबाव डालने के लिए कुछ देशों की कथित सुरक्षा-चिंताएं निराधार हैं। इसपर 12 अगस्त को भारतीय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि श्रीलंका एक संप्रभु देश है और वह अपने स्वतंत्र निर्णय करता है…जहाँ तक हमारी सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का मामला है, यह किसी भी संप्रभु देश का अधिकार है। हम अपने हित में उचित निर्णय करेंगे। ऐसा करते समय हम अपने क्षेत्र की स्थिति, खासतौर से हमारी सीमा-क्षेत्र की परिस्थितियों को ध्यान में रखेंगे।

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमासिंघे ने अलबत्ता रविवार 14 अगस्त को कहा कि चीन को हंबनटोटा बंदरगाह के सैनिक-इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस सिलसिले में श्रीलंका के यू-टर्न को लेकर भारत सरकार की कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है। इस पोत के आने के बाद बीजिंग में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि श्रीलंका के सक्रिय सहयोग से युआन वांग 5 ने हंबनटोटा बंदरगाह में लंगर डाल दिए हैं।

संकट में श्रीलंका

यह पोत 16 अगस्त की सुबह लगभग 8 बजे हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचा और वहां लंगर डाला। यह 22 अगस्त तक यहाँ रहेगा। इसके स्वागत में हुए समारोह में पूर्व मंत्री सरथ वीरसेकेरा ने सरकार की ओर से भाग लिया और चीन गणराज्य से इस समय श्रीलंका को अपने ऋण के पुनर्गठन में मदद करने और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ बातचीत को श्रीलंका के दीर्घकालिक मित्र के रूप में सफल बनाने के लिए कहा। उन्होंने कहा, 'अगर हमें चीन समेत अपने अंतरराष्ट्रीय दोस्तों का समर्थन मिलता है तो हम देश में पैदा हुए आर्थिक संकट को दूर कर सकते हैं।

वीरसेकेरा ने कहा कि, पश्चिमी देश श्रीलंका, चीन और भारत के बीच के रिश्तों को नहीं समझ सकते हैं। हमारे तीन राष्ट्र बौद्ध धर्म, व्यापार और सहायता, रणनीतिक संबंधों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के आधार पर विकसित हुए हैं। एशिया को मजबूत करने के लिए एशियाई लोगों को मिलकर काम करना चाहिए। चीन श्रीलंका से अविभाज्य है...और एक भरोसेमंद दोस्त।

तीसरा पक्ष?

चीन सरकार ने अपने बयान में कहा है कि इस पोत के कार्य किसी देश की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं और किसी भी तीसरे पक्ष को इसके आवागमन में बाधा डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जब हंबनटोटा में उपस्थित श्रीलंका में चीन के राजदूत छी ज़ेनहोंग से भारत की चिता के बारे में और पोत के आगमन में हुए विलंब के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता, आपको इसके बारे में भारतीय मित्रों से पूछना चाहिए। पहले यह पोत 11 अगस्त को आने वाला था। इसपर भारत सरकार ने अपनी चिंता व्यक्त की तो श्रीलंका सरकार ने चीन से अनुरोध किया कि पोत के आगमन को रोक दिया जाए। इसके बाद पिछले शनिवार 13 अगस्त को श्रीलंका सरकार ने यू-टर्न लेते हुए पोत को आने के लिए हरी झंडी दिखा दी।

चीन इसे वैज्ञानिक सर्वेक्षण पोत बता रहा है, जबकि भारत मानता है कि यह जासूसी पोत है। इस पोत पर जिस तरह के रेडार और सेंसर लगे हैं, उनका इस्तेमाल उपग्रहों की ट्रैकिंग के लिए हो सकता है, तो अंतर महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों के लिए भी किया जा सकता है। बात सिर्फ इस्तेमाल की है। चीन इस पोत को असैनिक और वैज्ञानिक-शोध से जुड़ा बता रहा है, पर पेंटागन की सालाना रिपोर्ट के अनुसार इस पोत का संचालन चीनी सेना की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स करती है। यह चीनी नौसेना का पोत है।

चीनी अड्डा

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश से भागने के पहले 12 जुलाई को इस जासूसी जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की मंजूरी दी थी। उसके बाद वे नौसेना की एक बोट पर बैठकर पहले मालदीव भागे और फिर सिंगापुर। राजपक्षे परिवार के गृहनगर पर बना हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन के हवाले हो चुका है। चीन ने हंबनटोटा का विकास किया है, जिसके लिए श्रीलंका पर भारी कर्जा हो गया है। इस कर्जे को चुकाने के नाम पर 2017 में श्रीलंका ने यह बंदरगाह 99 साल के लीज पर चीन को सौंप दिया। 2014 में श्रीलंका ने चीनी परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी और युद्धपोत को कोलंबो में लंगर डालने की अनुमति दी थी। इस बात पर भारत ने आपत्ति जताई थी और अब सावधान भी हो गया है।

चीन वस्तुतः हंबनटोटा का इस्तेमाल अपने सैनिक अड्डे के रूप में करना चाहता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने 28 जून को श्रीलंका सरकार को इस पोत के बारे में जानकारी दी थी। उस समय श्रीलंका ने कहा था कि पोत हंबनटोटा में ईंधन भरेगा और कुछ खाने-पीने के सामान को लोड कर चला जाएगा। श्रीलंका पर चीन का भारी कर्जा है। श्रीलंका ने चीन से फिर नया कर्ज माँगा है, ताकि पुराने कर्ज को चुकाया (रिस्ट्रक्चर) जा सके। श्रीलंका के पर्यवेक्षकों को लगता है कि ऐसा होने जा रहा था, पर पोत के आगमन में रोक लगने से नई दिक्कतें पैदा हो रही थीं। दूसरी तरफ भारत भी श्रीलंका की सहायता कर रहा है। ऐसे में पोत के आगमन का विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

जासूसी पोत

युआन वांग 5 शक्तिशाली रेडार और अत्याधुनिक तकनीक से लैस है। यह जहाज अंतरिक्ष और सैटेलाइट ट्रैकिंग के अलावा इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल के लॉन्च का भी पता लगा सकता है। यह युआन वांग सीरीज का तीसरी पीढ़ी का ट्रैकिंग जहाज है। सैटेलाइट ट्रैकिंग के अलावा ऐसे पोत समुद्र तल की पड़ताल भी करते हैं, जिसकी जरूरत नौसेना के अभियानों में होती है। भारतीय नौसेना का पोत आईएनएस ध्रुव भी इसी किस्म का पोत है।

यह पोत करीब 750 किलोमीटर के दायरे में आकाशीय-ट्रैकिंग कर सकता है। इसके अलावा यह पानी के नीचे काफी गहराई तक समुद्री सतह की पड़ताल भी कर सकता है। इसका मतलब है कि भारत के कल्पाक्कम, कुदानकुलम परमाणु ऊर्जा केंद्र और दक्षिण भारत में स्थित अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़े केंद्र और छह बंदरगाह और समुद्र तट उसकी जाँच की परिधि में होंगे। इसके अलावा ओडिशा का चांदीपुर स्थित प्रक्षेपास्त्र परीक्षण केंद्र भी इसके दायरे में आ सकता है।

2017 में जब श्रीलंका ने चीन को 99 साल के पट्टे पर हंबनटोटा बंदरगाह सौंप दिया था, भारत और अमेरिका ने संदेह व्यक्त किया था कि इस फैसले से हमारे हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। युआन वांग वर्ग के पोत जिस इलाके से गुजरते हैं, उसके आसपास के क्षेत्रों के विवरण एकत्र कर सकते हैं। इसे ही जासूसी कहा जाता है।

करीब 1.1 अरब डॉलर के चीनी कर्जे से बना हंबनटोटा बंदरगाह व्यावसायिक रूप से विफल साबित हुआ। श्रीलंका उस कर्ज को चुकाने में नाकामयाब हुआ, तो 2017 में इसे 99 साल के पट्टे पर चीन को सौंप दिया गया। बंदरगाह के साथ-साथ 15,000 एकड़ जमीन भी चीन को दी गई है। जिस वक्त यह बंदरगाह सौंपा गया श्रीलंका पर चीन का कर्ज 8 अरब डॉलर का हो चुका था।

 

Sunday, August 14, 2022

‘वन-चाइना पॉलिसी’ से हट रहा है भारत


जून 2020 में गलवान-संघर्ष के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में काफी कड़वाहट आ गई है। ऐसा लगता है कि भारत ताइवान और तिब्बत के सवाल पर अपनी परंपरागत नीतियों से हट रहा है। हालांकि इस आशय की कोई घोषणा नहीं की गई है, पर इशारों से लगता है कि बदलाव हो रहा है।

भारत में चीन के राजदूत सन वाइडॉन्ग ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान उम्मीद जताई कि भारत को 'वन चाइना' पॉलिसी के प्रति अपने समर्थन को दोहराएगा। वाइडॉन्ग का ये बयान ऐसे समय आया है जब एक दिन पहले ही भारत ने स्पष्ट किया कि इस नीति पर समर्थन को दोहराने की कोई ज़रूरत नहीं है।

चीनी-उम्मीद

वाइडॉन्ग ने कहा, मेरा मानना है कि 'वन चाइना' पॉलिसी को लेकर भारत के नज़रिए में बदलाव नहीं आया है। हमें उम्मीद है कि भारत 'एक चीन सिद्धांत' के लिए समर्थन दोहरा सकता है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार वाइडॉन्ग ने पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को लेकर कहा कि दोनों पक्षों को बातचीत जारी रखनी चाहिए।

इससे पहले शुक्रवार को एक मीडिया ब्रीफ़िंग में, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 'एक-चीन' नीति का उल्लेख करने से परहेज़ किया। उन्होंने कहा कि 'प्रासंगिक' नीतियों पर भारत का रुख सबको पता है और इसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है।

चीन ने दावा किया है कि अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद लगभग 160 देशों ने वन-चाइना पॉलिसी के लिए अपना समर्थन दिया है। चीन, ताइवान को अपना अलग प्रांत मानता है। अतीत में भारत ने वन चाइना पॉलिसी का समर्थन किया था, लेकिन पिछले एक दशक से ज्यादा समय से सार्वजनिक रूप से या द्विपक्षीय दस्तावेज़ों में इस रुख़ को दोहराया नहीं है।

17 साल पहले

आखिरी बार भारत ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ पर करीब 17 साल पहले 2005 में बात की थी जब अपनी भारत यात्रा के दौरान, तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, भैरों सिंह शेखावत और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। उस समय भारतीय पक्ष ने तब स्वीकार किया था कि उन्होंने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को चीन जनवादी गणराज्य के क्षेत्र के हिस्से के रूप में मान्यता दी और तिब्बतियों को भारत में चीन विरोधी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया।

Wednesday, August 10, 2022

चीनी जहाज के चक्कर में फँस गया श्रीलंका


श्रीलंका ने चीन के पोत युआन वांग-5 के हंबनटोटा को टाल दिया है, जिसकी वजह से श्रीलंका-चीन और भारत तीनों के रिश्तों में ख़लिश आई है। पर संकट से घिरे श्रीलंका के लिए यह मसला गले की हड्डी बनने जा रहा है। यह मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। श्रीलंका सरकार ने फिलहाल पोत के आगमन को स्थगित किया है। उसे पक्की तौर पर रोका नहीं है। चीन सरकार इसे लेकर आग-बबूला है। कोलंबो स्थित चीनी दूतावास ने श्रीलंका सरकार से अपनी नाराज़गी व्यक्त की है। दूसरी तरफ यह भी साफ है कि भारत इस पोत को किसी कीमत पर हंबनटोटा तक आने नहीं देगा।

चीन इसे वैज्ञानिक सर्वेक्षण पोत बता रहा है, जबकि भारत मानता है कि यह जासूसी पोत है। इस पोत पर जिस तरह के रेडार और सेंसर लगे हैं, उनका इस्तेमाल उपग्रहों की ट्रैकिंग के लिए हो सकता है, तो अंतर महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों के लिए भी किया जा सकता है। बात सिर्फ इस्तेमाल की है। चीन इस पोत को असैनिक और वैज्ञानिक-शोध से जुड़ा बता रहा है, पर पेंटागन की सालाना रिपोर्ट के अनुसार इस पोत का संचालन चीनी सेना की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स करती है। यह चीनी नौसेना का पोत है।

11 को आने वाला था

भारत के पास शको-शुब्हे के पक्की वजहें हैं, इसीलिए जैसे ही इस पोत के आगमन की सूचना मिली तब से भारत लगातार विरोध कर रहा था। श्रीलंका इस मामले पर फैसला करने में देरी लगाता रहा। यह जहाज 11 से 17 अगस्त के बीच हंबनटोटा बंदरगाह पर रुकने वाला था। श्रीलंका की मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार, जहाज के आगमन को स्थगित करने के पहले राष्ट्रपति रानिल विक्रमासिंघे ने चीन के राजदूत छी ज़ेनहोंग के साथ बंद कमरे में बैठक की थी। हालांकि, श्रीलंका सरकार ने ऐसी बैठक से इनकार किया है।