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Tuesday, July 4, 2023

खालिस्तानी आंदोलन के पीछे है पाकिस्तान

रविवार 2 जुलाई को अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को स्थित भारतीय कौंसुलेट में कुछ खालिस्तान समर्थकों ने आग लगाने की कोशिश की। उधर कनाडा में भारतीय राजनयिकों के खिलाफ खालिस्तान-समर्थकों के पोस्टर लगे हैं। ऐसीी घटनाओं को लेकर भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके जैसे मित्र देशों से अनुरोध किया है कि वे खालिस्तानी तत्वों को स्पेस न दें। हाल में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं। हाल में कुछ खालिस्तानी नेताओं की  रहस्यमय मौत भी हुई है। शायद उनके बीच आपसी झगड़े भी हैं।

बहुत से लोगों को लगता है कि खालिस्तानी आंदोलन भारत के भीतर से निकला है और उसका असर उन देशों में भी है, जहाँ भारतीय रहते हैं। गहराई से देखने पर आप पाएंगे कि यह आंदोलन पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान की देन है और वहाँ से ही इस आंदोलन को प्राणवायु मिल रही है। इस आंदोलन के प्रणेताओं ने अपने खालिस्तान का जो नक्शा बनाया है, उसमें लाहौर और ननकाना साहिब जैसी जगहें शामिल नहीं हैं, जो पाकिस्तान में हैं।

गत 6 मई को पाकिस्तान से खबर आई कि आतंकी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स के मुखिया परमजीत सिंह पंजवड़ की लाहौर में हत्या कर दी गई। उसे जौहर कस्बे की सनफ्लावर सोसाइटी में घुसकर गोलियां मारी गईं। पंजवड़ 1990 से पाकिस्तान में शरण लेकर बैठा था और उसे पाकिस्तानी सेना ने सुरक्षा भी दे रखी थी। बताते हैं कि सुबह 6 बजे बाइक पर आए दो लोगों ने इस काम को अंजाम दिया और फिर वे फरार हो गए।

यह खबर दो वजह से महत्वपूर्ण है। पंजवाड़ का नाम आतंकवादियों की उस सूची में शामिल है, जिनकी भारत को तलाश है। दाऊद इब्राहीम की तरह वह भी पाकिस्तान में रह रहा था, पर वहाँ की सरकार ने कभी नहीं माना कि वह पाकिस्तान में है। भारत सरकार ने नवंबर, 2011 में 50 ऐसे लोगों की सूची पाकिस्तान को सौंपी थी, जिनकी तलाश है। गृह मंत्रालय ने 2020 में जिन नौ आतंकियों की लिस्ट जारी की थी, उनमें पंजवड़ का नाम आठवें नंबर पर था।

Tuesday, April 13, 2021

म्यांमार में गृहयुद्ध की आग


म्यांमार की फौज ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार का तख्ता-पलट करके दुनियाभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। सत्ता सेनाध्यक्ष मिन आंग लाइंग के हाथों में है और देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची तथा राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत अनेक राजनेता नेता हिरासत में हैं। संसद भंग कर दी गई है और सत्ताधारी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के ज्यादातर नेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं या घरों में नजरबंद हैं।

दूसरी तरफ पूरे देश में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना का आंदोलन चल रहा है। एक तरह से गृहयुद्ध की स्थिति है। हिंसा में अबतक सात सौ ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। पिछली 9 अप्रेल को सुरक्षाबलों ने को यांगोन शहर के पास प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाई जिससे 80 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई। सेना का कहना है कि उसने देश में तख़्तापलट इसलिए किया क्योंकि नवंबर में आंग सान सू ची की पार्टी ने हेरफेर से चुनाव जीता था। एनएलडी ने नवंबर में हुए चुनाव में भारी जीत हासिल की थी। चुनाव के आधार पर नवगठित संसद का अधिवेशन 1 फरवरी से होना था। सेना कह रही थी कि चुनाव में धाँधली हुई है, जो हमें मंजूर नहीं। सेनाध्यक्ष मिन आंग लाइंग ने नई संसद का सत्र शुरू होने के एक हफ्ते पहले धमकी दी थी कि संसद को भंग कर देंगे। एनएलडी ने इस धमकी की अनदेखी की।

सैनिक शासन

सत्ता से बेदखल कर दिए गए नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से सेना के ख़िलाफ़ कार्रवाई की अपील की। बेदखल सांसदों की ओर से कार्यवाहक विदेशमंत्री के रूप में काम कर रही ज़िन मार आंग ने कहा,  हमारे लोग अपने अधिकार और आज़ादी पाने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार हैं। देश में एक साल का आपातकाल घोषित करने के बाद सेना ने कहा है कि साल भर सत्ता हमारे पास रहेगी। फिर चुनाव कराएंगे।

विदेश-नीति से जुड़े अमेरिकी थिंकटैंक कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की वैबसाइट पर जोशुआ कर्लांज़िक ने लिखा है कि सेना एक साल की बात कह तो रही है, पर अतीत का अनुभव है कि यह अवधि कई साल तक खिंच सकती है। सेना के लिखे संविधान में लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता-पलट करके सैनिक शासन लागू करने की व्यवस्था है।