Wednesday, October 14, 2020

करन थापर के मार्फत मोईद युसुफ पाकिस्तानी मंशा और खबरें ‘प्लांट’ कर गए

 


मंगलवार 13 अक्तूबर को भारतीय मीडिया हाउस द वायर ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार मोईद युसुफ के साथ भारतीय पत्रकार करन थापर का एक इंटरव्यू प्रसारित किया, जिसे लेकर पाकिस्तान में जितनी चर्चा है, उतनी भारत में नहीं है। इंटरव्यू के प्रसारण के कुछ समय बाद ही पाकिस्तानी ट्विटर हैंडलों पर इसकी सूचनाएं प्रसारित होने लगीं। सामान्यतः खबरों की पाकिस्तानी वैबसाइट्स देर में अपडेट होती हैं, पर डॉन और ट्रिब्यून जैसी वैबसाइट में यह खबर फौरन लगी और लीड के रूप में लगी। अगली सुबह यानी आज डॉन के मुद्रित संस्करण में यह खबर लीड है। पाकिस्तानी मीडिया ने इस बात को उछाला कि भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की पेशकश की है, पर पाकिस्तान सरकार ने इस प्रस्ताव को यह कहकर नामंजूर कर दिया है कि जब तक कश्मीरियों को इस बातचीत में शामिल नहीं किया जाता, हम बात नहीं करेंगे।

इस इंटरव्यू में मोईद युसुफ ने कश्मीर को लेकर पाकिस्तानी दृष्टिकोण को पूरी तरह रेखांकित किया और लगता यह है कि भारतीय वार्ता-प्रस्ताव की बात को उन्होंने सोच-समझकर प्लांट किया। इस बात को पाकिस्तानी मीडिया में कहा जाता, तो शायद इसपर ध्यान कम जाता, पर चूंकि भारतीय पत्रकार के साथ बातचीत में भारतीय मीडिया में यह बात कही गई है, इसलिए इस खबर का महत्व था। बहरहाल भारतीय मीडिया ने इस खबर को बहुत प्रभावशाली तरीके से प्रसारित नहीं किया। एक तो वायर ने अंग्रेजी में इसे छापा और दूसरे हिन्दुस्तान टाइम्स की वैबसाइट पर यह खबर नजर आई। इस इंटरव्यू और खबर के सिलसिले में मेरे कुछ निष्कर्ष हैं, उन्हें मैं नीचे लिख रहा हूँ। आप इंटरव्यू को खुद देखें और अपने निष्कर्ष निकालें और उचित समझें तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय दें।

·      मेरे विचार से यह पता लगाना जरूरी है कि यह इंटरव्यू किसकी पहल पर हुआ। करन थापर या वायर ने पहल की या पाकिस्तान सरकार ने इसका प्रस्ताव किया। इसकी रूपरेखा कहाँ तैयार हुई। हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर में लिखा गया है कि आमतौर पर पाकिस्तान सरकार का कोई प्रतिनिधि सेना की अनुमति के बगैर विदेश-नीति से जुड़े सवालों पर बात नहीं करता। मोईद युसुफ देश की सेना के करीबी माने जाते हैं। हाल में शंघाई सहयोग परिषद की एक बैठक में उन्होंने भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की उपस्थिति में पाकिस्तान का नया नक्शा निकाल कर दिखाया था, जिसपर अजित डोभाल उस बैठक से बाहर चले गए थे।

·      मुझे इस बात में कोई खराबी नहीं लगती कि पाकिस्तानी विशेषज्ञों, सरकारी प्रतिनिधियों और जन-प्रतिनिधियों से बात की जाए। दोनों देशों के मीडिया को संवाद के द्वार खुले रखने चाहिए, पर हरेक संवाद की दिशा और उसके असर पर भी नजर डालने की जरूरत है। ऐसे इंटरव्यू तब सार्थक होंगे, जब वे समस्या के समाधान में उपयोगी हों। इस सिलसिले में हिंदू की विशेष संवाददाता सुहासिनी हैदर ने ट्विटर पर कहा है कि यदि भारत ने ऐसी कोई पेशकश की भी होगी, तो मोईद युसुफ ने मीडिया में इसका जिक्र करके ऐसी बातचीत में एक तरह से रोड़ा अटका दिया है। 

·      पहली नजर में मुझे लगता है कि मोईद युसुफ पाकिस्तानी दृष्टिकोण को रखने में न केवल कामयाब हुए, बल्कि कुछ बातें प्लांट भी कर गए, जो पाकिस्तानी डीप स्टेट की योजना का अंग लगती हैं। भारत के बातचीत के प्रस्ताव के बारे में केवल संकेत देकर और विस्तार से न बताकर उन्होंने पाकिस्तान सरकार का काम पूरा कर दिया है। इन बातों के पीछे कोई आधार है, तो भारत सरकार को उसे स्पष्ट करना चाहिए।

·      मोईद युसुफ ने तमाम बातें भारतीय दर्शकों को ध्यान में रखकर नहीं बोली हैं, बल्कि उनकी दिलचस्पी पाकिस्तान के दर्शकों के सामने यह साबित करने की है कि हम सही रास्ते पर हैं और भारत अकेला पड़ रहा है। इस इंटरव्यू के फौरन बाद पाकिस्तान के ट्विटर हैंडलों ने जितनी तेजी से उर्दू में लिखे संदेश प्रसारित किए उनसे जाहिर है कि यह सब पाकिस्तानी जनता का ध्यान खींचने का प्रयास है।

·      इमरान खान इस वक्त विवाद के घेरे में हैं। विरोधी दलों ने उन्हें घेर लिया है। नवाज शरीफ ने उनके साथ सेना को भी लपेटे में ले रखा है। हाल में इमरान खान  के विशेष सूचना एवं प्रसारण सहायक लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) आसिम बाजवा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। उन्होंने पहले इस पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसे इमरान खान ने स्वीकार नहीं किया, पर सोमवार 12 अक्तूबर को यह इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया। इमरान खान दरअसल सेना की कठपुतली हैं। लगता है कि इस इंटरव्यू की योजना पाकिस्तान सरकार की तरफ से ही बनी है।

·      सामान्यतः करन थापर के इंटरव्यू काफी तैयारी के साथ होते हैं और जिस व्यक्ति से वे बात करते हैं, उससे कई बार गलतियाँ हो जाती हैं। पर इस इंटरव्यू को देखने से लगता है कि करन थापर गलतियाँ कर रहे थे। साथ ही यह भी लगता था कि उनका होमवर्क अच्छा नहीं था। वे जिस तरह झुँझलाकर बात कर रहे थे, उससे उनकी कमजोरी जाहिर हो रही थी।

·      मोटे तौर पर मेरा अनुमान यही है कि इस इंटरव्यू के मार्फत पाकिस्तान सरकार ने अपने प्रचार के लिए भारतीय मीडिया का इस्तेमाल किया। बहरहाल इस इंटरव्यू से सम्बद्ध समाचारों को पढ़ें और इंटरव्यू को भी देखें और फिर अपनी राय बनाएं और ठीक लगे तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय दें। इस इंटरव्यू में उठाई गई बातों पर मैं अपनी राय अगली कड़ी में लिखूँगा। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में समाचार

द वायर में प्रकाशित समाचार

इंटरव्यू देखें

 


https://www.youtube.com/watch?v=gvM80Kyq3HM&feature=emb_logo

 

 

No comments:

Post a Comment